शनिवार, 17 जून 2023

समान नागरिक संहिता अर्थात् UCC से जुड़े हर बड़े सवाल का जवाब है यहां


 समान नागरिक संहिता (UCC) भारत के लिए एक कानून बनाने की मांग करती है, जो विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने जैसे मामलों में सभी धार्मिक समुदायों पर लागू होगा. इसको लेकर देश में विवाद छिड़ा हुआ है. विधि आयोग एक रिपोर्ट भी तैयार कर रहा है.

इसके पक्ष और विपक्ष में तर्क दिये जा रहे हैं. पक्षधर इसके फायदे गिना रहे हैं जबकि विरोेध करने वालों की नजर में इससे देश के अंदर धार्मिक आजादी को खतरा होगा. संवैधानिक प्रावधानों में धर्म निरपेक्षता प्रभावित होगी. क्योंकि इससे यानी हिंदू विवाह अधिनियम (1955), हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (1956) और मुस्लिम व्यक्तिगत कानून आवेदन अधिनियम (1937) जैसे धर्म पर आधारित मौजूदा निजी कानून खत्म हो जाएंगे.

दरअसल विधि आयोग इस संबंध में एक रिपोर्ट तैयार कर रहा है. यूनिफॉर्म सिविल कोड मतलब एक समान नागरिक संहिता से है, इसके तहत पूरे देश में सभी के लिए एक कानून तय करना है. इसके मुताबिक सभी धार्मिक और आदिवासी समुदायों पर उनके व्यक्तिगत मामलों मसलन संपत्ति, विवाह, विरासत, गोद लेने आदि में भी समान कानून लागू होगा. आइए 5 अहम सवाल और उसके जवाब जानने की कोशिश करते हैं.

UCC के बारे में संविधान क्या कहता है?
संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया है, भारतीय राज्य नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास कर सकता है. मतलब संविधान सरकार को सभी समुदायों को उन मामलों को लेकर एक कानून बनाने का निर्देश दे सकता है जो मौजूदा समय में उनके व्यक्तिगत कानून के दायरे में हैं. और यही वजह है कि विपक्ष दल इसका विरोध कर रहे हैं. उनके मुताबिक देश की विविधता इससे खतरे में पड़ जाएगी. जबकि केंद्र सरकार के मुताबिक समानता जरूरी है और समय की मांग है.

राज्य आधारित यूसीसी व्यावहारिक तौर पर कितना संभव?
वास्तव में यह राज्य का नीति निर्देशक सिद्धांत से जुड़ा मामला है. यानी यह सभी राज्यों में एक जैसा लागू करने लायक नहीं है. उदाहरण के लिए अनुच्छेद 47 के तहत कोई राज्य नशीले पेय और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक दवाओं के सेवन पर रोक लगाता है. लेकिन दूसरे कई राज्यों में शराब धड़ल्ले से बेची जाती है.

किसी राज्य के पास समान नागरिक संहिता लाने की शक्ति को लेकर कानूनी विशेषज्ञ बंटे हुए हैं. कुछ का कहना है कि चूंकि विवाह, तलाक, विरासत और संपत्ति के अधिकार जैसे मुद्दे संविधान की समवर्ती सूची के अंतर्गत आते हैं. यह 52 विषयों की सूची है, केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं. राज्य सरकारों के पास भी इसे लागू करने की शक्ति है.

क्या यूसीसी केवल इस्लाम के खिलाफ है?
इसका जवाब है – नहीं. क्योंकि जब यूसीसी लागू होता है तो सभी धर्म, जाति के लिए लागू होता है. इसके तहत मुस्लिम व्यक्तिगत कानून आवेदन अधिनियम ही नहीं बल्कि हिंदू विवाह अधिनियम, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम भी खत्म हो जाएंगे. यहां तक कि विरासत और गोद लेने की प्रथा भी समुदाय विशेष पर आधारित नहीं रहेगी.

आदिवासी समुदायों पर भी लागू होगा यूसीसी?
प्रावधान के मुताबिक ऐसा ही माना गया है. राष्ट्रीय स्तर यूसीसी के लागू होने पर सभी इसकी जद में आएंगे. उनके भी विवाह, विवाह-विच्छेद या संपत्ति को लेकर निजी कानून निरस्त हो जाएंगे. हालांकि जनजातीय समुदाय में इसको लेकर रोेष भी देखा गया है.

समुदाय ने कोर्ट में कहा था उनके समाज के लोकाचार, रीति-रिवाज और धार्मिक प्रथाएं प्रभावित होंगी. आदिवासी हितों की रक्षा करने वाली राष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद ने कोर्ट से उनके रीति-रिवाजों और धार्मिक प्रथाओं की सुरक्षा की मांग की है. गौरतलब है कि आदिवासी समाज में भी बहुविवाह और बहुपतित्व का रिवाज है.

क्या कहीं लागू है यूसीसी ?
देश में फिलहाल एकमात्र राज्य गोवा में यूसीसी लागू है. चूंकि गोवा को विशेष राज्य का दर्जा हासिल है. संसद ने बकायदा कानून गोवा में पुर्तगाली यूसीसी लागू किया था. इसे गोवा सिविल कोड के नाम से जाना जाता है. हिंदू, मुस्लिम और ईसाई सबके लिए एक समान कानून लागू है. जिसमें शादी, उत्तराधिकार से लेकर गोद लेने की प्रथा तक शामिल है.

रविवार, 11 जून 2023

बोली-भाषा: खानाबदोश और च‍िरकुट, इन दो शब्दों का आख‍िर क्या अर्थ होता है


  ख़ानाबदोश एक फ़ारसी शब्द है जो भारत में काफी प्रचलित है। इस शब्द का विश्लेषण बड़ा रोचक है।

यह शब्द तीन अक्षरों से मिल कर बना है- ख़ाना ब दोश। यहाँ ख़ (ख़ाना) के नीचे नुक़्ता न भूलें क्योंकि बिना बिन्दु के ‘खाना’ का अर्थ भोजन हो जायेगा।

फ़ारसी शब्द ख़ाना अथवा ख़ाने का अर्थ होता है ‘घर या स्थान - जैसे पागलख़ाना, दवाख़ाना, गुसलखाना इत्यादि।

और दोश का मतलब है -‘कंधा’ ‘ब या बा’ सँग साथ के लिए लगता है।

इस तरह खानाबदोश वह लोग हुए जो अपना घर कंधे पर उठा कर चलते हैं।

वह कैसे?

ख़ानाबदोश कहीं पर भी स्थाई रूप से निवास नहीं करते। उनके पास बड़े बड़े तम्बू होते हैं और जो जगह उनके मनोकूल लगे वहीं तम्बू गाड़ कर रहने लगते हैं।

यह बंजारे पशु पालन, दस्तकारी इत्यादि का सुन्दर काम करते हैं। यह ऊँट, खच्चर, घोड़े, गाय इत्यादि जानवर भी पालते हैं और फिर इनके लिए चारागाह की तलाश में समान अपने जानवरों पर लाद और अपने तम्बू उखाड़ कर अपने कंधों पर रख आगे निकल जाते हैं।

जब सामान अपने जानवरों पर लादते हैं तो तम्बू भी उन पर लादने को कौन मना करता है? पर कहा यूँ जाता है कि ‘ख़ाना (घर) अपने कंधों पर लाद कर चलते हैं। कुछ भी हो बंजारे अपना घर अपने सँग लेकर चलते हैं।

हिन्दी में इनके लिए बंजारे शब्द का प्रयोग होता है एवं अंग्रेज़ी में जिप्सी कहते हैं।

अंग्रेजी में आमतौर पर जिप्सी शब्द भारत आदि देशों में ही घुमंतू जातियों के लिए प्रयोग होता है, परंतु वास्तव में जिप्सी एक अलग ही यूरोपीय जनजाति है जैसे हमारे देश में बकरवाल या भूटिया। ये लोग स्वयं को रोमानी या रोमा कहते हैं, जिप्सी कुछ अर्थों में अपमानजनक शब्द है। रोमानी और रोमा शब्द संयुक्त राष्ट्र आदि संगठन भी प्रयोग करते हैं। माना जाता है कि जिप्सी शब्द इजिप्शियन से आया, क्योंकि यूरोप पहुंचने पर इन्हें इजिप्ट का समझा गया। रोमा लोगों का मूल स्थान भारतीय उपमहाद्वीप का उत्तरी भाग माना जाता है।

बंजारा शब्द भी हिंदी में घुमंतू जातियों के लिए सर्वनाम बन गया है, परंतु यह शब्द भी एक खास जनजाति का नाम है, जो मुख्यतः राजस्थान से है।

खानाबदोश के लिए उपयुक्त अंग्रेजी शब्द nomad या itinerant group होगा। हिंदी में घुमंतू कहना उपयुक्त है।


मुंबइया भाषा तक स‍िमटा 'चिरकुट' शब्द, आख‍िर क्या होता है इसका अर्थ

चिरकुट शब्द की रचना संस्कृत भाषा के दो शब्दों, चिर (कहीं-कहीं इसे चीर भी माना गया है) तथा कूट के मेल से हुई है। इसका अर्थ फटा-पुराना कपडा, चिथड़ा अथवा गुदड़ है।


जायसी ने इस शब्द का प्रयोग इस प्रकार किया है :


काढ़हु कंथा चिरकुट लावा ।


पहिरहु राते दगल सुहावा ।


— जायसी


चिर — (चि + बाहुलकात् रक् ।) लम्बा समय, पुराना, स्थाई। यह विष्णु तथा शिव के नामों में भी है। लम्बे समय जीने वाले हनुमान, अश्वत्थामा आदि भी चिर कहलाते हैं।


अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः । कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनः ॥


चीर — (चिनोति आवृणोति वृक्षं कटिदेशा- दिकं वा । चि + “शुसिचिमीनां दीर्घश्च ।” उणां । २ । २५ । इति क्रन् दीर्घश्च ।) वस्त्र, कपड़ा, फटा हुआ वस्त्र, छाल, एक प्रकार का लेखन आदि। यथा:

क्षौमं दुकूलमजिनं चीरं वल्कलमेव वा ।

वसेऽन्यदपि सम्प्राप्तं दिष्टभुक्तुष्टधीरहम् ॥

— शतपथ ब्राह्मण ७.१३.३९ ॥


भावार्थ :—

अपने शरीर को ढंकने के लिए, मैं जो कुछ भी उपलब्ध है, उसका उपयोग करता हूं, चाहे वह मेरे भाग्य के अनुसार सन, रेशम, कपास, कौपीन या मृगछाला हो, और मैं पूरी तरह से संतुष्ट और अविकल हूँ।)

कुट — (कुट इ वैकल्ये । इति कविकल्पद्रुमः ॥ ) इसका अर्थ है कटना, फटना, तुड़-मुड़ा, गतिहीन होना, छल करना, धूर्तता करना, बेईमानी करना आदि। (इस अर्थ में कभी-कभी दीर्घ मात्रा भी प्रयुक्त है)।

स्त्रीबालवृद्धकितव मत्तोन्मत्ताभिशस्तकाः ।

रङ्गावतारिपाखण्डि कूटकृद्विकलेन्द्रियाः ॥

— याज्ञवल्क्यस्मृतिः व्यवहाराध्यायः साक्षिप्रकरणम् २.७० ॥

इससे बना चिरकुट, जो है फटा-पुराना। किसी व्यक्ति को यह उपमा दी जाए तो अर्थ यही कि उसका व्यक्तिगत चिथड़ों की तरह बिखरा हुआ है। इसी चिरकुट को गुलजार ने चिरंजीव कर दिया, अंगूर में संजीव कुमार के मुख से कहला कर "अगर मेरा नाम चिरकुट कुमार होता तब भी? "

बुधवार, 7 जून 2023

द्रुमकुल्य क्षेत्र अर्थात् कज़ाखस्तान: जहां श्रीराम ने समुद्र को सुखाने वाला ब्रह्मास्त्र छोड़ा था


 रामायण में एक प्रसंग आता है जब भगवान राम लंका जाने के लिए समुद्र देवता से रास्ता मांगते हैं और उन्हें रास्ता नहीं मिलता. उस समय श्री राम क्रोधित हो जाते हैं. क्रोध में आकर वह अपना धनुष उठाते हैं और समुद्र को सुखाने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाने का मन बना लेते हैं. तभी समुद्र देवता प्रकट होकर उन्हें अपनी गलती के लिए क्षमा मांगते हैं और श्री राम को बताते हैं कि वह वानरो की सहायता से समुद्र में पुल बनाकर लंका जा सकते हैं.


भगवान राम समुद्र देवता की बात सुनकर उन्हें क्षमा कर देते हैं. लेकिन क्रोध में निकाले गए ब्रह्मास्त्र को वापस नहीं रख सकते थे. तब उन्होंने समुद्र देवता से पूछा कि अब तो य बाण कहीं न कहीं छोड़ना ही पड़ेगा. इस पर समुद्र देवता उन्हें द्रुमकुल्य नाम के देश में बाण छोड़ने का सुझाव देते हैं. समुद्र देवता का कहना था कि द्रुमकुल्य पर भयंकर दस्तु (डाकू) रहते हैं जो उनके जल को भी दूषित करते रहे हैं. इस पर राम ने ब्रह्मास्त्र चाल दिया.

वाल्मीकि रामायण मे दिए गए वर्णन के अनुसार ब्रह्मास्त्र की गर्मी से द्रुमकुल्य के डाकू मारे गए. लेकिन इसकी गर्मी इतनी ज्यादा थी कि सारे पेड़-पौधे सूख गए और धरती जल गई. इसके कारण पूरी जगह रेगिस्तान में बदल गई और वहां के पास मौजूद सागर भी सूख गया. यह वर्णन बेहद आश्चर्यजनक है और जिस तरह से लंका तक बनाए गए रामसेतु को भगवान राम की एतिहासिकता के सबूत के तौर पर माना जाता है उसी तरह इस घटना को भी सही माना जाता है.

माना जाता है कि यह जगह आज का कजाकिस्तान है. कजाकिस्तान में ऐसी ढेरों विचित्रताएं हैं जो इशारा करती है. कि उसका संबंध रामायण काल से हो सकता है. वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्री राम ने उत्तर दिशा में द्रुमकुल्य के लिए बाण चलाया था. वो जानते थे कि इसके असर से वहां डाकू तो मर जाएंगे लेकिन निद्रोष जीवजंतु भी मारे जाएंगे और पूरी धरती रेगिस्तान बन जाएगी.

इसलिए उन्होंने यह आशीर्वाद भी दिया कि कुथ दिन बाद वहां सुगंधित औषधियां उगेंगी, वह जगह पशुओं के लिए उत्तम, फल मूल मधु से भरी होगी. कजाकिस्तान में जिस जगह पर राम का बाण गिरा वो जगह किजिलकुम मरुभूमि के नाम से जानी जाती है. यह दुनिया का 15वां सबसे बड़ा रेगिस्तान है. स्थानीय भाषा में किजिलकुम का मतलब लाल रेत होता है. माना जाता है कि कि ब्रह्मास्त्र की ऊर्जा के असर से यहां की रेत लाल हो गई.

किजिलकुम में कई दुर्लभ पेड़-पैधे पाए जाते हैं. पास में अराल सागर है. जो दुनिया का इकलौता समुद्र है जो समय के साथ-साथ सूख रहा है. आज यह अपने मूल आकार का मात्र 10 फीसदी बचा है. किजिलकुम का कुछ हिस्सा तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान में भी है. रामेश्वरम तट से इस जगह की दूरी करीब साढ़े चार हजार किलोमीटर है.

- Alaknanda Singh 

शनिवार, 3 जून 2023

हिंदुओं को मृत्यु उपरांत RIP शब्द को इस्तेमाल नहीं करना चाहिए

 


 R.I.P यानी रेस्ट इन पीस कहना लोगों का फैशन बन गया है| लोग बिना कुछ सोचे समझे ही किसी के भी मरने पर RIP RIP की रट लगा देते हैं खासकर फेसबुक ट्विटर या व्हाट्सएप ग्रुप में। दोस्तों शब्दों में धार्मिक भेदभाव तो नहीं किया जा सकता लेकिन R.I.P शब्द का मतलब सिर्फ मुस्लिम और ईसाइयों के लिए ही सिद्ध होता है ना कि हिंदुओं के लिए|

हम इस शब्द के मतलब से अनजान अपनी तरफ से तो हम RIP शब्द का उपयोग कर मृत व्यक्ति की शांति के लिए मांग रहे होते हैं | आज मैं आपको बता देता हूं कि इस बात का अर्थ यह नहीं होता है|

आइये जानते हैं की हिंदुओं के लिए R.I.P शब्द का इस्तेमाल क्यों नहीं करना चाहिए और इसकी जगह क्या शब्द इस्तेमाल करें|

R.I.P (Rest in Peace) का अर्थ हिंदी में कहूं तो शांति से आराम करो या फिर शांति में आराम करो| शांति से आराम करो और ईश्वर आपकी आत्मा को शांति दे इन दोनों पंक्तियों में जमीन आसमान का अंतर है हमें इस में फर्क करना आना चाहिए|

शांति से आराम करो उन लोगों के लिए अपनाया जाता है जिन्हें कब्र में दफनाया गया है क्योंकि ईसाइयों और मुस्लिमों की मान्यताओं के अनुसार जब जजमेंट डे यानी कयामत का दिन आएगा तब सारे मृत जी उठेंगे| इस लिए मुस्लिम और ईसाई कहते हैं कयामत के दिन तक शांति से इंतज़ार करो।

ईसाई और मुस्लिम शरीर में यकीन रखते हैं मानना है कि कयामत के दिन फिर से जी उठेंगे लेकिन हिंदू इसके विपरीत पुनर्जन्म मे यकीन रखते हैं और आत्मा को अमर मानते हैं हिंदू धर्म के अनुसार शरीर नश्वर है यानी एक ना एक दिन इसे नष्ट होना ही है इसी वजह से हिंदू शरीर को जला दिया जाता है हिंदुओं का मानना है कि मरने के बाद शरीर से आत्मा ही निकल गई तो शरीर किस काम का।

भगवद् गीता (मूल श्लोकः।।2.22।) में कहा गया है क‍ि- 

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा
न्यन्यानि संयाति नवानि देही

भावार्थ: मनुष्य जैसे पुराने कपड़ों को छोड़कर दूसरे नये कपड़े धारण कर लेता है ऐसे ही आत्मा पुराने शरीरों को छोड़कर दूसरे नये शरीर में चला जाता है।
गीता में यह भी कहा गया है कि

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥ 2/23

भावार्थ: इस आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते, इसको आग नहीं जला सकती, इसको जल नहीं गला सकता और वायु नहीं सुखा सकता॥23॥

संसार के किसी भी वस्तु से हम आत्मा को छू भी नहीं सकते और ध्यान देने योग्य बात यह है कि जल वायु अग्नि तीनों ही हिंदू धर्म में देवता माने गए हैं| हिंदू धर्म के अनुसार मनुष्य अपने कर्मो के फल स्वरूप या तो मोक्ष प्राप्ति कर लेता है या फिर आत्मा नया शरीर को धारण कर लेती है |इसलिए हमारे यहां कहां जाता है,

ओम शांति सदगति
अर्थात: ईश्वर आत्मा को शांति दे मोक्ष की प्राप्ति हो|