लव मैरिज, मनचाहा प्यार, वशीकरण, गृहक्लेश, जादूटोना, विदेश यात्रा, कारोबार में रुकावट, शादी में अड़चन, रूठों को मनाना, कोख में बाधा, किया कराया, पति पत्नी में अनबन, सौतन व दुश्मनी से छुटकारा, संतान प्राप्ति, मुठकरनी, A to Z समस्याओं का हल पाएं…सही काम एक ही नाम…दुआ भी तकदीर बदल देती है…हम कहते नहीं, करके दिखाते हैं….बाबा मिर्जाखान जी बंगाली। यह दावा है उस पैम्फलेट का जो अखबार के साथ आया था।
इसके आगे लिखा है- अगर मेरी एक आंख की रोशनी मुसलमान भाई हैं तो दूसरी आंख की रोशनी हिन्दू भाई हैं। पैम्फलेट में नीचे दोनों ओर शिरडी के साईं का फोटो भी है।
और हिदायतन साथ में ये भी लिखा था कि मन में सच्ची श्रद्धा लेकर ही फोन करें। हमारी एक कॉल ”आपकी” किस्मत बदल सकती है।
इसके भी ठीक नीचे दो सेलफोन नं. लिखे थे जिन पर ”समस्याग्रस्तों” को निजात दिलाई जानी है।
इसके आगे लिखा है- अगर मेरी एक आंख की रोशनी मुसलमान भाई हैं तो दूसरी आंख की रोशनी हिन्दू भाई हैं। पैम्फलेट में नीचे दोनों ओर शिरडी के साईं का फोटो भी है।
और हिदायतन साथ में ये भी लिखा था कि मन में सच्ची श्रद्धा लेकर ही फोन करें। हमारी एक कॉल ”आपकी” किस्मत बदल सकती है।
इसके भी ठीक नीचे दो सेलफोन नं. लिखे थे जिन पर ”समस्याग्रस्तों” को निजात दिलाई जानी है।
12×8 इंच का पीले-गुलाबी रंग के जर्जर कागज पर छपा पैमफ्लेट उन सभी समाज सुधारकों, अंधश्रद्धामूलकों, आंतरिक सुरक्षा एजेंसियों, कानून-व्यवस्था देखने वालों, समाज को भयमुक्त कराने वालों के प्रयासों पर हावी होने का भरपूर प्रयास करता दिख रहा है।
इसका यह प्रयास अगर कुछ प्रतिशत भी सफल होता है तो निश्चित जानिए फिर इस पैम्फलेट वाले ”बाबा मिर्जाखान जी बंगाली” को ”बाबा राम रहीम” बनने से कौन रोक सकता है। समय लग सकता है मगर ये प्रक्रिया सतत चलती रहेगी क्योंकि व्यक्ति बैठे-बिठाए समस्या का निराकरण किए जाने का लालच और ”अंधभक्ति की आदत” उन्हें किसी न किसी बाबा के ”फेरे” लगाने को उनके ”ठिकानों” पर लाती ही रहेगी।
एक और उदाहरण देती हूं-
हमारे ब्रज में ”टटलुओं” का बड़ा आतंक है, ग्रामीण क्षेत्रों के ”निकम्मे” (इन्हें बेराजगार न समझा जाए) और आपराधिक प्रवृत्ति वाले हट्टे-कट्टे युवकों द्वारा सेल-परचेज वेबसाइट ओएलएक्स पर विज्ञापन देकर गुजरात-महाराष्ट्र-दक्षिणी प्रदेशों के लोगों को ”सस्ती कार” या ”सस्ती सोने की ईंट” देने का झांसा दिया जाता है, विज्ञापन देखकर लोग आते भी हैं और इनके जाल में फंसते भी हैं, गिरि गोवर्धन का क्षेत्र तो इन टटलुओं की पूरी तरह गिरफ्त में हैं जो उत्तरप्रदेश-राजस्थान-हरियाणा तीन प्रदेशों की सीमाओं को कवर करता है। कई बार सीमाक्षेत्र का विवाद इन्हें निष्कंटक अपना टारगेट पूरा करने में सहायक होता है। कोई दिन ऐसा नहीं जाता जब पुलिस इन्हें लेकर शिकायतों और कार्यवाहियों से रूबरू न होती हो। यात्रियों को सावधान करने के लिए गोवर्धन क्षेत्र में पुलिस ने एहतियातन होर्डिंग्स भी लगवाए, प्रचार भी कराया मगर सब नाकाफी। फिलहाल टटलू सिंडीकेट अपना जलवा कायम रखे हुए आगे ही बढ़ रहा है क्योंकि फंसने वालों के लालच को कम करने का पुलिस के पास कोई उपाय नहीं है जबकि टटलुओं के पास चुग्गा फेंकने के तमाम साधन हैं। ऑनलाइन साधन इसमें इजाफा ही कर रहे हैं।
इन बेरोजगार ठगों का जाल पूरी रिसर्च के साथ फैलाया जाता है, जो व्यक्ति फंसता दिखता है उसे पहले फोन से यहां बुलाया जाता है ”माल दिखाने” के लिए फिर निश्चित दूरी पर खड़े टटलू गिरोह के सदस्य उसे पहले बातों में फिर धमकियों से डिमॉरलाइज करके उसे लूटकर भाग जाते हैं, घटना की आखिरी कड़ी ये होती है कि शिकार थाने में मुंह लटकाए कानून-व्यवस्था को कोस रहा होता है। निश्चित ही आमजन की सुरक्षा पुलिस का दायित्व है मगर शिकार हुए कथित ”भोले भाले” व्यक्ति को उसके ”अपने लालच” से कौन बचाएगा। तो क्या पुलिस को अब इसके लिए भी रिहैब सेंटर्स खोलने चाहिए। इनसे बचने को जो जागरूकता चाहिए वो किसी बाबा या सुरक्षा एजेंसी अथवा सरकार के सिखाए से नहीं स्वयं के सोचने से आएगी। टटलुओं के शिकार होने वाले सभी शिक्षित होते हैं, इसलिए इन्हें ”निरीह शिकार” मानकर और इन पर रहम खाकर हम इनके लालच को पोषित कर रहे हैं, इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं। और ये पोषित लालच ही आगे कहीं किसी बाबा के चक्कर में नहीं फंसेगा, ये कैसे कहा जा सकता है।
क्या आप समझते हैं कि ये भय और भावनाओं के इस मायाजाल में सिर्फ आर्थिक व मानसिक रूप से कमजोर ही फंसते हैं, ऐसा नहीं है। इनका टारगेट सिर्फ वे लोग ही होते हैं जो ऊपर लिखे गए पैम्फलेट में बाबा मिर्जाखान जी बंगाली के टारगेट होंगे। हो सकता है कि शिकायत किए जाने पर पुलिस बाबा मिर्जाखान बंगाली को कब्जे में ले ले मगर फिर और कोई बाबा मिर्जाखान बंगाली या बाबा रामरहीम अपना साम्राज्य नहीं फैलाएगा, इसकी कोई गारंटी नहीं।
ये भय और भावनाओं का कॉकटेल है जो समाज से ही उठता है और समाज में ही धन, संतान, व्यापार तथा संपत्ति के ”लालचियों” को अपने कब्जे में ले लेता है, ये शिकारी ठग चाहे वो बाबा मिर्जाखान जी बंगाली हो, रामहीम हो, आसाराम बापू हो या फिर ब्रजक्षेत्र के टटलू हो ”लालच” को तलाशते हैं तराशते हैं और फिर वही होता है जो डेरा सच्चा सौदा में होता रहा या आगे भी किसी ”अड्डे” पर होता दिख जाएगा। सच ये भी है कि इन टटलुओं की आकार, रूप, रंग और जगह बदल सकती है मगर इनका वजूद खत्म नहीं होगा। इनके कुकृत्यों के प्रति सचेत रहना ही बस एकमात्र उपाय है।
जो बाबा लव मैरिज, मनचाहा प्यार , वशीकरण, गृहक्लेश, जादूटोना, विदेश यात्रा, कारोबार में रुकावट,शादी में अड़चन, रूठों को मनाना, कोख में बाधा, किया कराया, पति पत्नी में अनबन, सौतन व दुश्मनी से छुटकारा, संतान प्राप्ति, मुठकरनी, A to Z समस्याओं से निजात दिलाने को कुछ पैम्फलेट छपवा कर स्वयं का विज्ञापन करने को बाध्य है, वो आमजन की समस्याओं को दूर करने का ठेका ले रहा है, आखिर कैसे।
समाज में किसी भी अनजान गतिविधि पर जब प्रश्न उठना बंद हो जाते हैं, जब लोग अंधश्रद्धा या अंधभक्ति की ओर मुड़ते हैं तब बाबाओं के डेरे ऐसे ही हमें ठगने को तैयार दिखते हैं ये ठग हमारा टटलू काटने से बाज नहीं आते। तो आप भी अपने आसपास कौन, कैसे, क्यों, कहां,कब, किसलिए जैसे प्रश्नों को संचारित करें ताकि फिर कोई बाबा हमें हमारे समाज को बेवकूफ ना बना सके, फिर कोई ठगी ना कर सके।
-अलकनंदा सिंह