धर्म का काम है लोगों को सदाचारी और प्रेममय बनाना और राजनीति का काम है लोगों का ध्यान रखना, उनके हित के लिए काम करना। जब धर्म और राजनीति साथ-साथ नहीं चलते तब हमें भ्रष्ट राजनीतिज्ञ और कपटी धार्मिक नेता मिलते हैं।
एक धार्मिक व्यक्ति जो सदाचारी व स्नेही है, अवश्य ही जनता के हित की सोचेगा, उसका ख्याल रखेगा इसीलिए वह सच्चा राजनीतिज्ञ बनेगा। सभी अवतार और महान उपदेशकों ने लोकहित का ध्यान रखा और इसलिए वो धार्मिक बने रहे। अधार्मिक व्यक्ति या अधार्मिक सोच, दोनों ही स्थितियां भ्रष्टाचार और अराजकता फैलाती हैं। धर्म कोई भी हो जो ''संयम व स्वछंदता'' दोनों के साथ सामंजस्य बैठाकर चलता है, वही पल्लवित होता है, अन्यथा वह अतिवाद का शिकार हो अपना मूल उद्देश्य ही खो देता है।
अब देखिए ना, बात बहुत छोटी सी है मगर असर गहरा है। वाराणसी की वरुणानगरम कालोनी का वाकया है जहां रामनवमी पर मुस्लिम महिला संस्था की अध्यक्ष नाजनीन साहिबा ने भगवान श्री राम की आरती उतारी और मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक की लड़ाई में जीत दिलाने का आशीर्वाद मांगा।
बात यहां धर्म ''कौन सा है'' की है ही नहीं, बात तो सिर्फ उस आस्था की है जिसके वशीभूत हो ये विश्वास जन्मा कि श्री राम का आशीर्वाद होगा तो औरतों के हक की लड़ाई निर्णायक साबित होगी और उनके जज़्बे को कोई हरा नहीं पाएगा।
ये मुस्लिम और हिंदू के बीच की बात ही नहीं थी कि नाजनीन साहिबा को रामनवमी पर आरती करने तक ले गई। यह तो श्रीराम जैसे लोकनायक के प्रति वो विश्वास था जो तीन तलाक के मुद्दे पर उनसे जीत का आशीर्वाद मांगने पहुंचा।
नाजनीन तो एक उदाहरण है उनके लिए जिनके लिए धर्म, राजनीति की मौजूदा अवधारणा से चार कदम आगे की बात है। जो स्पष्ट करती है कि ''धर्म का काम है लोगों को सदाचारी और प्रेममय बनाना और राजनीति का काम है लोगों का ध्यान रखना, उनके हित के लिए काम करना''।
यह उस अपनेपन और विश्वास की बात है जो मनौतियों के लिए किसी धर्म के बीच बाकायदा ''प्लांट किए'' गए अंतर्विरोधों को लांघ जाती है।
धर्म और राजनीति से ऊपर उठते हुए लोगों का एक और उदाहरण है -- हाल ही में एक सप्ताह तक वाराणसी के संकट मोचन मंदिर में चले संगीत महोत्सव का।
महोत्सव में दरगाह अजमेर शरीफ के कव्वाल हमसर हयात निजामी के सूफी कलाम को संकट मोचन संगीत महोत्सव में जिसने भी सुना होगा उसे यह अहसास तो हो ही गया होगा कि प्रार्थना हो इबादत हो, उन सभी बंधनों और लकीरों से परे होती है जो हर रोज हर घड़ी लोगों के दिलों पर खींची जाती हैं।
यह बात अलग है कि इन लकीरों को हर रोज नाजनीन, कव्वाल हमसर हयात निजामी, श्रीराम मंदिर के पुजारी और संकटमोचन मंदिर का मंच जैसे कई लोग व संस्थाएं मिलकर मिटाते भी जाते हैं।
आजकल कुछ लोग मौजूदा राजनैतिक हालातों से बेहद ख़फा ख़फा से हैं क्योंकि उन्हें खामियां निकालने को स्पेस नहीं मिल पा रहा और जो मिल भी रहा है उसे वे परवान नहीं चढ़ा पा रहे, धर्म के नाम पर जिन मुद्दों को वे उछालना चाहते हैं, वे अपने धब्बों के साथ उन्हीं के दामन पर जाकर चिपक जाते हैं। एक अजब सी बौखलाहट है उनमें तभी तो कहते फिर रहे हैं कि ''हमारी स्वतंत्रता'' बंधक बन गई है। धर्म और राजनीति का ये सम्मिश्रण मठाधीशों-मौलवियों को जो आइना दिखा रहा है, वे उससे विचलित हैं। कभी इन्हीं डरों पर वे अपना आधिपत्य रखते थे।
बहरहाल, जो आजकल की राजनीति से निराश हैं, जो धर्म पर बोलने वाली जुबानों से आहत हुए जा रहे हैं उनके लिए हिंदी के कवि शमशेर बहादुर सिंह कहते हैं---
‘ईश्वर अगर मैंने अरबी में प्रार्थना की
तू मुझसे नाराज हो जाएगा?
अल्लमह यदि मैंने संस्कृत में संध्या की
तो तू मुझे दोजख में डालेगा?
लोग तो यही कहते घूम रहे हैं
तू बता, ईश्वर?
तू ही समझा, मेरे अल्लाह!
बहुत-सी प्रार्थनाएं हैं
मुझे बहुत-बहुत मोहती हैं
ऐसा क्यों नहीं है कि एक ही प्रार्थना
मैं दिल से कुबूल कर लूं
और अन्य प्रार्थनाओं को करने पर
प्रायश्चित करने का संकल्प करूं!
क्योंकि तब मैं अधिक धार्मिक
अपने को महसूस करूंगा,
इसमें कोई संदेह नहीं है.’
शमशेर जिस अधिक धार्मिकता की बात कर रहे हैं, वह सद्भाव से उपजती है और सारी प्रार्थनाओं को संगीत बना देती है। सद्भाव से ही उपजा है वह संगीत जो सबका है जिसे कव्वाल हमसर हयात निजामी गाते हैं ‘छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाय के...’ वहीं नाजनीन भी आरती गाकर सद्भाव के द्योतक श्रीराम को मनाती हैं।
धर्म और राजनीति के बीच पैदा हो चुका ये अद्भुत समन्वय निश्चित ही धर्म और राजनीति दोनों के अतिवादियों को बढ़िया सबक सिखायेगा, भला बताइये कि उभरती अर्थव्यवस्था व शांति का संदेश देने वाले हमारे देश के भविष्य के लिए इससे अच्छी खबर और क्या हो सकती है।
- अलकनंदा सिंह
एक धार्मिक व्यक्ति जो सदाचारी व स्नेही है, अवश्य ही जनता के हित की सोचेगा, उसका ख्याल रखेगा इसीलिए वह सच्चा राजनीतिज्ञ बनेगा। सभी अवतार और महान उपदेशकों ने लोकहित का ध्यान रखा और इसलिए वो धार्मिक बने रहे। अधार्मिक व्यक्ति या अधार्मिक सोच, दोनों ही स्थितियां भ्रष्टाचार और अराजकता फैलाती हैं। धर्म कोई भी हो जो ''संयम व स्वछंदता'' दोनों के साथ सामंजस्य बैठाकर चलता है, वही पल्लवित होता है, अन्यथा वह अतिवाद का शिकार हो अपना मूल उद्देश्य ही खो देता है।
अब देखिए ना, बात बहुत छोटी सी है मगर असर गहरा है। वाराणसी की वरुणानगरम कालोनी का वाकया है जहां रामनवमी पर मुस्लिम महिला संस्था की अध्यक्ष नाजनीन साहिबा ने भगवान श्री राम की आरती उतारी और मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक की लड़ाई में जीत दिलाने का आशीर्वाद मांगा।
बात यहां धर्म ''कौन सा है'' की है ही नहीं, बात तो सिर्फ उस आस्था की है जिसके वशीभूत हो ये विश्वास जन्मा कि श्री राम का आशीर्वाद होगा तो औरतों के हक की लड़ाई निर्णायक साबित होगी और उनके जज़्बे को कोई हरा नहीं पाएगा।
ये मुस्लिम और हिंदू के बीच की बात ही नहीं थी कि नाजनीन साहिबा को रामनवमी पर आरती करने तक ले गई। यह तो श्रीराम जैसे लोकनायक के प्रति वो विश्वास था जो तीन तलाक के मुद्दे पर उनसे जीत का आशीर्वाद मांगने पहुंचा।
नाजनीन तो एक उदाहरण है उनके लिए जिनके लिए धर्म, राजनीति की मौजूदा अवधारणा से चार कदम आगे की बात है। जो स्पष्ट करती है कि ''धर्म का काम है लोगों को सदाचारी और प्रेममय बनाना और राजनीति का काम है लोगों का ध्यान रखना, उनके हित के लिए काम करना''।
यह उस अपनेपन और विश्वास की बात है जो मनौतियों के लिए किसी धर्म के बीच बाकायदा ''प्लांट किए'' गए अंतर्विरोधों को लांघ जाती है।
धर्म और राजनीति से ऊपर उठते हुए लोगों का एक और उदाहरण है -- हाल ही में एक सप्ताह तक वाराणसी के संकट मोचन मंदिर में चले संगीत महोत्सव का।
महोत्सव में दरगाह अजमेर शरीफ के कव्वाल हमसर हयात निजामी के सूफी कलाम को संकट मोचन संगीत महोत्सव में जिसने भी सुना होगा उसे यह अहसास तो हो ही गया होगा कि प्रार्थना हो इबादत हो, उन सभी बंधनों और लकीरों से परे होती है जो हर रोज हर घड़ी लोगों के दिलों पर खींची जाती हैं।
यह बात अलग है कि इन लकीरों को हर रोज नाजनीन, कव्वाल हमसर हयात निजामी, श्रीराम मंदिर के पुजारी और संकटमोचन मंदिर का मंच जैसे कई लोग व संस्थाएं मिलकर मिटाते भी जाते हैं।
आजकल कुछ लोग मौजूदा राजनैतिक हालातों से बेहद ख़फा ख़फा से हैं क्योंकि उन्हें खामियां निकालने को स्पेस नहीं मिल पा रहा और जो मिल भी रहा है उसे वे परवान नहीं चढ़ा पा रहे, धर्म के नाम पर जिन मुद्दों को वे उछालना चाहते हैं, वे अपने धब्बों के साथ उन्हीं के दामन पर जाकर चिपक जाते हैं। एक अजब सी बौखलाहट है उनमें तभी तो कहते फिर रहे हैं कि ''हमारी स्वतंत्रता'' बंधक बन गई है। धर्म और राजनीति का ये सम्मिश्रण मठाधीशों-मौलवियों को जो आइना दिखा रहा है, वे उससे विचलित हैं। कभी इन्हीं डरों पर वे अपना आधिपत्य रखते थे।
बहरहाल, जो आजकल की राजनीति से निराश हैं, जो धर्म पर बोलने वाली जुबानों से आहत हुए जा रहे हैं उनके लिए हिंदी के कवि शमशेर बहादुर सिंह कहते हैं---
‘ईश्वर अगर मैंने अरबी में प्रार्थना की
तू मुझसे नाराज हो जाएगा?
अल्लमह यदि मैंने संस्कृत में संध्या की
तो तू मुझे दोजख में डालेगा?
लोग तो यही कहते घूम रहे हैं
तू बता, ईश्वर?
तू ही समझा, मेरे अल्लाह!
बहुत-सी प्रार्थनाएं हैं
मुझे बहुत-बहुत मोहती हैं
ऐसा क्यों नहीं है कि एक ही प्रार्थना
मैं दिल से कुबूल कर लूं
और अन्य प्रार्थनाओं को करने पर
प्रायश्चित करने का संकल्प करूं!
क्योंकि तब मैं अधिक धार्मिक
अपने को महसूस करूंगा,
इसमें कोई संदेह नहीं है.’
शमशेर जिस अधिक धार्मिकता की बात कर रहे हैं, वह सद्भाव से उपजती है और सारी प्रार्थनाओं को संगीत बना देती है। सद्भाव से ही उपजा है वह संगीत जो सबका है जिसे कव्वाल हमसर हयात निजामी गाते हैं ‘छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाय के...’ वहीं नाजनीन भी आरती गाकर सद्भाव के द्योतक श्रीराम को मनाती हैं।
धर्म और राजनीति के बीच पैदा हो चुका ये अद्भुत समन्वय निश्चित ही धर्म और राजनीति दोनों के अतिवादियों को बढ़िया सबक सिखायेगा, भला बताइये कि उभरती अर्थव्यवस्था व शांति का संदेश देने वाले हमारे देश के भविष्य के लिए इससे अच्छी खबर और क्या हो सकती है।
- अलकनंदा सिंह
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