जिस किसी ने भी लॉबिंग शब्द ईज़ाद किया होगा तो उसने यह सोचा भी न होगा कि
इसका प्रयोग इतना व्यापक हो जायेगा।यह जीवन के हर रंग हर क्षेत्र और हर
तबके को अपनी गिरफ्त में ले लेगा।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों की बात यदि ना भी की जाये तो महज हमारे देश में ही यह इस तरह रच बस गया है कि गोया जीवन में सफलता का अर्थ ही लॉबिंग की कसौटी पर खरा उतरना हो गया है।
हाल ही में एक खबर आई है कि प्रख्यात सितारवादक पं.रविशंकर को मरणोपरांत पहले अंतर्राष्ट्रीय टैगोर पुरस्कार से नवाजा जायेगा।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा दिये जाने वाले इस पुरस्कार को पं. रविशंकर की पत्नी सुकन्या ग्रहण करेंगीं और इसकी राशि पूरे एक करोड़ होगी।
गुरु रविन्द्रनाथ टैगोर की 150वीं जयन्ती पर दिये जाने इस पुरस्कार का उद्देश्य बेशक संगीत व कला क्षेत्र की विभूतियों को सम्मान देना व प्रतिभाओं को आगे लाना है और होना भी चाहिये मगर पुरस्कार का असली उद्देश्य कुछ और ही कह रहा है।
मेरे कुछ प्रश्न हैं ....
भला मरणोपरांत पुरस्कार लेकर क्या पं. रविशंकर की आत्मा को खुशी होगी,
क्या इस पुरस्कार राशि का उपयोग संगीत क्षेत्र के किसी उत्थान कार्य में किया जायेगा,
क्या सुकन्या जी स्वयं जरूरतमंद हैं,
नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है...जिसतरह किसी को भरे पेट पर रोटी का स्वाद और अहमियत पता नहीं चलती उसी तरह स्व.पं. रविशंकर जैसे ख्यातिलब्ध संगीतकार को 'मरणोपरांत' और अच्छे रसूख वाली सुकन्या जी को एक करोड़ राशि दिया जाना गुरु रविन्द्रनाथ टैगोर की याद में दिये जाने वाले पुरस्कार की सही जगह नहीं हो सकती।
हाल ही में रेवड़ियों की भाति बांटे गये पद्म पुरस्कारों की लिस्ट यह बताने के लिए काफी है कि लॉबिंग का खेल अच्छी तरह खेलने वाले ही इनके साये में आ पाते हैं ।
फिल्म पुरस्कारों से लेकर राजकीय पुरस्कारों तक यह निश्चित ही हो चुका है कि पुरस्कार पाना है तो लॉबिंग करो।
यूं भी हम चाहे कितना भी मानवीय द्रष्टिकोण की बात करें मगर लॉबिंग से न कोई मुक्त हो पाया है और न हो पायेगा।
-अलकनंदा सिंह
अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों की बात यदि ना भी की जाये तो महज हमारे देश में ही यह इस तरह रच बस गया है कि गोया जीवन में सफलता का अर्थ ही लॉबिंग की कसौटी पर खरा उतरना हो गया है।
हाल ही में एक खबर आई है कि प्रख्यात सितारवादक पं.रविशंकर को मरणोपरांत पहले अंतर्राष्ट्रीय टैगोर पुरस्कार से नवाजा जायेगा।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा दिये जाने वाले इस पुरस्कार को पं. रविशंकर की पत्नी सुकन्या ग्रहण करेंगीं और इसकी राशि पूरे एक करोड़ होगी।
गुरु रविन्द्रनाथ टैगोर की 150वीं जयन्ती पर दिये जाने इस पुरस्कार का उद्देश्य बेशक संगीत व कला क्षेत्र की विभूतियों को सम्मान देना व प्रतिभाओं को आगे लाना है और होना भी चाहिये मगर पुरस्कार का असली उद्देश्य कुछ और ही कह रहा है।
मेरे कुछ प्रश्न हैं ....
भला मरणोपरांत पुरस्कार लेकर क्या पं. रविशंकर की आत्मा को खुशी होगी,
क्या इस पुरस्कार राशि का उपयोग संगीत क्षेत्र के किसी उत्थान कार्य में किया जायेगा,
क्या सुकन्या जी स्वयं जरूरतमंद हैं,
नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है...जिसतरह किसी को भरे पेट पर रोटी का स्वाद और अहमियत पता नहीं चलती उसी तरह स्व.पं. रविशंकर जैसे ख्यातिलब्ध संगीतकार को 'मरणोपरांत' और अच्छे रसूख वाली सुकन्या जी को एक करोड़ राशि दिया जाना गुरु रविन्द्रनाथ टैगोर की याद में दिये जाने वाले पुरस्कार की सही जगह नहीं हो सकती।
हाल ही में रेवड़ियों की भाति बांटे गये पद्म पुरस्कारों की लिस्ट यह बताने के लिए काफी है कि लॉबिंग का खेल अच्छी तरह खेलने वाले ही इनके साये में आ पाते हैं ।
फिल्म पुरस्कारों से लेकर राजकीय पुरस्कारों तक यह निश्चित ही हो चुका है कि पुरस्कार पाना है तो लॉबिंग करो।
यूं भी हम चाहे कितना भी मानवीय द्रष्टिकोण की बात करें मगर लॉबिंग से न कोई मुक्त हो पाया है और न हो पायेगा।
-अलकनंदा सिंह
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