कोई मुसीबत जब हमारी जान पर बन आती है तो हम उससे पीछा छुड़ाने को वो सारी
कवायद करते हैं जो हमारे वश में होती हैं। जाहिर है कि हमारी सराकर भी
इस प्रवृत्ति से अलग नहीं रह सकती। उसके लिए उसी की दी हुई सौगात यानि
आरटीआई अब हर दिन याद दिलाती रहती है कि श्रेय लूटने को जो खिलौना उसने
जनता के हाथ दिया था, जनता उससे खेलना अच्छी तरह सीख गई है। जनता की
डुगडुगी पर सरकार नाचने को बाध्य है इसीलिए वह अब आरटीआई को भोंथरा बनाने
का मन बना चुकी है।
जिस तरह हमारे देश में तीसरी पीढ़ी तक पूर्वजों का श्राद्ध अथवा तिथि आयोजित करने की सनातनी परंपरा चली आ रही है उसी तरह केंद्र सरकार अपने राजनैतिक पूर्वजों को याद करने के बहाने, मीडिया पर करोड़ों बरसाकर अपनी कमियों को ढांपने का जो प्रयास कर रही है उस पर उंगलियां उठना लाज़िमी है। बदहाली के इस दौर में इन पूर्वजों की जन्मतिथि व पुण्यतिथि मनाने पर ही सरकार अगर करोड़ों रुपये जाया कर देगी तो जनता सवाल खड़े करेगी ही।
हालांकि खबर थोड़ी पुरानी है मगर काबिलेगौर है कि केंद्र सरकार ने पिछले पांच सालों में मरे हुओं का उत्सव कुल 142.3 करोड़ रुपये खर्च करके मनाया और इसे उजागर करने का हथियार बना उसी का उपलब्ध कराया गया आरटीआई कानून।
जी हां, देखिए ये तथ्य भी....कि यूपीए-2 सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के विज्ञापनों पर 53.2 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। यह पैसा इन नेताओं की जयंती और पुण्यतिथि पर समाचार पत्रों में दिए गए विज्ञापनों पर खर्च किया गया।
सरकारी एडवरटाइजिंग विभाग डीएवीपी से ही मिली जानकारी के मुताबिक सरकार ने पिछले पांच सालों में 2008-2009, 2012-2013 के दौरान 15 नेताओं की जयंती और पुण्यतिथि पर समाचार पत्रों को विज्ञापन दिए। इन विज्ञापनों पर कुल 142.3 करोड़ रुपए खर्च किए गए। सबसे ज्यादा खर्च राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि और जयंती पर दिए गये विज्ञापनों पर हुआ। गांधी को लेकर दिए विज्ञापनों पर कुल 38.3 करोड़ रुपए खर्च हुए।
गांधी के बाद पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी, संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर, इंदिरा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के विज्ञापनों पर काफी खर्च किया गया। नेहरू-गांधी के बाद अंबेडकर इकलौते नेता हैं जिनके लिए केन्द्र सरकार ने विज्ञापनों के लिए 10 करोड़ रुपए आवंटित किए। इन पांच वरिष्ठ नेताओं को लेकर दिए गए विज्ञापनों पर कुल 100 करोड़ रुपए खर्च हुए।
सरदार पटेल की पुण्यतिथि और जयंती पर दिए विज्ञापनों पर 6.8 करोड़, बाबू जगजीवन राम की पुण्यतिथि और जयंती पर दिए विज्ञापनों पर 6.2 करोड़ रुपए खर्च किए गए। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री पर 3 करोड़, मौलाना आजाद पर 2 करोड़ और एस. राधाकृष्णन की जयंती पर 1.2 करोड़ रुपए खर्च किए गए।
बहरहाल करोड़ों के घोटालों के बीच इस बूंदभर खर्चे को मीडिया द्वारा कोई अहमियत न दिया जाना समझ में आता है मगर जनता का क्या...वह अपने टैक्स से जिस खजाने को भर रही है उसे यूं लुटाया जाना भला कैसे मंज़ूर होगा। ज़ाहिर है आरटीआई का हथियार जब तक हाथ में है तबतक तो कम से कम सरकार की नाक में दम किया जाता रहेगा।
जिस तरह हमारे देश में तीसरी पीढ़ी तक पूर्वजों का श्राद्ध अथवा तिथि आयोजित करने की सनातनी परंपरा चली आ रही है उसी तरह केंद्र सरकार अपने राजनैतिक पूर्वजों को याद करने के बहाने, मीडिया पर करोड़ों बरसाकर अपनी कमियों को ढांपने का जो प्रयास कर रही है उस पर उंगलियां उठना लाज़िमी है। बदहाली के इस दौर में इन पूर्वजों की जन्मतिथि व पुण्यतिथि मनाने पर ही सरकार अगर करोड़ों रुपये जाया कर देगी तो जनता सवाल खड़े करेगी ही।
हालांकि खबर थोड़ी पुरानी है मगर काबिलेगौर है कि केंद्र सरकार ने पिछले पांच सालों में मरे हुओं का उत्सव कुल 142.3 करोड़ रुपये खर्च करके मनाया और इसे उजागर करने का हथियार बना उसी का उपलब्ध कराया गया आरटीआई कानून।
जी हां, देखिए ये तथ्य भी....कि यूपीए-2 सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के विज्ञापनों पर 53.2 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। यह पैसा इन नेताओं की जयंती और पुण्यतिथि पर समाचार पत्रों में दिए गए विज्ञापनों पर खर्च किया गया।
सरकारी एडवरटाइजिंग विभाग डीएवीपी से ही मिली जानकारी के मुताबिक सरकार ने पिछले पांच सालों में 2008-2009, 2012-2013 के दौरान 15 नेताओं की जयंती और पुण्यतिथि पर समाचार पत्रों को विज्ञापन दिए। इन विज्ञापनों पर कुल 142.3 करोड़ रुपए खर्च किए गए। सबसे ज्यादा खर्च राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि और जयंती पर दिए गये विज्ञापनों पर हुआ। गांधी को लेकर दिए विज्ञापनों पर कुल 38.3 करोड़ रुपए खर्च हुए।
गांधी के बाद पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी, संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर, इंदिरा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के विज्ञापनों पर काफी खर्च किया गया। नेहरू-गांधी के बाद अंबेडकर इकलौते नेता हैं जिनके लिए केन्द्र सरकार ने विज्ञापनों के लिए 10 करोड़ रुपए आवंटित किए। इन पांच वरिष्ठ नेताओं को लेकर दिए गए विज्ञापनों पर कुल 100 करोड़ रुपए खर्च हुए।
सरदार पटेल की पुण्यतिथि और जयंती पर दिए विज्ञापनों पर 6.8 करोड़, बाबू जगजीवन राम की पुण्यतिथि और जयंती पर दिए विज्ञापनों पर 6.2 करोड़ रुपए खर्च किए गए। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री पर 3 करोड़, मौलाना आजाद पर 2 करोड़ और एस. राधाकृष्णन की जयंती पर 1.2 करोड़ रुपए खर्च किए गए।
बहरहाल करोड़ों के घोटालों के बीच इस बूंदभर खर्चे को मीडिया द्वारा कोई अहमियत न दिया जाना समझ में आता है मगर जनता का क्या...वह अपने टैक्स से जिस खजाने को भर रही है उसे यूं लुटाया जाना भला कैसे मंज़ूर होगा। ज़ाहिर है आरटीआई का हथियार जब तक हाथ में है तबतक तो कम से कम सरकार की नाक में दम किया जाता रहेगा।
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