कहते हैं कि शब्द ब्रह्म होता है और शब्द अच्छा है या बुरा, उसके उपयोग पर निर्भर करता है। आज तक देखा गया है कि सामाजिक व्यवहार में कोई भी शब्द अपनी उपयोगिता व अनुपयोगिता उसके प्रयोग पर निर्भर करती है । ऐसे ही कुछ शब्द हैं जिन्हें अच्छा या बुरा कहा जाता है और उन्हें संभ्रांत व निकृष्ट की श्रेणी में रखा जाता है । इस पूरी जद्दोजहद में उन शब्दों का अपना क्या दोष जो बुरे, अछूत या असंसदीय कहे जाते हैं अथवा उन शब्दों का क्या योगदान माना जाए जो व्यक्ति या परिस्थिति को महान बनाती है ।
फिर शब्द असंसदीय कैसे हो सकता भला , उसे प्रयोग करने वाले व्यक्ति या उस मानसिकता को तो असंसदीय कहा जा सकता है जो देश , काल या समाज के लिए घातक हो परंतु शब्द किसी भी कोण से असंसदीय नहीं कहा जा सकता।
जब से पढ़ा है कि शिवसेना के सांसद हेमंत ' गोडसे ' ने लोकसभा और राज्यसभा के डिप्टी चेयरमैन को पत्र लिखकर कहा है कि उनकी जाति को असंसदीय शब्दों की सूची से हटाया जाए। लोकसभा सचिवालय ने सांसद के प्रश्न का जवाब देते हुए कहा कि महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम ' गोडसे ' के नाम से जुड़ी जाति गोडसे को लेकर कुछ गलती हुई है पर इस विषय में अंतिम निर्णय लोकसभा और राज्यसभा के अध्यक्ष ही लेंगे। संसद के रिकॉर्ड्स बताते हैं कि किस 'गोडसे' को असंसदीय शब्द के तौर पर प्रतिबंधित किया गया है मगर इसका भुगतान पूरी जाति को असंसदीय कहलाने के रूप में भुगतना पड़ रहा है ।
रिकॉर्ड्स के अनुसार इस बारे में अप्रैल 1956 में लोकसभा के डिप्टी स्पीकर हुकुम सिंह ने इस बाबत जब आदेश दिए थे तो उस समय स्टेट रिऑर्गनाइजेशन बिल पर चर्चा हो रही थी। तभी दो सांसदों ने नाथूराम गोडसे के नाम को उछाला था। इसके बाद हुकुम सिंह ने ऐसे आदेश दिए थे। इसके बाद वर्ष 2014 में संसद के शीत सत्र के दौरान सीपीएम सांसद पी राजीव ने हिंदू महासभा की तरफ से देश भर में नाथूराम गोडसे के बुत लगाने के खिलाफ आवाज उठाई थी। तब पी जे कुरियन ने एक बार फिर से पूर्व में लिए गए निर्णय की तरफ लोगों का ध्यान खींचा था।
यह राजनीतिज्ञों की अजब सी मानसिकता पर प्रश्नचिन्ह तो लगाती ही है। यूं भी गुनाह किसी एक ने किया और सजा पूरी की पूरी जाति को मिले , क्या ये न्याय कहा जाएगा। संसद के रिकॉर्ड के मुताबिक 'गोडसे' शब्द का प्रयोग नहीं किया जा सकता है। यह एक असंसदीय शब्द है। हेमंत गोडसे ने पत्र में लिखा है कि यह कैसे किया जा सकता है कि एक पूरी की पूरी जाति को ही असंसदीय शब्द की सूची में रख दिया जाए। यह मेरी गलती नहीं है कि मेरी जाति गोडसे है। इसके लिए मैं कुछ नहीं कर सकता हूं और न ही अपनी जाति को बदलने जा रहा हूं। सांसद हेमंत गोडसे ने कहा कि गोडसे शब्द को असंसदीय शब्द की श्रेणी में शामिल करना एक समुदाय विशेष और मेरे लिए बहुत ही पीड़ा की बात है। इस जाति के साथ महाराष्ट्र में बहुत से लोग रहते हैं।
निश्चति ही गोडसे लिखा जाना क्या पूरी की पूरी जाति को महात्मा गांधी का हत्यारा बना देना नहीं है ? 'गोडसे' को बैन या असंसदीय घोषित किए जाने से आहत सांसद की बात हमें उस पीड़ा का अहसास कुछ कुछ इसी तरह कराती है कि जैसे किसी पिछड़े इलाके के लोगों ने किसी एक जाति को समाज से निकाल बाहर किया हो वह भी किसी एक व्यक्ति की गलती के कारण।
ये शब्दों पर हमारी तानाशाही ही है कि जिस जाति में आप पैदा हुए उस को सिर्फ इसलिए प्रतिबंधित कर दिया जाए कि वह किसी एक शख्स से किसी खास वजह से जुड़ी हुई रही है .... तो क्या हम पीढि़यों को भी उसी गुनाह का भागीदार बना रहे हैं , यह तो ज्यादती हुई ना ? असंसदीय क्या है ... वह सोच जो पूरी जाति को देश की मुख्यधारा से अलग कर दे या वह शब्द 'गोडसे' ।
- अलकनंदा सिंह
फिर शब्द असंसदीय कैसे हो सकता भला , उसे प्रयोग करने वाले व्यक्ति या उस मानसिकता को तो असंसदीय कहा जा सकता है जो देश , काल या समाज के लिए घातक हो परंतु शब्द किसी भी कोण से असंसदीय नहीं कहा जा सकता।
जब से पढ़ा है कि शिवसेना के सांसद हेमंत ' गोडसे ' ने लोकसभा और राज्यसभा के डिप्टी चेयरमैन को पत्र लिखकर कहा है कि उनकी जाति को असंसदीय शब्दों की सूची से हटाया जाए। लोकसभा सचिवालय ने सांसद के प्रश्न का जवाब देते हुए कहा कि महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम ' गोडसे ' के नाम से जुड़ी जाति गोडसे को लेकर कुछ गलती हुई है पर इस विषय में अंतिम निर्णय लोकसभा और राज्यसभा के अध्यक्ष ही लेंगे। संसद के रिकॉर्ड्स बताते हैं कि किस 'गोडसे' को असंसदीय शब्द के तौर पर प्रतिबंधित किया गया है मगर इसका भुगतान पूरी जाति को असंसदीय कहलाने के रूप में भुगतना पड़ रहा है ।
रिकॉर्ड्स के अनुसार इस बारे में अप्रैल 1956 में लोकसभा के डिप्टी स्पीकर हुकुम सिंह ने इस बाबत जब आदेश दिए थे तो उस समय स्टेट रिऑर्गनाइजेशन बिल पर चर्चा हो रही थी। तभी दो सांसदों ने नाथूराम गोडसे के नाम को उछाला था। इसके बाद हुकुम सिंह ने ऐसे आदेश दिए थे। इसके बाद वर्ष 2014 में संसद के शीत सत्र के दौरान सीपीएम सांसद पी राजीव ने हिंदू महासभा की तरफ से देश भर में नाथूराम गोडसे के बुत लगाने के खिलाफ आवाज उठाई थी। तब पी जे कुरियन ने एक बार फिर से पूर्व में लिए गए निर्णय की तरफ लोगों का ध्यान खींचा था।
यह राजनीतिज्ञों की अजब सी मानसिकता पर प्रश्नचिन्ह तो लगाती ही है। यूं भी गुनाह किसी एक ने किया और सजा पूरी की पूरी जाति को मिले , क्या ये न्याय कहा जाएगा। संसद के रिकॉर्ड के मुताबिक 'गोडसे' शब्द का प्रयोग नहीं किया जा सकता है। यह एक असंसदीय शब्द है। हेमंत गोडसे ने पत्र में लिखा है कि यह कैसे किया जा सकता है कि एक पूरी की पूरी जाति को ही असंसदीय शब्द की सूची में रख दिया जाए। यह मेरी गलती नहीं है कि मेरी जाति गोडसे है। इसके लिए मैं कुछ नहीं कर सकता हूं और न ही अपनी जाति को बदलने जा रहा हूं। सांसद हेमंत गोडसे ने कहा कि गोडसे शब्द को असंसदीय शब्द की श्रेणी में शामिल करना एक समुदाय विशेष और मेरे लिए बहुत ही पीड़ा की बात है। इस जाति के साथ महाराष्ट्र में बहुत से लोग रहते हैं।
निश्चति ही गोडसे लिखा जाना क्या पूरी की पूरी जाति को महात्मा गांधी का हत्यारा बना देना नहीं है ? 'गोडसे' को बैन या असंसदीय घोषित किए जाने से आहत सांसद की बात हमें उस पीड़ा का अहसास कुछ कुछ इसी तरह कराती है कि जैसे किसी पिछड़े इलाके के लोगों ने किसी एक जाति को समाज से निकाल बाहर किया हो वह भी किसी एक व्यक्ति की गलती के कारण।
ये शब्दों पर हमारी तानाशाही ही है कि जिस जाति में आप पैदा हुए उस को सिर्फ इसलिए प्रतिबंधित कर दिया जाए कि वह किसी एक शख्स से किसी खास वजह से जुड़ी हुई रही है .... तो क्या हम पीढि़यों को भी उसी गुनाह का भागीदार बना रहे हैं , यह तो ज्यादती हुई ना ? असंसदीय क्या है ... वह सोच जो पूरी जाति को देश की मुख्यधारा से अलग कर दे या वह शब्द 'गोडसे' ।
- अलकनंदा सिंह
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