ज़मीनी हकीकत और किताबों के बीच जब सामंजस्य नहीं होता तो अराजकता को प्राश्रय मिलना शुरू हो जाता है और ऐसा तभी संभव भी होता है जब इसी अराजकता की जड़ें तलाशने की बजाय उसके फलने फूलने पर व्याख्यान दिये जाते हैं। कुछ ऐसा ही सीन ब्रजभूमि में दिखाई दे रहा है। गौपालक गोपाल की ब्रजभूमि में।
एक अनुमान के अनुसार ब्रज चौरासी कोस में लगभग एक हजार गौशालायें हैं और हजारों की तादाद में साधु संतों का जमावड़ा है। भागवत वक्ताओं की भी अच्छी-खासी फौज है। गायों के नाम पर यहां दान के रूप में देश व विदेशों से आती करोड़ों की धनराशि....जैसी खबरें हमारे सामने एक ऐसी तस्वीर पेश करती हैं कि यदि धरती पर कहीं भी गायों को साक्षात् मां का दर्जा प्राप्त है तो वह अकेला ब्रज क्षेत्र है।
यहां एक ओर वृंदावन में ही गायों को भोजन कराने के लिए हर मंदिर के नुक्कड़ पर मुट्ठीभर हरा चारा हाथ लेकर खड़े होने वाले भिखारियों के बच्चे मिल जायेंगे तो दूसरी ओर बेशकीमती जमीनों पर बड़ी-बड़ी 'ए. सी.' गौशालायें बनाकर करोड़ों का दान हजम करने वाले भी कम नहीं होंगे।
इन सबके बीच जिसके नाम पर ये कारोबार चल रहा है, वो गौ माता कहीं या तो विलुप्त कर दी जाती है या उसे कूड़े-करकट के ढेर पर अपनी भूख मिटाने को भेज दिया जाता है। ये हकीकत जहां यह बताती है कि जो कुछ कहा जा रहा है या सुनाया जा रहा है, असल में गायों को माध्यम बनाकर धंधा करने के पारंपरिक तरीकों से हटकर और कुछ भी नहीं। यूं भी कह सकते हैं कि स्टाइल बदल गया है धंधे का। हां, इस नए तरीके में जिन गायों के नाम पर दान का धंधा चल रहा है, वे गायें कभी दानदाताओं के समक्ष रूबरू नहीं होतीं। सब-कुछ कागजों से चलता हुआ हवा में तैर रहा है....गाय भी और गौशाला भी। यदि कोई मौजूद हैं तो बस गायों के नाम पर दान के धंधेबाज।
अब प्रश्न उठता है कि जब इतना दान और इतने गौसेवी व इतनी गौशालायें अकेले इस धर्मनगरी में ही मौज़ूद हैं तो...तो... सड़कों पर मानवीय अपशिष्ट- कूड़े के ढेर पर मुंह मारती गायें कहां से आ रही हैं, क्यों पुलिस व चंद समाजसेवियों द्वारा आये दिन कट्टीघरों को जाता गौवंश पकड़ा तो जाता है लेकिन कोई कार्यवाही नहीं की जाती। तभी तो इसे फिर से उन्हीं गलियों-चौराहों पर देखा जाता है और तभी वो सिर्फ दुत्कारों को पर जीवित रहने को विवश हैं जबकि इस हकीकत में वो तथ्य शामिल नहीं हैं जो कट्टीघर से जुड़े हैं ।
आज गोपाष्टमी पर पूरे ब्रज में गायों की सेवा, उनकी महिमा, उनके अंग में मौजूद देवी-देवताओं को लेकर बड़े-बड़े व्याख्यान देने की होड़ लगी रहेगी लेकिन इतिश्री हो जायेगी कल सारे अखबारों में मयफोटो के छपी खबरों से। इसमें गाय का साक्षात् रूप कहीं नहीं होगा....उसे तो हम किसी कूड़े के ढेर में मुंह मारते हुये ही देखेंगे। इस स्थिति के लिए ऐसा नहीं है कि सिर्फ गायों के नाम पर पैसा हजम करने वाले ही दोषी हों, बल्कि वे अधिक दोषी हैं जो पात्र-कुपात्र का ज्ञान किये बिना अपने पापों से पल्ला झाड़ने के लिए 'दान' की मंशा पाले यहां आते हैं।
बेहतर होगा कि गोपाष्टमी की औपचारिकता पूरी करने से पहले ब्रजवासी कोई ऐसा संकल्प भी लें जो कृष्ण के गौपालक होने की संज्ञा पूरी करता हो और जिससे ब्रजभूमि की गरिमा का आभास हो।
-अलकनंदा सिंह
एक अनुमान के अनुसार ब्रज चौरासी कोस में लगभग एक हजार गौशालायें हैं और हजारों की तादाद में साधु संतों का जमावड़ा है। भागवत वक्ताओं की भी अच्छी-खासी फौज है। गायों के नाम पर यहां दान के रूप में देश व विदेशों से आती करोड़ों की धनराशि....जैसी खबरें हमारे सामने एक ऐसी तस्वीर पेश करती हैं कि यदि धरती पर कहीं भी गायों को साक्षात् मां का दर्जा प्राप्त है तो वह अकेला ब्रज क्षेत्र है।
यहां एक ओर वृंदावन में ही गायों को भोजन कराने के लिए हर मंदिर के नुक्कड़ पर मुट्ठीभर हरा चारा हाथ लेकर खड़े होने वाले भिखारियों के बच्चे मिल जायेंगे तो दूसरी ओर बेशकीमती जमीनों पर बड़ी-बड़ी 'ए. सी.' गौशालायें बनाकर करोड़ों का दान हजम करने वाले भी कम नहीं होंगे।
इन सबके बीच जिसके नाम पर ये कारोबार चल रहा है, वो गौ माता कहीं या तो विलुप्त कर दी जाती है या उसे कूड़े-करकट के ढेर पर अपनी भूख मिटाने को भेज दिया जाता है। ये हकीकत जहां यह बताती है कि जो कुछ कहा जा रहा है या सुनाया जा रहा है, असल में गायों को माध्यम बनाकर धंधा करने के पारंपरिक तरीकों से हटकर और कुछ भी नहीं। यूं भी कह सकते हैं कि स्टाइल बदल गया है धंधे का। हां, इस नए तरीके में जिन गायों के नाम पर दान का धंधा चल रहा है, वे गायें कभी दानदाताओं के समक्ष रूबरू नहीं होतीं। सब-कुछ कागजों से चलता हुआ हवा में तैर रहा है....गाय भी और गौशाला भी। यदि कोई मौजूद हैं तो बस गायों के नाम पर दान के धंधेबाज।
अब प्रश्न उठता है कि जब इतना दान और इतने गौसेवी व इतनी गौशालायें अकेले इस धर्मनगरी में ही मौज़ूद हैं तो...तो... सड़कों पर मानवीय अपशिष्ट- कूड़े के ढेर पर मुंह मारती गायें कहां से आ रही हैं, क्यों पुलिस व चंद समाजसेवियों द्वारा आये दिन कट्टीघरों को जाता गौवंश पकड़ा तो जाता है लेकिन कोई कार्यवाही नहीं की जाती। तभी तो इसे फिर से उन्हीं गलियों-चौराहों पर देखा जाता है और तभी वो सिर्फ दुत्कारों को पर जीवित रहने को विवश हैं जबकि इस हकीकत में वो तथ्य शामिल नहीं हैं जो कट्टीघर से जुड़े हैं ।
आज गोपाष्टमी पर पूरे ब्रज में गायों की सेवा, उनकी महिमा, उनके अंग में मौजूद देवी-देवताओं को लेकर बड़े-बड़े व्याख्यान देने की होड़ लगी रहेगी लेकिन इतिश्री हो जायेगी कल सारे अखबारों में मयफोटो के छपी खबरों से। इसमें गाय का साक्षात् रूप कहीं नहीं होगा....उसे तो हम किसी कूड़े के ढेर में मुंह मारते हुये ही देखेंगे। इस स्थिति के लिए ऐसा नहीं है कि सिर्फ गायों के नाम पर पैसा हजम करने वाले ही दोषी हों, बल्कि वे अधिक दोषी हैं जो पात्र-कुपात्र का ज्ञान किये बिना अपने पापों से पल्ला झाड़ने के लिए 'दान' की मंशा पाले यहां आते हैं।
बेहतर होगा कि गोपाष्टमी की औपचारिकता पूरी करने से पहले ब्रजवासी कोई ऐसा संकल्प भी लें जो कृष्ण के गौपालक होने की संज्ञा पूरी करता हो और जिससे ब्रजभूमि की गरिमा का आभास हो।
-अलकनंदा सिंह
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