अकसर हम पुलिस को या प्रशासन को किसी भी नाइंसाफी के लिए दोष दे देते हैं या किसी नीति के बेमानी होने पर शासन को कठघरे में ले आते हैं, इससे भी आगे एक झटके में सारे नेताओं को भ्रष्ट, नाकारा और चोर बताने से नहीं हिचकते परंतु जब बात हमारे अपने स्वार्थों पर आती है तो इसी ”नाकारा और चोर तंत्र” से येन केन प्रकारेण कथित तौर पर ”मदद” लेने से भी नहीं चूकते।
नौकरी लगवाने के लिए हम कौन सी कमी हम छोड़ देते हैं, फर्जी दस्तावेजों से लेकर घूस देने तक का सारा बंदोबस्त हाथोंहाथ हो जाता है, नौकरी पा भी जाते हैं तो फिर वही सिस्टम को गरियाने का सिलसिला बदस्तूर चलता रहता है।
उत्तरप्रदेश के प्राइमरी स्कूलों में शिक्षकों का मामला ऐसा ही एक गोल्ड माइन विषय है जिसमें कथित बेरोजगारों ने सिस्टम की कमियों का भरपूर लाभ उठाया है। शिक्षक भर्ती से लेकर फर्जी बीएड और ऐसे ही अन्य फर्जी दस्तावेजों से नियुक्ति ”धंधेबाजों” के लिए गोल्ड माइन बन गया।
उत्तरप्रदेश के प्राइमरी स्कूलों में शिक्षकों का मामला ऐसा ही एक गोल्ड माइन विषय है जिसमें कथित बेरोजगारों ने सिस्टम की कमियों का भरपूर लाभ उठाया है। शिक्षक भर्ती से लेकर फर्जी बीएड और ऐसे ही अन्य फर्जी दस्तावेजों से नियुक्ति ”धंधेबाजों” के लिए गोल्ड माइन बन गया।
उत्तरप्रदेश सरकार के गले की हड्डी बना 69000 शिक्षक भर्ती मामले में हाई कोर्ट द्वारा फैसला दिए जाने के बाद भी बार बार अलग अलग याचिकाओं का लगाया जाना और हर बार निर्णय आने के बाद फिर से नई याचिका लगाया जाना, कोई साधारण सी बात नहीं है। अंदाजा लगाइये कि यदि ये याचिका कर्ता नौकरी के लिए जरूरतमंद हैं, बेरोजगार हैं, बेरोजगारी के कारण आत्महत्या कर रहे हैं तो बार बार याचिका के लिए पैसा कहां से लाते हैं। हाईकोर्ट जाने की फीस ही 30-35 हजार से शुरू होती है, इन बेरोजगारों को कौन फंडिंग कर रहा है, तमाम ऐसे प्रश्न हैं जो इनकी मंशा पर प्रश्न उठाते हैं। आरक्षण, कटऑफ, गलत प्रश्न, शिक्षामत्र-बीएड-बीटीसी का समायोजन … बहाने तो बहुत हैं मगर मंजिल एक ही कि कैसे भी हो शिक्षक बन जाया जाये।
ये शिक्षक बनने का ही तो लालच था कि एक लाख रुपये देकर अनामिका शुक्ला के नाम पर पहले फर्जी दस्तावेज हासिल किये, फिर एक साथ 25 कस्तूरबा गांधी विद्यालयों में शिक्षिका बन संविदा पर नौकरी करने वाली प्रिया कल कासगंज पुलिस द्वारा पकड़ी गई। उसने कई राज उगले कि कैसे शिक्षिका की नौकरी हासिल की। बहरहाल क्राइम कैसे हुआ, इस कॉकस में कौन कौन शामिल हैं , ये सब तो पुलिस व विभागीय जांच में सामने आ ही जाएगा परंतु हमारे लिए चिंता व शर्म की बात है कि जिनके हाथों में बच्चों का भविष्य दे रहे हैं यदि वे ही रिश्वतखोरी, धोखाधड़ी, मक्कारियों करते मिलें तो क्या ये बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ ना होगा।
दरअसल शिक्षा विभाग एक ऐसा अंधा कुंआ बन गया है जहां एक बार नियुक्ति मिली नहीं कि फिर कौन देख रहा है कि वहां क्या हो रहा है, सभी ने अपनी अपनी सेटिंग कर रखी है, स्कूल के चौकीदार से लेकर अधिकारियों तक सबका अपना ” टैक्स” निर्धारित है।
प्रदेश में शिक्षा की ये बेहाली शिक्षकों की कमी के कारण नहीं बल्कि नाकाबिल शिक्षकों के कारण है, जो स्वयं 40 प्रतिशत कटऑफ पर चुने जायेंगे, उनसे अच्छी शिक्षा की उम्मीद बेमानी होगी। शिक्षक की अधिक भर्ती की नहीं, योग्य शिक्षकों की जरूरत है जो शिक्षा के साथ साथ संस्कार भी दे सकें ताकि हमारी अगली पीढ़ी सिस्टम को गरियाने की बजाय उसके प्रति जवाबदेह बने।
- अलकनंदा सिंंह
तो फिट नौकरशाही क्या बेवकूफों की संक्रमित जमात बन गयी है!
जवाब देंहटाएंनहीं विश्वमोहन जी, ऐसा नहीं हैं, अब भी बहुत अच्छे लोग हैं जो काम अच्छा भी कर रहे हैं परंतु निकृष्टों की बहुतायत ने सारी प्रक्रिया को तहसनहस करके रखा हुआ है। इतना ही काफी होगा कि बस हम स्वयं अपने लिए सचेत रहें , स्वयं को सुधारे रखें।
हटाएंभ्रष्टाचार देश की जड़ों को खोखला कर चुका है... बहुत बढ़िया सत्य उजागर करता लेख... 👌
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर पहली बार पधारने के लिए और टिप्प्णी के लिए धन्यवाद सुधा जी
हटाएंएक साथ 25 गजब है। प्रिया को तो देश चलाने वालों के साथ होना चाहिये था रायमशविरे देती रहती।
जवाब देंहटाएंतंज़ अच्छा है जोशी जी, परंतु ये खालिस तौर पर प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टों के एक खास कॉकस का रचाया खेल था। बहरहाल खुलासा हुआ है तो छिद्र भी मरम्मत किये जायेंगे।
हटाएंसही कहा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी
हटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा मंगलवार (09-06-2020) को
"राख में दबी हुई, हमारे दिल की आग है।।" (चर्चा अंक-3727) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।
…
"मीना भारद्वाज"
धन्यवाद मीना जी
हटाएंबहुत खूब।
जवाब देंहटाएंकुछ सोना खोटा और कुछ सुनार खोटा।
धन्यवाद शास्त्री जी
हटाएंअफ़सोस जनक हालात है , बढ़िया सामयिक लेख !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सतीश जी
जवाब देंहटाएंये देश के नायाब उदाहरण हैं भ्रष्टाचार के मगर सत्ताधीशों की कब नींद खुलती है
जवाब देंहटाएंसामयिक लेख
धन्यवाद हिंंदीगुरू जी , मैंने इसीलिए सत्ताधीशों की बात यहां की ही नहीं, यहां मैंने स्वयं (शिक्षकों) के भ्रष्ट होने और भ्रष्ट होने से बचाए रखने की बात कही है। सत्ताधीशों की आड़ लेकर शिक्षक अपनी कमियां और लालचों को छुपा नहीं सकते।
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