सुबह उठने के साथ ही एक नई खुश्बू तैर जाती है पूरे वातावरण में, ऋतुराज वसंत अपने आगमन की सूचना देता है, कल एक फरवरी को माघ महीने की शुक्ल पंचमी अर्थात् वसंत पंचमी है-वसंत के प्रारंभ का दिन, वाग्देवी सरस्वती की आराधना का दिन।
बचपन में पढ़ी कवि सोहनलाल द्विवेदी की रचना ''आया वसंत आया वसंत'', याद आ रही है जिसे स्कूल में सुना सुनाकर ना जाने कितने ईनाम हासिल किए थे।
कविता यूं है-
आया वसंत आया वसंत
छाई जग में शोभा अनंत।
सरसों खेतों में उठी फूल
बौरें आमों में उठीं झूल
बेलों में फूले नये फूल
पल में पतझड़ का हुआ अंत
आया वसंत आया वसंत।
लेकर सुगंध बह रहा पवन
हरियाली छाई है बन बन,
सुंदर लगता है घर आँगन
है आज मधुर सब दिग दिगंत
आया वसंत आया वसंत।
भौरे गाते हैं नया गान,
कोकिला छेड़ती कुहू तान
हैं सब जीवों के सुखी प्राण,
इस सुख का हो अब नही अंत
घर-घर में छाये नित वसंत।
दादी, नानी और मां से सुनीं कई पौराणिक कथाओं में कामदेव का पुत्र कहा गया है वसंत को, कामना- सौंदर्य-प्रसन्नता का उदाहरण, कवियों ने वसंत ऋतु का वर्णन कुछ यूं किया है कि रूप व सौंदर्य के देवता कामदेव के घर पुत्रोत्पत्ति का समाचार पाते ही प्रकृति झूम उठती है। पेड़ उसके लिए नए पत्तों का पालना डाल कर झुलाते हैं, वस्त्र की जगह फूल श्रंगार होता है, पवन झूलना झुलाती है और कोयल उसे गीत सुनाकर बहलाती है।
अब इन कथाओं को याद करती हूं तो समझ में आता है कि उक्त विवरण एक रूपक की तरह इस्तेमाल किया गया है परंतु इन श्रुतियों के आधार पर ये कहा जा सकता है कि ऋतुराज की मादकता ही इस रूपक को प्रयोग करने पर बाध्य कर देती रही होगी।
ये ऋतुराज का ही प्रभाव है कि भारतीय संगीत, साहित्य और कला में इसे अलग व महत्वपूर्ण स्थान दिया गया और एक विशेष ''राग वसंत'' की रचना हुई। वसंत पंचमी से ही होली का आरंभ हो जाता है इसलिए आरोह में पाँच तथा अवरोह में सात स्वरों से सजे इस राग के तहत होलियां बहुत गाई जाती हैं। पहले संगीत प्रथा थी कि इसे रात के अंतिम प्रहर में गाया जाना चाहिए किंतु आजकल ये कोई बंदिश नहीं रही सो यह दिन या रात में किसी समय भी गाया बजाया जा सकता है। यूं तो रागमाला में इसे राग हिंडोल का पुत्र माना गया है और यह पूर्वी थाट का राग है। शास्त्रों की बात करें तो राग वसंत हिंडोल इससे काफी मिलता जुलता है।
क्लासिकल म्यूजिक के छात्र बता सकते हैं कि इसका अध्ययन करते समय एक दोहा गुरू जी अक्सर रटाते रहे हैं-
"दो मध्यम कोमल ऋषभ चढ़त न पंचम कीन्ह।
स-म वादी संवादी ते, यह बसंत कह दीन्ह॥'
वसंत के इस मनभावन मौसम की कविता से राग तक फैली ना जाने कितनी यादें हैं जो बचपन में घर- स्कूल और युवा होने पर कॉलेज से चलकर दौड़ती हुई आ रही हैं और आज फिर मेरे मन को झंकृत कर रही हैं।
वसंत के बहाने होली की दस्तक होते ही हम ब्रजवासी तो होली की सुगबुगाहट से ही वासंती हुए जाते हैं। अब मंदिरों तक सिमटे धमार ताल में गाए जाने वाले होली पद गायन का आनंद लेने की बारी है। चलिए मन को ''वृंदावन'' करते हैं और सभी को वासंती मौसम की धनक, धमक और धसक का परिचय कराते हैं।
कल से ही होली का त्योहार शुरू होने के कारण पहली बार गुलाल उड़ाया जाएगा और फाग और धमार का गाना प्रारंभ हो जाएगा।
- अलकनंदा सिंह
बचपन में पढ़ी कवि सोहनलाल द्विवेदी की रचना ''आया वसंत आया वसंत'', याद आ रही है जिसे स्कूल में सुना सुनाकर ना जाने कितने ईनाम हासिल किए थे।
कविता यूं है-
आया वसंत आया वसंत
छाई जग में शोभा अनंत।
सरसों खेतों में उठी फूल
बौरें आमों में उठीं झूल
बेलों में फूले नये फूल
पल में पतझड़ का हुआ अंत
आया वसंत आया वसंत।
लेकर सुगंध बह रहा पवन
हरियाली छाई है बन बन,
सुंदर लगता है घर आँगन
है आज मधुर सब दिग दिगंत
आया वसंत आया वसंत।
भौरे गाते हैं नया गान,
कोकिला छेड़ती कुहू तान
हैं सब जीवों के सुखी प्राण,
इस सुख का हो अब नही अंत
घर-घर में छाये नित वसंत।
दादी, नानी और मां से सुनीं कई पौराणिक कथाओं में कामदेव का पुत्र कहा गया है वसंत को, कामना- सौंदर्य-प्रसन्नता का उदाहरण, कवियों ने वसंत ऋतु का वर्णन कुछ यूं किया है कि रूप व सौंदर्य के देवता कामदेव के घर पुत्रोत्पत्ति का समाचार पाते ही प्रकृति झूम उठती है। पेड़ उसके लिए नए पत्तों का पालना डाल कर झुलाते हैं, वस्त्र की जगह फूल श्रंगार होता है, पवन झूलना झुलाती है और कोयल उसे गीत सुनाकर बहलाती है।
अब इन कथाओं को याद करती हूं तो समझ में आता है कि उक्त विवरण एक रूपक की तरह इस्तेमाल किया गया है परंतु इन श्रुतियों के आधार पर ये कहा जा सकता है कि ऋतुराज की मादकता ही इस रूपक को प्रयोग करने पर बाध्य कर देती रही होगी।
ये ऋतुराज का ही प्रभाव है कि भारतीय संगीत, साहित्य और कला में इसे अलग व महत्वपूर्ण स्थान दिया गया और एक विशेष ''राग वसंत'' की रचना हुई। वसंत पंचमी से ही होली का आरंभ हो जाता है इसलिए आरोह में पाँच तथा अवरोह में सात स्वरों से सजे इस राग के तहत होलियां बहुत गाई जाती हैं। पहले संगीत प्रथा थी कि इसे रात के अंतिम प्रहर में गाया जाना चाहिए किंतु आजकल ये कोई बंदिश नहीं रही सो यह दिन या रात में किसी समय भी गाया बजाया जा सकता है। यूं तो रागमाला में इसे राग हिंडोल का पुत्र माना गया है और यह पूर्वी थाट का राग है। शास्त्रों की बात करें तो राग वसंत हिंडोल इससे काफी मिलता जुलता है।
क्लासिकल म्यूजिक के छात्र बता सकते हैं कि इसका अध्ययन करते समय एक दोहा गुरू जी अक्सर रटाते रहे हैं-
"दो मध्यम कोमल ऋषभ चढ़त न पंचम कीन्ह।
स-म वादी संवादी ते, यह बसंत कह दीन्ह॥'
वसंत के इस मनभावन मौसम की कविता से राग तक फैली ना जाने कितनी यादें हैं जो बचपन में घर- स्कूल और युवा होने पर कॉलेज से चलकर दौड़ती हुई आ रही हैं और आज फिर मेरे मन को झंकृत कर रही हैं।
वसंत के बहाने होली की दस्तक होते ही हम ब्रजवासी तो होली की सुगबुगाहट से ही वासंती हुए जाते हैं। अब मंदिरों तक सिमटे धमार ताल में गाए जाने वाले होली पद गायन का आनंद लेने की बारी है। चलिए मन को ''वृंदावन'' करते हैं और सभी को वासंती मौसम की धनक, धमक और धसक का परिचय कराते हैं।
कल से ही होली का त्योहार शुरू होने के कारण पहली बार गुलाल उड़ाया जाएगा और फाग और धमार का गाना प्रारंभ हो जाएगा।
- अलकनंदा सिंह
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