बुधवार, 17 जुलाई 2019

354 A, B, C, D कानून: बीएचयू का मामला, अकेला मामला नहीं है


कोई दूसरा क्‍या मारेगा, जब महिलाऐं स्‍वयं ही अपनी कुल्‍हाड़ियों का बोझ, अपने ही कांधों पर लादे हुए हों,
अपनी सहूलियतों पर स्‍वयं कुठाराघात करने पर आमादा हों और शिकायत ये कि दुनिया हमें क्‍यों सताती है।
यौन उत्‍पीड़न में भी कुछ महिलाओं ने कानूनों का दुरुपयोग करके अत्‍याचार की वास्‍तव में शिकार हुई महिलाओं को भी अविश्‍वास के घेरे में खड़ा कर दिया है। यानि 354 A, B, C, D (यौन उत्पीड़न) कानून का दुरुपयोग कर कुल्‍हाड़ी पर स्‍वयं ही पैर दे मारा है और इसका परिणाम उन सभी महिलाओं को भुगतना होगा जो वास्‍तव में पीड़िता हैं।
बीएचयू का एक वाकया सामने आया है जहां एक शोध छात्रा द्वारा शिक्षा संकाय प्रमुख पर यौन उत्‍पीड़न का आरोप लगाया गया, हालांकि न केवल शिक्षक बल्‍कि साथी छात्रों ने भी इस बात की तसदीक कर दी है कि कम उपस्‍थिति को लेकर दी गई हिदायत छात्रा को हजम नहीं हुई और उसने ये ”विक्‍टिम कार्ड” खेला। अब विश्‍वविद्यालय कुलपति के निर्देश पर मामले की जांच को कमेटी बना दी गई है। 11 जुलाई को डीन ने कमेटी के सामने कहा कि सारा मामला कम उपस्‍थिति का है, क्‍योंकि कुछ छात्र फैलोशिप तो लेते रहते हैं परंतु क्‍लास अटेंड नहीं करते जबकि उक्‍त शोध छात्रा के गाइड तीन साल पहले ही रिटायर हो चुके हैं। जब उपस्‍थिति की जांच की गई और कई बार रिमांइंडर भी दिये गये तो उक्‍त छात्रा ने यौन उत्‍पीड़न मामले में फंसाने की धमकी भी दी। अब उस छात्रा ने कुलपति को पत्र लिखकर शिकायत कर इस मामले को सुर्खियों में ला दिया है।
जांच कमेटी सच का पता लगा लेगी परंतु एक बात निश्‍चित जानिए कि विवि प्रशासन के साथ सास बहु जैसे रिश्‍ते रखने वाले छात्र संघ इसे भुनाने में पीछे नहीं हटेंगे, संभावना इस बात की भी है कि इनके दबाव के बाद छात्रा को कथित ”न्‍याय” मिल भी जाए मगर क्‍या ये सही होगा।
कौन नहीं जानता कि कुछ समय पहले तक दहेज उत्‍पीड़न और दहेज हत्‍या रोकने को बनाया कानून ”दहेज निषेध अधिनियम, 1961” भी अपने ऐसे ही दुरुपयोग के कारण अहमियत खोता गया क्‍योंकि दहेज के बहाने ससुराल पक्ष को धमकाना, प्रताड़ित करना इसका मुख्‍य उद्देश्‍य बन गया। इसीतरह दुष्‍कर्म और यौन उत्‍पीड़न रोकने को आईपीसी की धारा 354 (छेड़खानी), 354 A, B, C, D (यौन उत्पीड़न) और धारा 375 (दुष्कर्म) है परंतु अब देखने में आ रहा है कि महिलाऐं अपना उद्देश्‍य पूरा करने को इन कानूनों का दुरुपयोग धड़ल्‍ले से कर रही हैं क्‍योंकि आईपीसी की धारा 354, 354 A, B, C, D और धारा 375(दुष्कर्म) के प्रावधानों में सिर्फ पुरुष को अपराधी माना गया है और महिला को पीड़िता। इसी प्राविधान का लाभ उठाते हुए कई मामलों में तो पूरे षडयंत्र के तहत परिवारीजन ही इसे प्‍लांट करते हुए पाए गए।
बहरहाल यौन उत्‍पीड़न कानून को अपना हथियार बनाने वाली ऐसी ही महिलायें उन महिलाओं के पैरों पर कुल्‍हाड़ी मारने का काम कर रही हैं जो वास्‍तव में प्रताड़ना की शिकार हैं। बीएचयू जैसी खबरों की बढ़ती तादाद के बाद यौन उत्‍पीड़न मामलों में महिलाओं को लेकर सहानुभूति अब संशय में बदल रही है, यह आत्‍मघाती स्‍थिति महिला हितकारी कानूनों को तहस नहस कर देगी।
-अलकनंदा सिंह

शुक्रवार, 12 जुलाई 2019

कुछ लिखने से पहले…एक दृष्‍टांत

महाभारत का एक दृष्‍टांत है जिसे अकसर हम अपनी बातों में दोहराते हैं और दूसरों को उपदेशात्‍मक शैली में सुनाते भी हैं, मगर सिर्फ दूसरों को, स्‍वयं इसे कितना सूझते-बूझते हैं इससे कोई मतलब नहीं।
ये दृष्‍टांत, श्रीकृष्‍ण और द्रौपदी संवाद से है—-
18 दिन के युद्ध ने, द्रोपदी की उम्र को 80 वर्ष जैसा कर दिया था…शारीरिक रूप से भी और मानसिक रूप से भी!
शहर में चारों तरफ़ विधवाओं का बाहुल्य था..पुरुष इक्का-दुक्का ही दिखाई पड़ता था।
अनाथ बच्चे घूमते दिखाई पड़ते थे और उन सबकी वह महारानी
द्रौपदी हस्तिनापुर के महल में निश्चेष्ट बैठी हुई शून्य को निहार रही थी ।
तभी, श्रीकृष्ण कक्ष में दाखिल होते हैं…
द्रौपदी कृष्ण को देखते ही दौड़कर उनसे लिपट जाती है …
कृष्ण उसके सिर को सहलाते रहते हैं और रोने देते हैं…
थोड़ी देर में, उसे खुद से अलग करके समीप के पलंग पर बैठा देते हैं।
द्रोपदी: यह क्या हो गया सखा ??
ऐसा तो मैंने नहीं सोचा था ।
कृष्ण: नियति बहुत क्रूर होती है पांचाली..
वह हमारे सोचने के अनुरूप नहीं चलती! वह हमारे ”कर्मों को परिणामों में” बदल देती है।
तुम प्रतिशोध लेना चाहती थी ना और, तुम सफल भी हुई, द्रौपदी! तुम्हारा प्रतिशोध पूरा हुआ… सिर्फ दुर्योधन और दुशासन ही नहीं, सारे कौरव समाप्त हो गए! तुम्हें तो प्रसन्न होना चाहिए !
द्रोपदी: सखा, तुम मेरे घावों को सहलाने आए हो या उन पर नमक छिड़कने के लिए ?
कृष्ण: नहीं द्रौपदी, मैं तो तुम्हें वास्तविकता से अवगत कराने के लिए आया हूँ! हमारे कर्मों के परिणाम (अच्‍छे अथवा बुरे) को हम, दूर तक नहीं देख पाते और जब वे हमारे सामने आते हैं, तब तक परिस्‍थितियां बहुत कुछ बदल चुकी होती हैं, तब हमारे हाथ में कुछ नहीं रहता।
द्रोपदी: तो क्या, इस युद्ध के लिए पूर्ण रूप से मैं ही उत्तरदायी हूँ कृष्ण?
कृष्ण: नहीं, द्रौपदी तुम स्वयं को इतना महत्वपूर्ण मत समझो…
लेकिन, तुम अपने कर्मों में थोड़ी सी दूरदर्शिता रखती तो, स्वयं इतना कष्ट कभी नहीं पाती।
द्रोपदी: मैं क्या कर सकती थी कृष्ण?
कृष्ण: तुम बहुत कुछ कर सकती थीं! …जब तुम्हारा स्वयंवर हुआ…तब तुम कर्ण को अपमानित नहीं करती और उसे प्रतियोगिता में भाग लेने का एक अवसर देती तो, शायद परिणाम
कुछ और होते।
इसके बाद जब कुंती ने तुम्हें पाँच पतियों की पत्नी बनने का आदेश दिया…तब तुम उसे स्वीकार नहीं करती तो भी, परिणाम कुछ और होते।
और…
उसके बाद तुमने अपने महल में दुर्योधन को अपमानित किया…
कि अंधों के पुत्र अंधे होते हैं। वह नहीं कहती तो, तुम्हारा चीर हरण नहीं होता…तब भी शायद, परिस्थितियाँ कुछ और होती ।
हमारे शब्द भी
हमारे कर्म होते हैं द्रोपदी…
और, हमें अपने हर शब्द को बोलने से पहले तोलना बहुत ज़रूरी होता है…अन्यथा, उसके दुष्परिणाम सिर्फ़ स्वयं को ही नहीं… अपने पूरे परिवेश को दुखी करते रहते हैं ।
संसार में केवल मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है…जिसका “ज़हर”
उसके “दाँतों” में नहीं, “शब्दों” में है…
द्रोपदी को यह सुनाकर हमें श्रीकृष्‍ण ने वो सीख दे दी जो आएदिन हम गाल बजाते हुए ना तो याद रख पाते हैं और ना ही कोशिश करते हैं। नतीजतन घटनाऐं दुर्घटनाओं में बदल जाती हैं और मामूली सा वादविवाद रक्‍तरंजित सामाजिक क्‍लेश में…
मॉबलिंचिंग और क्‍या है…अपनी वाणी, अपनी आकांक्षाओं की हिंसक परिणति ही ना। जो स्‍वयं कुछ नहीं कर पाते वे भीड़ का सहारा लेते हैं और ऐसे तत्‍व ही समाज और सरकारों की नाक में दम किए हुए हैं। वे सोचते हैं कि जो अपराध वे कर रहे हैं उसे कोई नहीं देख रहा परंतु नियति का बूमरैंग घूमता अवश्‍य है।
बहरहाल आंख मूंदकर स्‍थापित की गईं धारणाओं को बदलने का अब वक्‍त आ गया है। धारणाऐं जैसे कि कोई मां अपने बच्‍चे का बुरा नहीं सोचती, साधु सदैव दूसरों का कल्‍याण चाहता है, अनुसूचित और अल्‍पसंख्‍यक समुदाय हमेशा ‘पीड़ित’ ही होते हैं, बलात्‍कार हमेशा महिला का होता है, कामगार हमेशा शोषित रहता है, बच्‍चे हमेशा सच ही बोलते हैं, शिक्षक हमेशा शिष्‍य को सही शिक्षा देते हैं, डॉक्‍टर सेवाभावी होते हैं, व्‍यवसायी हमेशा चोरी करता है और राजनेता निकृष्‍ट और भ्रष्‍ट होते हैं और अधिकारी ‘बेचारे’…आदि उदाहरण अनेक हैं जो शब्‍दों के सहारे ही अब तक पीड़ित दिखकर पीड़क बनते गए और अब स्‍थिति विस्‍फोटक हो चुकी है।
श्रीकृष्‍ण याद आ रहे हैं…द्रोपदी (जनता) को समझा भी रहे घटनाओं-परिस्‍थितियों के रूप में उदाहरण दे देकर परंतु द्रोपदी आंख-कान-मुंह बंद किए हुए है। हम भी तो देखें कि यह कौन सी महाभारत की नींव रखी जा रही है…।
-अलकनंदा सिंह