सावन के दूसरे सोमवार को भी बरसने का इंतज़ार है , अभी तक आधा-अधूरा मानसून तो आया परंतु सावन अभी भी दूर है, न तन भीगा, न मन नहाया। धरती की कोख से सौंधी ख़ुशबू भी नहीं फूटी, न मोर नाचे न कोयल कूकी परंतु इस सावन ने उस राग का ध्यान करा दिया जिसे राग मल्हार कहते हैं ।
इस मौसम में हम शिव की पूजा करते हैं। क्योंकि शिव काम का शत्रु है। इसीलिए सावन प्रकृति और मनुष्य के रिश्तों को समझने और उसके निकट जाने का मौका भी देता है।
बहरहाल आज बात राग की करते हैं तो Malhar के बारे में उत्सुकता जागती है। तो आइये जानते हैं कि क्या है राग Malhar और इसी राग का लोकगायकी में कैसे इसका इस्तेमाल किया गया है।
बहरहाल आज बात राग की करते हैं तो Malhar के बारे में उत्सुकता जागती है। तो आइये जानते हैं कि क्या है राग Malhar और इसी राग का लोकगायकी में कैसे इसका इस्तेमाल किया गया है।
भारत का राष्ट्रीय गीत ‘वन्दे मातरम’ भी मल्हार राग में गाया गया
मल्हार का मतलब बारिश या वर्षा है और माना जाता है कि मल्हार राग के गानों को गाने से वर्षा होता है। मल्हार राग को कर्नाटिक शैली में मधायामावती बुलाया जाता है। तानसेन और मीरा मल्हार राग में गाने गाने के लिए मशहूर थे। माना जाता है के तानसेन के ‘मियाँ के मल्हार’ गाने से सुखा ग्रस्त प्रदेश में भी बारिश होती थी।
मल्हार राग/ मेघ मल्हार, हिंदुस्तानी व कर्नाटक संगीत में पाया जाता है।
मल्हार राग के प्रसिद्द रचनायें हैं- कारे कारे बदरा, घटा घनघोर , मियाँ की मल्हार
दीपक राग से बुझे हुए दिये जलाने और मेघ मल्हार राग से बारिश करवाने की दंत कथाएँ तो हर पीढ़ी ने अपने बुजुर्गों से सुनी हैं। लेकिन क्या सचमुच ऐसा होता था? आइये समय के गलियारों से गुजरते हुए थोड़ा इतिहास के झरोखों से झांक कर देखें और पता करें की क्या तानसेन राग मल्हार का आलाप कर सच में वर्षा करवा देते थे।
मेघ-मल्हार और वर्षा
भारतीय संगीत की सबसे बड़ी खूबी यह है की इसका हर सुर, राग और हर पल, घड़ी, दिन और मौसम के हिसाब से रचे गए हैं। किस समय किस राग को गाया जाना चाहिए, इसकी जानकारी संगीतज्ञों को होती है। जैसे दीपक राग में दिये जलाने की शक्ति है, यह वैज्ञानिक रूप से सत्य है। इसका कारण, इस राग में सुरों की संरचना इस प्रकार की है की गायक के शरीर में गर्मी उत्पन्न हो जाती है। यही गर्मी वातावरण में भी आ जाती है और ऐसा प्रतीत होता है मानों अनेक दिये जल गए। यही नियम राग मेघ-मल्हार के संबंध में भी है। दरअसल मेघ-मल्हार राग की रचना, दीपक राग की गरम तासीर को कम करने के लिए करी गयी थी। इसलिए जब मेघ-मल्हार राग गाया जाता था तो वातावरण ऐसा हो जाता था, मानों कहीं बरसात हुई है।
भारतीय संगीत की सबसे बड़ी खूबी यह है की इसका हर सुर, राग और हर पल, घड़ी, दिन और मौसम के हिसाब से रचे गए हैं। किस समय किस राग को गाया जाना चाहिए, इसकी जानकारी संगीतज्ञों को होती है। जैसे दीपक राग में दिये जलाने की शक्ति है, यह वैज्ञानिक रूप से सत्य है। इसका कारण, इस राग में सुरों की संरचना इस प्रकार की है की गायक के शरीर में गर्मी उत्पन्न हो जाती है। यही गर्मी वातावरण में भी आ जाती है और ऐसा प्रतीत होता है मानों अनेक दिये जल गए। यही नियम राग मेघ-मल्हार के संबंध में भी है। दरअसल मेघ-मल्हार राग की रचना, दीपक राग की गरम तासीर को कम करने के लिए करी गयी थी। इसलिए जब मेघ-मल्हार राग गाया जाता था तो वातावरण ऐसा हो जाता था, मानों कहीं बरसात हुई है।
तानसेन द्वारा मेघ-मल्हार को गाना और बरसात का होना, मात्र संयोग हो सकता है, जो बार-बार नहीं होता।
यहां सुनिए श्री प्रकाश विश्वनाथ रिंगे की राग मेघ मल्हार में रचना
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक चर्चा मंच पर <a href="http://charchamanch.blogspot.com/2020/07/3764.html”> चर्चा - 3743 </a> में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
धन्यवाद दिलबाग जी
हटाएंउपयोगी पोस्ट।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शास्त्री जी
हटाएंबढ़िया जानकारी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी
हटाएंधन्यवाद नवीन जी
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