मंगलवार, 11 अक्तूबर 2022

करवा चौथ: दर्पण के उस पार का सच कुछ और भी है

देश, समाज और रिश्‍ते..सबकी मजबूती और गहराई उसकी जड़ों से मापी जाती है...जड़ों की मजबूती जिस रूप में इन्‍हें थामती हैं, वे उसी तर्ज पर आगे बढ़ते हैं। यह सतत प्रक्रिया है कि परिवार से समाज और इससे फिर देश तक की समृद्धि का आंकलन उसकी जड़ों के आधार पर ही किया जाता है।

इसमें आश्‍चर्य नहीं कि जड़ों को क्‍यों 'स्‍त्रीलिंग' माना गया, कारण साफ है कि स्‍त्री परिवार की जड़ होती है क्‍योंकि परिवार में हर संबंध का आधार स्‍त्री से प्रारंभ होकर उसके व्यवहार से तय होता है। इसीलिए सारे तीज-त्‍यौहार स्‍त्रियों को केंद्र मानकर बने, और इनका पालन भी स्‍त्रियों के ही जिम्‍मे रहा क्‍योंकि वह जड़ ही होती है जो तने को संबल देकर वटवृक्ष तक बनाती है, करवा चौथ भी ऐसे त्‍यौहारों में से एक है। 

वर्तमान में करवा चौथ से रूप को देखकर कई विचार मन में आ रहे हैं, कुछ धार्मिक तो कुछ सामाजिक, कभी सोचती हूं कि लीक पर चलकर सब कुछ जस का तस मानती चलूं, मगर मन विद्रोह करता है क्‍योंकि जिस उद्देश्‍य के साथ ये त्‍यौहार पवित्रता और प्रेम को साथ लेकर चला आज वह अपने अत्‍यंत विध्‍वंसक रूप में हमारे सामने है।

परिवार में आपसी प्रेम और मन की स्‍थिरता के लिए भगवान शिव, माता गौरी व भगवान गणेश की आराधना का ये पर्व आज एकमात्र पति-पत्‍नी के उस प्रेम में समेट दिया गया है जो बाजार के हाथों की कठपुतली बना हमारे सामने है। पढ़ी लिखी स्‍त्रियों द्वारा भी परंपरा के नाम पर इसे ''बस यूं ही'' मनाया जाता रहा। इसके व्रत का वास्‍तविक उद्देश्‍य तो गायब ही हो गया है। 

हालत अब ये हो गई है कि व्रत से एक दिन पहले किसी रेस्‍टोरेंट में जाकर भरपूर खाना, फिर रोज़ा की भांति 'सरगी' के नाम पर सुबह उठकर खा लेना, महंगे गिफ्ट की लालसा, सारे दिन टीवी या मनोरंजन के अन्‍य साधन पर समय व्‍यतीत करना आदि ...सब कुछ होता है, जो नहीं होता वह है भगवान की आराधना...। 

कहा जाता है कि करवा चौथ व्रत के दिन महिलाएं निर्जला रहकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। कुंवारी लड़कियां भी मनवांछित वर या होने वाले पति के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इस दिन पूरे विधि-विधान से भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने के बाद करवा चौथ की कथा सुनी जाती है। फिर रात के समय चंद्रमा को अर्घ्‍य देने के बाद ही यह व्रत संपन्‍न होता है। 

परंतु जो कुछ दिख रहा है उसे भी झुठलाया नहीं जा सकता। कैसे आंखें फेर लें हम, क्‍या बस इसलिए चुप रहें कि कोई हमें नास्‍तिक कहकर आलोचना ना कर दे। इस कटु सत्‍य को नकारने का ही नतीज़ा है कि परिवार की जड़ें कमजोर हो चुकी हैं, हर तीसरा घर छिन्‍नभिन्‍न हो रहा है। तलाक के मामले बेतहाशा बढ़ रहे हैं। संपत्‍तियों के लिए पति-पत्‍नी के बीच 'सौदेबाजी' और ब्‍लैकमेलिंग आज का एक 'कड़वा और घिनौना' सच है जो उत्‍तरोत्‍तर बढ़ ही रहा है। जब धन का बोलबाला होता है तो आध्‍यात्‍मिकता यूं भी तिरोहित हो जाती है।  

स्‍त्रियों की आर्थिक सबलता हमें एक बढ़ते वृक्ष की तरह दिख तो रही है परंतु उसकी जड़ें लगातार खोदी जा रही हैं। वे जड़ें जो मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक हैं, जिनकी कि स्‍त्रियां स्‍वयं संवाहक हैं। 

बेहतर हो कि प्रेम और आस्था के इस पर्व करवाचौथ पर बाहरी सुंदरता चमकाने की बजाय भीतरी सुंदरता अर्थात् आध्‍यात्‍मिकता की ओर ले जाया जाये ताकि हम परिवार की जड़ों को मजबूत कर सकें। स्‍त्रियों के लिए करवाचौथ तो एक माध्‍यम है कर्तव्‍यों वाली अपनी जड़ों की ओर देखने का कि बाहरी सजावट से नहीं आध्‍यात्‍मिक चिंतन और आराधना से ही परिवार और पति-पत्‍नी सुखी रह सकते हैं। परिस्‍थितियों को बिगाड़ने में समय नहीं लगता सुधारने में लगता है, फिर भी मैं आशावान हूं कि ये यदि ऐसा हो पाता है तो बेहतर समाज और देश के लिए यह निश्‍चित ही एक उपलब्‍धि होगी।

- अलकनंदा सिंह

8 टिप्‍पणियां:

  1. प्रिय अलकनंदा जी, 'करवा चौथ' पर आपकी इस बेबाक अभिव्यक्ति से सन्तोष हुआ कि कोई तो है जो लीक से हटकर सोचता है।यदि मैं अपने बचपन की बात कहूँ तो उन दिनों करवा चौथ पर कोई हंगामा होता हो, स्मरण नहीं आता। मेरी माँ,ताई जी और दादी को घर आकर मनिहारन चूडियां पहना जाती थी जिनका रंग प्राय हरा या लाल होता।स्वच्छ कपड़े ( नये या पुराने का विवाद नहीं)और रात्रि में साबुत उड़द की डाल चावल के साथ और मीठे मे हलवा अथवा घी-बूरा! पर आज आम घरों में भी इतना आडम्बर और दिखावा नज़र आता है कि देख -देखकर आँखें फटी जा रही है।मानो पति पत्नी का प्रेम उपहारों का मोहताज हो गया! हर साल मँहगे उपहार उपहार और कपडे,साथ में beauti पार्लर- का खर्चा अलग से। पर सच कहा आपने कि जड़ को स्त्री लिंग माना गया और आज जड़ कमजोर हो ती जा रही है। नारी के नैसर्गिक गुणों में कृत्रिमता का समावेश होने से घर और समाज का तानाबाना बिखर रहा है।अच्छा हो नारी इस आडम्बर से खुद को बाहर निकालने का प्रयास करे।सार्थक लेख के लिए बधाई स्वीकार करें 🙏



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    1. हार्दिक धन्‍यवाद रेणु जी, मैं कोशिश कर रही हूं कि मेरी बेटियां भी इसी राह चलें...आपकी इस टिप्‍पणी से साहस और बढ़ गया...आभार

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13.10.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4580 में दी जाएगी
    धन्यवाद
    दिलबाग

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  3. विचारणीय तथ्य !
    सच में करवा चौथ ही क्या अलकनंदा जी हर त्योहार अपना मूल रूप और अर्थ खोता जा रहा है।
    अंधानुकरण, दिखावा अर्थ का बोलबाला ये सब त्योहारों को बिल्कुल एक अलग सा रूप दे रहे हैं बहुत उपयोगी बात है आपकी ।
    सार्थक पोस्ट।

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  4. बहुत बढ़िया कहा दी स्त्री घर की जड़ होती है। जस का तस क्यों माने अडंबर क्यों ओढ़े
    बेहतरीन 👌

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    1. धन्‍यवाद अनीता बहन, आपकी बहुमूल्‍य टिप्‍पणी के लिए आभार

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