शुक्रवार, 30 जुलाई 2021

ये है “काला नमक” नामक ‘चावल’ की व‍िकास गाथा


कहते हैं जो देश अपनी प्राचीन जीवन शैल‍ियों को पर‍िष्‍कृत करते रहते हैं, वे पीढ़‍ियों को उत्‍तरोत्‍तर व‍िकास का उत्‍तरदाय‍ित्‍व सौंपते चलते हैं ताक‍ि व‍िकास की कोई गाथा अधूरी ना रह जाए और ऐसी ही है हमारी अर्थात् “भारत भूम‍ि” की व‍िकास गाथा।

तो आज ऐसी ही एक व‍िकास गाथा है “काला नमक चावल” ज‍िसकी वो बात साझा कर रही हूं ज‍िसने न‍िर्यात में अब तक के सभी र‍िकॉर्ड तोड़कर महत्‍वपूर्ण उपलब्‍ध‍ि हास‍िल की है। भारतीय संपदा की इस गौरवमयी उपलब्‍ध‍ि को ज‍िस ज‍िजीव‍िषा के साथ हास‍िल क‍िया गया है, वह और भी बड़ी बात है।

जी हां, कभी वैदिक काल में हमारे यहां चावल की चार लाख किस्में पैदा हुआ करती थीं, वैदिक अनुष्ठानों में भी चावल का उल्लेख गेहूँ आदि की तुलना में अधिक किया गया था। वैद‍िक कालीन इत‍िहास के प्रस‍िद्ध लेखक “ए एल बाशम” ने अपनी पुस्‍तक “अद्भुत भारत” में यजुर्वेद कालीन “शतपथ ब्राह्मण” को संदर्भ‍ित करते हुए ल‍िखा है क‍ि ब्रीह‍ि (चावल) का प्रचुर मात्रा में उत्‍पादन होता था, यहां तक कि‍ हस्‍त‍िनापुर के आठवीं सदी पूर्व के मि‍ले अवशेष भी बताते हैं क‍ि चावल का उत्‍पादन भारत भूम‍ि पर अध‍िकाध‍िक होता था।

प‍िछले कुछ दशकों में गलत नीत‍ियों के कारण भारत एक प्‍यासा देश बनता गया और चावल की उत्‍कृष्‍ट फसल के नाम पर स‍िर्फ बासमती ही लोगों की जुबान पर चढ़ सका। बहरहाल, आज की इस खबर ने काला नमक चावल को ही नहीं… भारत की उन 45,107 प्रजात‍ियों को भी नया जीवन दे द‍िया है जो अपने प्रदेश या अपने क्षेत्र तक ही सीम‍ित थीं। खाद्य उत्‍पादों की न‍िर्यात एजेंसी एपीडा के अनुसार न‍िर्यात ने इनकी वैश्‍व‍िक संभावनाओं को पंख लगा द‍िए हैं।

उत्‍तर प्रदेश के पूर्वांचल में पैदा होने वाला काला नमक चावल के ब्रांड “बुद्धा राइस” की तो पश्‍च‍िमी एश‍ियाई देशों के साथ-साथ सिंगापुर, दुबई और जर्मनी में बेहद ड‍िमांड है इसील‍िए पूर्वांचल के 11 जिलों को इसका जीआई टैग मिला है। इसे सिद्धार्थ नगर, गोरखपुर, महराजगंज, बस्ती और संतकरीबर नगर का एक जिला एक उत्पाद (ODOP) भी घोषित कर दिया गया है। यह इन जिलों की नई पहचान है। अब सिर्फ यहीं के किसानों को इसके उत्पादन और बिजनेस का अधिकार होगा।

जियोग्राफिकल इंडीकेशन (जीआईटैग) का इस्तेमाल ऐसे उत्पादों के लिए किया जाता है, जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है। इन उत्पादों की विशिष्ट विशेषता एवं प्रतिष्ठा भी इसी मूल क्षेत्र के कारण ही होती है। जीआई लेने के अलावा इस चावल का प्रोटेक्शन ऑफ प्लांट वैराइटी एंड फॉमर्स राइट एक्ट (PPVFRA) के तहत भी रजिस्ट्रेशन करवाया गया है ताकि काला नमक चावल के नाम का दूसरा कोई इस्तेमाल न कर सके।

कृषि क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि जैसे हरियाणा, पंजाब में बासमती चावल (Basmati Rice) किसानों की बड़ी ताकत बनकर उभरा है, उसी तरह काला नमक पूर्वांचल की तस्वीर बदलने का काम करेगा। प्राचीन प्रजात‍ि का यह चावल दाम, खासियत और स्वाद तीनों मामले में बासमती को मात देता है।

काला नमक चावल के पक्ष में कई बातें ऐसी जाती हैं जैसे कि‍ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कर्मभूमि है यूपी का पूर्वांचल, वो स्‍वयं भी “काला नमक” चावल के मुरीद हैं। बुद्धा सर्कि‍ट बनने से स‍िद्धार्थनगर यूं भी ऐतिहासिक रूप में गौतम बुद्ध से जुड़ा हुआ है और इसे बौद्ध धर्म के अनुयायि‍यों के देश कंबोडिया, थाइलैंड, म्यांमार, भूटान, श्रीलंका, जापान, ताइवान और सिंगापुर जैसे देशों में प्रमोट करने का काफी फायदा मिल रहा है। इसकी वजह ये है क‍ि कैंसर, अल्जाइमर व डायब‍िटीज के ल‍िए यह रामवाण भोजन है क्‍योंक‍ि इसमें शुगर बहुत कम, जिंक व पोटैशियम की अच्छी मात्रा होने के साथ प्रोटीन, फाइबर, विटामिन बी एवं आयरन व एंटीऑक्सीडेंट भी अधिक होते हैं, जो अन्य किसी चावल में नहीं पाए जाते, इसमें मौजूद फाइबर शरीर को मोटापा व कमजोरी से बचाता है।

गौतम बुद्ध से ऐतिहासिक जुड़ाव
काला नमक धान के बारे में कहा जाता है कि सिद्धार्थनगर के बजहा गांव में यह गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) के जमाने से पैदा हो रहा है। इसका जिक्र चीनी यात्री फाह्यान के यात्रा वृतांत में भी मिलता है। इस धान से निकला चावल सुगंध, स्वाद और सेहत से भरपूर है। सिद्धार्थनगर जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर वर्डपुर ब्लॉक इसके उत्पादन का गढ़ है। ब्रिटिश काल में बर्डपुर, नौगढ़ व शोहरतगढ़ ब्लॉक में इसकी सबसे अधिक खेती होती थी। अंग्रेज जमींदार विलियम बर्ड ने बर्डपुर को बसाया था।

पर्यावरण के ल‍िए भी बासमती की बजाय काला नमक चावल उगाना महत्‍वपूर्ण
काला नमक चावल की किस्म काला नमक 3131 व काला नमक केएन 3 अधिक पैदावार देने वाली किस्म है। ये किस्म काला नमक चावल की इंप्रूव वैरायटी है और उससे ज्यादा खुशबूदार व मुलायम है। इस किस्म में अन्य चावल की किस्मों के अपेक्षा कम पानी लगता है। आम तौर पर एक किलो चावल के लिए करीब 3 से 4 हजार लीटर पानी का इस्तेमाल होता है जबकि इस किस्म में 1 किलो चावल के उत्पादन के लिए करीब 1500 से 2500 लीटर पानी ही लगता है। इसके अलावा प्रति हेक्टेयर उत्पादन भी अधिक है। अगर 1 हेक्टेयर में बासमती की उपज 21 क्‍विंटल के आसपास होती है तो इसकी उपज 35 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

सबसे पहले एक्सपोर्ट का श्रेय
यूनाइटेड नेशन के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) में चीफ टेक्निकल एडवाइजर रह चुके कृषि वैज्ञानिक प्रो. रामचेत चौधरी ने काला नमक चावल को विश्व स्तर पर पहचान दिलवाई, आजादी के बाद पहली बार “2019-20” में 200 क्‍विंटल सिंगापुर गया। वहां के लोगों को पसंद आया, फिर यहां 300 क्‍विंटल भेजा गया। दुबई में 20 क्‍विंटल और जर्मनी में एक क्‍विंटल का एक्सपोर्ट किया गया है, जहां इसका दाम 300 रुपये किलो मिला। इसके बाद तो यह इसी अथवा इससे भी अध‍िक कीमत पर बेचा जा रहा है। हालांक‍ि अभी तो यह शुरुआत है क्‍योंक‍ि बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन की तरह काला नमक एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन बनाने की जरूरत है ताकि उसकी गुणवत्ता की भी जांच पड़ताल हो सके। एक्सपोर्ट के लिए लगातार इसका प्रमोशन हो क्‍योंकि अभी तक देश के बाहर सिर्फ बासमती की ही ब्रांडिंग है।

- अलकनंदा स‍िंंह

मंगलवार, 27 जुलाई 2021

ॐ महाकालयम् महावीर्यं शिव वाहनं- नंदी, जो कि‍ कामशास्त्र के रचनाकार भी थे

श्रावण मास प्रारंभ होते ही भगवान शंकर की आराधना का पूरे भारत में एक अलग ही आनंद होता है परंतु भगवान शंकर केअनन्‍य गण व उनके आलयों के प्रहरी नंदी को लेकर आज कुछ ल‍िखना चाह रही हूं। 

एक आम सी मान्‍यता है क‍ि नंदी बैल थे, तो क्‍या सच में ऐसा था। सवाल बड़े हैं परंतु जवाब सब के सब अनुमानों में घ‍िरे हुए हैं। 

यूं तो माइथॉलॉज‍िकल उपन्‍यासकार अमीश त्र‍िपाठी की "मेलुहा" में नंदी राजा दक्ष के व‍ि‍श्‍वासपात्र दरबारी थे, उनका आकर व‍िशाल व मोटा व बुद्ध‍ि स्‍थ‍िर थी। हम सभी जानते हैं क‍ि स्‍थ‍िर बुदध‍ि क‍िसी भी व्‍यक्‍त‍ि के प्रभावशाली होने की पहली शर्त होती है। संभवत: इसील‍िए श‍िव के अनंग म‍ित्र के रूप में सामने आए नंदी परंतु इस उपन्‍यास से हटकर देखें तो नंदी का पौराण‍िक व्‍यक्‍त‍ित्‍व इससे भी कहीं अध‍िक बड़ा व महत्‍वपूर्ण था और वो महत्‍वपूर्ण कार्य था कामशास्‍त्र की रचना।

सामान्‍यत: सनातन व्‍याख्‍याओं में नंदी शिव के निवास स्‍थान कैलाश के द्वारपाल हैं, वे शिव के वाहन भी हैं जिन्हें प्रताकात्‍मक रूप से "बैल" के रूप में शिवमंदिरों में प्रतिष्ठित किया जाता है। संस्कृत में 'नन्दि' का अर्थ प्रसन्नता या आनन्द है। नंदी को शक्ति-संपन्नता और कर्मठता का प्रतीक माना जाता है इसील‍िए वे प्रस‍िद्ध कामशास्‍त्र की रचना कर पाए परंतु आमतौर पर अब भी ज‍िस उथ्‍ज्ञलेपन के साथ "काम" की व्‍याख्‍या की जाती है वह इस शास्‍त्र की अवधारणा से कतई अलग है। ॠष‍ि वात्‍यायन के कामसूत्र की प्रस‍िद्ध‍ि से सद‍ियों पूर्व ही नंदी ने हमें इस शास्‍त्र से पर‍िच‍ित करा द‍िया था।  

 हिन्दू धर्म के चार सिद्धांत धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में से काम के कई अर्थ है। काम का अर्थ कार्य, इच्छा और आनंद से है। प्रत्येक हिन्दू को सर्वप्रथम धर्म का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। ब्रह्मचर्य आश्रम इसी से संबंधित है। धर्म और संसार का ज्ञान प्राप्त करने के बाद ही व्यक्ति को गृहस्थ आश्रम में प्रवेश कर अर्थ का चिंतन करना चाहिए। सभी तरह के सांसारिक सुख प्राप्त करने के बाद व्यक्ति का अंतिम लक्ष्य मोक्ष या मुक्ति होना चाहिए।

भारतीय कामशास्त्र काम अर्थात संभोग और प्रेम करने की कला का शास्त्र है। प्राचीन काल में चार वेदों के साथ ही चार अन्य शास्त्र लिखे गए थे- धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र और मोक्षशास्त्र। चारों शास्त्र ही मनुष्य जीवन का आधार है। चारों से अलग मनुष्य जीवन की कल्पना भी नहीं कही जा सकती। कामशास्त्र पर आधारित ही बहुत बाद में वात्स्यायन ने कामसूत्र लिखा।

शैव परम्परा में नन्दि को नन्दिनाथ सम्प्रदाय का मुख्य गुरु माना जाता है, जिनके ८ शिष्य हैं- सनक, सनातन, सनन्दन, सनत्कुमार, तिरुमूलर, व्याघ्रपाद, पतंजलि, और शिवयोग मुनि। ये आठ शिष्य आठ दिशाओं में शैवधर्म का प्ररसार करने के लिए भेजे गये थे।

कामशास्त्र के अधिक विस्तृत होने के कारण आचार्य श्वेतकेतु ने इसको संक्षिप्त रूप लिखा, लेकिन वह ग्रंथ भी काफी बड़ा था अतः महर्षि ब्राभव्य ने ग्रन्थ का पुनः संक्षिप्तिकरण कर उसे एक सौ पचास अध्यायों में सीमित एवं व्यवस्थित कर दिया। बाद में इसी शास्त्र को महर्षि वात्स्यायन ने क्रमबद्ध रूप से लिखा। कहते हैं कि आचार्य चाणक्य ने ही वात्स्यायन नाम से यह ग्रंथ लिखा था। हालांक‍ि अधिकृत प्रमाण के अभाव में महर्षि वात्स्यायन का काल निर्धारण नहीं हो पाया है। परन्तु अनेक विद्वानों तथा शोधकर्ताओं के अनुसार महर्षि ने अपने विश्वविख्यात ग्रन्थ कामसूत्र की रचना ईसा की तृतीय शताब्दी के मध्य में की होगी। 

बहरहाल भगवान श‍िव के अनन्‍य गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय के अलावा के अत‍िर‍िक्‍त नंदी को उनके ज्ञान, कर्तव्‍यन‍िष्‍ठा और समर्पण के ल‍िए गणों में व‍िशेष स्‍थान प्राप्‍त है। 


नंदी कैसे बने शिव के गण

शिव की घोर तपस्या के बाद शिलाद ऋषि ने नंदी को पुत्र रूप में पाया था। शिलाद ऋषि ने अपने पुत्र नंदी को संपूर्ण वेदों का ज्ञान प्रदान किया। एक दिन शिलाद ऋषि के आश्रम में मित्र और वरुण नाम के दो दिव्य ऋषि पधारे। नंदी ने अपने पिता की आज्ञा से उन ऋषियों की उन्होंने अच्छे से सेवा की। जब ऋषि जाने लगे तो उन्होंने शिलाद ऋषि को तो लंबी उम्र और खुशहाल जीवन का आशीर्वाद दिया लेकिन नंदी को नहीं।

तब शिलाद ऋषि ने उनसे पूछा कि उन्होंने नंदी को आशीर्वाद क्यों नहीं दिया? इस पर ऋषियों ने कहा कि नंदी अल्पायु है। यह सुनकर शिलाद ऋषि चिंतित हो गए। पिता की चिंता को नंदी ने जानकर पूछा क्या बात है पिताजी। तब पिता ने कहा कि तुम्हारी अल्पायु के बारे में ऋषि कह गए हैं इसीलिए मैं चिंतित हूं। यह सुनकर नंदी हंसने लगा और कहने लगा कि आपने मुझे भगवान शिव की कृपा से पाया है तो मेरी उम्र की रक्षा भी वहीं करेंगे आप क्यों नाहक चिंता करते हैं।

इतना कहते ही नंदी भुवन नदी के किनारे शिव की तपस्या करने के लिए चले गए। कठोर तप के बाद शिवजी प्रकट हुए और कहा वरदान मांगों वत्स। तब नंदी के कहा कि मैं उम्रभर आपके सानिध्य में रहना चाहता हूं। नंदी के समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने नंदी को पहले अपने गले लगाया और उन्हें बैल का चेहरा देकर उन्हें अपने वाहन, अपना दोस्त, अपने गणों में सर्वोत्तम के रूप में स्वीकार कर लिया।

सुमेरियन, बेबीलोनिया, असीरिया और सिंधु घाटी की खुदाई में भी बैल की मूर्ति पाई गई है। इससे प्राचीनकल से ही बैल को महत्व दिया जाता रहा है। भारत में बैल खेती के लिए हल में जोते जाने वाला एक महत्वपूर्ण पशु रहा है। बैल को महिष भी कहते हैं जिसके चलते भगवान शंकर का नाम महेष भी है।
शिवजी का चरित्र भी बैल समान ही माना गया है
जिस तरह गायों में कामधेनु श्रेष्ठ है उसी तरह बैलों में नंदी श्रेष्ठ है। आमतौर पर खामोश रहने वाले बैल का चरित्र उत्तम और समर्पण भाव वाला बताया गया है। इसके अलावा वह बल और शक्ति का भी प्रतीक है। बैल को मोह-माया और भौतिक इच्छाओं से परे रहने वाला प्राणी भी माना जाता है। यह सीधा-साधा प्राणी जब क्रोधित होता है तो सिंह से भी भिड़ लेता है। यही सभी कारण रहे हैं जिसके कारण भगवान शिव ने बैल को अपना वाहन बनाया। शिवजी का चरित्र भी बैल समान ही माना गया है।

एक बार रावण भगवान शंकर से मिलने कैलाश गया। वहां उसने नंदीजी को देखकर उनके स्वरूप की हंसी उड़ाई और उन्हें वानर के समान मुख वाला कहा। तब नंदीजी ने रावण को श्राप दिया कि वानरों के कारण ही तेरा सर्वनाश होगा।

और अंत में नंदी प्रार्थना –------

ॐ महाकालयम महावीर्यं शिव वाहनं उत्तमम गणनामत्वा प्रथम वन्दे नंदिश्वरम महाबलम्

- अलकनंदा स‍िंंह

भारतीय मूल के ब्रिटिश उपन्यासकार संजीव सहोटा #SunjeevSahota बुकर पुरस्कार के लिए नामित


 लंदन। भारतीय मूल के ब्रिटिश उपन्यासकार संजीव सहोटा इस साल के प्रतिष्ठित बुकर पुरस्कार की काल्पनिक कथा की श्रेणी के अपने उपन्यास ‘चाइना रूम’ के लिए नामित हुए हैं। जजों ने मंगलवार को उनके उपन्यास की प्रशंसा करते हुए उसे आव्रजकों के अनुभव पर लाजवाब मोड़ बताया है। हालांकि सहोटा के लिए मुकाबला बेहद कड़ा रहने वाला है क्योंकि उनके साथ इस साल कुल 13 लोगों को नामित किया गया है जिसमें नोबेल विजेता काजू इशिगुरो और पुलित्जर पुरस्कार विजेता रिचर्ड पावर्स भी शामिल हैं।

1960 में पंजाब से आए थे ब्रिटेन
40 वर्षीय संजीव सहोटा के बाबा-दादी 1960 में पंजाब से ब्रिटेन आ गए थे। वर्ष 2015 में भी सहोटा के उपन्यास ‘द ईयर ऑफ रनअवेज’ को बुकर पुरस्कार के लिए नामित किया जा चुका है। उन्हें वर्ष 2017 में साहित्य के लिए यूरोपीय यूनियन के पुरस्कार से भी नवाजा गया था। संजीव सहोटा के उपन्यास ‘चाइना रूम’ को वर्ष 2020 के अक्टूबर और 2021 सितंबर के बीच ब्रिटेन और आयरलैंड में प्रकाशित 158 अंग्रेजी उपन्यासों में से चुना गया है। बुकर पुरस्कार के जजों का कहना है कि दो कालों और महाद्वीपों के बीच के अंतर को ‘चाइना रूम’ उपन्यास में एक साथ पिरोया गया है। आव्रजकों के अनुभवों पर आधारित इसके कथानक में बेहद रोचक मोड़ है। इस पीड़ा को बेहद सुलझे तरीके से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुंचते हुए दिखाया गया है। करारी और स्पष्ट भाषा में उपन्यास में बेहद नाटकीय घटनाक्रम दर्शाया गया है। सहोटा ने बड़ी सहजता से इस बोझिल विषय को भी प्रेम, उम्मीद और विनोद से भर दिया है।
3 नवंबर को होगा विजेता का ऐलान
सहोटा के अलावा बुकर पुरस्कार के नामित उपन्यासों की 2021 की सूची में जापानी मूल के ब्रिटिश लेखक काजू इशीगोरा की ‘लारा एंड द सन’ को भी शामिल किया गया है। इसके अलावा दक्षिण अफ्रीकी लेखक डेमन गैलुट की ‘द प्रामिस’ और अमेरिकी लेखक रिचर्ड्स पावर की ‘बिवाइल्डरमेंट’ को भी नामित किया गया है। जजों के पैनल की अध्यक्ष और इतिहासकार माया जैसनआफ ने कहा कि यह सभी किताबें अपने पाठकों को अपनी अनसुनी कहानियों से बांधे रखती हैं। इस साल बुकर के लिए नामित 13 किताबों में दो अमेरिकियों पेट्रीशिया लाकवुड की पहली बार नामित किताबें ‘नो वन इज टाकिंग अबाउट दिस’ और नाथन हैरिस की ‘द स्वीटनेस आफ वाटर’ भी शामिल हैं। 14 सितंबर को इनमें से छह किताबों का चयन होगा और विजेता की घोषणा लंदन में एक समारोह के दौरान तीन नवंबर को होगी।

प्रस्‍तुत‍ि- अलकनंदा स‍िंंह

मंगलवार, 6 जुलाई 2021

इस षडयंत्र का भी इलाज़ होगा मगर धीरे धीरे


 मैक्सिकन कवि जोस इमिलिओ पाचेको की एक कव‍िता है “दीमकें” ज‍िसमें पाचेको ने दीमक का एक “हथ‍ियार” की तरह प्रयोग बखूबी बताया है। कव‍िता इस प्रकार है-

और दीमकों से
उनके स्वामी ने कहा —
नीचे गिरा दो उस घर को।

और वे
लगातार जुटी हुई हैं
इस काम में
जाने कितनी ही पीढ़ियों से,
सूराख़ बनातीं,
अन्तहीन खुदाई में तल्लीन।

किसी दुष्टात्मा की तरह
निर्दोषिता का स्वांग किए,
पीले मुँह वाली चीटियाँ,
विवेकहीन, गुमनाम दास,
किए जा रही हैं
अपना काम
दायित्व समझ कर,
फ़र्श के नीचे
किसी वाहवाही
या शाबासी की
अपेक्षा किये बिना ही।

उनमें से हर एक
सन्तुष्ट भी है,
अपना बेहद मामूली
पारिश्रमिक लेकर।

पूरी की पूरी कव‍िता आज हमारे देश के उन चौतरफा दुश्‍मनों पर एकदम सटीक बैठती है ज‍िन्‍हें देश में हर हाल में अशांत‍ि, अस्‍थ‍िरता, लाचारी और वैमनस्‍यता, आतंकवाद को फैलाने का लक्ष्‍य द‍िया जा रहा है। मैंने लक्ष्‍य की बात इसल‍िए की क्‍योंक‍ि कश्‍मीर में धारा 370 हटने के बाद सीएए का व‍िरोध, द‍िल्‍ली में दंगे से लेकर मतांतरण तक हर मिलती कड़ी बता रही है क‍ि ये एक सोची समझी वो साज‍िश थी जो सामने आती गई परंतु इस साज‍िश की दीमकें अपने लक्ष्‍य में अब भी लगी हैं। जहां उनके सुबूत मि‍ल रहे हैं, वहां सफाई हो रही है परंतु जहां वे नज़र नहीं आ रहीं वहां खतरा बरकरार है। सरकारें व सुरक्षा एजेंस‍ियां तो लगी ही हैं अपने प्रयास में, परंतु नागर‍िक के तौर पर सावधान तो हमें भी रहना होगा। फि‍लहाल दो खबरें ऐसी हैं जो इन दीमकों के मूल षड्यंत्र को सामने ला रही हैं, इत्‍तेफाकन दोनों ही खबरों का मास्‍टरमाइंड “इंटरनेशनल मीड‍िया” है और बतौर भारतीय पत्रकार ये हमारे ल‍िए शर्म की बात है क‍ि हमारे देश के कुछ मीड‍िया संस्‍थान भी इनके सहयोगी की भूम‍िका में है। हां, खुशी की बात ये है क‍ि इस षड्यंत्र का खुलासा भी हो रहा है।
बीबीसी, न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स, हफ़िंगटन पोस्ट, वाशिंगटन पोस्ट, वॉल स्ट्रीट जर्नल ने तो बाकायदा भारत की मौजूदा सरकार के ख‍िलाफ अभ‍ियान चला रखा है। ये मीड‍िया द्वारा पर‍िभाष‍ित कथ‍ित उदारवाद का वो घोर कट्टरवादी चेहरा है जि‍स पर आम नागर‍िक आंख मूंदकर व‍िश्‍वास करते रहे हैं।

हाल ही में चाइना डेली को लेकर एक स्वतंत्र विश्लेषक की रि‍पोर्ट जारी हुई है, ज‍िसमें बताया गया है कि‍ चाइना डेली ने पिछले छह महीनों में अमेर‍िका के प्रमुख समाचार पत्रों और पत्रिकाओं को लाखों डॉलर का भुगतान किया। ज‍िन संस्‍थानों को भुगतान क‍िया गया उनमें टाइम पत्रिका, विदेश नीति पत्रिका, द फाइनेंशियल टाइम्स, लॉस एंजिल्स टाइम्स, द सिएटल टाइम्स, द अटलांटा जर्नल-संविधान, द शिकागो ट्रिब्यून, द ह्यूस्टन क्रॉनिकल और द बोस्टन, वाशिंगटन पोस्ट, वॉल स्ट्रीट जर्नल हैं, ज‍िन्‍हें पेड न्‍यूज़ की भांत‍ि खबरें देनी थीं और उन्‍होंने दीं भी। इन सभी खबरों की थीम ही मोदी व‍िरोध था और इन सभी समाचार पत्रों में छपने व भारी मात्रा में धन म‍िलने के कारण तमाम भारतीय पत्रकार भी अपनी भड़ास न‍िकालने लगे, वो भी ब‍िना ये सोचे समझे क‍ि वे दरअसल पीएम मोदी का नहीं देश का व‍िरोध कर रहे हैं।


न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स ने तो हद ही कर दी, उसने तो सीधा एक व‍िज्ञापन पत्रकारों की भर्ती के ल‍िए ऐसा न‍िकाला ज‍िसमें व‍िशेषज्ञता के तौर पर पीएम मोदी को लेकर “अलोचनात्‍मक लेख” ल‍िखना ही योग्‍यता का आधार रखा गया। बहरहाल, व‍िदेशी अखबारों में पैसा चाहे चाइना डेली दे या कोई और, वे मोदी व‍िरोधी लेख ल‍िखकर देश के व‍िश्‍वास पर आघात करें या धर्मांतरण करवाकर सामाज‍िक ढांचे को ब‍िगाड़ने में लगें, मगर अब इतना तय है क‍ि हमारी व्‍यवस्‍था में लगी दीमकों का अब चुनचुनकर सफाया क‍िया जाएगा, चाहे वो खुद को क‍ितना भी तुर्रम खां क्‍यों ना समझ रही हों क्‍योंकि हर छद्मयुद्ध के ल‍िए अलग पेस्‍टीसाइड होता है।

इसीलिए कवि जोस इमिलिओ पाचेको की रचना आज भी उतनी ही प्रासंग‍िक है जो सिर्फ अपना अलग पेस्‍टीसाइड खोज रही है, बस।

- अलकनंदा स‍िंंह