रविवार, 12 अक्टूबर 2025

राम मंदिर के ध्वज पर बना पेड़ बैंगनी फूलों वाला कोविदार, जान‍िए इसकी कहानी





 राम मंदिर के शिखर पर फहराए जाने वाले ध्वज का आकार-प्रकार और रंग रूप तय हो गया है। विवाह पंचमी के दिन 25 नवंबर को आयोजित ध्वजारोहण समारोह में पीएम नरेंद्र मोदी 191 फीट ऊंचे राम मंदिर के शिखर पर यह ध्वज फहराएंगे। 
त्रिकोण आकृति में भगवा रंग के 11 फीट चौड़े और 22 फीट लंबे ध्वज को फहराएंगे, जिस पर सूर्यवंशी और त्रेता युग का चिह्न स्थापित किया जाएगा। इसमें वो काव‍िदार वृक्ष भी होगा ज‍िसे लेकर आज बहुत चर्चा हुई ...आप भी जान‍िए इसके बारे में... 

इस ध्वज की डिजाइन को रीवा जिले के हरदुआ गांव के निवासी ललित मिश्रा तैयार करवा किया है.

ललित मिश्रा वर्षों से राम मंदिर का ध्वज तैयार करने में जुटे हुए थे. इसके लिए बाकायदा उनके द्वारा रिसर्च की जा रही थी. इससे पहले भी सप्ताह भर पहले उन्होंने श्रीराम जन्म भूमि तीर्थ ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय को ध्वज की तैयार डिजाइन भेजी थी. जिस ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय और 5 सदस्यीय कमेटी के द्वारा ध्वज पर विचार किया गया था. साथ ही ध्वज में बदलाव के लिए कुछ सुझाव भी दिए गए थे. उन्ही सुझाव के आधार पर अब नई डिजाइन तैयार की गई है. 

ये है कोविदार का वृक्ष, यह भी अयोध्या के राजध्वज में होगा। अयोध्या शोध संस्थान ने ऐसा 2023-24 में ही निर्धारित कर लिया था। यह पूर्ण शोध पर आधारित है। 

भरत जी जब पादुका लेकर नंदीग्राम गए, तो वहां यही ध्वज लगाया था। वाल्मीकि रामायण में भी इसका वर्णन है।


According to - Plant and Animal Diversity in Valmiki Ramayana -- इसका बॉटैन‍िकल नेम Bauhinia purpurea है  native of myanmar है (कोव‍िदार) .. ये कचनार की फैम‍िली का है ....मेडिसिनल इस्तेमाल की वजह से इसे राजवृक्ष भी मान लिया गया. 


अगर पौराणिक मान्यताओं को साइंस से जोड़ें तो कोविदार शायद दुनिया का पहला हाइब्रिड प्लांट होगा. ऋषि कश्यप ने पारिजात के साथ मंदार को मिलाकर इसे तैयार किया था. दोनों ही पेड़ आयुर्वेद में बेहद खास माने जाते हैं. इनके मेल से बना पेड़ भी जाहिर तौर पर उतना ही अलग था. 


पारिजात और मंदार को मिलाकर हाइब्र‍िड तरीके से तैयार किया था क्योंक‍ि दोनों ही पेड़ आयुर्वेद में बेहद खास हैं. कसैले गुण के कारण मेडिसिनल इस्तेमाल की वजह से इसे राजवृक्ष भी मान लिया गया 


ध्वज पर सूर्य के साथ कोविदार वृक्ष बना हुआ होगा. कोविदार अयोध्या का राजवृक्ष था, जिसका जिक्र वाल्मीकि पुराण में भी है. माना जाता है कि ये दुनिया का पहला हाइब्रिड पेड़ है, जिसे ऋषि कश्यप ने बनाया था. 


रामायण कांड में नाम आता है 

पौराणिक मान्यता के अनुसार, महर्षि कश्यप ने कोविदार वृक्ष को बनाया था. वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड में इसका बार-बार उल्लेख मिलता है. जैसे राम के वन जाने के बाद भरत उन्हें मनाकर लौटाने के लिए निकलते हैं. वे लाव-लश्कर के साथ जंगल पहुंचे, जहां श्रीराम भारद्वाज मुनि के आश्रम में थे. शोर सुनकर लक्ष्मण को किसी सेना के हमले की आशंका हुई, लेकिन जब उन्होंने ऊंचाई पर जाकर देखा तो रथ पर लगे झंडे पर कोविदार पहचान गए. तब वे समझ गए कि अयोध्या से लोग आए हैं.  


शोध पत्रिकाओं में भी नाम


वैज्ञानिकों के लिए बनी यूरोपियन सोशल नेटवर्किंग साइट 'रिसर्च गेट' में भी इसपर शोध छप चुका है.  'प्लांट एंड एनिमल डायवर्सिटी इन वाल्मीकि रामायण' नाम से प्रकाशित रिसर्च में राम के वन प्रवास के दौरान भी कई पेड़ों का जिक्र मिलता है. इसी में कोविदार का भी उल्लेख है. कोविदार कचनार की प्रजाति का वृक्ष होता है, जो श्रीराम के समय अयोध्या और आसपास के राज्यों में खूब मिलता था. इसकी सुंदरता और मेडिसिनल इस्तेमाल की वजह से इसे राजवृक्ष भी मान लिया गया. 


ऋषि ने कैसे तैयार किया वृक्ष 

अगर पौराणिक मान्यताओं को साइंस से जोड़ें तो कोविदार शायद दुनिया का पहला हाइब्रिड प्लांट होगा. ऋषि कश्यप ने पारिजात के साथ मंदार को मिलाकर इसे तैयार किया था. दोनों ही पेड़ आयुर्वेद में बेहद खास माने जाते हैं. इनके मेल से बना पेड़ भी जाहिर तौर पर उतना ही अलग था. 


रंग-रूप कैसा है 


कोविदार का वैज्ञानिक नाम बॉहिनिया वैरिएगेटा है. ये कचनार की श्रेणी का है. संस्कृत में इसे कांचनार और कोविदर कहा जाता रहा. कोविदार की ऊंचाई 15 से 25 मीटर तक हो सकती है. ये घना और फूलदार होता है. इसके फूल बैंगनी रंग के होते हैं, जो कचनार के फूलों से हल्के गहरे हैं. इसकी पत्तियां काफी अलग दिखती हैं, ये बीच से कटी हुई लगती हैं. इसके फूल, पत्तियों और शाखा से भी हल्की सुगंध आती रहती है, हालांकि ये गुलाब जितनी भड़कीली नहीं होती.  


कहां मिलता है ये पेड़ कोविदार की प्रजाति के पेड़ जैसे कचनार अब भी हिमालय के दक्षिणी हिस्से, पूर्वी और दक्षिणी भारत में मिलते हैं. इंडिया बायोडायवर्सिटी पोर्टल की मानें तो कोविदार अब भी असम के दूर-दराज इलाकों में मिलता है. जनवरी से मार्च के बीच इसमें फूल आते हैं, जबकि मार्च से मई के बीच फल लगते हैं. 


इन बीमारियों में राहत 

आयुर्वेद में इसके सत्व का उपयोग स्किन की बीमारियों और अल्सर में होता है. इसकी छाल का रस पेट की क्रॉनिक बीमारियां भी ठीक करने वाला माना जाता है. जड़ के बारे में कहा जाता है कि सांप के काटे का भी इससे इलाज हो सकता है. ये बातें फार्मा साइंस मॉनिटर के पहले इश्यू में बताई गई हैं. 

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