अकसर हम धीमी प्रगति को “कछुआ चाल” कह कर उसे निकृष्टता का जामा पहना देते हैं, परंतु यह भूल जाते हैं कि अंत में विजय धीमी गति यानि “सतत प्रयास” की ही होती है। हमारे देश पर गिद्ध दृष्टि जमाए दुश्मन (परोक्ष व अपरोक्ष) देशों की ओर से जो कोशिशें होती रही हैं उस पर कार्यवाही भले ही कछुआ चाल से चलती दिख रही हो परंतु हो रही है, और सटीक हो रही है। इस कार्यवाही ने आस्तीन के सांपों को सरेआम कर दिया है।
कल वामपंथी यलगार परिषद मामले में एनआईए ने जो अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट विशेष अदालत में सौंपी हैं उसमें परिषद के जिन इरादों का उल्लेख है, उन्हें झुठलाया नहीं जा सकता क्योंकि देश में जहां-जहां और जब-जब दंगों की स्थिति बनी, वहां हर जगह वामपंथियों की मौजूदगी रही। देश को भीतर से खोखला करने के इरादों की भयावहता देखिए कि परिषद ने जहां एक ओर जेएनयू और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस के छात्रों का सहारा लेकर भीमा कोरेगांव, सीएए-एलआरसी और कथित किसान आंदोलन तक को फाइनेंशियली व मैनपॉवर के संग स्पॉन्सर किया वहीं झारखंड की पत्थरगड़ी, नक्सली उग्रवाद और तमिलनाडु के स्टरलाइट कॉपर प्लांट के विरुद्ध प्रदर्शन तक के लिए वामपंथियों ने चीन द्वारा भारी भरकम फंडिंग के बल पर देश में अशांति, अराजकता और आर्थिक चोट पहुंचाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।
स्टरलाइट कॉपर प्लांट बंद कराने में वामपंथी संगठनों की मुख्य भूमिका रही। जिन कर्मचारियों को मजदूर संगठनों का नेता बनाकर पर्यावरणविद् बताया गया और फरवरी 2018 में चीन समर्थित कार्यकर्ताओं के विरोध के कारण वेदांत स्टरलाइट के खिलाफ प्रदर्शन को कोर्ट तक ले जाया गया, क्या वो कोई इत्तिफाक था, नहीं बल्कि स्टरलाइट प्लांट जो कि भारत के कुल तांबे का लगभग 40 प्रतिशत उत्पादन करता था को बंद कर दिया गया।
प्लांट के बंद हुए तीन साल से ज्यादा हो चुके हैं। वेदांत स्टरलाइट के उच्च गुणवत्ता वाले तांबे से चीन को भारी नुकसान हो रहा था, उसने भारत में बैठे अपने इन भाड़े के टट्टुओं को लगाकर पूरा प्लांट बंद करवा दिया क्योंकि भारत के इस तांबे के कारण चीन के तांबे की मार्केटवैल्यू खत्म हो गई थी, अब इस प्लांट के बंद होने से चीन और पाकिस्तान दोनों फायदे में हैं क्योंकि बलूचिस्तान में निकाला जा रहा निम्न कोटि का तांबा अपरोक्ष रूप से पाकिस्तान को परोक्ष रूप से चीन को लाभ दे रहा है। चीन के इशारे पर काम कर रहे वामपंथियों के बारे में ज्यादा सुबूत ढूढ़ने की जरूरत नहीं, सोशल मीडिया पर इनके विचार ही यह बताने के लिए काफी हैं कि वो क्या सोचते हैं और देश को कहां ले जाना चाहते हैं।
इसके अलावा अभी हम गलवान के वीरों को श्रद्धांजलि दे ही रहे थे कि चीन की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने पर भारतीय वामपंथी नेताओं का उस कार्यक्रम में शामिल होना क्या देश विरोध के कोई और सुबूत भी चाहता है।
10,000 पन्नों की विस्तृत चार्जशीट के बाद एनआईए की ड्राफ्ट रिपोर्ट के बाद विशेष अदालत क्या फैसला सुनाती है और किसको दोषी अथवा निर्दोष बताती है, यह जानना तो अभी दूर है परंतु इतना अवश्य है कि देश के भीतर बैठे दुश्मन देशों के ये पैरोकार हमारे बच्चों को अपना हथियार बना रहे हैं, हम सोच रहे हैं कि बच्चा जेएनयू में पढ़ रहा है या टिस से सोशल साइंस का विद्वान बनने गया है परंतु वहां तो देशघात की ट्रेनिंग दी जा रही है। सरकार और उसकी इंवेस्टीगेटिव एजेंसी एनआईए जो कुछ देशहित में संभव होगा करेगी ही परंतु हमें भी सचेत रहना होगा कि हम अपने बच्चों को “स्कॉलर” बनाने की जिम्मेदारी आखिर किसके हाथों में सौंप रहे हैं। देशहित में सीमापार के दुश्मनों से ज्यादा इन भीतरघातियों के मंसूबे से आगाह रहने की जरूरत है।
- अलकनंदा सिंंह