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बुधवार, 26 फ़रवरी 2025
#MahaShivratri : शिव का नटराज चित्रण एक कॉस्मिक नर्तक का रूप है
शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2025
सलाम सोलंकी जी, आप हो इस देश के हीरो
"आसाराम को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने वाले वकील पी .सी. सोलंकी के इस आत्मकथन को पढ़कर मेरे रोयें खड़े हो गए, समझ आया कि ये देश किसके सहारे चल रहा है।
सलाम सोलंकी जी, आप हो इस देश के हीरो!
(और जो हीरो नहीं है उनके नाम जानने हों तो उन नामी गिरामी वकीलों की लिस्ट पढ़ लेना जिन्होंने आसाराम की पैरवी की)
15 मिनट में जज ने अपना फैसला सुना दिया था. वो 15 मिनट मेरी जिंदगी के सबसे भारी 15 मिनट थे. एक-एक पल जैसे पहाड़ की तरह बीत रहा था. पूरे समय मेरी आंखों के सामने पीड़िता और उसके पिता का चेहरा घूमता रहा.जज जब फैसला सुनाकर उठे तो लोग मुझे बधाइयां देने लगे. मेरा गला रुंध गया था. मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी. मैं वकील हूं, मुकदमे लड़ना, कोर्ट में पेश होना मेरा पेशा है. लेकिन जिंदगी में आखिर कितने ऐसे मौके आते हैं, जब आपको लगे कि आपके होने का कोई अर्थ है. उस क्षण मुझे लगा था कि मेरे होने का कुछ अर्थ है. मेरा जीवन सार्थक हो गया.मेरा जन्म राजस्थान के एक साधारण परिवार में हुआ था. घर में तीन बहनें थीं और आर्थिक तंगी. पिता रेलवे में मैकेनिक थे.मैंने भी बचपन से सिलाई का काम किया है. मां एक दिन में 30-40 शर्ट सिलती थीं. पिता बेहद साधारण थे और मां अनपढ़. लेकिन दोनों की एक ही जिद थी कि बच्चों को पढ़ाना है और सिर्फ लड़के को नहीं, लड़कियों को भी. मेरी तीनों बहनों ने आज से 30 साल पहले पोस्ट ग्रेजुएशन किया और नौकरी की. मेरी एक बहन नर्स और एक टीचर है.जब मैंने इस पेशे में आने का फैसला किया तो मेरे गुरु ने कहा था कि वकालत बहुत जिम्मेदारी का काम है. इस पेशे की छवि समाज में बहुत अच्छी नहीं, लेकिन अपनी छवि हम खुद बनाते हैं और अपनी राह खुद चुनते हैं. हमेशा ऐसे काम करना कि सिर उठाकर चल सको और किसी से डरना न पड़े.
जब मैंने आसाराम के खिलाफ पीडि़ता की तरफ से यह मुकदमा लड़ने का फैसला किया तो बहुत धमकियां मिलीं. पैसों का लालच दिया गया. तमाम कोशिशें हुईं कि किसी भी तरह मैं ये मुकदमा छोड़ दूं. लेकिन हर बार मुझे वह दिन याद आता, जब पीड़िता के पिता पहली बार मुझसे मिलने कोर्ट आए थे. साथ में वो लड़की थी. बेहद शांत, सौम्य और बुद्धिमान. उसकी आंखें गंभीर थीं और चेहरे पर बहुत दर्द. पिता बेहद निरीह थे, लेकिन इस दृढ़ निश्चय से भरे हुए कि उन्हें यह लड़ाई लड़नी ही है.मैं यह लड़ाई इसलिए लड़ पाया क्योंकि पीड़िता और उसका परिवार एक क्षण के लिए अपने फैसले से डिगा नहीं. लड़की ने बहुत बहादुरी से कोर्ट में खड़े होकर बयान दिया. 94 पन्नों में उसका बयान दर्ज है. तकलीफ बहुत थी, लेकिन वो पर्वत की तरह अटल रही. लड़की की मां 19 दिनों तक कोर्ट में खड़ी रही और 80 पन्नों में उनका बयान दर्ज हुआ. पिता रोते रहे और बोलते रहे. 56 पन्नों में उनका बयान दर्ज हुआ.जब एक बेहद साधारण सा परिवार इतने ताकतवर आदमी के खिलाफ इस तरह अटल खड़ा था तो मैं कैसे हार मान सकता था. 2014 में जिस दिन वकालतनामे पर साइन किया, उस दिन के बाद से यह मुकदमा ही मेरी जिंदगी हो गया.
साढ़े चार साल ट्रायल चला. इन साढ़े चार सालों में मैं रोज कोर्ट गया. 8 बार सुप्रीम कोर्ट में पेशी हुई. 1000 बार से ज्यादा ट्रायल कोर्ट में पेश हुआ.जितना मामूली पीड़िता का परिवार था, उतना ही मामूली वकील था मैं. इस तरफ मैं था और दूसरी तरफ थे देश की राजधानी में बैठे कद्दावर वकील. सबसे पहले आसाराम को जमानत दिलवाने के लिए आए राम जेठमलानी. जमानत याचिका रद्द हो गई. फिर आए केटीएस तुलसी, लेकिन आसाराम को कोई राहत नहीं मिली. फिर आए सुब्रमण्यम स्वामी. न्यायालय में 40 मिनट तक इंतजार किया, लेकिन फैसला हमारे पक्ष में आया. फिर आए राजू रामचंद्रन लेकिन जमानत याचिका फिर खारिज हो गई. सिद्धार्थ लूथरा ने अभियुक्त की तरफ से कोर्ट में पैरवी की. इस केस में आसाराम की तरफ से देश का तकरीबन हर बड़ा वकील पेश हुआ. पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने आसाराम की पैरवी की. सुप्रीम कोर्ट के जज यूयू ललित आए. सलमान खुर्शीद, सोली सोराबजी, विकास सिंह, एसके जैन, सबने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया. तीन बार सुप्रीम कोर्ट से आसाराम की जमानत याचिका खारिज हुई. कुल छह बार अभियुक्त ने जमानत की कोशिश की और हर बार फैसला हमारे पक्ष में आया.
लोग कहते हैं, तुम्हें डर नहीं लगता. मैं कहता हूं, मेरी 80 साल की मां और 85 साल के पिता को भी डर नहीं लगता. जब आप सच के साथ होते हैं तो मन, शरीर सब एक रहस्यमय ऊर्जा से भर जाता है. सत्य में बड़ा बल है. आत्मा की शक्ति से बड़ी कोई शक्ति नहीं. उनके पास धन, वैभव, सियासत का बल था, मैं अपनी आत्मा के बल पर खड़ा रहा. मेरा परिवार मेरे साथ था. मेरी मां पढ़ी-लिखी नहीं हैं. वे बस इतना समझती हैं कि एक आदमी ने गलत किया. बच्ची को न्याय मिले. मुझे सच की लड़ाई लड़ता देख मेरे पिता की बूढ़ी आंखों में गर्व की चमक दिखाई देती है. वे मुझसे भी ज्यादा निडर हैं. 85 साल की उम्र में भी बिलकुल स्वस्थ. तीन मंजिला मकान की अकेले सफाई करते हैं. पत्नी खुश है कि मैं एक लड़की के हक के लिए लड़ा.
(यह लेख पी.सी. सोलंकी के साथ बातचीत पर आधारित है.)
25 हजार करोड़ की संपत्ति के मालिक आसाराम जितना खरीद सकते थे खरीद रहे थे।
उन दिनों सारा हिंदुत्व इसे अंतरराष्ट्रीय साजिश के तहत सनातन संस्कृति पर हमला बता रहा था। पीड़िता और पीड़िता के पिता के पहले मददगार बने, एसीपी लांबा और दूसरे वकील पीसी सोलंकी।
आसाराम के गुर्गो बनाम भक्तों द्वारा अनेक गवाहों पर जानलेवा हमले करते हुए उन्हें मौत के घाट उतार देने के बावजूद पीसी सोलंकी हिमालय की तरह अटल रहे।
इन्हें हृदय से नमन
साभार:
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मंगलवार, 4 फ़रवरी 2025
आज नर्मदा जयंती पर... चिरकुंवारी नर्मदा की अधूरी प्रेम-कथा पढ़िये... श्याम सुन्दर भट्ट की कलम से
कहते हैं नर्मदा ने अपने प्रेमी शोणभद्र से धोखा खाने के बाद आजीवन कुंवारी रहने का फैसला किया लेकिन क्या सचमुच वह गुस्से की आग में चिरकुवांरी बनी रही या फिर प्रेमी शोणभद्र को दंडित करने का यही बेहतर उपाय लगा कि आत्मनिर्वासन की पीड़ा को पीते हुए स्वयं पर ही आघात किया जाए। नर्मदा की प्रेम-कथा लोकगीतों और लोककथाओं में अलग-अलग मिलती है लेकिन हर कथा का अंत कमोबेश वही कि शोणभद्र के नर्मदा की दासी जुहिला के साथ संबंधों के चलते नर्मदा ने अपना मुंह मोड़ लिया और उलटी दिशा में चल पड़ीं।
सत्य और कथ्य का मिलन देखिए कि नर्मदा नदी विपरीत दिशा में ही बहती दिखाई देती है।
यथार्थ में नर्मदा, सोन, और महानदी तीनों त्रिकूट पर्वत के तीन शिखरों से जन्म लेती हैं। इनके उद्गम स्थल की आपसी दूरी बहुत कम है परंतु महानदी पूर्व में बहते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है । सोन जिसे सोनभद्र कहते हैं वह उत्तर में बहती है और गंगा में मिल जाती है । और नर्मदा इन सबसे अलग पश्चिम में बहती है ।और अरब सागर में मिलती है ।
नर्मदा की सहायक नदियां भी छोटी-छोटी हैं और यह विंध्याचल और सतपुड़ा के बीच में अपनी घाटी बनाती हुई बहती है ।
इस भौगोलिक तथ्यों को ही विभिन्न कथाओं में प्रतीकों के माध्यम से बताया गया हैं
नर्मदा और सोन एक स्थान पर तो बहुत निकट है और शायद यह उसे देखकर ही या कहा जाता है कि नर्मदा सोन से मिलने आ रही थी ।और जुहेला को उसके साथ देख कर पलट गई ।
जोहेला एक छोटी नदी है जो उसी स्थान पर सोन से मिलती है जहां नर्मदा बहुत निकट है।।
कथा 1 : नर्मदा और शोण भद्र की शादी होने वाली थी। विवाह मंडप में बैठने से ठीक एन वक्त पर नर्मदा को पता चला कि शोण भद्र की दिलचस्पी उसकी दासी जुहिला(यह आदिवासी नदी मंडला के पास बहती है) में अधिक है। प्रतिष्ठत कुल की नर्मदा यह अपमान सहन ना कर सकी और मंडप छोड़कर उलटी दिशा में चली गई। शोण भद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह भी नर्मदा के पीछे भागा यह गुहार लगाते हुए' लौट आओ नर्मदा'... लेकिन नर्मदा को नहीं लौटना था सो वह नहीं लौटी।
अब आप कथा का भौगोलिक सत्य देखिए कि सचमुच नर्मदा भारतीय प्रायद्वीप की दो प्रमुख नदियों गंगा और गोदावरी से विपरीत दिशा में बहती है यानी पूर्व से पश्चिम की ओर। कहते हैं आज भी नर्मदा एक बिंदू विशेष से शोण भद्र से अलग होती दिखाई पड़ती है। कथा की फलश्रुति यह भी है कि नर्मदा को इसीलिए चिरकुंवारी नदी कहा गया है और ग्रहों के किसी विशेष मेल पर स्वयं गंगा नदी भी यहां स्नान करने आती है। इस नदी को गंगा से भी पवित्र माना गया है।
मत्स्यपुराण में नर्मदा की महिमा इस तरह वर्णित है -‘कनखल क्षेत्र में गंगा पवित्र है और कुरुक्षेत्र में सरस्वती। परन्तु गांव हो चाहे वन, नर्मदा सर्वत्र पवित्र है। यमुना का जल एक सप्ताह में, सरस्वती का तीन दिन में, गंगाजल उसी दिन और नर्मदा का जल उसी क्षण पवित्र कर देता है।’ एक अन्य प्राचीन ग्रन्थ में सप्त सरिताओं का गुणगान इस तरह है।
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदा सिन्धु कावेरी जलेSस्मिन सन्निधिं कुरु।।
कथा 2 : इस कथा में नर्मदा को रेवा नदी और शोणभद्र को सोनभद्र के नाम से जाना गया है। नद यानी नदी का पुरुष रूप। (ब्रह्मपुत्र भी नदी नहीं 'नद' ही कहा जाता है।) बहरहाल यह कथा बताती है कि राजकुमारी नर्मदा राजा मेखल की पुत्री थी। राजा मेखल ने अपनी अत्यंत रूपसी पुत्री के लिए यह तय किया कि जो राजकुमार गुलबकावली के दुर्लभ पुष्प उनकी पुत्री के लिए लाएगा वे अपनी पुत्री का विवाह उसी के साथ संपन्न करेंगे। राजकुमार सोनभद्र गुलबकावली के फूल ले आए अत: उनसे राजकुमारी नर्मदा का विवाह तय हुआ।
नर्मदा अब तक सोनभद्र के दर्शन ना कर सकी थी लेकिन उसके रूप, यौवन और पराक्रम की कथाएं सुनकर मन ही मन वह भी उसे चाहने लगी। विवाह होने में कुछ दिन शेष थे लेकिन नर्मदा से रहा ना गया उसने अपनी दासी जुहिला के हाथों प्रेम संदेश भेजने की सोची। जुहिला को सुझी ठिठोली। उसने राजकुमारी से उसके वस्त्राभूषण मांगे और चल पड़ी राजकुमार से मिलने। सोनभद्र के पास पहुंची तो राजकुमार सोनभद्र उसे ही नर्मदा समझने की भूल कर बैठा। जुहिला की नियत में भी खोट आ गया। राजकुमार के प्रणय-निवेदन को वह ठुकरा ना सकी। इधर नर्मदा का सब्र का बांध टूटने लगा। दासी जुहिला के आने में देरी हुई तो वह स्वयं चल पड़ी सोनभद्र से मिलने।
वहां पहुंचने पर सोनभद्र और जुहिला को साथ देखकर वह अपमान की भीषण आग में जल उठीं। तुरंत वहां से उल्टी दिशा में चल पड़ी फिर कभी ना लौटने के लिए। सोनभद्र अपनी गलती पर पछताता रहा लेकिन स्वाभिमान और विद्रोह की प्रतीक बनी नर्मदा पलट कर नहीं आई।
अब इस कथा का भौगोलिक सत्य देखिए कि जैसिंहनगर के ग्राम बरहा के निकट जुहिला (इस नदी को दुषित नदी माना जाता है, पवित्र नदियों में इसे शामिल नहीं किया जाता) का सोनभद्र नद से वाम-पार्श्व में दशरथ घाट पर संगम होता है और कथा में रूठी राजकुमारी नर्मदा कुंवारी और अकेली उल्टी दिशा में बहती दिखाई देती है। रानी और दासी के राजवस्त्र बदलने की कथा इलाहाबाद के पूर्वी भाग में आज भी प्रचलित है।
कथा 3 : कई हजारों वर्ष पहले की बात है। नर्मदा जी नदी बनकर जन्मीं। सोनभद्र नद बनकर जन्मा। दोनों के घर पास थे। दोनों अमरकंट की पहाड़ियों में घुटनों के बल चलते। चिढ़ते-चिढ़ाते। हंसते-रुठते। दोनों का बचपन खत्म हुआ। दोनों किशोर हुए। लगाव और बढ़ने लगा। गुफाओं, पहाड़ियों में ऋषि-मुनि व संतों ने डेरे डाले। चारों ओर यज्ञ-पूजन होने लगा। पूरे पर्वत में हवन की पवित्र समिधाओं से वातावरण सुगंधित होने लगा। इसी पावन माहौल में दोनों जवान हुए। उन दोनों ने कसमें खाई। जीवन भर एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ने की। एक-दूसरे को धोखा नहीं देने की।
एक दिन अचानक रास्ते में सोनभद्र ने सामने नर्मदा की सखी जुहिला नदी आ धमकी। सोलह श्रृंगार किए हुए, वन का सौन्दर्य लिए वह भी नवयुवती थी। उसने अपनी अदाओं से सोनभद्र को भी मोह लिया। सोनभद्र अपनी बाल सखी नर्मदा को भूल गया। जुहिला को भी अपनी सखी के प्यार पर डोरे डालते लाज ना आई। नर्मदा ने बहुत कोशिश की सोनभद्र को समझाने की। लेकिन सोनभद्र तो जैसे जुहिला के लिए बावरा हो गया था।
नर्मदा ने किसी ऐसे ही असहनीय क्षण में निर्णय लिया कि ऐसे धोखेबाज के साथ से अच्छा है इसे छोड़कर चल देना। कहते हैं तभी से नर्मदा ने अपनी दिशा बदल ली। सोनभद्र और जुहिला ने नर्मदा को जाते देखा। सोनभद्र को दुख हुआ। बचपन की सखी उसे छोड़कर जा रही थी। उसने पुकारा- 'न...र...म...दा...रूक जाओ, लौट आओ नर्मदा।
लेकिन नर्मदा जी ने हमेशा कुंवारी रहने का प्रण कर लिया। युवावस्था में ही सन्यासिनी बन गई। रास्ते में घनघोर पहाड़ियां आईं। हरे-भरे जंगल आए। पर वह रास्ता बनाती चली गईं। कल-कल छल-छल का शोर करती बढ़ती गईं। मंडला के आदिमजनों के इलाके में पहुंचीं। कहते हैं आज भी नर्मदा की परिक्रमा में कहीं-कहीं नर्मदा का करूण विलाप सुनाई पड़ता है।
नर्मदा ने बंगाल सागर की यात्रा छोड़ी और अरब सागर की ओर दौड़ीं। भौगोलिक तथ्य देखिए कि हमारे देश की सभी बड़ी नदियां बंगाल सागर में मिलती हैं लेकिन गुस्से के कारण नर्मदा अरब सागर में समा गई।
नर्मदा की कथा जनमानस में कई रूपों में प्रचलित है लेकिन चिरकुवांरी नर्मदा का सात्विक सौन्दर्य, चारित्रिक तेज और भावनात्मक उफान नर्मदा परिक्रमा के दौरान हर संवेदनशील मन महसूस करता है। कहने को वह नदी रूप में है लेकिन चाहे-अनचाहे भक्त-गण उनका मानवीयकरण कर ही लेते है।
पौराणिक कथा और यथार्थ के भौगोलिक सत्य का सुंदर सम्मिलन उनकी इस भावना को बल प्रदान करता है और वे कह उठते हैं नमामि देवी नर्मदे.... !
साभार: श्याम सुन्दर भट्ट