क्या आपने मृणाल पांडे का लेख पढ़ा? नहीं पढ़ा तो 29 मार्च के दैनिक जागरण का संपादकीय पृष्ठ पढ़ लीजिएगा। कल यानि 29 मार्च को छपा यह लेख मृणाल जी में मौजूद गजब की प्रतिभा को दर्शाता है, वो प्रतिभा जो उन्हें विरासत में मिली और जिसके बूते उन्होंने राष्ट्रीय समाचार पत्र दैनिक हिन्दुस्तान में संपादन का भारी भरकम बोझ अपने कांधों पर लादे रखा।
इसी प्रतिभा में चार चांद लगाती है उनके भीतर की एक और प्रतिभा, और वो प्रतिभा है- ''हद दर्जे की नेगेटिविटी को जाहिर करने और उसे छपवाकर गौरवान्वित होने की''। वो प्रतिभा जिसके वशीभूत हो उन्होंने अपने संपादनकाल में जो नेगेटिविटी भाजपा के प्रति संजोई थी। उसी प्रतिभा को उन्होंने 29 मार्च के अपने लेख में पूरीतरह उड़ेल दिया, मानो कल मौका मिले ना मिले। वे भाजपा, मोदी और वर्तमान में जीएसटी बिल की जबरन बखिया उधेड़ रही थीं।
लोकतंत्र की खासियत ही ये है कि किसी भी सरकार को जब हम चुनते हैं तो उसके कामकाज की समीक्षा करने का भी हक हमें हासिल होता है। मगर समीक्षा करते समय यह देखा जाना जरूरी है कि हम निरपेक्ष रहें। खासकर हम मीडिया वालों को सावधानी, सकारात्मकता और तुलनात्मक दृष्टि रखनी चाहिए, बिना किसी पूर्वाग्रह या विचारधारा को पालने के। देश हित में और आमजन के लिए नीतियों को लागू करने में जो कमी हो, उसे जरूर उजागर करना चाहिए मगर किसी सोच का ठप्पा लगने से बचना चाहिए। मृणाल जी की भाषा शैली और चुनचुन कर सरकार के हर कदम को आरोपों से घेर देना ठीक नहीं। वामपंथ हो या दक्षिणपंथ, लोग सभी का सच जानते हैं और इनकी कार्यशैली भी।
बहरहाल मृणाल पांडे जी ने इस लेख में लिखा-
1. 2014 तक आधार कार्ड की बखिया उधेड़ रहे नरेंद्र मोदी ने जहां आधारकार्ड को सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने वालों के लिए अनिवार्य कर दिया है वहीं सुरक्षा संबंधी उपायों के लिए आमजन की निजी सूचनाऐं जुटाने के लिए प्राइवेसी में सेंध लगाने का बंदोबस्त कर दिया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इसे गैर जरूरी बताया है।
उन्होंने लिखा कि-
2. जीएसटी बिल के संशोधनों पर बिना संसद में चर्चा कराए तिकड़म से वित्तमंत्री अरुण जेटली ने इसे पास करा लिया।
उन्होंने लिखा कि-
3. उत्तरप्रदेश में आरएसएस का एजेंडा वाली राज्य सरकार ने पदभार संभालते ही एंटीरोमिओ स्क्वायड बनाकर युवाओं में दहशत फैलाने का काम शुरू कर दिया है। अवैध बूचड़खानों के नाम पर वे अल्पसंख्यकों की बड़ी आबादी को बेरोजगार बना रहे हैं आदि आदि।
फिलहाल ये तीनों प्वाइंट्स पर मुझे घोर आपत्ति है। ये उसी तरह का लेख है जो जेएनयू में कथित आजादी छाप छात्रों का बयान हुआ करता था, जिन्हें राष्ट्रवाद से अभिव्यक्ति की आजादी खतरे में दिखाई देती थी।
मृणाल जी क्या बताऐंगी कि देश में ''एक कर प्रणाली'' से क्या नुकसान हो सकते हैं। सिवाय महंगाई घटने, टैक्स डिपार्टमेंट के भ्रष्ट कर्मचारियों-ऑफीसर्स द्वारा व्यापारियों से वसूली बंद हो जाने, टैक्स दर टैक्स की लंबीचौड़ी फाइल दौड़ बंद होने जैसी दिमाग-खपाऊ कार्यपद्धति से निजात मिल जाना क्या उन्हें अच्छा नहीं लग रहा। क्या देश के तेज विकास में लालफीताशाही रोड़ा नहीं रही। मृणाल जी क्या ये भी बताऐंगीं कि इससे निपटने की सारी कवायद पिछली सरकारों ने भी कीं मगर वे सफल क्यों नहीं हो सकीं।
मृणाल जी, आधार कार्ड जरूरी बिल्कुल नहीं मगर अपनी प्राइवेसी का बहाना बनाकर उन ग्रामीण और वंचितों को हम क्यों भूल रहे हैं जो आज आधार कार्ड के जरिए ही सरकार से तमाम योजनाओं का लाभ उठा पा रहे हैं। गैस सब्सिडी के पैसे, बैंक में आसान काम और जनधन योजना, पेंशन योजना, बीमा योजना से लाभान्वित हुए हैं।
मृणाल जी का अगला क्षोभ था उत्तरप्रदेश में एंटीरोमिओ स्क्वायड के अभियान पर, मगर उन्होंने उन एसिड अटैक विक्टिम्स का दर्द अनदेखा कर दिया जिनके ऊपर जुल्म की शुरुआत ही छेड़छाड़ से होती है, जबरदस्ती से होती है, वे आजीवन उस घृणास्पद अनुभूति के साथ जीती हैं।
मृणाल जी उन लड़कियों के प्रति क्या कहेंगी जिन्हें छेड़छाड़ के कारण स्कूल-बाजार-आना जाना सब छोड़ना पड़ता है, दहशत में घर से निकलते वक्त सौ सौ घूंट अपनी बेबसी के पीने पड़ते हैं। इसी छेड़छाड़ ने अपने जेंडर पर शर्म करना लड़कियों की किस्मत बना दिया।
मृणाल जी क्या अपनी बेटियों-बहनों को इस शर्मिंदगी से और शोहदों की जाहिलाना हरकतों से बचाने वाली राज्य सरकार गलत कर रही है। अपराधों को बढ़ावा देने की ये कथित ''मानवाधिकारी सोच'' घातक है।
मृणाल जी ने अवैध बूचड़खानों को बंद करने पर जो क्षोभ जताया, तो कोई भी राज्य सरकार यदि अपने राज्य में अवैध गतिविधि रोकने को कदम उठाती है तो उसे किस एंगिल से गलत कहा जा सकता है। समझ से परे की है ये बात।
सिर्फ विरोध करने के लिए विरोध करना और अपनी मानसिकता को उसमें डालकर ऊलजलूल लिखते जाना मृणाल जी जैसी हस्ती के लिए समाज में अच्छा संदेश नहीं देती। आलोचना करते समय यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि उसकी तुलना जायज के साथ हो रही है या नाजायज के साथ।
मृणाल जी से कहना चाहूंगी कि प्रकृति हर पल सहायक और प्रेरक है, जो लोग प्राकृतिक, स्वाभाविक और मर्यादित जीवन के अभ्यासी होते हैं वे प्राकृतिक सहजता, सरसता और आनंद के अधिकारी बन जाते हैं। इतनी नेगेटिविटी अच्छी नहीं। भरोसा रखें तो परिणाम भी पॉजिटिव मिलेंगे। गिलास आधा भरा दिखेगा, खाली नहीं।
-अलकनंदा सिंह
इसी प्रतिभा में चार चांद लगाती है उनके भीतर की एक और प्रतिभा, और वो प्रतिभा है- ''हद दर्जे की नेगेटिविटी को जाहिर करने और उसे छपवाकर गौरवान्वित होने की''। वो प्रतिभा जिसके वशीभूत हो उन्होंने अपने संपादनकाल में जो नेगेटिविटी भाजपा के प्रति संजोई थी। उसी प्रतिभा को उन्होंने 29 मार्च के अपने लेख में पूरीतरह उड़ेल दिया, मानो कल मौका मिले ना मिले। वे भाजपा, मोदी और वर्तमान में जीएसटी बिल की जबरन बखिया उधेड़ रही थीं।
लोकतंत्र की खासियत ही ये है कि किसी भी सरकार को जब हम चुनते हैं तो उसके कामकाज की समीक्षा करने का भी हक हमें हासिल होता है। मगर समीक्षा करते समय यह देखा जाना जरूरी है कि हम निरपेक्ष रहें। खासकर हम मीडिया वालों को सावधानी, सकारात्मकता और तुलनात्मक दृष्टि रखनी चाहिए, बिना किसी पूर्वाग्रह या विचारधारा को पालने के। देश हित में और आमजन के लिए नीतियों को लागू करने में जो कमी हो, उसे जरूर उजागर करना चाहिए मगर किसी सोच का ठप्पा लगने से बचना चाहिए। मृणाल जी की भाषा शैली और चुनचुन कर सरकार के हर कदम को आरोपों से घेर देना ठीक नहीं। वामपंथ हो या दक्षिणपंथ, लोग सभी का सच जानते हैं और इनकी कार्यशैली भी।
बहरहाल मृणाल पांडे जी ने इस लेख में लिखा-
1. 2014 तक आधार कार्ड की बखिया उधेड़ रहे नरेंद्र मोदी ने जहां आधारकार्ड को सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने वालों के लिए अनिवार्य कर दिया है वहीं सुरक्षा संबंधी उपायों के लिए आमजन की निजी सूचनाऐं जुटाने के लिए प्राइवेसी में सेंध लगाने का बंदोबस्त कर दिया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इसे गैर जरूरी बताया है।
उन्होंने लिखा कि-
2. जीएसटी बिल के संशोधनों पर बिना संसद में चर्चा कराए तिकड़म से वित्तमंत्री अरुण जेटली ने इसे पास करा लिया।
उन्होंने लिखा कि-
3. उत्तरप्रदेश में आरएसएस का एजेंडा वाली राज्य सरकार ने पदभार संभालते ही एंटीरोमिओ स्क्वायड बनाकर युवाओं में दहशत फैलाने का काम शुरू कर दिया है। अवैध बूचड़खानों के नाम पर वे अल्पसंख्यकों की बड़ी आबादी को बेरोजगार बना रहे हैं आदि आदि।
फिलहाल ये तीनों प्वाइंट्स पर मुझे घोर आपत्ति है। ये उसी तरह का लेख है जो जेएनयू में कथित आजादी छाप छात्रों का बयान हुआ करता था, जिन्हें राष्ट्रवाद से अभिव्यक्ति की आजादी खतरे में दिखाई देती थी।
मृणाल जी क्या बताऐंगी कि देश में ''एक कर प्रणाली'' से क्या नुकसान हो सकते हैं। सिवाय महंगाई घटने, टैक्स डिपार्टमेंट के भ्रष्ट कर्मचारियों-ऑफीसर्स द्वारा व्यापारियों से वसूली बंद हो जाने, टैक्स दर टैक्स की लंबीचौड़ी फाइल दौड़ बंद होने जैसी दिमाग-खपाऊ कार्यपद्धति से निजात मिल जाना क्या उन्हें अच्छा नहीं लग रहा। क्या देश के तेज विकास में लालफीताशाही रोड़ा नहीं रही। मृणाल जी क्या ये भी बताऐंगीं कि इससे निपटने की सारी कवायद पिछली सरकारों ने भी कीं मगर वे सफल क्यों नहीं हो सकीं।
मृणाल जी, आधार कार्ड जरूरी बिल्कुल नहीं मगर अपनी प्राइवेसी का बहाना बनाकर उन ग्रामीण और वंचितों को हम क्यों भूल रहे हैं जो आज आधार कार्ड के जरिए ही सरकार से तमाम योजनाओं का लाभ उठा पा रहे हैं। गैस सब्सिडी के पैसे, बैंक में आसान काम और जनधन योजना, पेंशन योजना, बीमा योजना से लाभान्वित हुए हैं।
मृणाल जी का अगला क्षोभ था उत्तरप्रदेश में एंटीरोमिओ स्क्वायड के अभियान पर, मगर उन्होंने उन एसिड अटैक विक्टिम्स का दर्द अनदेखा कर दिया जिनके ऊपर जुल्म की शुरुआत ही छेड़छाड़ से होती है, जबरदस्ती से होती है, वे आजीवन उस घृणास्पद अनुभूति के साथ जीती हैं।
मृणाल जी उन लड़कियों के प्रति क्या कहेंगी जिन्हें छेड़छाड़ के कारण स्कूल-बाजार-आना जाना सब छोड़ना पड़ता है, दहशत में घर से निकलते वक्त सौ सौ घूंट अपनी बेबसी के पीने पड़ते हैं। इसी छेड़छाड़ ने अपने जेंडर पर शर्म करना लड़कियों की किस्मत बना दिया।
मृणाल जी क्या अपनी बेटियों-बहनों को इस शर्मिंदगी से और शोहदों की जाहिलाना हरकतों से बचाने वाली राज्य सरकार गलत कर रही है। अपराधों को बढ़ावा देने की ये कथित ''मानवाधिकारी सोच'' घातक है।
मृणाल जी ने अवैध बूचड़खानों को बंद करने पर जो क्षोभ जताया, तो कोई भी राज्य सरकार यदि अपने राज्य में अवैध गतिविधि रोकने को कदम उठाती है तो उसे किस एंगिल से गलत कहा जा सकता है। समझ से परे की है ये बात।
सिर्फ विरोध करने के लिए विरोध करना और अपनी मानसिकता को उसमें डालकर ऊलजलूल लिखते जाना मृणाल जी जैसी हस्ती के लिए समाज में अच्छा संदेश नहीं देती। आलोचना करते समय यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि उसकी तुलना जायज के साथ हो रही है या नाजायज के साथ।
मृणाल जी से कहना चाहूंगी कि प्रकृति हर पल सहायक और प्रेरक है, जो लोग प्राकृतिक, स्वाभाविक और मर्यादित जीवन के अभ्यासी होते हैं वे प्राकृतिक सहजता, सरसता और आनंद के अधिकारी बन जाते हैं। इतनी नेगेटिविटी अच्छी नहीं। भरोसा रखें तो परिणाम भी पॉजिटिव मिलेंगे। गिलास आधा भरा दिखेगा, खाली नहीं।
-अलकनंदा सिंह