उत्तरकाशी का धराली.. सब कुछ अपनी गोद में समेट कर ले गई मां गंगा
उत्तरकाशी का धराली बता रहा है कि चट्टानों पर बने जल प्रवाह के निशान चेतावनी देते हैं, '...बस यहीं तक, इसके आगे नहीं!" सदियों से हिन्दू समाज, प्रकृति पूजक समाज प्रकृति मां की चेतावनी को समझता आया। मर्यादा में रहा।
लेकिन जिन्होंने प्रकृति की चेतावनी नहीं सुनी। जल प्रवाह की गोद में घुस गए। बिल्डिंग, बाजार खड़े कर दिए। पर्यटन के बढ़ते असर ने आंख पर लालच की पट्टी बांध दी है।
अब यह दलील नहीं चलेगी...आखिर #विकास तो होगा ही..:कहां जाएं लोग? रोजगार के लिए क्या करें?
मेरा निजी विश्वास है, #धर्म और #प्रकृति बहुत ही निर्मोही है..इन दोनों की शब्दवली में #दया_क्षमा नहीं है...धतकरम (पाप) किया है तो #दण्ड मिलेगा ही...हमें नहीं तो हमारी #भावी_संतति को। धर्म और प्रकृति को मानव की खड़ी की गई कोई बनावटी दलील स्वीकार नहीं।
#हिन्दू_धर्म अपनी व्यापकता में प्रकृति, ब्रह्मांड में #जीव_सहजीविता का ही अनुशासन है। यह व्यवस्था, यह दर्शन ही धर्म है।
बुद्धि कपाट खोल कर देखों तो धर्म अत्यंत सहज...बुद्धि कपाट बंद तो धर्म अत्यंत दुरूह। अत्यंत जटिल।
#Uttarkashi
#धराली
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 07 अगस्त 2025 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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प्राकतिक न्याय है ये |
जवाब देंहटाएंप्राकृतिक पढ़ें
हटाएंवाक़ई मानव को अपनी लिप्सा पर रोक लगानी होगी
जवाब देंहटाएंप्रश्न उठ तो रहे हैं मन मे मगर किसके खिलाफ आवाज उठानी है ये समझ नहीं आ रहा है, नदी अपने मार्ग पे नहीं चली या हमने उसके मार्ग मे घर बना दिए अपने, इतना दुःख इतनी पीड़ा के इस मौके पर किसको दोष दें? शायद हम ही गलत होंगे जिसने हमेशा प्रकृति के रास्ते मे आने की गलती की है, भगवान मृत आत्माओं को शांति एवं जो जीवित हैं उन्हें इस दुःख की घड़ी मे हौसला दे 🙏
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