ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में जिस्म की नुमाइश को ही खुलेपन और आधुनिकता का पैमाना बना दिया गया है और इसके लिये मीडिया भी उतना ही दोषी है।
कुछ दिन पहले की बात है जब अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी में कल कुलपति ने सभ्य दायरे में रह कर छात्राओं व छात्रों को यूनीवर्सिटी की रवायत के अनुसार लिबास पहनने हेतु एक खुला पत्र लिखा।
उन्हें यह इसलिए लिखना पड़ा क्यों कि छात्रायें खुलेपन की आड़ में मात्र अपनी नुमाइश करने लगीं थीं, अराजकत तत्वों ने आयेदिन बवाल करना शुरू कर दिया। दु:ख तो इस बात का था कि इस अनुशासनात्मक पत्र की खबर पर स्थानीय अखबार चिल्लाने लगे कि ड्रेस कोड... ड्रेस कोड...लड़कियों की आज़ादी पर प्रश्नचिन्ह... आदि आदि ....।
अब बताइये आखिर हम किस सभ्यता और किस तरक्की की बात कर रहे हैं। हम चांद पर जाने का उदाहरण देते रहते हैं मगर संस्कारों की कब्र खोदते जा रहे हैं । खयालातों की तरक्की के इतर अगर कम कपड़े पहनना ही आधुनिकता का मापदंड है तो फिर वनमानुष क्या बुरे हैं।
इसी विषय पर बकौल शायर.....
मंज़िल उन्हें ही मिलती है जिनके सपनों में जान होती है
परों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है।
एएमयू के कुलपति के आदेशों को देखते हुये इस शेर के संदर्भ में ये कहा जा सकता है कि बस इन परों के हौसलों का डायरेक्शन सही करना होगा।
- अलकनंदा सिंह
कुछ दिन पहले की बात है जब अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी में कल कुलपति ने सभ्य दायरे में रह कर छात्राओं व छात्रों को यूनीवर्सिटी की रवायत के अनुसार लिबास पहनने हेतु एक खुला पत्र लिखा।
उन्हें यह इसलिए लिखना पड़ा क्यों कि छात्रायें खुलेपन की आड़ में मात्र अपनी नुमाइश करने लगीं थीं, अराजकत तत्वों ने आयेदिन बवाल करना शुरू कर दिया। दु:ख तो इस बात का था कि इस अनुशासनात्मक पत्र की खबर पर स्थानीय अखबार चिल्लाने लगे कि ड्रेस कोड... ड्रेस कोड...लड़कियों की आज़ादी पर प्रश्नचिन्ह... आदि आदि ....।
अब बताइये आखिर हम किस सभ्यता और किस तरक्की की बात कर रहे हैं। हम चांद पर जाने का उदाहरण देते रहते हैं मगर संस्कारों की कब्र खोदते जा रहे हैं । खयालातों की तरक्की के इतर अगर कम कपड़े पहनना ही आधुनिकता का मापदंड है तो फिर वनमानुष क्या बुरे हैं।
इसी विषय पर बकौल शायर.....
मंज़िल उन्हें ही मिलती है जिनके सपनों में जान होती है
परों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है।
एएमयू के कुलपति के आदेशों को देखते हुये इस शेर के संदर्भ में ये कहा जा सकता है कि बस इन परों के हौसलों का डायरेक्शन सही करना होगा।
- अलकनंदा सिंह
गलती सोच की है
जवाब देंहटाएंदिखावे की है
दिये गए तानें की है
सुनाए जा रहे गानों का है
बात पारिवारिक हिदायतों की अवहेलना की है
और भी है......
पर अब बस