हमारे यहां ब्रज चौरासी कोस यात्रा में राजस्थान सीमा पर एक गांव है, यह गांव एक ऐसे हड्डी रोग विशेषज्ञ के लिए प्रसिद्ध है जो हड्डियों से संबंधित किसी भी रोग को अपने विशुद्ध देसी अंदाज़ में ठीक करते हैं। कुछ साल पूर्व वे काफी वृद्ध थे, अब वो जीवित हैं कि नहीं, ये तो मुझे नहीं पता परंतु फिलहाल उनका ये काम उनके बच्चों ने बखूबी संभाल रखा है और इनके देसी इलाज के सामने दिल्ली एनसीआर के हड्डी रोग विशेषज्ञ भी फीके हैं।
इलाज का भी इनका अपना ही तरीका है। अपने कॉमन सेंस को इस्तेमाल कर वे पहले रोगी की मनोदशा जानने का प्रयास करते हैं फिर उसके घर-परिवार व समाज-गांव की बात करते हुए ही रोगी की हड्डी को वे कब अपने सधे हाथों से नसों को टटोलते हुए ”सेट” कर देते हैं, पता ही नहीं चलता। एक्यूप्रेशर के संग लंबी कॉटन की धोतियों से बनी पट्टियां बांधकर वे शहद-चूना के साथ जड़ी-बूटी मिलाकर लेप लगा कर 15-15 दिन की सिटिंग के बाद रोगी को भला चंगा कर देते हैं परंतु फिर भी वे ”झोलाछाप” की श्रेणी में आते हैं। दरअसल हम ये अंतर ही नहीं कर पाए कि झोलाछाप कौन है और पारंपरिक औषधियों व इलाजों का जानकार कौन। सभी को एक ही पैमाने से नाप लिया।
ये कॉमन सेंस ही है कि रोगी अपने बारे में बात करते हुए ज्यादा दर्द महसूस नहीं करता और उनकी खास बात ये कि इलाज लगभग नि: शुल्क किया जाता है, बस वे सिर्फ शहद-चूना और धाेती की पट्टियों का पैसा ही लेते हैं जो बहुत मामूली होता है। ऐसे में रोगी की खुशी दोगुनी हो जाती है और मानसिक तौर आश्वस्त व खुश व्यक्ति जल्दी रिकवर करता है।
ये मात्र एक ऐसा उदाहरण है जो मेरी नज़र में आया। इन जैसे कितने ही देसी स्वास्थ्य विशेषज्ञ पूरे देश में बिखरे पड़े हैं। आप आदिवासी क्षेत्रों में चले जाइये, ऐसे ही असीमित ज्ञान वाले पूरी की पूरी आबादी की देख-रेख बड़े ही सधे हाथों से कर देते हैं। कोरोना ने हमें ये सिखा दिया है कि गांव, घर में मौजूद इलाज मामूली नहीं होते। सोचना होगा कि हम आज भी हाइड्रोक्लारोक्वीन से ज्यादा नीम, तुलसी, गिलोय, दालचीनी, कालीमिर्च के आयुष काढ़े को प्राथमिकता क्यों दे रहे हैं। इसलिए नहीं कि ये आधुनिक चिकित्सकों द्वारा प्रमाणित हैं बल्कि इसलिए कि सदियों से हम इन्हीं जैसे वात-पित्त और कफ नाशकों के सहारे बहुत ही अच्छा जीवन जीते आए हैं।
हालांकि सरकारी तौर पर ”इन विशेषज्ञों” को मान्यता देने का प्रावधान नहीं है क्योंकि वे सरकारी परीक्षा में पास नहीं हुए, सो ये गैरकानूनी ठहरे और इनका पीढ़ीगत ज्ञान अपराध की श्रेणी में आ गया। मैं यहां सिर्फ ”झोलाछाप” होने के कारण ना तो उनकी विशेषज्ञता को किसी भी एंगिल से कमतर आंक सकती हूं और ना ही ” झोलाछाप ” के गैर कानूनी दर्जे को गलत ठहरा रही हूं।
झोलाछाप गैर कानूनी इसलिए हैं क्योंकि तमाम झोलाछापों ने अपनी बुद्धि हीनता से रोगियों की जान तक ले ली है परंतु अब जब कि सेहत को चुनौती देती विपत्तियां हमारे सामने नए-नए रूप में सामने आ रही हैं तो हमें सोचना होगा कि हम विशेषज्ञता की नई परिभाषा गढ़ें और गांव-खेड़े तक मौजूद पारंपरिक विरासतों को फिर से सम्मान दें, साथ ही ठग झोलाछापोंं से सावधान रहें।
जहां तक बात है विशेषज्ञ चिकित्सकों की तो वो अपने ही इलाज को लेकर किस हद तक भ्रमित हैं, ये भी कोरोना काल ने बता दिया। अरबों रुपये का नया ”शोध कारोबार” शुरू हो ही चुका है, उनमें यही विशेषज्ञ ”अपने अपने दावे” करेंगे और आमजन …??
बहरहाल, ऐसे भ्रमित विशेषज्ञों पर यदि एक अनपढ़ मगर ”मास्टर” व्यक्ति अपनी विशेषज्ञता दर्ज कराता है तो इसमें हर्ज ही क्या है। क्यों ना इसे कानूनी बनाने की ओर कदम उठाया जाए ताकि जो व्यवहारिक ज्ञान गुदड़ियों में छिपा है वो जगजाहिर हो सके और ज्ञानी होने के बाद भी उन्हें सरकारी प्रताड़ना से दो चार ना होना पड़े, साथ ही ”झोलाछापियों” की ऐसी विशेषज्ञता का लाभ सरकार अपनी जन-जन तक जाने वाली योजनाओं में उठा सके क्योंकि आज भी ग्रामीण इनसे आसानी से बेतकल्लुफ हो पाता है बजाय बड़े बड़े विशेषज्ञ डॉक्टरों के।
- अलकनंदा सिंंह
http://legendnews.in/eclipse-of-expertise-on-common-sense/
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सार्थक आलेख।
जवाब देंहटाएंअच्छा विश्लेषण।
धन्यवाद शास्त्री जी
हटाएंबहुत सही विषय आपने उठाया है। हमें अपनी लुप्त ज्ञान विरासत को व्यवस्थागत और संस्थागत ढंग से सहेजने की आवश्यकता है। लेकिन यह काम इस क्लर्क बुद्धि वाली नौकरशाही से नहीं हो पाएगी।
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात कही आपने विश्वमोहन जी, क्लर्क बुद्धि वाली....वाह
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (06 जून 2020) को 'पर्यावरण बचाइए, बचे रहेंगे आप' (चर्चा अंक 3724) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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रवीन्द्र सिंह यादव
प्राचीन चिकित्सा पद्धति का महत्व आज की वैश्विक महामारी में लोकप्रिय होने के साथ पुनः चर्चा में आया है । आपके सुझाव सराहनीय है । बहुत अच्छा लेख ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी जानकारी दी. सूक्ष्म विश्लेषण करता सार्थक लेख.
जवाब देंहटाएंसादर
सहज ज्ञान की कद्र नहीं होती है ये तो कोरोना के कारण पुन चर्चा में आ गया
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया