शुक्रवार, 31 जनवरी 2020

Corona Virus: मैं ही प्रत्यक्ष… मैं ही प्रमाण

पूरे व‍िश्व में मेडीकल इमरजेंसी के तहत Corona Virus को एक राक्षस की भांत‍ि पेश क‍िया जा रहा है परंतु इस पर कोई बात नहीं हो रही क‍ि आख‍िर ये स्थ‍ित‍ि आई ही क्यों? क्यों वुहान और इस जैसी लैब्स में क‍िसी एक वायरस के प्रत‍िरोधी दर प्रत‍िरोधी वायरस तैयार क‍िये जा रहे हैं। वह भी ऐसे समय में जबक‍ि प्राकृत‍िक और मानवीय संतुलन को साधना प्राथम‍िकता होनी चाह‍िए, प्रकृत‍ि से लड़कर नहीं उसके साथ चलकर ही हम सर्वाइव कर सकते हैं, प्रकृत‍ि से ख‍िलवाड़ के नतीजे हम रोज भुगतते हैं तब भी… ।
मैं नए प्रयोगों के व‍िरुद्ध बात नहीं कर रही परंतु ये तो अवश्य ध्यान में रखना होगा क‍ि क‍िसी प्रयोग के पर‍िणामों की हम क्या ”कीमत” चुका रहे हैं , आने वाली और मौजूदा पीढ़‍ियों को हम क्या दे के जा रहे हैं। Corona वायरस की ट्रैजडी और एंटीबायोट‍िक्स के प्रत‍ि हमारे शरीर का इम्यून होते जाना तो बानगी है क‍ि हम अब भी इनसे सबक नहीं सीखे।
कोरोना वायरस से उपजी मेडीकल इमरजेंसी पर चीन के राष्ट्रपत‍ि शी ज‍िंनप‍िंग ने कहा है क‍ि कोरोना एक ऐसा राक्षस है जि‍सका अंत क‍िया जाना आवश्यक है और हम ऐसा करके रहेंगे। न‍िश्च‍ित ही वे सही कह रहे हैं परंतु सवाल बहुत हैं ज‍िनका जवाब उन्हें ही देना होगा क‍ि आख‍िर अभी तक ज‍ितने भी वायरस अटैक हुए पूरे व‍िश्व में उन सभी का जनक चीन ही क्यों रहा ? दरअसल बात तो अब इस पर होनी चाह‍िए … ।
हमें अच्छी तरह याद है क‍ि 2003 में सार्स (सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम) वायरस ने 8,422 लोगों को अपनी चपेट में लिया था और इससे 900 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। इसका जन‍क भी चीन ही था।
फ‍िलहाल वायरस के आनुवांशिक विश्लेषण में कोरोना वायरस की उत्पत्ति चमगादड़ या सांपों से होने की संभावना जताई गई है, परंतु ये महज संभावनाऐं ही हैं ज‍िसे स्वयं बीजिंग के चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज द्वारा प्रायोजित यह अध्ययन पत्रिका साइंस चाइना लाइफ साइंस में ही प्रकाशित क‍िया गया है, तो इस पर व‍िश्वास कैसे क‍िया जाए। बताया ये भी गया है क‍ि कोरोना वायरस से संक्रमित हुए मरीज थोक बाजार में वन्यजीवों के संपर्क में आए जहां सीफूड, मुर्गियां, सांप, चमगादड़ और पालतू मवेशी बिकते हैं।
कोरोना संक्रमण के सबसे संभावित जीव चमगादड़ और सांप बताए जा रहे हैं, इन्हें खाने से बचने को चीनी सरकार ने एडवाइजरी जारी की है परंतु सोशल मीड‍िया प्लेटफार्म ट्विवटर पर ही कोरोना से र‍िलेटेड जो वीड‍ियो तैर रहे हैं , उनमें जीव‍ित (हाफ-बॉयल्ड ) चमगादड़, चूहे, टैडपोल, मेढक, कुत्ते खाने की मेज पर सजे द‍िखाई दे रहे हैं, उन्हें चाव से खाते लोग और इनके अंगों को प्लेटों में रखकर ड‍िनर टेबल डेकोरेट करते द‍िखाई दे रहे हैं। ये सब क्या है।
चीनी राष्ट्रपत‍ि ने कोरोना को राक्षस बताया परंतु राक्षसी प्रवृत्त‍ि तो स्वयं उनके देशवासी अपना रहे हैं और वो भी सद‍ियों से, और बची खुची कसर उनकी वुहान एक्सपेरीमेंट ने पूरी कर दी। अब 1.1 करोड़ आबादी वाले द्वीप शहर वुहान को प्रशासन की ओर से सील कर द‍िया गया है और वुहान का दौरा करने गई विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की 5 सदस्यीय टीम ने इस वायरस को 2019-एनकोवी नाम देकर अपनी र‍िपोर्ट बनाई है।
अंतत: चीन की सरकार ने अब क‍िसी भी जानवर के मीट को खाने से मना क‍िया है और सब्ज‍ियों को उगाने का आदेश द‍िया है। कोरोना वायरस से उपजी ट्रैजडी हमें फ‍िर से अपनी जड़ों की ओर लौटने और उस ओर ही देखने को बाध्य करती है ज‍िसका एक छोर प्रकृत‍ि से जुड़ा है। ऐरे गैरे जीवों को कच्चा या हाफ बाॅयल्ड करके खाना प्राकृत‍िक दखलंदाज़ी है ज‍िसका नतीज़ा है कोरोना का कहर। इसील‍िए वातावरण की स्वच्छता और शाकाहार भोजन प्रणाली अपनाने के ल‍िए पूरे व‍िश्व में भारतीय सभ्यता का कोई सानी नहीं।
चरक संह‍िता के अनुसार आयुर्वेद में वायरस-
ACTA SCIENTIFIC MEDICAL SCIENCES के Volume 2 Issue 7 October 2018 में छपे Dnyaneshwar Kantaram Jadhav, Assistant Professor, Kayachikitsa Department, Shri Dhanwantri Ayurvedic Medical College and Research Centre, India के एक र‍िसर्च पेपर
तथा
YG Joshi. Charak Samhita of maharshi charak, Chukhambha
prakashan, Varanasi, Chikitsastan, Grahanidosh chikitsa-adhya,
chapter 15, verse no. 44 (2010): 354. के अनुसार –
आयुर्वेदिक दृष्टि से हम वायरस की तुलना ‘ आम’ ( आम, वात कफ प‍ित्त जैसे दोषों में से एक) से कर सकते हैं। यही ‘ आम’ व‍िकृत रस धातु बनाकर असामान्य सेल्स का निर्माण करती है। इन सेल्स के डीएनए और जींस असामान्य होते हैं ज‍िसके कारण आरएनए में प्रोटीन संश्लेषण भी असामान्य होगा और इस तरह जीन जो क‍ि स्वयं प्रोटीन मॉलीक्यूल होता है, भी असामान्य हो जाएगा और यही असामान्य प्रोटीन से बना यह आनुवंशिक पदार्थ ही वायरस है।
इसे भारतीय औषधीय प्रयोगों की पराकाष्ठा ही कहेंगे क‍ि सद‍ियों पुरानी चरक संह‍िता में भी वायरस का उल्लेख व न‍िदान द‍िए गए हैं… जो क‍ि प्राकृत‍िक भी हैं और कोरोना जैसी आपदाओं से जूझने का उपाय भी, शर्त इतनी है क‍ि हम प्रकृत‍ि और उसके न‍ियमों को ना भूलें और ना ही उसमें दखलंदाजी करें।

शुक्रवार, 10 जनवरी 2020

MatruBharti.com ने पुस्तक मेला में द‍िए रीडर्स च्वाॅइस अवार्ड

नई दिल्‍ली। विश्व पुस्तक मेला 2020 आज फिर हिंदी लेखकों के नाम रहा। लेखकों को हमेशा से मानदेय से ज़्यादा उनका सम्मान प्रिय होता है क्योंकि लेखन एक ऐसी कला है जिसका मूल्य पैसों में लगाया जाना सम्भव नहीं। इन लेखकों को सम्मानित करने के उपलक्ष्य में MatruBharti.com ने एक नई पहल ‘रीडर्स च्वाइस अवार्ड’ का आयोजन विश्व पुस्तक मेले के सेमिनार हॉल में किया।
कार्यक्रम में ज‍िन लेखक- लेखिकाओं को ‘रीडर्स च्वाइस अवार्ड से सम्मानित किया गया जिसमें लखनऊ के आशीष कुमार त्रिवेदी, ब्लॉगर सर्वेश सक्सेना, सूरज प्रकाश, सुभाष नीरव, उमा वैष्णव, कविता शर्मा एवं राज कमल आदि लेखक शामिल हैं।
गौरतलब है कि मातृभारती डॉट कॉम ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है जो 30 हज़ार से अधिक लेखकों की रचनाएं 1.5 लाख से अधिक पाठकों से साझा करने में सफल रहा है। यह एक वेबसाइट और एप के माध्यम से लोगों को जोड़ता है और साहित्य प्रेमियों के एक बड़े समूह को निशुल्क सेवा प्रधान करता है।
मातृभारती डॉट कॉम के सीईओ महेंद्र शर्मा ने बताया क‍ि हम हिंदी में लिख रहे उन सभी लेखकों को सम्मानित करते हैं जिन्होंने ऑनलाइन रीडिंग को पाठकों के लिए दिलचस्प बनाया है और लगातार इस मुहिम में वे अपना योगदान दे रहे हैं। हिंदी सहित्य केवल अखबारों व किताबों पर निर्भर नहीं, अब ऑनलाइन माध्मय से भी यह पाठकों को आकर्षित करती हैं।
– Legend News

शनिवार, 4 जनवरी 2020

सरकारी नौकरी में संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है कोटा ट्रेजडी

राजस्थान का कोटा… जी हां, वही कोटा जहां बच्चे मर रहे हैं और मुख्यमंत्री अशोक गहलौत सीएए के व‍िरोध में मार्च न‍िकाल रहे हैं। बच्चे मर रहे हैं और स्वास्थ्य मंत्री व प्रभारी मंत्री अपने स्वागत में कारपेट ब‍िछवा रहे हैं। बच्चे मर रहे हैं और अस्पताल प्रांगण में गंदगी व सूअरों के घूमने को प‍िछली सरकार की ”राजनैत‍िक साज‍िश” बता रहे हैं। ज‍िनके शब्दों में मृत शरीरों पर भी राजनीत‍ि करने का ज़हर घुल चुका हो, उनसे ये उम्मीद रखना तो कतई बेमानी है क‍ि वे कोटा की घटना से सबक सीखेंगे क्योंक‍ि ऐसा होता तो कई द‍िन बीत जाने पर भी अभी तक अस्पताल में इंतजामात वैसे के वैसे ही हैं बल्क‍ि बूंदी के अस्पताल में भी 10 बच्चे मर चुके हैं।
कोटा में जो भी बच्चे मरे वो स‍िर्फ सरकारी अस्पताल के कुप्रबंधन से, उपकरणों की कमी से , गंदगी की भयंकर स्थ‍ित‍ि से, कदम कदम पर लापरवाही से… ज‍िसे कोई न्यूनदृष्ट‍ि वाला भी बता सकता है क‍ि कमी आख‍िर क‍िसकी है , प्रथम दृष्टया दोषी कौन है, क‍िसकी कमान कसी जानी चाह‍िए और त्वर‍ित सुधार के ल‍िए क्या क्या क‍िया जाना चाह‍िए। जबक‍ि हो इसका उल्टा रहा है क‍ि इस पर बात ना करके कांग्रेस की वर्तमान गहलौत सरकार अपनी पूर्ववर्ती भाजपा सरकार को इन मौतों और अस्पतालों की दुर्दशा के ल‍िए ज‍िम्मेदार बता रही है। हद तो ये क‍ि अब भी कोई ना तो त्वर‍ित सहायता पहुंचाई गई और ना ही कार्यवाही की गई।
घ‍िनौनी राजनीत‍ि की बानगी देख‍िए क‍ि राजस्थान के ही स्वास्थ्य मंत्री ”बेचारे” रघु शर्मा, ज‍िन्हें बच्चों की मौत के 10 द‍िन बाद कोटा अस्पताल का दौरा करने का ”समय” मि‍ल पाया। चाटुकारों ने यहां भी उनका कारपेट ब‍िछाकर स्वागत करने का मौका नहीं छोड़ा , वो तो मीड‍िया था क‍ि बात खुल गई और दूर तलक गई। इसी तरह ठीक 11 वें द‍िन कांग्रेस की अध्यक्षा सोन‍िया गांधी के आदेश ( जैसा क‍ि पार्टी के पीआर व‍िभाग द्वारा प्रचार‍ित क‍िया जा रहा है) पर सच‍िन पायलट कोटा का आज दौरा करेंगे।
17 द‍िसंबर 2018 को राजस्थान में कांग्रेस की सरकार ने शपथ ली उसके बाद से पूरा एक साल म‍िला शासन चलाने को, तो ऐसे में पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार को अस्पतालों के कुप्रबंधन के ल‍िए ज‍िम्मेदार ठहराना कहां तक उच‍ित है।
इसी राजनीत‍ि पर एक हास्यास्पद व बेतुका जुमला ये क‍ि उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अख‍िलेश यादव ने राजस्थान की घटना पर उप्र के मुख्यमंत्री आद‍ित्यनाथ को बच्चों की मौत पर जमकर कोसा।
बहरहाल राजनीत‍ि से इतर सारी ज‍िम्मेदारी तो उस अस्पताल प्रशासन की है जो हर महीने लाखों की तनख्वाह लेकर भी न‍िकम्मा बना हुआ है। असंवेदनशीलता और अकर्मण्यता का इससे बड़ा उदाहरण और क्या होगा क‍ि सूअरों का व‍िचरण उनकी आंखों के सामने हो रहा था। अस्पतालों के कर्मचार‍ियों व अफसरों के न‍िकम्मेपन को देखना हो तो उनके घरों में जाकर देखें आधे से अध‍िक सामान अस्पतालों से ”पार क‍िया हुआ ” म‍िलेगा। अस्पताल में आने वाली दवाइयां ही नहीं बल्क‍ि अलमारी, बेड , चादरें व कंबल, बाल्टी मग, के अलावा मरीजों के ल‍िए आने वाली खाद्यसाम‍िग्री तक का स्वास्थ्य अध‍िकारी व कर्मचारी आपस में ही बंदरबांट कर लेते हैं। अस्पतालों में फैले इस भ्रष्टाचार के रोग से कोई एक राज्य नहीं बल्क‍ि पूरा देश इससे ग्रस‍ित है।
सरकारी नौकरी में संवेदनाशून्य की प्रवृत्त‍ि का घालमेल ही आज हमें ये सोचने पर व‍िवश कर रहा है क‍ि क्या सच में ज‍िन्हें हम अपने करों से वेतन भत्ते देते हैं वे कर्मचारी हमारी सेवा के ल‍िए हैं भी या हमें पूरे स‍िस्टम द्वारा मूर्ख बनाया जा रहा है।