आज का दिन देश के लिए एक कालजयी उपलब्धि का साक्षी बना है.
जी हां! आज भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) की तपस्या सफल हुई है और उपग्रह मंगलयान मंगल ग्रह की अंडाकार कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश कर चुका है।
अंतरिक्ष शोध में यह एक ऐसा मील का पत्थर होगा जिसके आगे की यात्रा न जाने कितनी आशाओं को जन्म देगी।
आज की सुबह इस अभियान की कामयाबी से यह तो निश्चित हो गया कि 'थोड़ा है... थोड़े की जरूरत है' पर अमल करने वाले हम भारतीय यदि पूरे मन से जुटें तो ऐसी कोई शै नहीं, ऐसी कोई ताकत नहीं... या ऐसी कोई वजह नहीं जिससे हम पार ना पा सकें। पूरे विश्व की निगाहों में भारत ऐसा देश बन गया है जिसने एक ही प्रयास में अपना अभियान पूरा कर लिया।
यूं तो भारत के मंगल अभियान का निर्णायक चरण कल रात से यान की तीव्र गति को धीमा करने के साथ ही शुरू हो गया था और इस मिशन की सफलता उन 24 मिनटों पर निर्भर थी, जिस दौरान यान में मौजूद इंजन को चालू किया गया। मंगलयान की गति धीमी करनी थी ताकि ये मंगल की कक्षा में मौजूद गुरूत्वाकर्षण से
खुद-ब-खुद खिंचा चला जाए और वहां स्थापित हो जाए।
तकनीकी तौर पर मंगलयान से धरती तक जानकारी पहुंचने में करीब साढ़े बारह मिनट का समय लगा. आज सुबह लगभग आठ बजे इसरो को मंगलयान से सिग्नल प्राप्त हुआ और ये सुनिश्चित हो पाया कि मंगलयान, मंगल की कक्षा में सफलता पूर्वक स्थापित हो गया है।
देश की इस अभूतपूर्व वैज्ञानिक सफलता के गवाह स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बने। उन्होंने न सिर्फ बैंगलोर के इसरो केंद्र में मौजूद रहकर वैज्ञानिकों की प्रशंसा की बल्कि अपने शुभकामना भाषण के तहत लगभग सुप्तावस्था में पहुंच चुकी देश की वैज्ञानिक अनुसंधान
प्रक्रियाओं को जाग्रत करने का आह्वान भी किया। इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए
मोदी ने कहा, "आज इतिहास बना है. हमने लगभग असंभव कर दिखाया है. मैं सभी भारतीयों और इसरो वैज्ञानिकों को मुबारक देता हूं. कम साधनों के बावजूद ये कामयाबी वैज्ञानिकों के पुरुषार्थ के कारण मिली है."
बधाइयों का तांता लगा हुआ है। टि्वटर पर इसरो के हैंडल से लिखा है- ''मैं अभी ब्रेकफास्ट करके लौटता हूं'' आशावाद और खुशी के इज़हार का इससे बढ़िया तरीका और भला क्या हो सकता है। अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी टि्वटर के जरिये इसरो को बधाई दी है.
भारत ने इस मिशन पर करीब 450 करोड़ रुपए खर्च किए हैं, जो बाकी देशों के अभियानों की तुलना में सबसे ज्यादा क़िफ़ायती है. और तो और... एक हॉलीवुड फिल्म की लागत भी इससे कहीं ज्यादा आती है। वैज्ञानिकों के अनुसार अभी तक कॉपी-बुक के आधार पर ठीक वैसा ही हुआ है जो वैज्ञानिकों ने सोचा था और आगे भी अगर सब ठीक रहा तो मंगलयान छह महीनों तक मंगल ग्रह के वातावरण का अध्ययन कर लेगा। ये ग्रह पर मौजूद मीथेन गैस का पता लगाएगा, साथ ही रहस्य बने हुए ब्रह्मांड के उस सवाल का भी पता लगाएगा कि क्या हम इस ब्रह्मांड में अकेले हैं या और भी हैं हमारे जैसे? इससे मिली रिपोर्ट्स धरती पर ग्लोबल वार्मिंग, ऋतुचक्रों में हो रहे परिवर्तन, ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन और ग्लेशियरों के पिघलने तथा आर्कटिक व अनटार्कटिक रीजन में भूमिगत हलचलों की वजहें जानने में सहायक होंगी। इनसे सावधान रहने और विचलनों के प्रति आगाह करने में भी मंगल का वातावरण हमारे लिए जरूरी होगा ताकि जिस हश्र को आज मंगल पहुंचा आगे हम ना पहुंच जाएं।
चलिए फिलहाल तो इंतज़ार है मंगल ग्रह की उस पहली तस्वीर का... जिसे आज ही कक्षा में स्थापित होने के कुछ ही घंटों बाद यान एक भारतीय आंख से लेकर भेजेगा।
सच कहते हैं मोदी कि अब भारत सपेरों का देश नहीं... अब वह माउस से खेलने लगा है, वह चांद ही नहीं, बल्कि मंगल पर भी पहुंच चुका है। संकेत साफ हैं कि जीवन की अनेक पद्धतियों के आविष्कारक रहे ऋषि-मुनियों से लेकर शून्य तक के आविष्कारक आर्यभट्ट का यह देश एक बार फिर सुप्तावस्था से उबर कर आकाश नापने चल पड़ा है। बहरहाल, इसी के साथ हमारा देश एशिया ही नहीं दुनिया का अकेला ऐसा देश बन गया है जिसने पहले ही प्रयास में अपना मंगल अभियान पूरा कर लिया।
यूं तो धार्मिक व सांस्कृतिक तौर से आज का दिन पूर्वजों-पितरों की विदाई का दिन है और शायद अंतरिक्ष-वैज्ञानिकों का यह उनके प्रति श्रद्धा अर्पित करने का यह नितांत भारतीय तरीका है। यह सफल प्रयास कल से नवदुर्गा के आगमन और शक्ति के स्वागत के लिए एक अभूतपूर्व अर्पण भी है।
-अलकनंदा सिंह
जी हां! आज भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) की तपस्या सफल हुई है और उपग्रह मंगलयान मंगल ग्रह की अंडाकार कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश कर चुका है।
अंतरिक्ष शोध में यह एक ऐसा मील का पत्थर होगा जिसके आगे की यात्रा न जाने कितनी आशाओं को जन्म देगी।
आज की सुबह इस अभियान की कामयाबी से यह तो निश्चित हो गया कि 'थोड़ा है... थोड़े की जरूरत है' पर अमल करने वाले हम भारतीय यदि पूरे मन से जुटें तो ऐसी कोई शै नहीं, ऐसी कोई ताकत नहीं... या ऐसी कोई वजह नहीं जिससे हम पार ना पा सकें। पूरे विश्व की निगाहों में भारत ऐसा देश बन गया है जिसने एक ही प्रयास में अपना अभियान पूरा कर लिया।
यूं तो भारत के मंगल अभियान का निर्णायक चरण कल रात से यान की तीव्र गति को धीमा करने के साथ ही शुरू हो गया था और इस मिशन की सफलता उन 24 मिनटों पर निर्भर थी, जिस दौरान यान में मौजूद इंजन को चालू किया गया। मंगलयान की गति धीमी करनी थी ताकि ये मंगल की कक्षा में मौजूद गुरूत्वाकर्षण से
खुद-ब-खुद खिंचा चला जाए और वहां स्थापित हो जाए।
तकनीकी तौर पर मंगलयान से धरती तक जानकारी पहुंचने में करीब साढ़े बारह मिनट का समय लगा. आज सुबह लगभग आठ बजे इसरो को मंगलयान से सिग्नल प्राप्त हुआ और ये सुनिश्चित हो पाया कि मंगलयान, मंगल की कक्षा में सफलता पूर्वक स्थापित हो गया है।
देश की इस अभूतपूर्व वैज्ञानिक सफलता के गवाह स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बने। उन्होंने न सिर्फ बैंगलोर के इसरो केंद्र में मौजूद रहकर वैज्ञानिकों की प्रशंसा की बल्कि अपने शुभकामना भाषण के तहत लगभग सुप्तावस्था में पहुंच चुकी देश की वैज्ञानिक अनुसंधान
प्रक्रियाओं को जाग्रत करने का आह्वान भी किया। इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए
मोदी ने कहा, "आज इतिहास बना है. हमने लगभग असंभव कर दिखाया है. मैं सभी भारतीयों और इसरो वैज्ञानिकों को मुबारक देता हूं. कम साधनों के बावजूद ये कामयाबी वैज्ञानिकों के पुरुषार्थ के कारण मिली है."
बधाइयों का तांता लगा हुआ है। टि्वटर पर इसरो के हैंडल से लिखा है- ''मैं अभी ब्रेकफास्ट करके लौटता हूं'' आशावाद और खुशी के इज़हार का इससे बढ़िया तरीका और भला क्या हो सकता है। अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी टि्वटर के जरिये इसरो को बधाई दी है.
भारत ने इस मिशन पर करीब 450 करोड़ रुपए खर्च किए हैं, जो बाकी देशों के अभियानों की तुलना में सबसे ज्यादा क़िफ़ायती है. और तो और... एक हॉलीवुड फिल्म की लागत भी इससे कहीं ज्यादा आती है। वैज्ञानिकों के अनुसार अभी तक कॉपी-बुक के आधार पर ठीक वैसा ही हुआ है जो वैज्ञानिकों ने सोचा था और आगे भी अगर सब ठीक रहा तो मंगलयान छह महीनों तक मंगल ग्रह के वातावरण का अध्ययन कर लेगा। ये ग्रह पर मौजूद मीथेन गैस का पता लगाएगा, साथ ही रहस्य बने हुए ब्रह्मांड के उस सवाल का भी पता लगाएगा कि क्या हम इस ब्रह्मांड में अकेले हैं या और भी हैं हमारे जैसे? इससे मिली रिपोर्ट्स धरती पर ग्लोबल वार्मिंग, ऋतुचक्रों में हो रहे परिवर्तन, ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन और ग्लेशियरों के पिघलने तथा आर्कटिक व अनटार्कटिक रीजन में भूमिगत हलचलों की वजहें जानने में सहायक होंगी। इनसे सावधान रहने और विचलनों के प्रति आगाह करने में भी मंगल का वातावरण हमारे लिए जरूरी होगा ताकि जिस हश्र को आज मंगल पहुंचा आगे हम ना पहुंच जाएं।
चलिए फिलहाल तो इंतज़ार है मंगल ग्रह की उस पहली तस्वीर का... जिसे आज ही कक्षा में स्थापित होने के कुछ ही घंटों बाद यान एक भारतीय आंख से लेकर भेजेगा।
सच कहते हैं मोदी कि अब भारत सपेरों का देश नहीं... अब वह माउस से खेलने लगा है, वह चांद ही नहीं, बल्कि मंगल पर भी पहुंच चुका है। संकेत साफ हैं कि जीवन की अनेक पद्धतियों के आविष्कारक रहे ऋषि-मुनियों से लेकर शून्य तक के आविष्कारक आर्यभट्ट का यह देश एक बार फिर सुप्तावस्था से उबर कर आकाश नापने चल पड़ा है। बहरहाल, इसी के साथ हमारा देश एशिया ही नहीं दुनिया का अकेला ऐसा देश बन गया है जिसने पहले ही प्रयास में अपना मंगल अभियान पूरा कर लिया।
यूं तो धार्मिक व सांस्कृतिक तौर से आज का दिन पूर्वजों-पितरों की विदाई का दिन है और शायद अंतरिक्ष-वैज्ञानिकों का यह उनके प्रति श्रद्धा अर्पित करने का यह नितांत भारतीय तरीका है। यह सफल प्रयास कल से नवदुर्गा के आगमन और शक्ति के स्वागत के लिए एक अभूतपूर्व अर्पण भी है।
-अलकनंदा सिंह
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