तेरी कमीज मेरी कमीज से सफेद कैसे की तर्ज़ पर द्वारका शारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने साईं की ईश्वर मानकर पूजा न किये जाने का जो शिगूफा छोड़ा है और इसे सनातन धर्म पर संकट के रूप में प्रचारित किया है, वह निश्चित ही हमारी सनातनी धर्म व्यवस्था को कमजोर बनाने का एक बचकाना प्रयास है, इसके अलावा और कुछ नहीं । सच तो ये है कि कभी धर्म की रक्षार्थ आदि शंकराचार्य ने जिन चार पीठों की स्थापना की,उनके उत्तराधिकारी धर्म की तो छोड़िए, स्वयं अपनी रक्षा नहीं कर पा रहे और अहंकार के बोझ से इतना लद चुके हैं कि उन्हें सनातन धर्म का पाठ पढ़ाने के लिए साईं के नाम का सहारा लेना पड़ रहा है। आमजन को यह बताना पड़ रहा है कि कुंभ स्नान में सर्वोच्चता जतलाने के अलावा भी उनका अपना कोई वज़ूद है।
कल अखाड़ों की एक धार्मिक बैठक में सनातन धर्म के अलंबरदारों ने साईं को ईश्वर मानकर पूजा किये जाने के विरोध में एक सहमति पत्र तैयार किया जिसे आज धर्म संसद में पढ़ा जायेगा और इस पत्र के अनुसार धर्म संसद में शामिल सभी धर्मविद्वतजन स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा उठाये गये साईं को ईश्वर मानकर पूजा किये जाने के मुद्दे को सहमति देंगे।
कितना अच्छा होता कि साईं को उनके भक्त ईश्वर मानकर पूजें या संत मानकर, इस मुद्दे पर एकत्र होने से पहले धर्मसंसद में वेदों के ज्ञाता, सनातन धर्म के सर्वोच्च अधिकारी यह आत्मचिंतन भी कर पाते कि स्वयं उन्होंने शंकराचार्यों, महामंडलेश्वरों, मंडलेश्वरों के पद को सुशोभित करते हुये कौन-कौन से जनहितकारी, धर्महितकारी कार्य किये । सनातन धर्म की जितनी छीछालेदर इन अलंबरदारों ने की है, उतनी तो विधर्मियों ने भी नहीं की। जो स्वयं अपने धर्म को भूल दूसरे धर्म पर उंगली उठाता है, वह यह भूल जाता है कि बाकी की तीन उंगलियां स्वयं उसकी ओर ही उठ रही हैं।
कुछ सवाल हैं जो स्वयं इन्हीं धर्माचार्यों के मंसूबों को कठघरे में लाते हैं जैसे कि -
1.क्या स्वयं स्वरूपानंद सरस्वती ये बतायेंगे कि उन्होंने धर्मांतरण पर चुप्पी क्यों साध रखी है
2.क्या उन्हें देश के हर हिस्से में हो रहे गौवध का फैलता दायरा दिखाई नहीं देता
3.क्या गंगा समेत तमाम पूज्यनीय नदियों के प्रदूषण पर उनकी चुप्पी उनकी मूढ़ता और निष्क्रियता नहीं दर्शाती
4.क्या उन्हें नहीं पता कि शंकराचार्यों, जगद्गुरुओं और महामंडलेश्वरों के पद भी खरीदे बेचे जा रहे हैं। इतना ही नहीं, बाकायदा इन्हीं के मठों से सेटिंग का पूरा खेल होता है और पदों के बदले में मिली धनराशि से इनके बैंक अकूत संपत्तियों से भरे पड़े हैं
5.क्या इन अकूत संपत्तियों में आने वाला धन काली कमाई नहीं होती
6.क्यों नहीं इनके खजानों को समाज के कल्याणार्थ सार्वजनिक किया जाता
7. धर्म को बेचने के लिए बनाये जा रहे आश्रमों, मंदिरों और धार्मिक चैनलों के ज़रिये जो धर्मांधता फैलाई जा रही है, उस पर क्यों नहीं कोई आपत्ति जताई जाती
8.सामाजिक बुराइयों पर इनकी चुप्पी क्या इन्हें बख्शने देगी
ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो इन मठाधीशों के इरादों को कतई जनहितकारी या धर्महितकारी नहीं मानने देते।
यूं भी शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती विवादित बयान देकर सिर्फ खबरों में रहने के आदी हो चुके हैं और सब जानते हैं कि वह कांग्रेस के हिमायती हैं। तभी तो वह कभी कहते हैं कि स्वामी अग्निवेश यह साबित करें कि वह आतंकवादी नहीं, सिर्फ संन्यासी हैं तो कभी कहते हैं कि शिरडी के साईं मंदिर में काला धन चढ़ावे में आता है। ये कौन सी अनोखी बात है, सब जानते हैं। कभी कहते हैं कि कर्मों का फल ना निर्मल बाबा देगा, ना साईं बाबा देगा। तो फिर आपत्ति किस पर है, वे ये भी बतायें। कभी कहते हैं कि आपत्ति साईं से नहीं, उनकी पूजा से है तो कभी कहते हैं कि साईं बाबा 'वेश्या पुत्र' और उनके भक्तगण 'संक्रामक बीमारी' हैं...आदि आदि।
बहरहाल "हिंसायाम दूयते या सा हिन्दु" अर्थात् हिन्दू या सनातन धर्म केवल एक धर्म या सम्प्रदाय ही नहीं है अपितु जीवन जीने की एक पद्धति है जिसमें कहा गया है कि अपने मन, वचन, कर्म सहित जो हिंसा से दूर रहे, वह हिन्दू है और जो कर्म अपने हितों के लिए दूसरों को कष्ट दे, वह हिंसा है और फिलहाल धर्माचार्यों का ये कदम ऐसी ही हिंसा की भूमि तैयार कर रहा है।
कौन... किसकी... कैसे... क्यों... किसलिए...पूजा या आराधना करे जैसे प्रश्नों की बौछार के बीच कुल 13 अखाड़ों के जमघट में जूना अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा, अटल अखाड़ा, आवान अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, पंचाग्नि अखाड़ा, नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा, वैष्णव अखाड़ा, बड़ा उदासीन अखाड़ा, निर्मल पंचायती अखाड़ा, निर्मोही अखाड़ा, रामानंदी दिगंबरी अखाड़ा शामिल हैं। कल सुबह सभी अखाड़ों के प्रतिनिधियों की बैठक वागंभरी गद्दी के महंत नरेन्द्र गिरी की अध्यक्षता में हुई जिसमें जूना अखाड़े के राष्ट्रीय संरक्षक हरि गिरी ने साईं मुद्दे व सनातन धर्म से जुड़े सभी मुद्दों पर शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का समर्थन करने से संबंधित प्रस्ताव पढ़ा। आज सभी अखाड़ों के प्रतिनिधि इसी सहमति पत्र को धर्म संसद में पढ़ेंगे, जिसके बाद साईं की पूजा के मुद्दे पर फैसला लिया जाएगा।
हालांकि एक अच्छी खबर भी है कि इस जमघट से अलग अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने कहा है कि द्वारकापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा साईं बाबा के बारे में दिया गया बयान आधारहीन है। देखते हैं हैं कि आज ये धर्माचार्य क्या निर्णय लेते हैं।
- अलकनंदा सिंह
कल अखाड़ों की एक धार्मिक बैठक में सनातन धर्म के अलंबरदारों ने साईं को ईश्वर मानकर पूजा किये जाने के विरोध में एक सहमति पत्र तैयार किया जिसे आज धर्म संसद में पढ़ा जायेगा और इस पत्र के अनुसार धर्म संसद में शामिल सभी धर्मविद्वतजन स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा उठाये गये साईं को ईश्वर मानकर पूजा किये जाने के मुद्दे को सहमति देंगे।
कितना अच्छा होता कि साईं को उनके भक्त ईश्वर मानकर पूजें या संत मानकर, इस मुद्दे पर एकत्र होने से पहले धर्मसंसद में वेदों के ज्ञाता, सनातन धर्म के सर्वोच्च अधिकारी यह आत्मचिंतन भी कर पाते कि स्वयं उन्होंने शंकराचार्यों, महामंडलेश्वरों, मंडलेश्वरों के पद को सुशोभित करते हुये कौन-कौन से जनहितकारी, धर्महितकारी कार्य किये । सनातन धर्म की जितनी छीछालेदर इन अलंबरदारों ने की है, उतनी तो विधर्मियों ने भी नहीं की। जो स्वयं अपने धर्म को भूल दूसरे धर्म पर उंगली उठाता है, वह यह भूल जाता है कि बाकी की तीन उंगलियां स्वयं उसकी ओर ही उठ रही हैं।
कुछ सवाल हैं जो स्वयं इन्हीं धर्माचार्यों के मंसूबों को कठघरे में लाते हैं जैसे कि -
1.क्या स्वयं स्वरूपानंद सरस्वती ये बतायेंगे कि उन्होंने धर्मांतरण पर चुप्पी क्यों साध रखी है
2.क्या उन्हें देश के हर हिस्से में हो रहे गौवध का फैलता दायरा दिखाई नहीं देता
3.क्या गंगा समेत तमाम पूज्यनीय नदियों के प्रदूषण पर उनकी चुप्पी उनकी मूढ़ता और निष्क्रियता नहीं दर्शाती
4.क्या उन्हें नहीं पता कि शंकराचार्यों, जगद्गुरुओं और महामंडलेश्वरों के पद भी खरीदे बेचे जा रहे हैं। इतना ही नहीं, बाकायदा इन्हीं के मठों से सेटिंग का पूरा खेल होता है और पदों के बदले में मिली धनराशि से इनके बैंक अकूत संपत्तियों से भरे पड़े हैं
5.क्या इन अकूत संपत्तियों में आने वाला धन काली कमाई नहीं होती
6.क्यों नहीं इनके खजानों को समाज के कल्याणार्थ सार्वजनिक किया जाता
7. धर्म को बेचने के लिए बनाये जा रहे आश्रमों, मंदिरों और धार्मिक चैनलों के ज़रिये जो धर्मांधता फैलाई जा रही है, उस पर क्यों नहीं कोई आपत्ति जताई जाती
8.सामाजिक बुराइयों पर इनकी चुप्पी क्या इन्हें बख्शने देगी
ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो इन मठाधीशों के इरादों को कतई जनहितकारी या धर्महितकारी नहीं मानने देते।
यूं भी शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती विवादित बयान देकर सिर्फ खबरों में रहने के आदी हो चुके हैं और सब जानते हैं कि वह कांग्रेस के हिमायती हैं। तभी तो वह कभी कहते हैं कि स्वामी अग्निवेश यह साबित करें कि वह आतंकवादी नहीं, सिर्फ संन्यासी हैं तो कभी कहते हैं कि शिरडी के साईं मंदिर में काला धन चढ़ावे में आता है। ये कौन सी अनोखी बात है, सब जानते हैं। कभी कहते हैं कि कर्मों का फल ना निर्मल बाबा देगा, ना साईं बाबा देगा। तो फिर आपत्ति किस पर है, वे ये भी बतायें। कभी कहते हैं कि आपत्ति साईं से नहीं, उनकी पूजा से है तो कभी कहते हैं कि साईं बाबा 'वेश्या पुत्र' और उनके भक्तगण 'संक्रामक बीमारी' हैं...आदि आदि।
बहरहाल "हिंसायाम दूयते या सा हिन्दु" अर्थात् हिन्दू या सनातन धर्म केवल एक धर्म या सम्प्रदाय ही नहीं है अपितु जीवन जीने की एक पद्धति है जिसमें कहा गया है कि अपने मन, वचन, कर्म सहित जो हिंसा से दूर रहे, वह हिन्दू है और जो कर्म अपने हितों के लिए दूसरों को कष्ट दे, वह हिंसा है और फिलहाल धर्माचार्यों का ये कदम ऐसी ही हिंसा की भूमि तैयार कर रहा है।
कौन... किसकी... कैसे... क्यों... किसलिए...पूजा या आराधना करे जैसे प्रश्नों की बौछार के बीच कुल 13 अखाड़ों के जमघट में जूना अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा, अटल अखाड़ा, आवान अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, पंचाग्नि अखाड़ा, नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा, वैष्णव अखाड़ा, बड़ा उदासीन अखाड़ा, निर्मल पंचायती अखाड़ा, निर्मोही अखाड़ा, रामानंदी दिगंबरी अखाड़ा शामिल हैं। कल सुबह सभी अखाड़ों के प्रतिनिधियों की बैठक वागंभरी गद्दी के महंत नरेन्द्र गिरी की अध्यक्षता में हुई जिसमें जूना अखाड़े के राष्ट्रीय संरक्षक हरि गिरी ने साईं मुद्दे व सनातन धर्म से जुड़े सभी मुद्दों पर शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का समर्थन करने से संबंधित प्रस्ताव पढ़ा। आज सभी अखाड़ों के प्रतिनिधि इसी सहमति पत्र को धर्म संसद में पढ़ेंगे, जिसके बाद साईं की पूजा के मुद्दे पर फैसला लिया जाएगा।
हालांकि एक अच्छी खबर भी है कि इस जमघट से अलग अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने कहा है कि द्वारकापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा साईं बाबा के बारे में दिया गया बयान आधारहीन है। देखते हैं हैं कि आज ये धर्माचार्य क्या निर्णय लेते हैं।
- अलकनंदा सिंह
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