शुरुआती दौर के योगी केवल आकर्षक योग मुद्राएं ही नहीं बनाते थे बल्कि भीषण
लड़ाइयों में शिरकत भी करते थे. वॉशिंगटन में आयोजित एक प्रदर्शनी में
योगियों के जीवन से जुड़े जटिल पहलुओं को दिखाया गया है. आप कैसा योग पसंद
करेंगे- ताकतवर या हॉट? हो सकता है कि आप निर्वस्त्र अभ्यास करना चाहें या
ताज़ा-तरीन लाइक्रा को आजमाएं. क्या आप बीकेएस आयंगर के अनुयायी हैं या आप
विन्यास या अष्टांग योग को तरजीह देंगे?
आप जो भी चाहें, अमरीका में योग पांच अरब डॉलर पौने चार हज़ार करोड़ का
रुपयों के बराबर की इंडस्ट्री है, लाखों लोग फ़िज़िकल फ़िटनेस, स्वास्थ्य
को बेहतर रखने या आध्यात्मिक ज्ञान के लिए इसका अभ्यास करते हैं. आमतौर पर
सभी जिम इसकी एक कक्षा की पेशकश करते हैं और ख़ास तरह की चाय और शांत संगीत
इसके अनुभव को और बढ़ा सकता है.
भारतीय सरकार योग के व्यवसायीकरण को लेकर इस कदर चिंतित रही है कि हाल के
वर्षों में उसने इसकी सैकड़ों मुद्राओं को पेटेंट कराने का अभियान शुरू कर
दिया है ताकि उन्हें पश्चिमी कंपनियों द्वारा हथियाए जाने से बचाया जा सके.
योग को खंगालने वाली प्रदर्शनी
विश्व की ये पहली प्रदर्शनी है जो तस्वीरों के ज़रिए योग को खंगालती है.
वो इसकी प्राचीन परंपराओं के उन पहलुओं को भी सामने लाती है जिससे बहुत से
शुद्धतावादियों को मुश्किल हो सकती है.
इसके 2500 वर्षों के ज्ञात इतिहास में योग का कोई एक सर्वमान्य तरीका रहा हो, ऐसा नहीं है.
स्मिथसोनियन सैकलर गैलरी ऑफ़ एशियन आर्ट में लगी प्रदर्शनी 'योग: द आर्ट
ऑफ ट्रांसफॉर्मेशन' के क्यूरेटर डेब्रा डायमंड कहती हैं, ''पांच साल पहले
मैंने सोचा था कि मैं योग की अकेली परंपरा के बारे में जान लूंगी.''
वह कहती हैं, ''योग लगातार पूरी तरह से बदलता और समय के साथ विकसित होता
रहा हालांकि उसके कई मुख्य लक्ष्य रहे हैं, ऐसा कुछ नहीं जिसे एक तरीके से
बताया जा सके.''
उनके अनुसार, ''कुछ परंपराओं में ये अत्यधिक चैतन्यता की स्थिति है जिसके
जरिए जन्म, मृत्यु और फिर जन्म के पीड़ादायक चक्र से छूटा जा सकता है लेकिन
योग की कुछ अन्य परंपराओं में इसके कुछ लक्ष्य अलौकिक शक्तियों और दूसरों
पर नियंत्रण की क्षमता हासिल करना थे.''
प्रदर्शनी में दुनियाभर के 25 संग्रहालयों और व्यक्तिगत संग्रहों से लाई
गई 130 चीजों को दिखाया गया है. जिनमें कुछ का प्रदर्शन कभी सार्वजनिक तौर
पर नहीं हुआ तो कुछ को उत्कृष्ट कृति के तौर पर जाना जाता है.
इसमें एक हज़ार साल से ज्यादा पुराना एक चित्र भयंकर योगिनियों के समूह का
है. तांत्रिक योग के अभ्यास से दैवत्व को प्राप्त कर चुकी ये उड़ती हुई
देवियां हैं, जो पैने दांत फाड़े निडर मुद्रा में बैठी हैं, खुले बालों के
साथ ये प्रचंड लगती हैं.
सांपों के साथ ये शोभा बढ़ा रही हैं, कुछ ने अपनी ऊंगलियां मुंह में डाली
हुई हैं, ये बेखटके युद्ध की दुदुंभि बजाते आकाश मार्ग से जा रही हैं.
डॉयमंड बताते हैं कि वो ग्यारहवीं शताब्दी की उपद्रवी शिशु हैं.
प्रदर्शनी की विषय वस्तु लगातार 'योद्धा योगी' के तौर पर दिखती है, इसमें
वाटरकलर चित्रों के जरिए उत्तर भारत के एक पवित्र स्थान थानेश्वर में
योगियों को लड़ते-मरते दिखाया गया है.
सशस्त्र योगियों के झुंड बहते खून के साथ भयंकर तरीके से विरोधियों की
मार-काट में लगे हैं और त्योहार पर नहाने के अधिकार को लेकर लड़ रहे हैं.
संस्कृत विशेषज्ञ और प्रदर्शनी सलाहकारों में एक सर जेम्स मेलिसन कहते हैं
कि इसके बाद जो कुछ हुआ उससे अगर तुलना करें तो ये अपेक्षाकृत
हल्की-फुल्की झड़प थी.
18वीं सदी में ताकतवर
सर जेम्स मेलिसन बताते हैं, ''18वीं शताब्दी तक योगी वर्ग इतना ताकतवर था
और ये इतनी बड़ी तादाद में था कि हमारे पास इन त्योहारों पर बड़ी लड़ाइयों
की रिपोर्ट है, जहां हज़ारों-हज़ार योगी मार दिए जाते थे.''
पेंटिंग शुरुआत में योगियों के बीच लड़ाई के बारे में बताती है जिन्हें भाड़े पर मुगल शासकों द्वारा रखा जाता था.
सर जेम्स खुद भी योगी हैं और भारत में रहने और योगा का अध्ययन करने में कई
साल गुजार चुके हैं. वह पहले ऐसे पश्चिमी शख्स हैं जिन्होंने प्रधान
योगियों के वर्ग में जगह बनाई और विधिवत महंत बनाए गए. उन्हें खुद का दल
बनाने का अधिकार मिला हुआ है.
वह शांति की तलाश में आध्यात्मिक प्रबोधन के लिए योग और इसके कहीं हिंसात्मक प्रदर्शन में कोई टकराव नहीं देखते.
वह कहते हैं, ''आज भी इसमें कोई विरोधाभास नहीं है. वह योग समझते हैं और
उसके अन्य अभ्यास एक तरह की आंतरिक ताकत पैदा करते हैं, जिसका इस्तेमाल वो
एकदम अलग तरीकों से कर सकते हैं, चाहे आशीर्वाद या शाप देने में या फिर
वास्तव में लडाइयों में.
योगियों का खूनी इतिहास देखते हुए अजीब सा लगता है कि अमरीका में इसका
अभ्यास बड़े पैमाने पर महिलाएं तनाव दूर करने के लिए करती हैं. इस ट्रेंड
ने 19वीं शताब्दी की शुरुआत में तब जोर पकड़ा, जब महिलाओं के बीच लचक के
लिए अभ्यास पर जोर दिया जाने लगा.
वॉशिंगटन में यूनिटी वुड्स योग सेंटर के डायरेक्टर जॉन शुमाकर कहते हैं कि
लोगों के लिए एक्सरसाइज़ खेल और प्रतिस्पर्धा है, ऐसा ही योग के बारे में
भी माना जाता है लेकिन असलियत ये नहीं है. पुरुष नहीं जानते कि योग क्या
है. शुमाकर कुछ उन चंद अमरीकी योग शिक्षकों में हैं जिनकी दीक्षा आयंगर के
हाथों हुई.
वह कहते हैं, "वो खासियतें, जिनसे कोई शीर्ष एथलीट बनता है, वैसी ही
खासियतें योग में उत्कृष्ट बनने के लिए आवश्यक हैं- ये केवल शारीरिक लचक,
क्षमता और ताकत नहीं है बल्कि ध्यान की समग्र खासियतें हैं. जो ध्यान
केंद्रीत करने और स्पष्टता से युक्त होती हैं."
धारणा बदली
ये प्रदर्शनी यह भी खंगालती है कि संस्कृतियों और महाद्वीपों को पार करने के बाद योग को लेकर लोगों की धारणा बदलती चली गई.
डेब्रा डायमंड कहती हैं, ''ये बहुत जटिल और पेचीदा वर्ग है क्योंकि हम
अक्सर यूरोपीय आकांक्षाओं के साथ वो छवि बनाते हैं जो आमतौर पर यूरोपीय लोग
भारत और योगियों के बारे में सोचते आए हैं.''
वह कहती हैं, ''योगियों को डरावने और संदिग्ध लोगों के तौर पर देखा जाता
था. वो अलौकिक ताकतों से लैस होने का दावा करते थे. वो कम कपड़े पहनते थे
या नग्न रहते थे, जो 19वीं सदी की संवेदनशीलता को झटका देने वाली थी, वो
हमेशा घूमते रहते थे और अक्सर नशा करते थे. वो भारत की नकारात्मक तरह के
छवि के प्रतीक बन गए.''
लेकिन इस अवधारणा को तोड़ने वाली प्रदर्शनी ये दिखाती है कि योग खुद को
बदल कर फिर नई पहचान और ताकत हासिल कर रहा है. हालांकि 11वीं शताब्दी की
योगिनियां 21वीं सदी की बहनों को शायद ही पहचान पाएं. क्या वो ऐसा कर
पाएंगी?