हमारे देश में जिन शब्दों को ब्रह्म माना गया, सोशल मीडिया पर या
इंटरनेट की दुनिया ने उनको धराशाई करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है।
यहां शब्दों का ऐसा सैलाब आया हुआ है कि क्या सही है क्या गलत, इनके
प्रयोग से समाज में क्या प्रतिक्रिया होगी, कोई समझने को तैयार नहीं।
इंटरनेट पर अभिव्यक्ति को जिन उच्छृंखल शब्दों का सामना करना पड़ रहा है, उससे तो अर्थ का अनर्थ होते देर नहीं लगती। सड़कछाप और संभ्रांत भाषा के बीच अब अंतर कर पाने में विचारधारा के संकट से भी जूझना पड़ता है सो अलग। शब्दों के इन वीभत्स रूपों का डिसेक्शन कर पाना आसान नहीं होता, वह भी तब जब लिखने वाला (चूंकि हर लिखने वाला लेखक नहीं होता) नकारात्मक सोच वाला हो तो उसके लिखे गए शब्द अच्छाई में भी बुराई ढूंढ़ ही लेते हैं।
मुकम्मल कानून की कमी और पेचीदगियों के कारण इंटरनेट पर इन अपशब्दों ने हद से बाहर जाकर शर्मनाक स्थिति पैदा कर दी है। यह अपशब्दों का ऐसा मायाजाल तैयार कर चुका है कि इस पर यदि समय रहते रोक नहीं लगाई तो हम इस शब्दजनित अराजकता के लिए स्वयं भी उतने ही दोषी माने जाऐंगे जितने कि अपशब्दों के आविष्कारक हैं।
हाल ही में एक मामला वामपंथी सोशल एक्टिविस्ट कविता कृष्णन पर अपशब्दों के इसी आतंक का आया है जिसने खूब सुर्खियां बटोरीं। ये बात इसलिए भी गंभीर है कि कथित स्वतंत्रता की आड़ लेकर एक समाचार वेबसाइट द्वारा आपत्तिजनक शब्दों के साथ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ कविता कृष्णन की विवादित टिप्पणी को पब्लिश किया जाता है।
जी हां, यह घृणित कारनामा किया है www.Hamariawaz.in नामक वेबसाइट ने जिसमें हाल ही में छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में वामपंथी महिला संगठनों की नेता कामरेड कविता कृष्णन ने हवाले से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विवादित टिप्पणी को पब्लिश किया गया है। वेबसाइट के अनुसार कविता कृष्णन ने कहा है कि भारत के प्रधानमंत्री ने अपने बाप अमेरिका के इशारे पर 1000 और 500 के नोट बंद कर दिए है, जिससे हमारे बस्तर में रहने वाले आदिवासी भाइयों को आज भुखमरी का सामना करना पड़ रहा है।
वेबसाइट के ही अनुसार कविता कृष्णन ने कहा कि.. ये देश का दुर्भाग्य है, जो पहली बार भारत को नरेंद्र मोदी जैसा नपुंसक प्रधानमंत्री मिला। वो यही नहीं रुकी उसने कहा कि जो अपनी पत्नी और माँ का नहीं हुआ वो देश का कैसे होगा। मोदी एक हिजड़ा है, और अगर ऐसा नहीं है, तो मेरे साथ हमबिस्तर होकर अपनी मर्दानगी साबित करे। पूँजीपतियों का अरबों-खरबों का टैक्स माफ करने वाला यह प्रधानमंत्री देशद्रोही और गद्दार है। वामपंथी नेता कविता कृष्णन ने आदिवासी महिलाओं के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि हम महिलाओं को भी फ्री सेक्स की आजादी चाहिए, जिस तरह कोई भी पुरुष किसी भी महिला के साथ शारीरिक संबंध बना सकता है उसी तरह महिलाओं को भी किसी भी पुरुष के साथ शारीरिक संबंध बनाने का अधिकार होना चाहिए। हम महिलाएं भी अपने मनपसंद पुरुष के साथ शारीरिक संबंध बनाकर अपने काम वासना की पूर्ति कर सकें।
वामपंथी नेता कविता कृष्णन ने कहा कि सीआरपीएफ के जवान बस्तर में नक्सलियों के नाम पर दलित आदिवासियों का एनकाउंटर कर रही है और आदिवासी महिलाओं के साथ सीआरपीएफ के जवान बलात्कार करते हैं, हम इसका विरोध करते हैं।
वामपंथी महिला संगठनों की नेता कामरेड कविता कृष्णन ने कहा कि हमारी आदिवासी महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ हम लड़ाई लड़ेंगे और आजादी दिलाएंगे।
हालांकि कविता कृष्णन ने वेबसाइट Alt News में स्वयं की छवि को इस घृणित अंदाज़ में पेश किए जाने को लेकर एक इंटरव्यू भी दिया है और www.Hamariawaz.in पर अदालती कार्यवाही किए जाने की बात भी की है मगर यह सब तो आगे की बात है। एक प्रतिरोध की बात है।
मैं ये नहीं कहती कि कविता को लेकर उक्त वेबसाइट ने ऐसा क्यों लिखा, कविता को लेकर ही क्यों लिखा, कविता अब क्या करेगीं या इस वेबसाइट पर अश्लील सामिग्री ही क्यों परोसी जाती है…नेगेटिव ही सही पब्लिसिटी तो वेबसाइट को मिली ही आदि आदि…।
इन सबसे कविता भी निबट लेंगी और सरकार व कानून भी, मगर बात वहीं आ जा जाती है कि अपशाब्दिक होती घातक सोच और आधा गिलास भरा देखने की बजाय आधा गिलास खाली देखने की आदी हो चुकी इस प्रवृत्ति ने देश की यह दशा कर दी है कि आज ऐसे लोगों ने प्रधानमंत्री को गरियाने की सारी हदें पार कर दी है।
श्री श्री रविशंकर कहते हैं कि जो अधिक गालियां अथवा अपशब्द निकालते हैं वह स्वयं में अपने ही भीतर से उतना ही अधिक असुरक्षित होते हैं। संभवत:यही असुरक्षा अपशब्द लिखकर पब्लिसिटी स्टंट का रूप लेती है। हमें यदि इंटरनेट के पॉजिटिव इफेक्ट्स पता हैं तो इसकी बेलगाम दुष्प्रवृत्ति को भी तो झेलना होगा।
हमें अपशब्दों की इस बेलगाम दुनिया का प्रतिकार करना होगा और कानूनी रूप से भी आमजन में यह संदेश देना होगा कि नंगी सोच हो या नंगा बदन आकर्षण पैदा नहीं करते। हां, एक क्षोभ भरा कौतूहल अवश्य देते हैं वह भी मानसिक विकृति के लक्षणों के साथ। और इस मानसिक विकृति से कोई भी ग्रस्त हो सकता है, हमें सावधान रहना होगा और दूसरों को सचेत भी करना होगा।
– अलकनंदा सिंह
इंटरनेट पर अभिव्यक्ति को जिन उच्छृंखल शब्दों का सामना करना पड़ रहा है, उससे तो अर्थ का अनर्थ होते देर नहीं लगती। सड़कछाप और संभ्रांत भाषा के बीच अब अंतर कर पाने में विचारधारा के संकट से भी जूझना पड़ता है सो अलग। शब्दों के इन वीभत्स रूपों का डिसेक्शन कर पाना आसान नहीं होता, वह भी तब जब लिखने वाला (चूंकि हर लिखने वाला लेखक नहीं होता) नकारात्मक सोच वाला हो तो उसके लिखे गए शब्द अच्छाई में भी बुराई ढूंढ़ ही लेते हैं।
मुकम्मल कानून की कमी और पेचीदगियों के कारण इंटरनेट पर इन अपशब्दों ने हद से बाहर जाकर शर्मनाक स्थिति पैदा कर दी है। यह अपशब्दों का ऐसा मायाजाल तैयार कर चुका है कि इस पर यदि समय रहते रोक नहीं लगाई तो हम इस शब्दजनित अराजकता के लिए स्वयं भी उतने ही दोषी माने जाऐंगे जितने कि अपशब्दों के आविष्कारक हैं।
हाल ही में एक मामला वामपंथी सोशल एक्टिविस्ट कविता कृष्णन पर अपशब्दों के इसी आतंक का आया है जिसने खूब सुर्खियां बटोरीं। ये बात इसलिए भी गंभीर है कि कथित स्वतंत्रता की आड़ लेकर एक समाचार वेबसाइट द्वारा आपत्तिजनक शब्दों के साथ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ कविता कृष्णन की विवादित टिप्पणी को पब्लिश किया जाता है।
जी हां, यह घृणित कारनामा किया है www.Hamariawaz.in नामक वेबसाइट ने जिसमें हाल ही में छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में वामपंथी महिला संगठनों की नेता कामरेड कविता कृष्णन ने हवाले से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विवादित टिप्पणी को पब्लिश किया गया है। वेबसाइट के अनुसार कविता कृष्णन ने कहा है कि भारत के प्रधानमंत्री ने अपने बाप अमेरिका के इशारे पर 1000 और 500 के नोट बंद कर दिए है, जिससे हमारे बस्तर में रहने वाले आदिवासी भाइयों को आज भुखमरी का सामना करना पड़ रहा है।
वेबसाइट के ही अनुसार कविता कृष्णन ने कहा कि.. ये देश का दुर्भाग्य है, जो पहली बार भारत को नरेंद्र मोदी जैसा नपुंसक प्रधानमंत्री मिला। वो यही नहीं रुकी उसने कहा कि जो अपनी पत्नी और माँ का नहीं हुआ वो देश का कैसे होगा। मोदी एक हिजड़ा है, और अगर ऐसा नहीं है, तो मेरे साथ हमबिस्तर होकर अपनी मर्दानगी साबित करे। पूँजीपतियों का अरबों-खरबों का टैक्स माफ करने वाला यह प्रधानमंत्री देशद्रोही और गद्दार है। वामपंथी नेता कविता कृष्णन ने आदिवासी महिलाओं के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि हम महिलाओं को भी फ्री सेक्स की आजादी चाहिए, जिस तरह कोई भी पुरुष किसी भी महिला के साथ शारीरिक संबंध बना सकता है उसी तरह महिलाओं को भी किसी भी पुरुष के साथ शारीरिक संबंध बनाने का अधिकार होना चाहिए। हम महिलाएं भी अपने मनपसंद पुरुष के साथ शारीरिक संबंध बनाकर अपने काम वासना की पूर्ति कर सकें।
वामपंथी नेता कविता कृष्णन ने कहा कि सीआरपीएफ के जवान बस्तर में नक्सलियों के नाम पर दलित आदिवासियों का एनकाउंटर कर रही है और आदिवासी महिलाओं के साथ सीआरपीएफ के जवान बलात्कार करते हैं, हम इसका विरोध करते हैं।
वामपंथी महिला संगठनों की नेता कामरेड कविता कृष्णन ने कहा कि हमारी आदिवासी महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ हम लड़ाई लड़ेंगे और आजादी दिलाएंगे।
हालांकि कविता कृष्णन ने वेबसाइट Alt News में स्वयं की छवि को इस घृणित अंदाज़ में पेश किए जाने को लेकर एक इंटरव्यू भी दिया है और www.Hamariawaz.in पर अदालती कार्यवाही किए जाने की बात भी की है मगर यह सब तो आगे की बात है। एक प्रतिरोध की बात है।
मैं ये नहीं कहती कि कविता को लेकर उक्त वेबसाइट ने ऐसा क्यों लिखा, कविता को लेकर ही क्यों लिखा, कविता अब क्या करेगीं या इस वेबसाइट पर अश्लील सामिग्री ही क्यों परोसी जाती है…नेगेटिव ही सही पब्लिसिटी तो वेबसाइट को मिली ही आदि आदि…।
इन सबसे कविता भी निबट लेंगी और सरकार व कानून भी, मगर बात वहीं आ जा जाती है कि अपशाब्दिक होती घातक सोच और आधा गिलास भरा देखने की बजाय आधा गिलास खाली देखने की आदी हो चुकी इस प्रवृत्ति ने देश की यह दशा कर दी है कि आज ऐसे लोगों ने प्रधानमंत्री को गरियाने की सारी हदें पार कर दी है।
श्री श्री रविशंकर कहते हैं कि जो अधिक गालियां अथवा अपशब्द निकालते हैं वह स्वयं में अपने ही भीतर से उतना ही अधिक असुरक्षित होते हैं। संभवत:यही असुरक्षा अपशब्द लिखकर पब्लिसिटी स्टंट का रूप लेती है। हमें यदि इंटरनेट के पॉजिटिव इफेक्ट्स पता हैं तो इसकी बेलगाम दुष्प्रवृत्ति को भी तो झेलना होगा।
हमें अपशब्दों की इस बेलगाम दुनिया का प्रतिकार करना होगा और कानूनी रूप से भी आमजन में यह संदेश देना होगा कि नंगी सोच हो या नंगा बदन आकर्षण पैदा नहीं करते। हां, एक क्षोभ भरा कौतूहल अवश्य देते हैं वह भी मानसिक विकृति के लक्षणों के साथ। और इस मानसिक विकृति से कोई भी ग्रस्त हो सकता है, हमें सावधान रहना होगा और दूसरों को सचेत भी करना होगा।
– अलकनंदा सिंह
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