कभी कवि रामधारी सिंह "दिनकर" ने कलम का महत्व बताते हुए लिखा था-
दो में से क्या तुम्हें चाहिए कलम या कि तलवार
मन में ऊँचे भाव कि तन में शक्ति विजय अपार
अंध कक्ष में बैठ रचोगे ऊँचे मीठे गान
या तलवार पकड़ जीतोगे बाहर का मैदान
कलम देश की बड़ी शक्ति है भाव जगाने वाली,
दिल की नहीं दिमागों में भी आग लगाने वाली
पैदा करती कलम विचारों के जलते अंगारे,
और प्रज्वलित प्राण देश क्या कभी मरेगा मारे
इस कविता को लिखते हुए तब के खालिस देसी समय में दिनकर जी को यह कहां पता था कि अब कलम की जगह वो फॉन्ट ले लेंगे, जो एक तलवार तो क्या हजारों हजारों तलवारों को एक साथ काट देंगे। दिनकर जी को तो तब यह भी कहां पता था कि इन फॉन्ट्स की दुनिया अधूरे और बेहाल से एक देश के प्रधानमंत्री को न सिर्फ नाकाबिल करार दे देगी बल्कि उसे सपरिवार जेल की ओर धकेल देगी। जी हां, ये है आज की कलम यानि फॉन्ट की ताकत।
अब देखिए ना पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को इसी फॉन्ट की ताकत ने आज ज़मीं पर ला पटका, इस फॉन्ट का नाम है ''कैलिबरी''। फॉन्ट की इस ताकत को देखकर आज 21वीं सदी के डिजिटल युग में कहा जा सकता है कि अब तलवार से ज्यादा शक्तिशाली फॉन्ट है।
आज पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने करोड़ों रुपये के बहुचर्चित पनामागेट मामले में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की संपत्ति की जांच के बाद संयुक्त जांच समिति (JIT) की रिपोर्ट के आधार पर शरीफ और वित्त मंत्री इशाक डार को अयोग्य करार दे दिया, शरीफ को इसके बाद अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।
हुआ यूं कि पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित JIT को मरियम शरीफ ने जाली दस्तावेजों के जरिए गुमराह करने की कोशिश की थी। मरियम ने पनामागेट से संबंधित जो दस्तावेज भेजे थे, वो कैलिबरी फॉन्ट में टाइप थे और दस्तावेजों में तारीख 31 जनवरी 2007 के पहले की थी जबकि कैलिबरी फॉन्ट 31 जनवरी 2007 से पहले व्यावसायिक प्रयोग के लिए उपलब्ध ही नहीं था। तब जेआईटी द्वारा संदेह जताए जाने के बाद सोशल मीडिया में मरियम नवाज शरीफ की जमकर आलोचना भी हुई। कहा जाने लगा कि बेटी की एक गलती ने बाप को कहीं का नहीं छोड़ा एक ट्विटर यूजर ने जेआईटी के बयान के स्क्रीन शॉट भी लगाए जिस पर विवाद उठ खड़ा हुआ था, और नतीज़ा आज दुनिया के सामने है।
क्या है कैलिबरी फॉन्ट
कैलिबरी फॉन्ट के चर्चा में आने का रोचक इतिहास है। इसमें रियल इटैलिक्स, स्माल कैप्स और मल्टीपल न्यूमरल सेट होता है। वार्म एंड सॉफ्ट कैलिबरी को 2004 में लुकास डी ग्रूट ने डिजाइन किया था। एमएस ऑफिस 2007 और विंडोज विस्टा के लांच के मौके पर कैलिबरी आम लोगों को 31 जनवरी 2007 को उपलब्ध हुआ। एमएस वर्ड में टाइम्स न्यू रोमन और माइक्रो सॉफ्ट पावर प्वाइंट, एक्सेल, आउट लुक और वर्डपैड में एरियल की जगह डिफॉल्ट के तौर पर कैलिबरी ने जगह ली। स्क्रीन पर दमदार दिखने वाले कैलिबरी फॉन्ट का एमएस ऑफिस के सभी वर्जन 2016 तक इस्तेमाल करते रहे।
कुल मिलाकर हुआ ये कि पनामा की लॉ फर्म मोसेक फोंसेका के खुफिया दस्तावेज लीक होने और आज सुबह तक पनामागेट के आफ्टर इफेक्ट में कैलिबरी फॉन्ट ने अपना नाम ऐतिहासिक रूप से दर्ज करा लिया। जो कैलिबरी फॉन्ट अभी तक सिर्फ डिजिटल वर्क के लिए प्रयोग किया जाता था, अब उसे एक देश के प्रधानमंत्री को अपदस्थ करने के लिए याद किया जाएगा। इसीलिए आज दिन भर ट्विटर पर चलता रहा In #Pakistan, Calibri is the font of democracy #NawazSharif.
कवि रामधारी सिंह दिनकर तो कलम की ताकत का महत्व तलवार से ज्यादा बता गए मगर आज डिजिटल युग में कलम को फॉन्ट ने जिस तरह रिप्लेस किया है, वह कम से कम पाकिस्तान के लिए तो ऐतिहासिक बन ही गया।
पाकिस्तान ही क्यों, आज यह पूरे विश्व का सच है।
बदलते वक्त ने यूं भी आज कलम और हाथ का संबंध लगभग खत्म सा कर दिया है। लिखने वाले किसी भी पेशे में अब कलम की जगह कंम्यूटर और उससे उभरे विभिन्न फॉन्ट का ही इस्तेमाल होता है। लिखने-लिखाने की आदत तो अब सिर्फ उन लोगों तक सीमित रह गई है जिन्हें कंम्यूटर का प्रयोग करना नहीं आता अन्यथा हाथ से लिखना अब समय की बर्बादी लगती है।
बहरहाल, नवाज शरीफ की बेटी को भी यह इल्म नहीं रहा होगा कि एक अदद फॉन्ट की किस्म उनके पूरे परिवार पर कितनी भारी पड़ने वाली है। यदि उसे ये इल्म रहा होता तो वह किसी कब्र में पैर लटकाकर बैठे मुंशी से ही वो दस्तावेज तैयार कराकर कोर्ट के सामने लाती। हो सकता है कि आज वो मुंशी कोर्ट में गवाही के लिए मौजूद ही नहीं होता, और होता भी तो उसे खरीदा जा सकता था।
मुंशी की हैंडराइटिंग काफी मुफीद साबित हो सकती थी किंतु अब फॉन्ट का क्या करें। वह तो ऐसी गवाही भी है और सुबूत भी जो मियां नवाज को पूरे परिवार सहित ले डूबा। हो सकता है कि इस दौर के कवि या कथाकार अब फॉन्ट की असीमित ताकत को भी अपनी रचनाओं का हिस्सा बनाने पर विचार करें।
-सुमित्रा सिंह चतुर्वेदी