सकारात्मक सोचों के ऊपर हावी होते इस क्रिटिकल समय में जब कि राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नेगेटिव ऊर्जा को प्रवाहित करने वाले अनेक लोग विध्वंसक सोचों के साथ उपस्थित हों तब उत्सवरूप में ''नवरात्रि'' एक ऊर्जा संकलन का प्रवाह बनकर हमारे समक्ष उपस्थित होती हैं। तभी तो सनातन धर्म में मनाए जाने वाले उत्सवों में एक नवरात्रि ही है जो मुख्य ऋतुओं के संधिकाल में आती है।
आज से नवरात्रि का शुभारंभ हो रहा है जिसे शक्ति, ऊर्जा, आस्था के आव्हान के साथ साथ नकारात्मक वृत्तियों को दूर रखने वाले दिनों के रूप में जाना जाता है और प्रतीकात्मक रूप से मूर्तिरूप में ध्यान का एक केंद्र बनाकर स्वयं को आदिशक्ति (आंतरिक ऊर्जा) को समेटने की क्रिया को मन शांति की ओर ले जाया जाता है और पूरे नौ दिन तक यह क्रिया अपने एक एक चरण पूरे करते हुए हमारे मन को आंतरिक व नैतिक रूप से सबल बनाती है।
नवरात्रि ‘शक्ति तत्व’ का उत्सव है। अगमा के अनुसार ‘शक्ति’ को तीन रूप में पूजा जाता है – इच्छा शक्ति, क्रिया शक्ति और ज्ञान शक्ति। पुराणों (या कल्पों) के अनुसार शक्ति को महाकाली, महालक्ष्मी और महा सरस्वती के रूप में पूजते हैं। नौ दिनों तक देवी महात्यम और श्रीमद देवी भागवतम का जाप किया जाता है|
यह अद्भुत है जहाँ एक ओर बाहरी तौर पर उत्सवी रूप है तो दूसरी ओर आप अपने भीतर की गहराई में जाकर आत्मज्ञान प्राप्त करने की प्रक्रिया से गुजरते हैं|
मन के छह विकार होते हैं – काम, क्रोध, लोभ, मद , मोह और ईर्ष्या। ये विकार किसी भी मनुष्य में नियंत्रण के बाहर हो सकते हैं और तब ये आध्यत्मिक पथ पर बाधा बन जाते हैं| इन नौ दिनों में ‘शक्ति’ की कृपा से ये विकार स्वतः ही मिट जाते हैं|
इसीलिये इन नौ दिनों में तपस्या और उपासना को महत्व दिया गया है जिसमें ध्यान बहुत महत्वपूर्ण है|
ध्यान से मन शांत होकर स्वयं में विश्व और विश्व में स्वयं को देख सकता है, ये ध्यान ही है जो दूसरों में कमियां देखने से पहले अपनी ओर देखता है, ये ध्यान ही है जो व्यक्ति को निर्लिप्त बना सकता है। और जब ऐसा होता है तो नकारात्मकता स्वयं उस दृष्टि में बदलने लगती है जो दूसरों के प्रयासों की सराहना, उनके औचित्य को समझ सके।
नवरात्रि देवी मंदिरों में जाकर नौ दिनों तक निराहार रहने का ही उत्सव नहीं बल्कि यह कर्म-ऊर्जा को शक्ति बनाकर उसे आमजन की ओर प्रवाहित करने का उत्सव है। यह उत्सव है नकारात्मकता को सकारात्मक प्रवाह की ओर ले जाने का। मौजूदा समय में इस ऊर्जा-उत्सव की बहुत आवश्यकता है।
देश की हवा में तैर रही नकारात्मक प्रवृत्तियों और व्यक्तियों पर अंग्रेजी का एक quote याद आ रहा है-
"stay way from negative people. they have a problem for every solution"
सो जोर शोर से मनाइये नवरात्रि उत्सव और मन से मनाइये ताकि ऊर्जा आपके भीतर बहे और इसका प्रवाह समाज के सकारात्मक कल्याण की ओर हो। सकारात्मकता और शांति के संवाहक भगवान श्रीराम ने भी की कुछ इस तरह थी नवरात्रि पूजा-
अजा, अनादि शक्ति अविनाशिनी सदा शंभु अरघंग निवासिनी,
जगसंभव पालन कारिनी निज इच्छा लीला वपु धारिणी।
-अलकनंदा सिंह
आज से नवरात्रि का शुभारंभ हो रहा है जिसे शक्ति, ऊर्जा, आस्था के आव्हान के साथ साथ नकारात्मक वृत्तियों को दूर रखने वाले दिनों के रूप में जाना जाता है और प्रतीकात्मक रूप से मूर्तिरूप में ध्यान का एक केंद्र बनाकर स्वयं को आदिशक्ति (आंतरिक ऊर्जा) को समेटने की क्रिया को मन शांति की ओर ले जाया जाता है और पूरे नौ दिन तक यह क्रिया अपने एक एक चरण पूरे करते हुए हमारे मन को आंतरिक व नैतिक रूप से सबल बनाती है।
नवरात्रि ‘शक्ति तत्व’ का उत्सव है। अगमा के अनुसार ‘शक्ति’ को तीन रूप में पूजा जाता है – इच्छा शक्ति, क्रिया शक्ति और ज्ञान शक्ति। पुराणों (या कल्पों) के अनुसार शक्ति को महाकाली, महालक्ष्मी और महा सरस्वती के रूप में पूजते हैं। नौ दिनों तक देवी महात्यम और श्रीमद देवी भागवतम का जाप किया जाता है|
यह अद्भुत है जहाँ एक ओर बाहरी तौर पर उत्सवी रूप है तो दूसरी ओर आप अपने भीतर की गहराई में जाकर आत्मज्ञान प्राप्त करने की प्रक्रिया से गुजरते हैं|
मन के छह विकार होते हैं – काम, क्रोध, लोभ, मद , मोह और ईर्ष्या। ये विकार किसी भी मनुष्य में नियंत्रण के बाहर हो सकते हैं और तब ये आध्यत्मिक पथ पर बाधा बन जाते हैं| इन नौ दिनों में ‘शक्ति’ की कृपा से ये विकार स्वतः ही मिट जाते हैं|
इसीलिये इन नौ दिनों में तपस्या और उपासना को महत्व दिया गया है जिसमें ध्यान बहुत महत्वपूर्ण है|
ध्यान से मन शांत होकर स्वयं में विश्व और विश्व में स्वयं को देख सकता है, ये ध्यान ही है जो दूसरों में कमियां देखने से पहले अपनी ओर देखता है, ये ध्यान ही है जो व्यक्ति को निर्लिप्त बना सकता है। और जब ऐसा होता है तो नकारात्मकता स्वयं उस दृष्टि में बदलने लगती है जो दूसरों के प्रयासों की सराहना, उनके औचित्य को समझ सके।
नवरात्रि देवी मंदिरों में जाकर नौ दिनों तक निराहार रहने का ही उत्सव नहीं बल्कि यह कर्म-ऊर्जा को शक्ति बनाकर उसे आमजन की ओर प्रवाहित करने का उत्सव है। यह उत्सव है नकारात्मकता को सकारात्मक प्रवाह की ओर ले जाने का। मौजूदा समय में इस ऊर्जा-उत्सव की बहुत आवश्यकता है।
देश की हवा में तैर रही नकारात्मक प्रवृत्तियों और व्यक्तियों पर अंग्रेजी का एक quote याद आ रहा है-
"stay way from negative people. they have a problem for every solution"
सो जोर शोर से मनाइये नवरात्रि उत्सव और मन से मनाइये ताकि ऊर्जा आपके भीतर बहे और इसका प्रवाह समाज के सकारात्मक कल्याण की ओर हो। सकारात्मकता और शांति के संवाहक भगवान श्रीराम ने भी की कुछ इस तरह थी नवरात्रि पूजा-
अजा, अनादि शक्ति अविनाशिनी सदा शंभु अरघंग निवासिनी,
जगसंभव पालन कारिनी निज इच्छा लीला वपु धारिणी।
-अलकनंदा सिंह
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