उक्त दोनों ही अपराधियों से उनके कंप्यूटर की हार्ड डिस्क समेत बहुत सारे सुबूत इकठ्ठा किये जा चुके हैं, शोषित बच्चों का परीक्षण किया जा रहा है… परंतु लंबी प्रक्रिया के बाद या इस बीच कितने और ऐसे ही अपराधी होंगे जो बच्चों को अपना शिकार बना चुके होंगे… कहा नहीं जा सकता।
निश्चित ही ये अपराध किसी एक व्यक्ति द्वारा अंजाम नहीं दिया गया बल्कि पूरा सिंडीकेट इसके पीछे होगा और इसमें रिटायर्ड सरकारी अधिकारियों को शामिल करना इसी रणनीति का हिस्सा रहा होगा क्योंकि रिटायर्ड अधिकारी पर ‘अविश्वास’ करना आसान नहीं होता। उम्र और ओहदा दोनों उनका कवच होते हैं।
साइबर क्राइम का ही एक और उदाहरण कल तब सामने आया जब #UPATS ने 14 साइबर अपराधियों को गिरफ्तार किया है, जो बैंकों में फर्जी खाते खोलकर विदेश से पैसे मंगाते थे, इस गैंग ने कोरोना काल में करोड़ों का ट्रांजेक्शन किया, इस मामले में दो विदेशी नागरिकों के खिलाफ लुकआउट नोटिस भी जारी किया गया है।
इनका मोडस ऑपरेंडी गलत नाम, पता से ऑनलाइन ही अलग-अलग बैंकों में खाता खोलना फिर अज्ञात स्रोतों से इन खातों में रकम मंगाना व इसके बाद कार्डलेस पेमेंट मोड से एटीएम द्वारा पैसे निकाल लेना था। यहां तक कि इन खातों को खोलने के लिए ये प्रीएक्टिवेटेड सिम डिस्ट्रीब्यूटर्स से लेते थे, ये डिस्ट्रीब्यूटर- रिटेलर अपनी दुकानों पर आने वाले लोगों की आईडी का मिस यूज करके उनकी जानकारी के बिना सिम एक्टिवेट करा देते थे, ऐसे प्रति सिम कार्ड एक्टीवेशन पर इन्हें 260 रुपया मिलता था।
साइबर ठग हमें सचेत कर रहे हैं कि आंखमूंदकर किसी हर उस एक शख्स को जो कि चंद रोज में अमीर हुआ हो, पर भरोसा नहीं करना है, उसकी सतत निगाहबानी हमें ही नहीं कई अन्य संभावित शिकारों को बचा सकती है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ( एनसीआरबी) के आंकड़ों को देखें तो साल 2017 में साइबर क्राइम की संख्या 21,796 , साल 2018 में 28248, साल 2019 में साइबर क्राइम के 44,546 मामले दर्ज किये गये और अब इसमें 80 प्रतिशत की रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी हो चुकी है …आगे यह सिलसिला कहां पहुंचेगा सोच कर ही थरथराहट होती है। इसका बस एक ही इलाज है ” सतर्कता और जागरूकता” वरना ज़रा सी चूक हमें और तमाम मासूमों को किस अंधकार में धकेल देगी कहा नहीं जा सकता ।
- अलकनंदा सिंंह
http://legendnews.in/made-blinded-by-crime-just-a-click-blog-by-sumitra-singh-chaturvedi/
आगे यह सिलसिला कहां पहुंचेगा सोच कर ही थरथराहट होती है। इसका बस एक ही इलाज है ” सतर्कता और जागरूकता” वरना ज़रा सी चूक हमें और तमाम मासूमों को किस अंधकार में धकेल देगी कहा नहीं जा सकता ।
जवाब देंहटाएं...सही बात
चिंतनशील प्रस्तुति
धन्यवाद कविता जी, आपके ब्लॉग पर कमेंट का स्थान न देखकर मैं आपकी पोस्ट पर कुछ नहीं कह पाती...काफी दिनों से सोच रही थी कि आपसे कहूं इस बारे में ...
हटाएंबिल्कुल सही।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शिवम
हटाएंचिंतनीय।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जोशी जी
हटाएंउपयोगी आलेख।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शास्त्री जी
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21.01.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
धन्यवाद दिलबाग जी
हटाएंविचार करने को विवश करती, मंथन करने को विवश करती, सचेत करती, रचना ।
जवाब देंहटाएंआभार अलकनंदा जी।
सादर।
धन्यवाद सधु जी
हटाएंउपयोगी पोस्ट
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी
हटाएंउपयोगी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंउपयोगी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनुराधा जी
हटाएंक्योंकि रिटायर्ड अधिकारी पर ‘अविश्वास’ करना आसान नहीं होता। उम्र और ओहदा दोनों उनका कवच होते हैं।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने और ये रिटायर्ड बुजुर्ग भी चन्द पैसों के खातिर नवजवानों को इस अपराध में धकेलने का जरिया सने हैं....हर साल के आँकड़े देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्थिति कितनी चिंताजनक है।
बहुत ही विचारणीय लैख।
बहुत बहुत सुन्दर लाभदायक
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