हिन्दी के साहित्यकार और नाटक लेखक सुरेंद्र वर्मा को वर्ष 2016 का व्यास सम्मान उनके 2010 में प्रकाशित उपन्यास के लिए दिया जायेगा।
केके बिड़ला फाउंडेशन द्वारा आज यहां जारी विज्ञप्ति के अनुसार, वर्ष 2016 का व्यास सम्मान हिन्दी के प्रख्यात लेखक सुरेंद्र वर्मा के उपन्यास ‘काटना शमी का वृक्ष : पद्मपखुरी की धार से’ को चुना गया है। इस उपन्यास का प्रकाशन वर्ष 2010 में हुआ था।
साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डा. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की अध्यक्षता में हुई चयन समिति की बैठक में सुरेंद्र वर्मा के नाम का चयन किया गया। उन्हें बतौर सम्मान साढ़े तीन लाख रूपये प्रदान किए जायेंगे। इस पुरस्कार का आरंभ 1991 में किया गया था।
वर्मा को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल चुके है। वह लंबे समय तक राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से जुड़े रहे हैं।
सुरेन्द्र वर्मा के बारे में
सुरेन्द्र वर्मा का जन्म १९४१ में हुआ था,वे हिन्दी के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास ”मुझे चाँद चाहिए” के लिये उन्हें सन् 1996 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
सुरेन्द्र वर्मा का उपन्यास – मुझे चाँद चाहिए के बारे में
कई दशकों से हिन्दी उपन्यास में छाये ठोस सन्नाटे को तोड़ने वाली कृति आपके हाथों में है, जिसे सुधी पाठकों ने भी हाथों-हाथ लिया है और मान्य आलोचकों ने भी !
शाहजहाँपुर के अभाव-जर्जर, पुरातनपंथी ब्राह्मण-परिवार में जन्मी वर्षा वशिष्ठ बी.ए. के पहले साल में अचानक एक नाटक में अभिनय करती है और उसके जीवन की दिशा बदल जाती है। आत्माभिव्यक्ति के संतोष की यह ललक उसे शाहजहाँनाबाद के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा तक लाती है, जहाँ कला-कुंड में धीरे-धीरे तपते हुए वह राष्ट्रीय स्तर पर अपनी क्षमता प्रमाणित करती है और फिर उसके पास आता है एक कला फिल्म का प्रस्ताव !
आत्मान्वेषण और आत्मोपलब्धि की इस कंटक-यात्रा में एक ओर वर्षा अपने परिवार के तीखे विरोध से लहूलुहान होती है और दूसरी ओर आत्मसंशय, लोकापवाद और अपनी रचनात्मक प्रतिभा को मांजने-निखारने वाली दुरूह, काली प्रक्रिया से क्षत-विक्षत। पर उसकी कलात्मक आस्था उसे संघर्ष-पथ पर आगे बढ़ाती जाती है।
वस्तुतः यह कथा-कृति व्यक्ति और उसके कलाकार, परिवार, सहयोगी एवं परिवेश के बीच चलने वाले सनातन द्वंद्व की और कला तथा जीवन के पैने संघर्ष व अंतर्विरोधों की महागाथा है।
परंपरा और आधुनिकता की ज्वलनशील टकराहट से दीप्त रंगमंच एवं सिनेमा जैसे कला-क्षेत्रों का महाकाव्यीय सिंहावलोकन ! अपनी प्रखर संवेदना के लिए सर्वमान्य सिद्धहस्त कथाकार तथा प्रख्यात नाटककार की अभिनव उपलब्धि । – Legend News
केके बिड़ला फाउंडेशन द्वारा आज यहां जारी विज्ञप्ति के अनुसार, वर्ष 2016 का व्यास सम्मान हिन्दी के प्रख्यात लेखक सुरेंद्र वर्मा के उपन्यास ‘काटना शमी का वृक्ष : पद्मपखुरी की धार से’ को चुना गया है। इस उपन्यास का प्रकाशन वर्ष 2010 में हुआ था।
साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डा. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की अध्यक्षता में हुई चयन समिति की बैठक में सुरेंद्र वर्मा के नाम का चयन किया गया। उन्हें बतौर सम्मान साढ़े तीन लाख रूपये प्रदान किए जायेंगे। इस पुरस्कार का आरंभ 1991 में किया गया था।
वर्मा को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल चुके है। वह लंबे समय तक राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से जुड़े रहे हैं।
सुरेन्द्र वर्मा के बारे में
सुरेन्द्र वर्मा का जन्म १९४१ में हुआ था,वे हिन्दी के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास ”मुझे चाँद चाहिए” के लिये उन्हें सन् 1996 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
सुरेन्द्र वर्मा का उपन्यास – मुझे चाँद चाहिए के बारे में
कई दशकों से हिन्दी उपन्यास में छाये ठोस सन्नाटे को तोड़ने वाली कृति आपके हाथों में है, जिसे सुधी पाठकों ने भी हाथों-हाथ लिया है और मान्य आलोचकों ने भी !
शाहजहाँपुर के अभाव-जर्जर, पुरातनपंथी ब्राह्मण-परिवार में जन्मी वर्षा वशिष्ठ बी.ए. के पहले साल में अचानक एक नाटक में अभिनय करती है और उसके जीवन की दिशा बदल जाती है। आत्माभिव्यक्ति के संतोष की यह ललक उसे शाहजहाँनाबाद के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा तक लाती है, जहाँ कला-कुंड में धीरे-धीरे तपते हुए वह राष्ट्रीय स्तर पर अपनी क्षमता प्रमाणित करती है और फिर उसके पास आता है एक कला फिल्म का प्रस्ताव !
आत्मान्वेषण और आत्मोपलब्धि की इस कंटक-यात्रा में एक ओर वर्षा अपने परिवार के तीखे विरोध से लहूलुहान होती है और दूसरी ओर आत्मसंशय, लोकापवाद और अपनी रचनात्मक प्रतिभा को मांजने-निखारने वाली दुरूह, काली प्रक्रिया से क्षत-विक्षत। पर उसकी कलात्मक आस्था उसे संघर्ष-पथ पर आगे बढ़ाती जाती है।
वस्तुतः यह कथा-कृति व्यक्ति और उसके कलाकार, परिवार, सहयोगी एवं परिवेश के बीच चलने वाले सनातन द्वंद्व की और कला तथा जीवन के पैने संघर्ष व अंतर्विरोधों की महागाथा है।
परंपरा और आधुनिकता की ज्वलनशील टकराहट से दीप्त रंगमंच एवं सिनेमा जैसे कला-क्षेत्रों का महाकाव्यीय सिंहावलोकन ! अपनी प्रखर संवेदना के लिए सर्वमान्य सिद्धहस्त कथाकार तथा प्रख्यात नाटककार की अभिनव उपलब्धि । – Legend News
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें