बुधवार, 24 जुलाई 2024

बड़े धोखे हैं इस राह में...IAS, IPS बनने के लिए ऐसे उड़ाते हैं आरक्षण के न‍ियमों की धज्ज‍ियां

यूपीएससी सिविल सर्विसेस की तैयारी कराने वाले लोकप्रिय IAS मेंटर विकास दिव्यकीर्ति ने बड़े चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। खुद सिविल सर्वेंट रह चुके Vikas Divyakirti ने एएनआई को दिए इंटरव्यू में बताया कि कैसे आईएएस, आईपीएस बनने के लिए यूपीएससी कैंडिडेट्स सरकार की नीतियों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। हालांकि उन्होंने कहा कि मैं खुद जनरल हूं, लेकिन जहां तक नीतियों की बात है, मैं आरक्षण के पक्ष में रहता हूं। लेकिन ये बात सही है कि रिजर्वेशन सिस्टम जो हमने रखा है, उसमें लूप होल्स बहुत ज्यादा हैं।


विकास दिव्यकीर्ति ने कहा, 'मेरे ख्याल से जितने लोगों को यूपीएससी सिविल सर्विस परीक्षा में आरक्षण का फायदा मिल रहा है, मुझे नहीं लगता कि 10-20% से ज्यादा वाकई उसके लिए योग्य होते हैं।' हाल में चल रहे आईएएस पूजा खेड़कर के मामले पर उन्होंने कुछ उदाहरण देते हुए समझाया कि कैसे ओबीसी और ईडब्ल्यूएस आरक्षण नीतियों की खामियों का गलत फायदा उठाकर लोग यूपीएससी क्रैक कर रहे हैं।


OBC और EWS आरक्षण में बेहद बारीक पेंच

दिव्यकीर्ति ने कहा, 'ओबीसी और ईडब्ल्यूएस आरक्षण में कितने बारीक पेंच हैं, अगर आप सुनेंगे तो दंग रह जाएंगे। नियम ये है कि अगर आप ओबीसी से हैं, लेकिन क्रीमी लेयर में हैं, तो आपको जेनरल माना जाएगा। लेकिन लोगों को इससे बचना होता है।


एक रूल ये है कि अगर आपके पिता या मां क्लास 1 जॉब में हैं तो आप ओबीसी नहीं हो सकते, आप क्रीमी लेयर में चले जाते हैं। आपके दोनों पैरेंट्स ग्रुप बी में हैं तो भी नहीं हो सकते। लेकिन ग्रुप सी, ग्रुप डी में हैं, इनकम चाहे 8 लाख से ज्यादा हो तो भी आप ओबीसी में रहते हैं। अब एक खेल खेला गया कि कृषि से होने वाली आय की गिनती नहीं होगी। बहुत सारे सिविल सर्वेंट जो करप्शन का रास्ता चुनते हैं वो एग्रीकल्चर इनकम दिखाते हैं। बड़े पैमाने पर।


यूपीएससी परीक्षा में ओबीसी आरक्षण के लिए कैसे होता है खेल?

अब पेंच ये है कि ओबीसी में जो कैंडिडेट है उसकी अपनी इनकम नहीं गिनी जाती। केवल पैरेंट्स की गिनी जाती है। जबकि ईडब्ल्यूएस में सबकी काउंट होती है। एक उदाहरण लेते हैं-

मान लीजिए मेरे पिता IAS ऑफिसर हैं, दो साल में रिटायर होने वाले हैं। मैं ओबीसी में हूं। लेकिन मेरे पिता क्लास-1 जॉब में हैं तो मुझे आरक्षण नहीं मिलेगा। उन्होंने खूब पैसा कमा लिया है। इतना कि जीवनभर काम चल जाएगा। कई बिल्डिंग्स खरीद ली हैं, किराया हर महीने लाखों में आता है। मुझे आईएएस बनना है। मैंने पापा से कहा कि जेनरल से नहीं बन पाऊंगा, ओबीसी से बनना है, आप सपोर्ट करो। आप रिजाइन कर दो। उन्होंने रिजाइन कर दिया। अब मुझपर ये सीमा लागू नहीं होती कि मेरे पिता ग्रुप 1 जॉब में हैं।


लेकिन अब उनकी प्रॉपर्टी/ आय की सीमा लागू होगी। अब मेरे पैरेंट्स अपनी सारी प्रॉपर्टी गिफ्ट डीड से मेरे नाम कर देंगे। अब उनकी इनकम साल की 6 लाख रह गई, मेरी महीने की 60 लाख। लेकिन ओबीसी आरक्षण के लिए मेरी इनकम क्राईटीरिया नहीं है। तो अगर मैं हर महीने 50 लाख भी कमा रहा हूं, जब मैं यूपीएससी परीक्षा दूंगा, मुझे ओबीसी आरक्षण का फायदा मिलेगा। ऐसे कम केस हैं, लेकिन मैं वास्तव में ऐसे लोगों को जानता हूं जिन्होंने ये किया है।


IAS IPS बनने के लिए EWS आरक्षण में खेल कैसे होता है?

EWS में तो खेल और अलग तरीके से चलता है। उसमें नियम ये है कि पूरे परिवार की आय गिनी जाती है, लेकिन सिर्फ पिछले एक साल की। ईडब्ल्यूएस में तो रिजाइन करने की जरूरत भी नहीं होती। ये और आसान है। इसमें नियम है कि-

आपकी कृषि योग्य भूमि 5 एकड़ से ज्यादा न हो।

घर 1000 फीट से ज्यादा बड़ा न हो।

अगर प्लॉट है नोटिफाइड में तो 100 गज, अन-नोटिफाइड में है तो 200 गज से ऊपर न हो।

8 लाख से ऊपर पारिवारिक आय न हो। परिवार मतलब- माता पिता, मेरे भाई-बहन (18 साल तक की उम्र के), पति या पत्नी और बच्चे (18 की उम्र तक)।


हमारे देश में कम से कम 80% से ज्यादा लोग असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं, जहां सैलरी/ इनकम का पता नहीं चलता। आय कम दिखाना आसान है। जिस साल आपने अपनी आय 8 लाख से कम दिखा दी, आपके बच्चे अगले साल EWS Reservation के योग्य हो जाते हैं। यहां क्लास-1, क्लास-2 से मतलब नहीं है, सिर्फ पैसे नहीं होने चाहिए।


मैं ऐसे परिवारों को जानता हूं जिनके पास बहुत जमीन थी। उन्होंने 4.9 एकड़ छोड़कर बाकी सब बेच दी या किसी और के नाम पर कर दी। क्योंकि सीमा 5 एकड़ की है। 1000 फीट के फ्लैट की रजिस्ट्री ऐसे करवा ली कि 990 फीट है। पति-पत्नी दोनों कमाते हैं, जिनकी इनकम मिलाकर 1 लाख है। इनमें से एक मेंबर 8 या 9 महीने की मेडिकल लीव (Leave Without Pay) ले लेगा। अब उस साल के ITR में दोनों की सालभर की इनकम 7.90 लाख रुपये आई। उनका बच्चा यानी कि कैंडिडेट अगले यूपीएससी अटेंप्ट में ईडब्ल्यूएस आरक्षण के तहत आ जाता है।


यहां तक मामले हैं, जो बच्चे खुद सिविल सर्वेंट हैं, वो भी ईडब्ल्यूएस में आते हैं। कैसे? मान लीजिए उसकी सैलरी 70 हजार है। लेकिन उसे यूपीएससी क्रैक करना है या हाई रैंक के लिए फिर से परीक्षा देनी है। अब वो 4 महीने की छुट्टी लेगा। ऐसे इसकी और मां या पिता की इनकम मिलाकर 7.90 लाख बन गई। सिर्फ ITR के आधार पर ये फैसला होता है। वो भी सिर्फ पिछले साल के। यानी जब भी जिंदगी में EWS बनना हो, आपको सिर्फ उससे पिछले साल में अपनी इनकम 8 लाख से कम करनी है। बस आपको नौकरी में आरक्षण का फायदा मिल जाता है।


रविवार, 21 जुलाई 2024

मरियम-वेबस्टर डिक्शनरी में नए शब्दों के साथ स्लैंग भी शामिल, आइये जाने इनका अर्थ


 मरियम-वेबस्टर ने नए संस्करण में जीवन के सभी क्षेत्रों से अविश्वसनीय 690 शब्द जोड़े हैं. थर्स्ट ट्रैप, शेफ्स किस, ग्रैमेबल और बीस्ट मोड जैसे कई नए शब्द शब्दकोश में शामिल किए गए हैं. साथ ही डोगो, रिज, गोटेड, बुसिन और सिम्प जैसे अन्य स्लैंग भी शामिल किए गए हैं. आइए इन नए शब्दों का मतलब जानते हैं.

मरियम-वेबस्टर के बड़े संपादक पीटर सोकोलोव्स्की ने कहा कि हम शब्दों के इस नए बैच से बहुत उत्साहित हैं. उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद है कि उन्हें पढ़ने में उतनी ही संतुष्टि होगी, जितनी हमें उन्हें परिभाषित करने से मिली थी. शब्दकोश में कई नए शब्द शामिल किए गए हैं, जैसे कि थर्स्ट ट्रैप, शेफ्स किस, ग्रैमेबल और बीस्ट मोड. अन्य कठबोली शब्द जैसे डोगो, रिज, गोटेड, बुसिन और सिम्प भी जोड़े गए.

क्या है गर्लबॉस?

डिक्शनरी में गर्लबॉस को केवल एक महत्वाकांक्षी और सफल महिला (विशेषकर एक व्यवसायी या उद्यमी) के रूप में परिभाषित किया गया है. वहीं प्यास का जाल एक और शब्द है, जिसका अर्थ है तुरंत ध्यान आकर्षित करने की कोशिश करना. बीस्ट मोड, जिसका अर्थ है किसी व्यक्ति (जैसे कि एक एथलीट) द्वारा क्षण भर के लिए अपनाई गई अत्यधिक आक्रामक या ऊर्जावान शैली या तरीका को भी शामिल किया गया था.

क्या है डोगा का मतलब?

मरियम-वेबस्टर ने इसे सामान्य संज्ञा के रूप में औपचारिक रूप दिया, जिसका अर्थ है कि युवा लोग, खासकर जब उन्हें अनुभवहीन, अनुभवहीन, आदि माना जाता है. अंत में, बना-बनाया शब्द क्रॉमुलेंट, जिसका उपयोग “स्वीकार्य” या “संतोषजनक” चीजों का वर्णन करने के लिए किया जाता है को भी जोड़ा गया हैं. यह पहली बार नहीं है कि सिम्पसन्स से संबंधित शब्द किसी शब्दकोश में आया है. मरियम-वेबस्टर ने 2018 में एम्बिजेन को शामिल किया था.

ये है जुज का मतलब

शब्दकोष में भोजन से संबंधित शब्द भी शामिल हैं जैसे जुज जिसका अर्थ है एक छोटा सा सुधार, समायोजन या परिवर्धन, जो किसी चीज के समग्र रूप, स्वाद आदि को पूरा करता है. टीएफडब्ल्यू (वह एहसास जब), एनजीएल (झूठ नहीं बोलूंगा) और टीटीवाईएल (बाद में आपसे बात करेंगे) जैसे शब्द भी शामिल किए गए हैं.


शनिवार, 6 जुलाई 2024

बाढ़ और सुखाड़ पर फणीश्वरनाथ रेणु ने तब ल‍िखा था ये रिपोर्ताज, आज भी स्थ‍ित‍ि जस की तस है

 
'ऋणजल धनजल' फणीश्वरनाथ 'रेणु' का एक संस्मरणात्मक रिपोर्ताज है। इस रिपोर्ताज का शीर्षक कौतूहलवर्द्धक है। इसमें ऋणजल का अर्थ है-जल की कमी अर्थात् सूखा और धनजल का अर्थ है- जल की अधिकता अर्थात् बाढ़। इसमें बिहार में सन् 1966 में पड़े सूखे और सन् 1975 में आई भयंकर बाढ का चित्रण है। सन 1966 में बिहार में भयानक सूखा पडा था, जिससे पूरे दक्षिण बिहार में अकाल की काली छाया व्याप्त हो गई थी। सूखी धरती पर मनुष्यों एवं अन्य जीवों के कंकाल ही कंकाल दिखाई पड़ते थे। बिहार में ही सन् 1975 में आई प्रलयंकारी बाढ़ ने पटना की सड़कों और घरों को जलमग्न करके लाखों का जीवन संकट में डाल दिया था। प्रकृति के सम्मुख लाचार मानव हाहाकार कर रहा था। यह देखकर संवेदनशील लेखक का हृदय प्रस्तुत रिपोर्ताज लिखने को विवश हो उठा था।

धनजल अर्थात् बाढ़

यद्यपि रिपोर्ताज के शीर्षक में पूर्व पद ऋणजल है, परन्तु लेखक ने रचना के प्रारम्भ में धनजल का वर्णन प्रस्तुत किया है। सन् 1975 में आई बाढ़ के दृश्य का चित्रांकन करते हुए रेणु जी लिखते हैं कि पटना का पश्चिमी इलाका छातीभर पानी में डूब चुका था। इस स्थिति में घर में ईंधन, आलू, मोमबत्ती, दियासलाई, पेयजल तथा आवश्यक दवाइयों की व्यवस्था कर ली गई। लेखक उस समय की आँखों देखी और कान से सुनी घटनाओं का चित्रात्मक वर्णन करते हुए कहता है कि सुबह समाचार मिला कि राजभवन और मुख्यमन्त्री आवास भी बाढ़ग्रस्त क्षेत्र में आ गए हैं। गोलघर भी पानी से घिर गया है।

प्रतिदिन की तरह लेखक कॉफी हाउस जाने के लिए घर से निकला, तो रिक्शे वाले ने कॉफी हाउस भी पानी से घिर जाने की सूचना दी। फिर भी रेणु जी ने आगे चलकर वहाँ का दश्य देखने की इच्छा प्रकट की और रिक्शे पर बैठ गए। रिक्शे वाला आगे जाने की सोच ही रहा था कि एक व्यक्ति ने करण्ट (धारा) बहुत तेज होने की सूचना देकर आगे जाने को मना कर दिया। आकाशवाणी केन्द्र तक पानी पहुँच जाने के समाचार को सुनकर लेखक भयभीत हुआ, परन्तु पानी देखकर लौटते हुए लोगों को हर रोज की तरह हँसते-बोलते देखकर वह सहज भी हो गया। दुकानदार अधिक-से-अधिक सामान को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाने की जुगाड़ में लगे हुए थे। लेखक आश्चर्यचकित था कि संकट को सामने देखकर भी कोई प्राणी आतंकित नहीं था।

बाढ़ की विभीषिका देख-सुनकर जब लेखक कुछ पत्रिकाएँ लेकर अपने । फ्लैट पर वापस आ रहा था, तो मार्ग में जनसम्पर्क की गाड़ियों से घोषणा की जा रही थी कि रात के बारह बजे तक पानी लोहिनीपुर, कंकड़बाग और राजेन्द्र में घुस जाने की सम्भावना है। अत: सभी लोग सावधान रहें और सुरक्षित स्थान पर जाने का प्रयास करें। बाढ़ का संकट सामने आता हुआ देखकर भी जनता बाट के दृश्यों का आनन्द ले रही थी। सड़कों पर आवागमन में भी कोई कमी दिखाई नहीं दे रही थी। रात के साढ़े ग्यारह बजे भी शहर जगा हुआ था। लेखक भी सी नहीं पा रहा था। सो भी कैसे सकता था, उसने पिछली बाढ़ को देखा और भोगा था। उसके दृश्य लेखक के मस्तिष्क में बार-बार कौंध रहे थे।

रेणु जी को सन् 1947 में मनिहारी में आई गंगा की बाढ़ की स्मृति हो आई। उस समय वे अपने गुरु सतीशनाथ भादुड़ी के साथ नाव पर चढ़कर बाढ़ पीड़ित क्षेत्रों में राहत बाँटने गए थे। उसी समय मुसहरी गाँव में आई परमान नदी की बाढ़ के दृश्य भी उनकी स्मृति में कौंधने लगे। उस समय भी बाढ़ के संकट के समय लोगों की मौज-मस्ती की उन्हें याद हो आई। एक नटुआ लाल साड़ी पहनकर दुलहिन का हाव-भाव प्रदर्शित करते हुए किस प्रकार एक घरवाली, जिसे वहाँ की भाषा में 'धानी' कहा जाता है, का अभिनय करता हुआ मस्ती में डूबकर औरतों के गाने गा रहा था।

रेणु जी ने सन् 1937 में सिमरवनी-शंकरपुर में आई बाढ़ के समय नाव को लेकर हुई लड़ाई का दृश्य भी देखा था। उस समय जहाँ एक ओर गाँव के लोग नाव के अभाव में केले के पेड़ के तनों का बेड़ा बनाकर किसी तरह काम चला रहे थे, वहीं दूसरी तरफ सवर्ण जमींदार के लड़के नाव पर हारमोनियम-तबला लेकर जल विहार करने निकले थे। गाँव के नौजवानों ने मिलकर उनकी नाव छीन ली थी।

इसी प्रकार सन् 1967 में पुनपुन नदी का पानी राजेन्द्र नगर में घुस आया था। तभी कुछ युवक-युवतियों की टोली नाव पर चढ़कर मौज-मस्ती करने निकली। नाव पर स्टोव जल रहा था और एक लड़की एस्प्रेसो कॉफी बना रही थी। दूसरी लड़की बड़े मनोयोग से कोई सचित्र पत्रिका देख रही थी। ट्रांजिस्टर पर गाना बज रहा था-"हवा में उड़ता जाए मोरा लाल दुपट्टा मलमल का।" लेखक के घर के पास नाव पहुँचने पर मुहल्ले के लड़कों ने छतों पर खड़े होकर सीटियों, फब्तियों, किलकारियों की ऐसी वर्षा की कि उनकी सारी मौज-मस्ती फुस्स हो गई।

स्मृतियों का ताँता तब टूटा जब बाढ़ का पानी लेखक के ब्लॉक तक आ पहुँचा। रेणु जी दौड़कर छत पर चले गए। चारों ओर शोर, कोलाहल, चीखपुकार और तेज धार से आने वाले पानी की कल-कल ध्वनि सुनाई दे रही थी।फ्लैट के ग्राउण्ड फ्लोर में छाती तक पानी भर चुका था। सन् 1967 की बाढ़ इस समय के बाढ़ की पासंग मात्र थी। पानी चक्राकार नाच रहा था। लेखक रामकृष्ण

देव के चित्र के सामने बैठकर प्रार्थना करने लगा-"ठाकुर रक्षा करो, बचाओ | इस शहर को इस जल प्रलय से।" लेखक फिर चिन्तन करने लगा कि यह प्रकृति | का नाच है। जब मनुष्य ट्विस्ट कर सकता है, तो प्रकृति क्यों नहीं कर सकती ? लेखक उस दृश्य को देखकर यही कहता है कि बाढ़ के तरल नृत्य को शब्दबद्ध करना कठिन है।

इसके पश्चात् पानी का बढ़ना रुक गया। तब कड़वी चाय के साथ दो काम्पोज की गोली खाकर रेणु जी सोने चले गए।

ऋणजल अर्थात् सूखा

रेणु जी ने अपने रिपोर्ताज में धनजल के माध्यम से बिहार की बाढ़ के साहित्यिक एवं कलात्मक वर्णन के साथ ही बिहार के भयंकर सूखें एवं अकाल के भी अत्यन्त मर्मस्पर्शी दृश्यों का चित्रांकन किया है। सन् 1966 में सम्पूर्ण दक्षिणी बिहार को सूखे ने अपनी चपेट में ले लिया था। रेणु जी ने सूखे की इस स्थिति का आकलन 'दिनमान' के सम्पादक और अपने मित्र अज्ञेय जी के साथ घूमकर किया था।

सूखे का दृश्य

रेणु जी अज्ञेय जी के साथ गया शहर छोड़कर नवादा की ओर जा रहे थे। मार्ग में सड़क के दोनों ओर की भूमि पूर्ण रूप से शुष्क थी। कहीं भी घास या हरियाली दिखाई नहीं दे रही थी। गाड़ियों में अनाज के बोरे नहीं थे, सूखा पुआल था। दुकानों में मकई नहीं थी। बच्चे भूखे स्कूल पढ़ने जा रहे थे। स्कूलों में भी दूध निःशुल्क नहीं मिलता था। हाल ही में हल्की बारिश हुई थी। इसीलिए कुछ किसान हल जोतते तथा कुदाल चलाते हुए दिखाई दिए। लोग सूखे से लड़ने के लिए कच्चे कुएँ खोदकर पानी का तल नाप रहे थे। पानी पाताल की ओर भागा जा रहा था। रैपुरा-सिरसा गाँव में लेखक ने एक हलवाहे से उसका नाम पूछा, तो उसने अपना नाम 'जोगी' बताया। खेत में काम कर रहे एक आदमी ने अज्ञेय जी और रेणु जी के पास आकर अपने साहस की बात कही कि आदमी जीवन रहने तक तो हार नहीं मानता। इसीलिए हम लोग सूखे से लड़ रहे थे। आगे ईश्वर की इच्छा।

पक्की सड़क से नीचे उतरकर जब लेखक अज्ञेय जी के साथ गाँव के बीच में पहुँचा, तो देखा कि एक बुढ़िया बड़बड़ा रही थी। लेखक ने गाँव में कोई मर्द न देखकर मन-ही-मन सोचा-'कहाँ गेल हो ईसब मनई। जइते कहाँ, कमावे, गोड़े ला।' उन्हें बताया गया कि घर में पकाने को कुछ नहीं है। भूख और बीमारी के कारण लड़के की हालत चिन्ताजनक है। इन लोगों के आने की खबर सुनकर गाँव की बड़ी-बूढ़ी औरतों ने बताया कि पाँच जून की मजूरी पाँच मुट्ठी खेसारी मिलती है, वह भी घुनी हुई। मालिकों ने तो घर में बिजली का कुआँ खुदवा रखा है और अनाज घर में भरा पड़ा है। उन्हें गरीबों की क्या चिन्ता होगी।

भयंकर दर्दशा का चित्रण

लेखक ने अज्ञेय जी के साथ वहाँ की स्थिति का जायजा लेने के लिए गाँव वालों से कुछ सवाल किए, तो उत्तर मिला कि सात दिन पहले बच्चे को जन्म देने वाली माँ को खाना न मिलने से दूध नहीं उतर रहा है। एक लड़की ने पूछने पर अपना नाम जसोधा बताया, तो सौर घर से एक औरत बोली-"ई अकलवा के भी छापी (तस्वीर) उतरवा दे |" अकाल और सूखे में जन्मे बच्चों के नाम 'अकालू', 'अकलवा', 'सूखी' और 'सुखही' ही ठीक रहेंगे। लेखक को पता चला कि यहाँ सरकारी लाल कार्ड नहीं मिले हैं।

सरकारी आँकड़ों में रिलीफ बँट रही है, लाल कार्ड बन रहे हैं, परन्तु वास्तविकता इसके विपरीत थी। रेणु जी और अज्ञेय जी ने लौटकर अधिकारियों से पूछा तो उत्तर मिला कि रिलीफ बँट रही है। जब लेखक ने उन्हें कोसला गाँव में लाल कार्ड न बनने और रिलीफ न बँटने की सूचना दी, तब अधिकारियों ने स्वीकारा कि हाँ, उधर नहीं बँटा है। रेणु जी अज्ञेय जी के साथ डाक बँगले में लौटकर आए, तो देखा कि वहाँ सूखे का कोई प्रभाव नहीं है, क्योंकि यहाँ अधिकारी रहते हैं।

प्रस्तुत रिपोर्ताज में रेणु जी की संवेदनशीलता ने बाढ़ और सूखे के दृश्यों को अत्यन्त मार्मिक बना दिया है। इस रिपोर्ताज में रेणु जी ने आम आदमी की पीड़ा और सरकारी अव्यवस्था का यथार्थ चित्र प्रस्तुत किया है।

प्रस्तुत‍ि - अलकनंदा स‍िंंह