किसी व्यक्ति को पंगु बनाना हो तो उसकी रीढ़ पर हमला करो, किसी देश को पंगु बनाना हो तो उसकी अर्थव्यवस्था को ध्वस्त करो और किसी समाज को पंगु बनाना हो तो उसके परिवारों को मूल्यविहीन कर दो। यह किसी भी दुश्मनी को उसके अंजाम तक पहुंचाने की पहली और आखिरी शर्त होती है। परिवारों को मूल्यविहीन बनाने के लिए महिलाओं और बच्चों से ज्यादा सॉफ्ट टारगेट और कौन हो सकता है, और ऐसा ही किया जा रहा है उन कथित कॉमेडियंस द्वारा जो सोशल मीडिया के माध्यम से हिंदू धर्म का उपहास उड़ा रहे हैं। हमारे संस्कारों और देवी देवताओं को लेकर बेहूदा टिप्पणियां कर रहे हैं।
कहते हैं बच्चा अपने घर से ही प्रथम संस्कार सीखता है और जैसे संस्कार होते हैं, बच्चा कितना ही बड़ा क्यों ना हो जाए अपने जीवन के हर कदम पर उसके संस्कार उसके व्यवहार में दिखाई देते हैं परंतु इन कॉमेडियंस में ऐसा कुछ भी दिखाई नहीं देता। सौरव घोष, अतुल खत्री, कुणाल कामरा, हसन मिन्हाज, अग्रिमा जोशुआ, ऐलन डिजेनेरिस जैसे ना जाने कितने नाम हैं जो ख्याति के लालच में इतना गिरते जा रहे हैं कि अब इनके खिलाफ कानूनी तौर पर कार्यवाही की जा सकती है।
बेशक जितना निंदनीय है किसी धर्म का उपहास उड़ाया जाना, उससे कम निंदनीय नहीं है अपने धर्म का उपहास उड़ाने वालों को लेकर चुप्पी साध लेना। आजकल अभिव्यक्ति की आजादी के बहाने स्टैंडअप कॉमेडी के नाम पर यही सब हो रहा है। इनके लिए मैं एक शब्द इस्तेमाल करना चाहूंगी ”पुंगी”, सब जानते हैं कि पुंगी की अपनी कोई आवाज़ नहीं होती, जो इन्हें बजाता है ये उसी के सुर से बजती हैं। तो स्टैंडअप कॉमेडी के नाम पर जो ऐसा कर रहे हैं, ये तो बस पुंगी हैं, इनके पीछे की आवाजें कोई और हैं जिनकी मानसिकता ही हिंदू विरोधी है। पुंगी बने ये कथित कॉमेडियंस आखिर हिंदू विरोध का ही सुर क्यों निकाल रहे हैं, कहां से मिल रही है इन्हें ये ताकत, ये सोचना होगा। ये कॉमेडियंस ख्यात व कुख्यात होने व रातों रात हजारों लाखों व्यूअर्स हासिल करने के लिए हमारे न केवल धर्म के साथ उपहास कर रहे हैं बल्कि ये हमारे सामाजिक मूल्यों व संस्कारों पर भी घात कर रहे हैं।
इन कॉमेडियन पुंगियों ने किस तरह से हिंदू धर्म, हिंदू परंपरा, हिंदू भगवान, हिंदू अनुष्ठान, हिंदू रीति-रिवाज और हिंदू धार्मिक संस्कारों का उपहास उड़ाया है, उसकी एक बानगी देखिए कि हमारे प्रथम पूज्य गणपति का मजाक उड़ाते हुए एक स्टैंडअप कॉमेडियन ने तो यहां तक कह दिया कि वो नास्तिक ही इसलिए बना क्योंकि उसको ब्राह्मण कहलाना पसंद नहीं, और इस तरह ”हास्यास्पद मुद्राओं” से इशारे करके वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और आईएसआईएस को एक ही श्रेणी में देता है। ऐसे ही एक अन्य कॉमेडियन भगवान शिव के बारे में ऐसी आपत्तिजनक टिप्पणी करता है कि उसे लिखा नहीं जा सकता। छत्रपति शिवाजी पर हाल ही में एक महिला कॉमेडियन ने ऐसी ही विवादित टिप्पणी कर दी और शिवसेना (राजनैतिक कारणों से ही सही ) अगर विरोध ना करती तो वह माफी भी ना मांगती।
इन कॉमेडियन पुंगियों ने किस तरह से हिंदू धर्म, हिंदू परंपरा, हिंदू भगवान, हिंदू अनुष्ठान, हिंदू रीति-रिवाज और हिंदू धार्मिक संस्कारों का उपहास उड़ाया है, उसकी एक बानगी देखिए कि हमारे प्रथम पूज्य गणपति का मजाक उड़ाते हुए एक स्टैंडअप कॉमेडियन ने तो यहां तक कह दिया कि वो नास्तिक ही इसलिए बना क्योंकि उसको ब्राह्मण कहलाना पसंद नहीं, और इस तरह ”हास्यास्पद मुद्राओं” से इशारे करके वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और आईएसआईएस को एक ही श्रेणी में देता है। ऐसे ही एक अन्य कॉमेडियन भगवान शिव के बारे में ऐसी आपत्तिजनक टिप्पणी करता है कि उसे लिखा नहीं जा सकता। छत्रपति शिवाजी पर हाल ही में एक महिला कॉमेडियन ने ऐसी ही विवादित टिप्पणी कर दी और शिवसेना (राजनैतिक कारणों से ही सही ) अगर विरोध ना करती तो वह माफी भी ना मांगती।
ओटीटी पर रिलीज होती अनसेंसर्ड फिल्में हों या स्टैंडअप कॉमेडी सभी ने अपने अपने सॉफ्ट टारगेट तलाश कर रखे हैं, हमें अपने और अपने परिवारों को इस सांस्कृतिक आतंकवाद से बचाकर रखना होगा वरना देवी देवताओं व महापुरुषों के अपमान से चली ये साजिश हमारे संस्कारों, परिवारों से होती हुई पीढ़ियों को बरबाद कर देगी, स्टैंडअप कॉमेडी की इन पुंगियों का ये कुत्सित व्यवहार ”अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” की आड़ में नहीं छुप सकता, ये विशुद्ध रूप से सांस्कृतिक आतंकवाद है जो घरों में घुस रहा है। अभी तक सहिष्णुता ने ही हिंदू धर्म को बचा रखा है और इसी सहिष्णुता ने धर्म को विधर्मियों के हवाले कर दिया तो… इसलिए अब चुप्पी का नहीं, बोलने का समय है ताकि धर्म पर प्रहार का प्रतिउत्तर दिया जा सके।
- अलकनंदा सिंह
बहुत ही गंभीर विषय को उठाता लेख! आजकल छद्म बुद्धिजीवियों की एक ऐसी जहरीली प्रजाति यत्र-तत्र अपने फन काढ़े मिल जा रही है जिसने अपने कुसंस्कार की फुफकार से वातावरण को दूषित कर रखा है. इन्हें कभी माँ सरस्वती के नग्न चित्रों में कला की पराकाष्ठा दिखाई देती है तो कभी उल जलूल की धार्मिक टिप्पणियों में अपनी बुद्धि का शौर्य! सच कहें तो यह वर्ग हीनता और कुंठा के भाव से ग्रस्त है. ऐसे हम भी किसी भी तरह की कट्टरता या धार्मिक अंधविश्वास का समर्थन नहीं करते लेकिन अनर्गल प्रलाप करने वाले ऐसे कुसंस्कारी तत्वों ने इस समाज का बहुत अहित किया है. कभी कभी तो ऐसा लगता है कि देश के आमजनों में यदि कट्टर दक्षिण पंथियों के प्रति सहानुभूति की कोई लहर उगती दिख रही है तो वह इन्ही छद्म बुद्धिजीवियों के कुसंस्कार और इस लेख में वर्णित उनके जाहिल व्यवहार से उपजा विद्रोह और प्रतिकार का भाव है और यहीं कारण है कि अपने कुकृत्यों के भार से यह प्रजाति स्वतः दबकर न केवल सामजिक हाशिये से बाहर धकेलाते जा रही है, प्रत्युत विलुप्त प्रजाति घोषित होने की कगार पर भी यह यदि चली जाए तो कोई आश्चर्य नहीं! आभार और अभिनन्दन एक अत्यंत सारगर्भित विषय को इतनी प्रखरता से उठाने के लिए.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विश्वमोहन जी, आपने मेरे लेख का मर्म समझा, अत्यंत आभारी हूं। अभी इस पर और लिखूंगी क्यों कि इस पर अपना विरोध हमें लगातार दर्ज़ कराना होगा वरना इन लोगों द्वारा सनातन धर्म का उपहास लगातार उड़ाया जाता रहेगा। धन्यवाद
हटाएंहमें तो यही सिखाया गया था हिन्दू धर्म हमारे जीने का तरीका है और हम में आत्मसात है। धर्म को वोट की राजनीति से जोड़ना भी समझ में नहीं आया ना ही घर्म का मजाक उड़ाने की मानसिकता का पैदा हो जाना? विरोध किस का किया जाय? जड़े कहाँ हैं? और ये वृक्ष पनप कर कहाँ जाने की फिराक में है? राजनैतिक कारणों से ही सही? मतलब राजनीति में फायदा नहीं है तो वो भी नहीं बोलेंगे? विषय गम्भीर है। प्रश्न हजार।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जोशी जी , कारण राजनैतिक नहीं, परंतु प्रोपेगंडा अवश्य है जिसकी शुरुआत हमारे धर्म के उपहास से होती दिखाई दे रही हो परंतु उसकी शाखायें देश की आत्मा को हिलाने की कोशिश कर रही हैं।
हटाएंकेवल और केवल इस लिए के सनातन धर्म सहिष्णु है इसी बात को ले के हिंदुओ के हाथ बांध दिए जाते हे केवल यें दो कौड़ी के कॉमेडियन ही नहीं एक पूरी मानसिकता खड़ी हे हो ऐसे लोगो का पोषण कर रही है निश्चित ही इन का विरोध होना चाहिए
जवाब देंहटाएंधन्यवाद हिंंदीगुरू जी, विरोध में सभी को एकसाथ आना होगा और ये भी समझना होगा कि सेक्युलर जैसी कोई चीज नहीं होती। अभी तक सेक्युलर के नाम पर ही हमें अपने धर्म को लेकर ऐसी ऊलजलूल बातें सुननी पड़ती थीं परंतु अब नही। लेख का मर्म समझने के लिए आभार
हटाएंऐसे लोग जानते हैं कि किसी और का कुछ किया तो मंच से घर तक नहीं पहुँच पाएंगे ! और इनको यह भी अच्छी तरह मालुम है कि यदि इनकी गलत बात का सौ लोग विरोध करेंगे तो दस पक्ष में भी आ खड़े होंगे, उन्हीं दस के बल पर ये अपनी करतूतों से बाज नहीं आते ! और फिर, चलो छोडो क्या करना है, कह कर चल देने वाले हम
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शर्मा जी, लेख का मर्म समझने के लिए, परंतु अब चुप आत्मघाती होती जा रही है.... इसलिए लगातार प्रयास करने होंगे, विरोध दर्ज़ कराना ही नहीं कड़ा विरोध दर्ज़ कराना आवश्यक है। जो मैं तो अवश्य ही करती रहूंगी।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 23.7.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
अत्यंत धन्यवाद दिलबाग विर्क जी
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