श्याम बेनेगल के धारावाहिक भारत एक खोज की वे पंक्तियां आज तक याद हैं मुझे… ”ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर…”।
भारत एक खोज में इस प्रारंभ-गीत को ऋग्वेद के जिस नासदीय सूक्त से अनूदित कर वसंत देव द्वारा हिंदी में लिखा गया था, वह नासदीय सूक्त का ये श्लोक इस तरह है –
भारत एक खोज में इस प्रारंभ-गीत को ऋग्वेद के जिस नासदीय सूक्त से अनूदित कर वसंत देव द्वारा हिंदी में लिखा गया था, वह नासदीय सूक्त का ये श्लोक इस तरह है –
नासदासीन नो सदासीत तदानीं नासीद रजो नो वयोमापरो यत।
किमावरीवः कुह कस्य शर्मन्नम्भः किमासीद गहनं गभीरम॥
किमावरीवः कुह कस्य शर्मन्नम्भः किमासीद गहनं गभीरम॥
पूरे श्लोक में देवता की उपासना के संग-संग जीवन पद्धति की स्थापना को लेकर कई प्रश्नोत्तर हैं जिसमें संतुलित जीवन जीने के लिए ही स्थापित की गई ”जीवन पद्धति” सनातन धर्म का आधार बनी। और यही धर्म धीरे धीरे जड़ परंपराओं, अशिक्षा से ग्रस्त रीति रिवाजों की धमनियों से बहता हुआ आज हमारे सामने अपने सबसे सतही और हल्के रूप में उपस्थित है। धर्म के इस बाजारी रूप को यहां तक लाने में धर्म के कारोबारियों का बड़ा हाथ है जिनके ऊपर आमजन ने आंख मूंदकर विश्वास किया।
इसी ”विश्वास” के ”बाजार’ का कल हम करवा चौथ के आधुनिक रूप में दीदार करेंगे। करवा चौथ यानि सुहागिनों का ” निर्जल व्रत” वाला त्यौहार। पति की लंबी उम्र मांगने का ‘अहसान’ उन्हीं की जेब पर उतारा जाता है। इस बार यह त्यौहार अपने अब तक के सबसे वीभत्स रूप में हमारे सामने है। गहनों, कपड़ों, ब्यूटी पार्लर्स से आगे बढ़ता हुआ बाजार अब डिजायनर करवों, पूजा की थालियों, सरगी की सामिग्री के 500 रुपये से लेकर हजारों के पैकेजों सहित उपलब्ध है जो शोशेबाजी और शारीरिक साजसज्जा तक सिमट कर रह गया है।
दरअसल करवा चौथ भगवान गणेश की आराधना का पर्व है जिसमें सिर्फ पति ही नहीं, संतान व परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए सद्बुद्धि की आराधना की जाती है परंतु इसे सिर्फ पति तक सीमित कर दिया गया। ये क्यों और कब हुआ, इसका तो नहीं पता परंतु इतना अवश्य है कि ”कुछ लोगों” तक सिमटी शिक्षा के चलते ये अपभ्रंशित तस्वीर ही करवा चौथ बनकर रह गई है। जिन व्रतों को जीवनपद्धति के लिए स्थापित किया गया था, उन्हें बाजार ने निगल लिया और गिफ्ट के लेनदेन ने इसे ”व्यवहार” बनाकर रख दिया। करोड़ों रूपये के सौंदर्य प्रसाधन, जूलरी व कपड़ों की खरीदफरोख़्त से बाजार में तब्दील ये ”व्रत” सोचने को बाध्य करता है कि आखिर यह किस तरह की परंपरा और कैसी जीवन पद्धति का अनुसरण कर रहे हैं हम।
तो नासदीय सूक्त की भांति हम भी आखिर ऐसे किस देवता की उपासना करें जो हमें इस कुचक्र से निकाल सके और टूटते बिखरते रिश्तों के इस कठिन समय में परिवार और समाज के काम आ सके। बाजार पर आधारित परंपरा हो या धर्म, या फिर जीवन पद्धति ही क्यों न हो वो तो अंतत: क्षोभ ही उत्पन्न करेगा, संतुष्टि नहीं। ये समझना इस दौर की सबसे बड़ी जरूरत है।
तो नासदीय सूक्त की भांति हम भी आखिर ऐसे किस देवता की उपासना करें जो हमें इस कुचक्र से निकाल सके और टूटते बिखरते रिश्तों के इस कठिन समय में परिवार और समाज के काम आ सके। बाजार पर आधारित परंपरा हो या धर्म, या फिर जीवन पद्धति ही क्यों न हो वो तो अंतत: क्षोभ ही उत्पन्न करेगा, संतुष्टि नहीं। ये समझना इस दौर की सबसे बड़ी जरूरत है।
इसी के साथ नासदीय सूक्त का वसंत देव द्वारा ये हिंदी अनुवाद पढ़िए-
सृष्टि से पहले सत नहीं था
असत भी नहीं
अंतरिक्ष भी नहीं
असत भी नहीं
अंतरिक्ष भी नहीं
आकाश भी नहीं था
छिपा था क्या, कहाँ
किसने ढका था
उस पल तो
अगम अतल जल भी कहां था
छिपा था क्या, कहाँ
किसने ढका था
उस पल तो
अगम अतल जल भी कहां था
सृष्टि का कौन है कर्ता?
कर्ता है या विकर्ता?
ऊँचे आकाश में रहता
सदा अध्यक्ष बना रहता
वही सचमुच में जानता
या नहीं भी जानता
है किसी को नहीं पता
नहीं पता
नहीं है पता
नहीं है पता
कर्ता है या विकर्ता?
ऊँचे आकाश में रहता
सदा अध्यक्ष बना रहता
वही सचमुच में जानता
या नहीं भी जानता
है किसी को नहीं पता
नहीं पता
नहीं है पता
नहीं है पता
वो था हिरण्य गर्भ सृष्टि से पहले विद्यमान
वही तो सारे भूत जाति का स्वामी महान
जो है अस्तित्वमान धरती आसमान धारण कर
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर
वही तो सारे भूत जाति का स्वामी महान
जो है अस्तित्वमान धरती आसमान धारण कर
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर
जिस के बल पर तेजोमय है अंबर
पृथ्वी हरी भरी स्थापित स्थिर
स्वर्ग और सूरज भी स्थिर
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर
पृथ्वी हरी भरी स्थापित स्थिर
स्वर्ग और सूरज भी स्थिर
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर
गर्भ में अपने अग्नि धारण कर पैदा कर
व्यापा था जल इधर उधर नीचे ऊपर
जगा जो देवों का एकमेव प्राण बनकर
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर
व्यापा था जल इधर उधर नीचे ऊपर
जगा जो देवों का एकमेव प्राण बनकर
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर
ऊँ! सृष्टि निर्माता, स्वर्ग रचयिता पूर्वज रक्षा कर
सत्य धर्म पालक अतुल जल नियामक रक्षा कर
फैली हैं दिशायें बाहु जैसी उसकी सब में सब पर
ऐसे ही देवता की उपासना करें हम हवि देकर
ऐसे ही देवता की उपासना करें हम हवि देकर…
सत्य धर्म पालक अतुल जल नियामक रक्षा कर
फैली हैं दिशायें बाहु जैसी उसकी सब में सब पर
ऐसे ही देवता की उपासना करें हम हवि देकर
ऐसे ही देवता की उपासना करें हम हवि देकर…
गीत बेशक बड़ा है परंतु आज के संदर्भ में इसे न केवल पढ़ना बल्कि इसका मनन करना भी बेहद आवश्यक हो गया है क्योंकि रुढ़िवादी परंपराएं धर्म धारण करने और धर्म के मार्ग से भटकाने का काम बड़ी तेजी से करती हैं।
-अलकनंदा सिंह