कहते हैं जो देश अपनी प्राचीन जीवन शैलियों को परिष्कृत करते रहते हैं, वे पीढ़ियों को उत्तरोत्तर विकास का उत्तरदायित्व सौंपते चलते हैं ताकि विकास की कोई गाथा अधूरी ना रह जाए और ऐसी ही है हमारी अर्थात् “भारत भूमि” की विकास गाथा।
तो आज ऐसी ही एक विकास गाथा है “काला नमक चावल” जिसकी वो बात साझा कर रही हूं जिसने निर्यात में अब तक के सभी रिकॉर्ड तोड़कर महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। भारतीय संपदा की इस गौरवमयी उपलब्धि को जिस जिजीविषा के साथ हासिल किया गया है, वह और भी बड़ी बात है।
जी हां, कभी वैदिक काल में हमारे यहां चावल की चार लाख किस्में पैदा हुआ करती थीं, वैदिक अनुष्ठानों में भी चावल का उल्लेख गेहूँ आदि की तुलना में अधिक किया गया था। वैदिक कालीन इतिहास के प्रसिद्ध लेखक “ए एल बाशम” ने अपनी पुस्तक “अद्भुत भारत” में यजुर्वेद कालीन “शतपथ ब्राह्मण” को संदर्भित करते हुए लिखा है कि ब्रीहि (चावल) का प्रचुर मात्रा में उत्पादन होता था, यहां तक कि हस्तिनापुर के आठवीं सदी पूर्व के मिले अवशेष भी बताते हैं कि चावल का उत्पादन भारत भूमि पर अधिकाधिक होता था।
पिछले कुछ दशकों में गलत नीतियों के कारण भारत एक प्यासा देश बनता गया और चावल की उत्कृष्ट फसल के नाम पर सिर्फ बासमती ही लोगों की जुबान पर चढ़ सका। बहरहाल, आज की इस खबर ने काला नमक चावल को ही नहीं… भारत की उन 45,107 प्रजातियों को भी नया जीवन दे दिया है जो अपने प्रदेश या अपने क्षेत्र तक ही सीमित थीं। खाद्य उत्पादों की निर्यात एजेंसी एपीडा के अनुसार निर्यात ने इनकी वैश्विक संभावनाओं को पंख लगा दिए हैं।
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में पैदा होने वाला काला नमक चावल के ब्रांड “बुद्धा राइस” की तो पश्चिमी एशियाई देशों के साथ-साथ सिंगापुर, दुबई और जर्मनी में बेहद डिमांड है इसीलिए पूर्वांचल के 11 जिलों को इसका जीआई टैग मिला है। इसे सिद्धार्थ नगर, गोरखपुर, महराजगंज, बस्ती और संतकरीबर नगर का एक जिला एक उत्पाद (ODOP) भी घोषित कर दिया गया है। यह इन जिलों की नई पहचान है। अब सिर्फ यहीं के किसानों को इसके उत्पादन और बिजनेस का अधिकार होगा।
जियोग्राफिकल इंडीकेशन (जीआईटैग) का इस्तेमाल ऐसे उत्पादों के लिए किया जाता है, जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है। इन उत्पादों की विशिष्ट विशेषता एवं प्रतिष्ठा भी इसी मूल क्षेत्र के कारण ही होती है। जीआई लेने के अलावा इस चावल का प्रोटेक्शन ऑफ प्लांट वैराइटी एंड फॉमर्स राइट एक्ट (PPVFRA) के तहत भी रजिस्ट्रेशन करवाया गया है ताकि काला नमक चावल के नाम का दूसरा कोई इस्तेमाल न कर सके।
कृषि क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि जैसे हरियाणा, पंजाब में बासमती चावल (Basmati Rice) किसानों की बड़ी ताकत बनकर उभरा है, उसी तरह काला नमक पूर्वांचल की तस्वीर बदलने का काम करेगा। प्राचीन प्रजाति का यह चावल दाम, खासियत और स्वाद तीनों मामले में बासमती को मात देता है।
काला नमक चावल के पक्ष में कई बातें ऐसी जाती हैं जैसे कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कर्मभूमि है यूपी का पूर्वांचल, वो स्वयं भी “काला नमक” चावल के मुरीद हैं। बुद्धा सर्किट बनने से सिद्धार्थनगर यूं भी ऐतिहासिक रूप में गौतम बुद्ध से जुड़ा हुआ है और इसे बौद्ध धर्म के अनुयायियों के देश कंबोडिया, थाइलैंड, म्यांमार, भूटान, श्रीलंका, जापान, ताइवान और सिंगापुर जैसे देशों में प्रमोट करने का काफी फायदा मिल रहा है। इसकी वजह ये है कि कैंसर, अल्जाइमर व डायबिटीज के लिए यह रामवाण भोजन है क्योंकि इसमें शुगर बहुत कम, जिंक व पोटैशियम की अच्छी मात्रा होने के साथ प्रोटीन, फाइबर, विटामिन बी एवं आयरन व एंटीऑक्सीडेंट भी अधिक होते हैं, जो अन्य किसी चावल में नहीं पाए जाते, इसमें मौजूद फाइबर शरीर को मोटापा व कमजोरी से बचाता है।
गौतम बुद्ध से ऐतिहासिक जुड़ाव
काला नमक धान के बारे में कहा जाता है कि सिद्धार्थनगर के बजहा गांव में यह गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) के जमाने से पैदा हो रहा है। इसका जिक्र चीनी यात्री फाह्यान के यात्रा वृतांत में भी मिलता है। इस धान से निकला चावल सुगंध, स्वाद और सेहत से भरपूर है। सिद्धार्थनगर जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर वर्डपुर ब्लॉक इसके उत्पादन का गढ़ है। ब्रिटिश काल में बर्डपुर, नौगढ़ व शोहरतगढ़ ब्लॉक में इसकी सबसे अधिक खेती होती थी। अंग्रेज जमींदार विलियम बर्ड ने बर्डपुर को बसाया था।
पर्यावरण के लिए भी बासमती की बजाय काला नमक चावल उगाना महत्वपूर्ण
काला नमक चावल की किस्म काला नमक 3131 व काला नमक केएन 3 अधिक पैदावार देने वाली किस्म है। ये किस्म काला नमक चावल की इंप्रूव वैरायटी है और उससे ज्यादा खुशबूदार व मुलायम है। इस किस्म में अन्य चावल की किस्मों के अपेक्षा कम पानी लगता है। आम तौर पर एक किलो चावल के लिए करीब 3 से 4 हजार लीटर पानी का इस्तेमाल होता है जबकि इस किस्म में 1 किलो चावल के उत्पादन के लिए करीब 1500 से 2500 लीटर पानी ही लगता है। इसके अलावा प्रति हेक्टेयर उत्पादन भी अधिक है। अगर 1 हेक्टेयर में बासमती की उपज 21 क्विंटल के आसपास होती है तो इसकी उपज 35 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
सबसे पहले एक्सपोर्ट का श्रेय
यूनाइटेड नेशन के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) में चीफ टेक्निकल एडवाइजर रह चुके कृषि वैज्ञानिक प्रो. रामचेत चौधरी ने काला नमक चावल को विश्व स्तर पर पहचान दिलवाई, आजादी के बाद पहली बार “2019-20” में 200 क्विंटल सिंगापुर गया। वहां के लोगों को पसंद आया, फिर यहां 300 क्विंटल भेजा गया। दुबई में 20 क्विंटल और जर्मनी में एक क्विंटल का एक्सपोर्ट किया गया है, जहां इसका दाम 300 रुपये किलो मिला। इसके बाद तो यह इसी अथवा इससे भी अधिक कीमत पर बेचा जा रहा है। हालांकि अभी तो यह शुरुआत है क्योंकि बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन की तरह काला नमक एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन बनाने की जरूरत है ताकि उसकी गुणवत्ता की भी जांच पड़ताल हो सके। एक्सपोर्ट के लिए लगातार इसका प्रमोशन हो क्योंकि अभी तक देश के बाहर सिर्फ बासमती की ही ब्रांडिंग है।
- अलकनंदा सिंंह