पूरे देश में अपराध संबंधी आंकड़े जुटाने वाली एजेंसी एनसीआरबी के आंकड़े देखकर तो कभी-कभी ऐसा लगता है कि भारत एक झगड़ालू देश है परंतु अब इन्हीं आंकड़ों को कम करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में दिए गए दो निर्णयों से बड़ी राहत मिलने वाली है।
कानूनी पचड़ेबाजी में पड़े व्यक्ति के लिए न्याय की अंतिम आस सुप्रीम कोर्ट होता है, सो उसके ये निर्णय निश्चित ही पूरे देश को बड़ा लाभ पहुंचाने वाले हैं।
पहला मामला ये है
कल सुप्रीम कोर्ट ने दीवानी मुकद्दमों के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण आदेश दिया कि यदि ‘वादी पक्ष’ रज़ामंदी से ‘आउट ऑफ कोर्ट’ सेटलमेंट करने यानि केस को आपसी सहमति से निपटाने का इच्छुक हो तो उसकी कोर्ट फीस पूरी की पूरी वापस कर दी जाएगी। चूंकि सिविल मुकद्दमों की फीस ‘कोर्ट फीस मुकद्दमा वैल्यू एक्ट” के हिसाब से तय की जाती है इसलिए कोर्ट इसे 10% से लेकर 25% तक जमा कराता है लेकिन दशकों तक घिसटने वाले दीवानी मुकद्दमे की कोर्ट फीस कभी वापस नहीं मिलती थी।
इस फैसले से जहां ‘आउट ऑफ कोर्ट’ सेटलमेंट करने को प्रोत्साहन मिलेगा वहीं बेवजह सालों साल घिसटने वाले और कोर्ट पर बोझ बढ़ाने वाले ऐसे मामलों की संख्या में कमी भी आएगी। ज़ाहिर है कि ये एक निर्णय कोर्ट्स का कितना बोझ कम करेगा, इसका सिर्फ अंदाज़ा लगाकर ही बेहद खुशी हो रही है।
दूसरा मामला
किसी भी समाज और खासकर लोकतांत्रिक समाज में स्वयंसेवी संगठन यानि एनजीओ का बहुत योगदान होता है परंतु जब यही योगदान गलत कारणों से संदेहों और स्वार्थ में घिरकर कानून का दुरुपयोग करने लगे तो वही होता है जो सुप्रीम कोर्ट ने किया। खबर हालांकि 5 दिन पुरानी है परंतु है सबक देने वाली कि एक एनजीओ सुराज़ इंडिया ट्रस्ट ने सुप्रीम कोर्ट में लगातार 64 जनहित याचिकायें दाखिल कीं और सभी बेबुनियाद विषयों पर।
5 दिसम्बर 2017 को पहली सुनवाई जस्टिस खेहर ने की थी जिसमें उनपर 25 लाख रुपये का ज़ुर्माना लगाया गया था। इसका पटाक्षेप अब 17 फरवरी 2021 को तब हुआ, जब तीन घंटे की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने NGO के अध्यक्ष राजीव दहिया पर न केवल 25 लाख का जुर्माना लगा रहने दिया बल्कि उन्हें आजीवन कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल करने से भी उन्हें बैन कर दिया। इतना ही नहीं ज़ुर्माना न भरने के कारण दहिया के खिलाफ ज़मानती वारंट भी जारी किया।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने इस सुराज इंडिया ट्रस्ट बनाम भारत संघ मामले में NGO के अध्यक्ष राजीव दहिया से कहा कि “आप हमारा वक्त बर्बाद मत कीजिए। आप रुकावट पैदा कर रहे हैं। आपने कोर्ट में 64 जनहित याचिकाएं दाखिल कींं। कोर्ट के पास और भी काम हैं। लोग जेल में हैं। क्या सड़क हादसों में मारे गए लोग इंसाफ के हकदार नही हैं, महिलाओं, बच्चों और गरीब लोगों का क्या जो इंसाफ के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं, महिलाएं और बच्चे मोटर वाहन क्लेम का इंतजार कर रहे हैं।
ये एक बड़ा सबक है उन संस्थाओं और व्यक्तियों के लिए जो अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट को याचिकाओं से पाटे जा रहे हैं। सोचने वाली बात है कि जहां प्रतिदिन सैकड़ों केस सुनवाई और निर्णय की आस में सुप्रीम कोर्ट की ओर देखते हों वहीं एक के बाद एक लगातार 64 याचिकाएं आखिर क्यों और किस मानसिकता के तहत दाखिल की गईं।
निश्चित ही सुप्रीम कोर्ट के उक्त दोनों निर्णय कोर्ट की कार्यप्रणाली और लंबित मुकद्दमों के लिए अच्छी ‘शुरुआत’ कहा जा सकता परंतु अभी सिर्फ शुरुआत है। आम आदमी को समय से न्याय अब भी टेढ़ी खीर है, जिस पर खरा उतरने के लिए कई मील के पत्थर पार करने होंगे।
- अलकनंदा सिंंह