आज twitter यानि X पर एक आंखेंदेखा वाकया पढ़ा जिसे भुक्तभोगी लंकेश ( X पर एकाउंट का नाम) ने साझा किया...आप भी पढ़ें कि गांव गमाण में आज रिश्ते किस तरह बदल चुके हैं...
छठ प्रसाद पहुंचाने दीदी के ससुराल गए।आवभगत, दण्ड - प्रणाम के बाद, दीदी के ससुर बोले की,चलिए बगल में एक वृद्धा मरणासन्न की अवस्था "भुइयाँ सेज" में पड़ी हैं, हालत देख-सुन के आते हैं। तकरीबन तीन-चार लोग हम चल पड़े। वहाँ पहुंच मैंने देखा, एक चमचमाता चेहरा,धवल बाल,बड़ी बिंदी,भखरा सिंदूर से भरा माँग,नथनी, बाली, मंगलसूत्र पहने, हल्का चादर ओढ़े एक वृद्धा चारपाई पर आँख बंद किये लेटी हुई हैं। सांस की गति तेज और गर्दन की घरघराहट साफ सुनाई दे रहा था ।कोई अनजान इनको देख, समझेगा कि कोई दादी जी आराम से सो रही है। अम्मा की सबसे छोटी बेटी जो कल हीं अपने ससुराल से खबर मिलते हीं भाग के आई थी, तलवे को गोद में ले "घरा" कर रहीं थी। अम्मा की दो बड़ी बेटियां भी आ गयीं थी, जो बाहर खड़ी आपस में दुखम सुखम साँझा कर रहीं थीं। थोड़ा पीछे चलते हैं।
अम्मा के तीन बेटे और तीन बेटियां हैं। बात 2009 की है, जब अम्मा के बड़े बेटे (आशीष) जो कि मर्चेंट नेवी में अच्छे पद पर कार्यरत थे, नशे में जहाज से समंदर में गिरकर नुकसान हो गए थे। आशीष नॉमिनी अपनी पत्नी (प्रिया) को बनाये थे तो नेवी से मिलने वाला सारा पैसा प्रिया को मिला। प्रिया बच्चों को लेकर मायके आ गयी और शहर में किराये का फ्लैट लेकर रहने लगी। मिले रकम से एक फूटी कौड़ी भी,प्रिया ने आशीष के माँ बाप को नहीं दी। घर से लगभग नाता तोड़ हीं लिया। समय बीतता गया,आशीष के पिताजी (राम शरण जी) बहू के इस रवैये से दुःखी और विचलित तो हुए मगर, मन को दिलासा दिलाये कि चलो, दोनों नाती शहर में दो अक्षर अच्छा हीं सीख लेंगे। आदमी कितना भी दुःखी क्यों न हो, मन के किसी कोने में कोई एक किरण आशा की जलाकर अपने दुःख को कम जरूर कर लेता है। और आशा दिल के भार को ऐसे कम करता है जैसे भींगी रुई के भार को धूप। समय के साथ, आशीष की तीनों बहनों और एक भाई की शादी हो गयीं। बहनें अपने अपने घर चली गयीं। आशीष के दोनों भाई, मुकेश और दिनेश घर पर हीं रहते हैं। राम शरण जी, अपने दोनों बेटों के साथ मिलकर बगल में हीं एक नया मकान बनवा लिए हैं, जिसका गृहप्रवेश इसी महीने के 26 तारीख को तय है। छोटे बेटे की शादी भी तय है जो कि, जनवरी 2025 के अंतिम हफ्ते में होना है।दोनों की तैयारी बड़े जोर शोर से चल रहा था। नाच वाले, बाजा वाले, टेंट, मिठाई, साज सज्जा वाले सभी को कुछ पैसा देकर तय कर लिया गया था कि, अचानक हीं अम्मा को पैरालाईसिस ने घेर लिया। राम शरण सिरहाने बैठे एकटक चेहरे को ऐसे निहारे जा रहे थे जैसे आँखे खोल अम्मा उनसे पानी के अब पूछेंगी की तब पूछेंगी। पति पत्नी जीवन में कितना भी नोंक झोंक करे, रुठे मनाये, डांटे फटकारे मगर, चौथेपन के पड़ाव में एक दुसरे से ऐसे अचानक हीं हमेशा हमेशा के लिए दूर जाने के लिए आँखे बंद कर ले तो दोनों के लिए ये दर्द असह्य हो जाता है। अम्मा के शरीर में कोई हरक़त नहीं हो पा रहा था, केवल सांस चल रहा था। डॉक्टर बोल दिए थे, कोमा में हैं, देखिये कितना दिन जिंदा रह पाती हैं। बेटियां बैठ के अम्मा के चादर,बाल,साड़ी को ठीक करने लगी,कोई मुंह पोंछने लगी,कोई हाथ सहलाने लगी। अब जबकि दो दिन बीत गए मुझे अपने घर आये।फोन करके पता किया तो,पता चला कि,अम्मा अभी भी उसी हालात में हैं।मैंने बोला, चलो अच्छा हीं है। पर इसके बाद दिनेश (अम्मा का छोटा बेटा) ने जो मुझसे कहा, उसे सुनकर मैं सहम हीं नहीं गया, बल्कि, मानव होने पर भी मुझे शर्मिंदगी महसूस हुई। "दिनेश - वो तो ठीक है कि जितना दिन जी जाए अम्मा। पर.. मैं - पर क्या?? वहीं, गृह प्रवेश का भी दिन रखा गया है, मेरी शादी का भी दिन रखा गया है. तो?? अरे आप समझ नहीं रहें हैं, अगर अम्मा आज की रात नहीं मरती हैं तो आगे सब कुछ बर्बाद हो जायेगा। आज 12 है, चौदह दिन बाद गृहप्रवेश है, वो होगा नहीं,, अगले गृह प्रवेश की तिथि वसंत पंचमी को है. मेरी शादी की तारीख वसंत पंचमी से पहले तय है। पुराने घर में शादी होगी नहीं. बेटी वाले मान नहीं रहे। आप हीं बताइये, कइसे होगा सब? अब आज गुजर जाती तो भी सब समय से हो हवा जाता। (मैं चुप!) दिनेश बोलता रहा - और वैसे भी अम्मा आगे और जी के का हीं कर लेंगी। ठीक तो होंगी नहीं,, जितना भोग भोगान लिखा है, भोग रहीं हैं। अब हमलोगों को भी जितना पेराना है, पेराएंगे। पैसा रुपिया सब साटा बाजा का बयाना दिए बर्बाद हो रहा है। अब मेरे कान, मस्तिष्क ठन्डे पड़ गए थे, दिनेश बोलता रहा, मगर मैं आगे और सुन पाने की स्थिति में नहीं था। धक्क से रह गया मेरा मन। कौन हैं हम मानव? किस हद तक गिर रहें हैं हमलोग? जिस बेटे के पेट में आने मात्र की सूचना माँ को ममता में विह्वल कर देता है, उसके द्वारा पेट में लात मारना माँ को आनन्द भर देने वाला होता है उस माँ के लिए ऐसा सोच! हे प्रभु
ऐसे भी लोग हैं
जवाब देंहटाएंसादर
ऐसे लोग कम नहीं हैं आज |
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