संसद सत्र की शुरुआत जिस तरह के ज्वलंत मुद्दे से हुई, वह उक्त कविता की प्रासंगिकता को और पुष्ट करती है।
पहले दिन ही केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने जिस तरह ''जेएनयू के छात्रों द्वारा राष्ट्र विरोधी नारों को अभिव्यक्ति की आजादी ''बताए जाने पर प्रश्नचिन्ह लगाया, फिर इसी अभिव्यक्ति की आजादी के बहाने उन्होंने महिषासुर दिवस मनाये जाने व मां दुर्गा के चरित्र को लेकर आपत्तजिनक पैंपलेट बांटे जाने की घटना पर उपस्थित सभी नेताओं से पूछा कि क्या यही अभिव्यक्ति की आजादी है।
सचमुच अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर अभी तक जितने भी ढोंग रचे गए, स्मृति ने उन सभी ढोंगों को तार-तार कर दिया और कम से कम पहले दिन तो किसी नेता या दल की हिम्मत नहीं हुई कि वह अचानक हुए इस अकाट्य वार से स्वयं को बचा पाता।
अभिव्यक्ति की आजादी को राजनेताओं ने अभी तक अपने राजनैतिक स्वार्थों के लिए यूज किया था और विचारों की कथित स्वतंत्रता के नाम पर उनकी सोच घातक खेल खेलकर देश के साथ विश्वासघात करती रही। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर देश की एकता व अखंडता का मजाक उड़ाया जाता रहा।
भारतीय संविधान में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता धारा 19 के तहत छह स्वतंत्रता के अधिकारों में से एक है। किसी सूचना या विचार को बोलकर, लिखकर या किसी अन्य रूप में बिना किसी रोकटोक के अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (freedom of expression) कहलाती है परंतु इस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की हर जगह कुछ न कुछ सीमा अवश्य होती है।
रोहित वेमुला की खुदकुशी और जेएनयू में लगे देशद्रोही नारों को लेकर बुधवार को सदन में स्मृति ईरानी अपने तल्ख तेवर में दिखीं और वामपंथी विचारधारा पर करारा प्रहार किया। जेएनयू में कुछ छात्रों की ओर से महिषासुर दिवस मनाए जाने पर सवाल खड़े करते हुए स्मृति ईरानी ने कहा कि ये छात्र महिषासुर को पूर्वज (ऐतिहासिक) मानते हैं लेकिन मां दुर्गा का अपमान करते हैं।
स्मृति ईरानी ने महिषासुर दिवस के आयोजन का एक पर्चा पढ़कर सुनाते हुए कहा कि ' मुझे ईश्वर माफ करें इस बात को पढ़ने के लिए। इसमें लिखा है कि दुर्गा पूजा सबसे ज्यादा विवादास्पद और नस्लवादी त्योहार है। जहां प्रतिमा में खूबसूरत दुर्गा मां द्वारा काले रंग के स्थानीय निवासी महिषासुर का वध करते हुए दिखाया जाता है। महिषासुर दिवस मनाने वालों के अनुसार महिषासुर एक बहादुर, स्वाभिमानी नेता था, जिसे आर्यों द्वारा शादी के झांसे में फंसाया गया। आर्यों ने एक सेक्स वर्कर का सहारा लिया, जिसका नाम दुर्गा था। दुर्गा ने महिषासुर को शादी के लिए आकर्षित किया और 9 दिनों तक सुहागरात मनाने के बाद उसकी हत्या कर दी।" स्मृति ने गुस्से से तमतमाते हुए सवाल किया कि क्या ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है? कौन मुझसे इस मुद्दे पर बहस करना चाहता है?
स्मृति ईरानी के सदन में दिए इस बयान से एक बार फिर कई सालों बाद फिर ये मुद्दा गर्म हो गया है। बीजेपी समेत कई दलों ने देवी-देवताओं के अपमान के मुद्दे पर आपत्ति जताई है।
कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने कहा कि आपकी आस्था महिषासुर में हो सकती है लेकिन इसका अर्थ ये नहीं कि आप दूसरों की भावनाओं का अपमान करें।
बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि ये एक बड़ी साजिश है। इसे आर्यों और द्रविड़ों की फिलॉसफी फैलाने के लिए इस्तेमाल किया गया है, जो कि अंग्रेजों की थ्योरी थी।
वीएचपी नेता विनोद बंसल ने कहा कि इस देश की मूल विचारधारा इसी धर्म की है लेकिन उसके बावजूद ये सब क्यों होता है। जेएनयू में सालों से ये हो रहा है और मैं इसके खिलाफ लगातार FIR दर्ज करवाता रहा हूं लेकिन कोई कार्यवाही नहीं होती क्योंकि अगर कार्यवाही होगी तो CPI बिलबिला जाती। हालांकि अब भी सीपीआई नेता दिनेश वार्ष्णेय ने कहा कि ये मामला राजनीति से प्रेरित होकर उठाया जा रहा है क्योंकि बंगाल में चुनाव आने वाले हैं और वहां दुर्गा पूजा का बहुत ज्यादा महत्व है।
कितने आश्चर्य की बात है कि यह जहरीला विचार उसी बंगाल की धरती से उपजा जहां दशकों तक वामपंथियों का शासन रहा और दुर्गापूजा भी होती रही मगर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का झुनझुना इस कदर आम जन के गले में घंटी की तरह लटका दिया गया कि कोई इसके औचित्य तक पर सवाल नहीं उठा पाया और जिसने उठाया भी तो तत्काल उसे रूढ़िवादी और मनुवादी करार दे दिया गया।
आज भी राज्यसभा में कांग्रेस के नेता आनंद शर्मा स्मृति ईरानी से इस बात पर तो इस्तीफा मांग रहे हैं कि उन्होंने मां दुर्गा को लेकर आपत्तिजनक पर्चा संसद में सार्वजनिक रूप से पढ़कर सुनाया जिससे धार्मिक भावनाएं आहत हो सकती थीं मगर उस हकीकत पर वे कुछ नहीं बोले कि जेएनयू में आखिर ये सब घटित होता रहा और वे चुप क्यों बैठे रहे ?
गौरतलब है कि साल 2012 में जेएनयू के भीतर वामपंथी छात्र संगठनों ने महिषासुर को भारत के आदिवासियों, दलितों और पिछड़ों का पूर्वज बताते हुए शरद पूर्णिमा को उसकी शहादत मनाने की घोषणा की थी और जगह-जगह कैंपस में पोस्टर भी लगाए गए थे। उस वक्त जमकर बवाल मचा था। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार असुरों के राजा महिषासुर का देवी दुर्गा ने वध किया था लेकिन वामपंथी फोरम से जुड़े स्टूडेंट्स मानते हैं कि महिषासुर देश के जनजातीय, दलित और पिछड़ी जाति के लोगों के पूर्वज थे, जिन्हें देवी दुर्गा का इस्तेमाल कर आर्यों ने मारा था। बात इतने पर रुक जाती तो भी ठीक था, लेकिन जिस तरह से देवी दुर्गा और महिषासुर के संबंधों के बारे में कहा गया था वो शर्मनाक है।
देश ने कई दशक गुजार दिये इसी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वाली ऊहापोह में । अब समय आ गया है कि राजनेता देश के सामने जहरीली मानसिकताओं को प्राश्रय देने से बाज आ जायें।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर अभी तक जो घिनौना खेल खेला जाता रहा है, उसकी बखिया उधड़ने लगी है और उनकी सोच सरेआम हो गई है कि वे देश के लिया कितना कुत्सित सोचते रहे हैं... करते रहे हैं।
और फिर... मैथिलीशरण गुप्त की ही कविता ''आर्य'' के अंश जिस पर हर भारतीय को अभिमान होगा ....
हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी
आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी
भू लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला स्थल कहां
फैला मनोहर गिरि हिमालय, और गंगाजल कहां
संपूर्ण देशों से अधिक, किस देश का उत्कर्ष है
उसका कि जो ऋषि भूमि है, वह कौन, भारतवर्ष है
यह पुण्य भूमि प्रसिद्घ है, इसके निवासी आर्य हैं
विद्या कला कौशल्य सबके, जो प्रथम आचार्य हैं
संतान उनकी आज यद्यपि, हम अधोगति में पड़े
पर चिन्ह उनकी उच्चता के, आज भी कुछ हैं खड़े
वे आर्य ही थे जो कभी, अपने लिये जीते न थे
वे स्वार्थ रत हो मोह की, मदिरा कभी पीते न थे
वे मंदिनी तल में, सुकृति के बीज बोते थे सदा
परदुःख देख दयालुता से, द्रवित होते थे सदा
संसार के उपकार हित, जब जन्म लेते थे सभी
निश्चेष्ट हो कर किस तरह से, बैठ सकते थे कभी
फैला यहीं से ज्ञान का, आलोक सब संसार में
जागी यहीं थी, जग रही जो ज्योति अब संसार में
वे मोह बंधन मुक्त थे, स्वच्छंद थे स्वाधीन थे
सम्पूर्ण सुख संयुक्त थे, वे शांति शिखरासीन थे
मन से, वचन से, कर्म से, वे प्रभु भजन में लीन थे
विख्यात ब्रह्मानंद नद के, वे मनोहर मीन थे।
अंत में इतना कहना पर्याप्त होगा कि आज यदि मैथलीशरण गुप्त जिंदा होते तो कुछ नेता न केवल उनसे उनकी राष्ट्रकवि की उपमा छीन लेते बल्कि निज गौरव और निज देश पर अभमिान न होने वाले को पशुतुल्य व मृतप्राय: बताए जाने पर कन्हैया, उमर खालिद जैसों के साथ जेल भेजने का कोई न कोई बंदोबस्त भी जरूर कर देते।
- अलकनंदा सिंह