समय...जिसे हमारे पुराणों से लेकर कथाओं तक में ईश्वर से भी ज़्यादा बलवान माना गया है। समय अच्छा हो तो रंक को राजा और यदि बुरा हुआ तो राजा को रंक बनते देर नहीं लगती। यूं तो ये मात्र कहावतें हैं मगर ये जीवन के हर क्षण में अपनी सार्थकता सिद्ध करती दिखाई देती हैं।
इन्हीं कहावतों में से एक ये कहावत यह भी प्रचलित है कि 12 साल बाद तो 'घूरे' के दिन भी बदल जाते हैं।
अब 12 साल का समय ही क्यों ...तो ये समय अंतराल यूं ही नहीं गढ़ा गया। ज्योतिष विज्ञान में ग्रहों की निर्धारित चाल के अनुसार शुक्र ग्रह अपनी चाल हर 12 वर्ष में बदलता है और शुक्र ग्रह किसी भी व्यक्ति या स्थान के भाग्योदय का कारक माना गया है। हमारी सोशल पॉज़िटिविटी देखिए कि घूरे यानि कूड़े करकट जैसे निकृष्ट स्थान के भाग्योदय को भी 12 साल का समय तय कर दिया गया।
मैं यहां न तो सोशल पॉज़िटीविटी की पराकाष्ठा पर तथा न ही शुक्र ग्रह की चाल पर बात कर रही हूं, और न ही घूरे की नियति पर बात कर रही हूं ... बात तो उस उत्तर प्रदेश के हालातों और नियति की कर रही हूं जो कभी सर्वोच्च सत्ता का केंद्र बिंदु हुआ करता था। आज उसका शुक्र अपने पराभवकाल में अपने विकास के सबसे निचले पायदान पर खड़ा है और इसके नीति-नियंता अपने ही नौकरशाहों से भयभीत दिखाई दे रहे हैं। उन्हें नौकरशाहों की आदत में समा चुकी भ्रष्ट व लापरवाह कार्यशैली अपनी सत्ता के खिलाफ कुचक्र रचती दिखाई दे रही है। इतना ही नहीं, वे अपनी इस बेबसी को जगज़ाहिर भी कर रहे हैं। बिना ये जाने कि जनता में ये बेबसी क्या संदेश पहुंचा रही है। इसे मुख्यमंत्री की स्वीकारोक्ति नहीं, बल्कि पलायनवादी प्रवृत्ति कहा जायेगा।
जहां तक बात है आगामी चुनावों में जीत के सपने पालने की और नरेंद्र मोदी का विरोध करने की.. तो मोदी के विकास एजेंडे से प्रदेश का हर नेता चाहे वह कांग्रेसी हो या समाजवादी, भयभीत है क्योंकि जिस विकास को वो आज तक भुलाये बैठे थे, अब वही मुद्दा बनने जा रहा है। इस संदर्भ में लगभग अपनी हर सभा में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के नेता जनता को यही कहकर चेताते हैं कि नरेंद्र मोदी सावधान हो जायें ये गुजरात नहीं है...
हां! सही कहते हैं ये लोग और इनके मुखिया मुलायम सिंह कि ये उत्तर प्रदेश है, गुजरात नहीं...निश्चित ही ये सही है क्यों कि जिस धरती पर राम, कृष्ण, कबीर और तुलसीदास पैदा हुए हों..जहां बुद्धिजीवियों ने शासन की बागडोर संभाली हो..जहां से पूरे देश की राजनीति प्रतिध्वनित होती रही हो.. वहां जोड़-तोड़ का ककहरा पढ़ने वाले स्वयं को लोहियावादी के मुलम्मे में ढांक और धर्मनिरपेक्षता की आड़ लेकर अपराधियों, आतंकवादियों के प्राश्रय से ''राज'' कर रहे हों तो सोचना पड़ेगा कि क्या ये वही प्रदेश है जिसने देश को एकमुश्त इतने प्रधानमंत्री दिये।
सत्य है कि नरेंद्र मोदी को उत्तर प्रदेश में आगे बढ़ने के लिए दस बार सोचना होगा कि उनका सामना किन्हीं घाघ राजनेताओं या अराजकताओं व अव्यवस्थाओं से नहीं, बल्कि ज़हनी तौर पर कंगाल हो चुके जाहिल नेताओं से होगा जो निज स्वार्थ के लिए प्रदेश की रग रग में हर किस्म का ज़हर भर चुके हैं... इससे पार पाना सच में लोहे के चने चबाने जैसा होगा।
- अलकनंदा सिंह
इन्हीं कहावतों में से एक ये कहावत यह भी प्रचलित है कि 12 साल बाद तो 'घूरे' के दिन भी बदल जाते हैं।
अब 12 साल का समय ही क्यों ...तो ये समय अंतराल यूं ही नहीं गढ़ा गया। ज्योतिष विज्ञान में ग्रहों की निर्धारित चाल के अनुसार शुक्र ग्रह अपनी चाल हर 12 वर्ष में बदलता है और शुक्र ग्रह किसी भी व्यक्ति या स्थान के भाग्योदय का कारक माना गया है। हमारी सोशल पॉज़िटिविटी देखिए कि घूरे यानि कूड़े करकट जैसे निकृष्ट स्थान के भाग्योदय को भी 12 साल का समय तय कर दिया गया।
मैं यहां न तो सोशल पॉज़िटीविटी की पराकाष्ठा पर तथा न ही शुक्र ग्रह की चाल पर बात कर रही हूं, और न ही घूरे की नियति पर बात कर रही हूं ... बात तो उस उत्तर प्रदेश के हालातों और नियति की कर रही हूं जो कभी सर्वोच्च सत्ता का केंद्र बिंदु हुआ करता था। आज उसका शुक्र अपने पराभवकाल में अपने विकास के सबसे निचले पायदान पर खड़ा है और इसके नीति-नियंता अपने ही नौकरशाहों से भयभीत दिखाई दे रहे हैं। उन्हें नौकरशाहों की आदत में समा चुकी भ्रष्ट व लापरवाह कार्यशैली अपनी सत्ता के खिलाफ कुचक्र रचती दिखाई दे रही है। इतना ही नहीं, वे अपनी इस बेबसी को जगज़ाहिर भी कर रहे हैं। बिना ये जाने कि जनता में ये बेबसी क्या संदेश पहुंचा रही है। इसे मुख्यमंत्री की स्वीकारोक्ति नहीं, बल्कि पलायनवादी प्रवृत्ति कहा जायेगा।
जहां तक बात है आगामी चुनावों में जीत के सपने पालने की और नरेंद्र मोदी का विरोध करने की.. तो मोदी के विकास एजेंडे से प्रदेश का हर नेता चाहे वह कांग्रेसी हो या समाजवादी, भयभीत है क्योंकि जिस विकास को वो आज तक भुलाये बैठे थे, अब वही मुद्दा बनने जा रहा है। इस संदर्भ में लगभग अपनी हर सभा में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के नेता जनता को यही कहकर चेताते हैं कि नरेंद्र मोदी सावधान हो जायें ये गुजरात नहीं है...
हां! सही कहते हैं ये लोग और इनके मुखिया मुलायम सिंह कि ये उत्तर प्रदेश है, गुजरात नहीं...निश्चित ही ये सही है क्यों कि जिस धरती पर राम, कृष्ण, कबीर और तुलसीदास पैदा हुए हों..जहां बुद्धिजीवियों ने शासन की बागडोर संभाली हो..जहां से पूरे देश की राजनीति प्रतिध्वनित होती रही हो.. वहां जोड़-तोड़ का ककहरा पढ़ने वाले स्वयं को लोहियावादी के मुलम्मे में ढांक और धर्मनिरपेक्षता की आड़ लेकर अपराधियों, आतंकवादियों के प्राश्रय से ''राज'' कर रहे हों तो सोचना पड़ेगा कि क्या ये वही प्रदेश है जिसने देश को एकमुश्त इतने प्रधानमंत्री दिये।
सत्य है कि नरेंद्र मोदी को उत्तर प्रदेश में आगे बढ़ने के लिए दस बार सोचना होगा कि उनका सामना किन्हीं घाघ राजनेताओं या अराजकताओं व अव्यवस्थाओं से नहीं, बल्कि ज़हनी तौर पर कंगाल हो चुके जाहिल नेताओं से होगा जो निज स्वार्थ के लिए प्रदेश की रग रग में हर किस्म का ज़हर भर चुके हैं... इससे पार पाना सच में लोहे के चने चबाने जैसा होगा।
- अलकनंदा सिंह
मायावती भी आंबेडकर का दामन पकड़ कर इस बहती गंगा की वैतरणी को पार कर लेना चाहती हैं.सभी अपने ऊपर कोई न कोई मुल्लम्मा चढ़ा कर सबसे बढा सेक्युलर , राष्ट्रवादी घोषित कर प्रधान मंत्री की कुर्सी की और अपनी जीभ लपलपा रहे हैं.इन्हें यह पता नहीं की जनता उन्हें किन नजरों से देखती है.आज भारत का मतदाता 1952 या 1956 का मतदाता नहीं रहा है.कांग्रेस भी धरम निरपेक्षता का चोगा पहन मुस्लिम मतदाता के आगे नाच नाच रही है पर अभी समय बाकी है,अभी तो जनता मनोरंजन कर रही है,नंबर बाद में देगी.और तभी सब सकते में आ जायेंगे.
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