देशभर में शैक्षिक गुणवत्ता के गिरते स्तर वाले समाचारों के बीच उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से एक खबर अच्छी आई है जिसमें प्राइवेट तकनीकी संस्थानों में प्रोफेशनल कोर्स करने वाले दलित छात्रों को इंटरमीडिएट में कम से कम 60 प्रतिशत अंक लाना अनिवार्य होगा तभी वे छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति ले सकेंगे। इंटरमीडिएट में 60 प्रतिशत से कम अंक पर निजी क्षेत्र के कॉलेजों में प्रवेश लेने पर कोई छात्रवृत्ति या फीस प्रतिपूर्ति नहीं मिलेगी। ये आदेश ऐसे मान्यता प्राप्त प्रोफेशनल कोर्स के लिए है जिनमें प्रवेश की न्यूनतम अर्हता 12वीं है हालांकि प्रोफेशनल कोर्स में बीए, बीकॉम, बीएससी और बीएससी-एजी छोड़ दिया गया है।
इस एक आदेश से योगी सरकार ने कई निशाने साधे हैं। एक तो इससे तकनीकी संस्थानों की शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार आएगा, दूसरे इन्हीं संस्थानों द्वारा सरकारी अधिकारियों से मिलीभगत कर छात्रवृत्ति के नाम पर वृहद स्तर पर किये जा रहे घोटालों पर लगाम लगाई जा सकेगी। चूंकि अभीतक कम प्राप्तांक कोई बाधा नहीं थे इसलिए छात्रवृत्ति घोटाले के लिए फर्जी छात्रों की संख्या भी आसानी से बढ़ा ली जाती थी परंतु अब इसकी संभावना कम रहेगी।
दरअसल अभी तक एससी-एसटी छात्रों को छात्रवृत्ति और शुल्क प्रतिपूर्ति के नाम पर जो धन केंद्र सरकार राज्य सरकारों को मुहैया कराती आई है, उसे भ्रष्ट अधिकारियों और तकनीकी संस्थानों के प्रबंध तंत्रों द्वारा बिना किसी बाधा के हजम कर लिया जाता रहा और इसीलिए तकनीकी संस्थान खोलना फायदे का सौदा बन गया। हकीकत तो ये है कि लगभग हर प्रदेश में छात्रवृत्ति घोटाला हो रहा है और कई प्रदेश सरकारें इससे जूझ भी रही हैं, कुछ कड़े कदम भी उठाए हैं परंतु घोटालेबाजों की तू डाल डाल मैं पात पात वाली गति ना तो जरूरतमंदों को मदद लेने दे रही है और ना ही मेधा को आगे आने दे रही है।
अभी तक होता ये आया है कि प्राप्तांकों की शर्त ना होने के कारण एससीएसटी वर्ग के अधिकाधिक छात्रों की एडमीशन लिस्ट सरकारों के पास भेजकर भारी छात्रवृत्ति का जुगाड़ किया जाता रहा। काउंसलिंग के लिए आए छात्रों से शैक्षिक प्रमाणपत्रों के साथ उनके आधार कार्ड की कॉपी भी जमा करा ली जाती थी। चूंकि तकनीकी प्रवेश परीक्षा में पास हुए सभी छात्र काउंसलिंग के लिए तो कई संस्थानों में जाते हैं परंतु एडमीशन किसी एक में ही लेते हैं। ऐसे में छात्र के एडमीशन न लेने पर भी संस्थान छात्र के ”आधार कार्ड की कॉपी” का इस्तेमाल समाज कल्याण विभाग की मिलीभगत से उस छात्र के नाम पर छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति हासिल करने के लिए करता रहता और हद तो ये कि ये प्रक्रिया सालोंसाल ”उस छात्र” के नाम पर लगातार चलती रही जिसने सिर्फ काउंसलिंग में हिस्सा लिया, एडमीशन नहीं। पूरा का पूरा एक कॉकस इसी तरह काम करता रहा।
बहरहाल अब यूपी सरकार के इस फैसले से प्रदेश के निजी क्षेत्र के कॉलेजों में 70 से 80 फीसदी दलित छात्र, छात्रवृत्ति एवं फीस प्रतिपूर्ति के दायरे से बाहर हो जाएंगे और संस्थान इस 80 फीसदी की बदौलत जो ” कमा रहे” थे वह बंद हो जाएगा। इसीलिए उत्तर प्रदेश के अनुसचिव सतीश कुमार का उक्त आदेश पहुंचते ही निजी कॉलेजों में हड़कंप मच गया है।
चूंकि यह आदेश पूरी तरह से एससी-एसटी के लिए है इसलिए पर्याप्त राजनीति करने का एक और मुद्दा विपक्ष को मिल गया है और वो राजनीति करेंगे भी, बिना ये सोचे समझे कि इससे प्रदेश के होशियार एससीएसटी छात्रों को भी अब ”रिजर्वेशन से आया है” का दंश नहीं झेलना पड़ेगा। एक बात और कि इस आदेश के बाद घोटालेबाजों की ”ताकतवर लॉबी” इसे निरस्त कराने को एड़ी चोटी का जोर लगा देगी परंतु सरकार यदि अपने इस आदेश को मनवा पाई तो नकल माफिया पर नकेल की तरह यह भी शिक्षा और खासकर उत्तरप्रदेश की मेधाशक्ति के लिए अहम कदम माना जाएगा।