कोई दूसरा क्या मारेगा, जब महिलाऐं स्वयं ही अपनी कुल्हाड़ियों का बोझ, अपने ही कांधों पर लादे हुए हों,
अपनी सहूलियतों पर स्वयं कुठाराघात करने पर आमादा हों और शिकायत ये कि दुनिया हमें क्यों सताती है।
अपनी सहूलियतों पर स्वयं कुठाराघात करने पर आमादा हों और शिकायत ये कि दुनिया हमें क्यों सताती है।
यौन उत्पीड़न में भी कुछ महिलाओं ने कानूनों का दुरुपयोग करके अत्याचार की वास्तव में शिकार हुई महिलाओं को भी अविश्वास के घेरे में खड़ा कर दिया है। यानि 354 A, B, C, D (यौन उत्पीड़न) कानून का दुरुपयोग कर कुल्हाड़ी पर स्वयं ही पैर दे मारा है और इसका परिणाम उन सभी महिलाओं को भुगतना होगा जो वास्तव में पीड़िता हैं।
बीएचयू का एक वाकया सामने आया है जहां एक शोध छात्रा द्वारा शिक्षा संकाय प्रमुख पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया गया, हालांकि न केवल शिक्षक बल्कि साथी छात्रों ने भी इस बात की तसदीक कर दी है कि कम उपस्थिति को लेकर दी गई हिदायत छात्रा को हजम नहीं हुई और उसने ये ”विक्टिम कार्ड” खेला। अब विश्वविद्यालय कुलपति के निर्देश पर मामले की जांच को कमेटी बना दी गई है। 11 जुलाई को डीन ने कमेटी के सामने कहा कि सारा मामला कम उपस्थिति का है, क्योंकि कुछ छात्र फैलोशिप तो लेते रहते हैं परंतु क्लास अटेंड नहीं करते जबकि उक्त शोध छात्रा के गाइड तीन साल पहले ही रिटायर हो चुके हैं। जब उपस्थिति की जांच की गई और कई बार रिमांइंडर भी दिये गये तो उक्त छात्रा ने यौन उत्पीड़न मामले में फंसाने की धमकी भी दी। अब उस छात्रा ने कुलपति को पत्र लिखकर शिकायत कर इस मामले को सुर्खियों में ला दिया है।
जांच कमेटी सच का पता लगा लेगी परंतु एक बात निश्चित जानिए कि विवि प्रशासन के साथ सास बहु जैसे रिश्ते रखने वाले छात्र संघ इसे भुनाने में पीछे नहीं हटेंगे, संभावना इस बात की भी है कि इनके दबाव के बाद छात्रा को कथित ”न्याय” मिल भी जाए मगर क्या ये सही होगा।
कौन नहीं जानता कि कुछ समय पहले तक दहेज उत्पीड़न और दहेज हत्या रोकने को बनाया कानून ”दहेज निषेध अधिनियम, 1961” भी अपने ऐसे ही दुरुपयोग के कारण अहमियत खोता गया क्योंकि दहेज के बहाने ससुराल पक्ष को धमकाना, प्रताड़ित करना इसका मुख्य उद्देश्य बन गया। इसीतरह दुष्कर्म और यौन उत्पीड़न रोकने को आईपीसी की धारा 354 (छेड़खानी), 354 A, B, C, D (यौन उत्पीड़न) और धारा 375 (दुष्कर्म) है परंतु अब देखने में आ रहा है कि महिलाऐं अपना उद्देश्य पूरा करने को इन कानूनों का दुरुपयोग धड़ल्ले से कर रही हैं क्योंकि आईपीसी की धारा 354, 354 A, B, C, D और धारा 375(दुष्कर्म) के प्रावधानों में सिर्फ पुरुष को अपराधी माना गया है और महिला को पीड़िता। इसी प्राविधान का लाभ उठाते हुए कई मामलों में तो पूरे षडयंत्र के तहत परिवारीजन ही इसे प्लांट करते हुए पाए गए।
बहरहाल यौन उत्पीड़न कानून को अपना हथियार बनाने वाली ऐसी ही महिलायें उन महिलाओं के पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का काम कर रही हैं जो वास्तव में प्रताड़ना की शिकार हैं। बीएचयू जैसी खबरों की बढ़ती तादाद के बाद यौन उत्पीड़न मामलों में महिलाओं को लेकर सहानुभूति अब संशय में बदल रही है, यह आत्मघाती स्थिति महिला हितकारी कानूनों को तहस नहस कर देगी।
-अलकनंदा सिंह