सेंगोल का आशय राजदंड से लगाया जाता है, 14 अगस्त 1947 को मध्य रात्रि पं. जवाहर लाल नेहरू को जो सेंगोल सौंपा गया था उस पर ऊपर भगवान शिव के सेवक नंदी की आकृति है. जो एक गोले पर विराजमान हैं. सेंगोल में इस गोले का अर्थ संसार से लगाया गया है. इसके ऊपर विराजमान शिव के वाहन नंदी की सुंदर नक्काशी है, जिन्हें सर्वव्यापी, धर्म व न्याय के रक्षक के वाहन के रूप में माना गया है. इसमें तिरंगे की नक्काशी भी है.
सेंगोल को चोल वंश के राजा प्रयोग करते थे, उस समय एक राजा दूसरे चोल राजा को सत्ता हस्तांतरण इसी सेंगोल के माध्यम से करता था. जो बेहद ठोस, सुंदर नक्काशी वाला सुनहरा राजदंड था. इस पर भी भगवान शिव के वाहन नंदी की नक्काशी होती थी, इतिहासकारों के मुताबिक चोल भगवान शिव के परम भक्त थे, इसीलिए राजदंड में उनके परम भक्त नंदी की आकृति होती थी. सेंगोल के अति सुंदर कृति है, इसकी लंबाई पांच फीट है जो शिल्प कौशल से संपन्न है.
सेंगोल को उस समय तमिलनाडु के प्रसिद्ध स्वर्णकार वुम्मिडी एथिराजुलु और वुम्मिडी सुधाकर ने 10 शिल्पकारों के दल के साथ बनाया था. इसे चांदी से तैयार किया गया था और उसके ऊपर सोने की परत चढ़ाई गई थी. इस काम में 10 से 15 दिन लगे थे. सेंगोल बनाने वाले वुम्मिडी भाइयों के मुताबिक यह बहुत गर्व की बात थी.
श्री ला श्री तंबीरन सेंगोल को लेकर तमिलनाडु से दिल्ली तक गए थे, उन्होंने पहले इसे माउंटबेटन को सौंपा था और उसके बाद इसे वापस लेकर पवित्र जल से शुद्ध किया था. इसके बाद पं. जवाहर लाल नेहरू के आवास पर जाकर सेरेमनी में श्री ला श्री तंबीरन ने तत्कालीन राष्ट्रपतित पं. राजेंद्र प्रसाद और अन्य गणमान्य लोगों की उपस्थिति में इसे नेहरू जी को सौंपा था.