विचारों की राजनीति और प्रगतिशील समाज के बीच में अजीब सी रस्साकशी चल रही है। पुरानी सोच अपनी स्थापित ज़मीन छोड़ने को तैयार नहीं और नई उर्वरा शक्तियां उसी ज़मीन को खोद-खोद कर और अधिक उर्वरा बनाने को आतुर हैं।
द्वंद है अपने अपने अस्तित्व का … उसकी स्थापना का… । इन सबके बीच जो अभिशप्त हैं, अपनी-अपनी गर्दनें ज़मीन में गाड़ लेने के लिए, उन्हें तो समझाना जरूरी हो जाता है ना, और यह जरूरत यदि #HappytoBleed जैसे अभियान के ज़रिये सामने आए तो इसमें आश्चर्य कैसा ?
टैबू बना दिए गये जीवन से जुड़े हिस्सों को अगर नई पीढ़ी खुलेपन का हिस्सा बना रही है तो इसमें हर्ज़ क्या ?
वाकया केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति को लेकर बढ़ा और विवादास्पद बयानों से #HappytoBleed कैम्पेन तक पहुंचा गया। दरअसल त्रावणकोर देवाश्वम बोर्ड के अध्यक्ष प्रयार गोपालकृष्णन ने विवादित बयान दिया कि महिलाओं को प्रसिद्ध साबरीमाला में प्रवेश की अनुमति तभी दी जाएगी जब उनकी शुद्धता की जांच करने वाली मशीन का आविष्कार हो जाएगा।
दरअसल युवा महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में जाने की अनुमति नहीं होती। कुछ लोगों का कहना है कि महिलाओं को इसलिए अनुमति नहीं है, क्योंकि मासिक धर्म के दौरान उन्हें अशुद्ध माना जाता है। हालांकि कुछ दूसरे विद्वानों का कहना है कि भगवान अयप्पा, जिन्हें यह मंदिर समर्पित है, को एक ब्रह्मचारी योगी माना जाता है और इसी वजह से मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक है मगर ये सारे नियम बनाते समय इस तथ्य को भुला दिया गया कि ब्रह्मचारी भी जिस कोख से जन्मता है वह स्त्री की ही होती है और वह भी जिसे अशुद्ध बताते हैं उसी से जन्मे हैं।
सबरीमाला मंदिर उसी ‘प्रगतिशील केरल’ में है स्थित है जहां बीफ पर प्रतिबंध को रूढ़िवादी कहा जाता है , जहां शत प्रतिशत साक्षरता है।
गोपालकृष्णन के इस बयान के बाद चंडीगढ़ की एक युवती निकिता आजाद ने गत 21 नवंबर को फ़ेसबुक पर ‘HappytoBleed’ पेज बनाया जिसमें उन्होंने महिलाओं से आग्रह किया है कि “वो ये चार्ट या सेनिटरी नैपकिन लेकर अपनी तस्वीर पोस्ट करें ताकि सदियों पुराने इस पितृसत्तात्मक समाज के शर्मिंदा करने वाले इस खेल का विरोध किया जा सके.”महिलाओं ने भी लिख दिया- Hey Mr Temple Chief, We Are Very #HappyToBleed#HappytoBleed
एक सप्ताह बाद भी 21 नवंबर से चलाए जा रहे इस कैंपेन को अभी तक लगातार हिट किया जा रहा है और इसकी अवधि 4 दिसंबर तक है।
केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर का प्रबंधन देखने वाली संस्था त्रावणकोर देवाश्वम बोर्ड के एक अधिकारी के बयान को लेकर फेसबुक और ट्विटर पर जबरदस्त गुस्सा दिख रहा है, जहां सैकड़ों महिलाएं कह रही हैं कि उन्हें अपने शरीर पर गर्व है और ऐसा हो भी क्यों ना ।
ईश्वर की बनाई प्रकृति पर अंकुश लगाया जाना तो स्वयं ईश्वर का अपमान है, शरीर की प्रकृति को लेकर नियम-कानूनों को अब नई पीढ़ी मानने से इंकार कर रही है। यह संकेत है कि जो अभियान अभी फेसबुक और ट्विटर पर हैं उनके ज़मीन पर उतरने का समय आ गया है।
सबरीमाला देवाश्वम बोर्ड के प्रमुख प्रयार गोपालकृष्णन की इस टिप्पणी के खिलाफ ट्विटर और फेसबुक पर कमेंट की झड़ी लग गई, पुरुष और महिलाएं #HappyToBleed हैशटैग के साथ कमेंट कर रहे हैं।
यह मुहिम 21 नवंबर से शुरू है, जिसमें महिलाएं अपने प्रोफाइल या कैंपेन पेज पर प्लेकार्ड या सैनेटरी नैपकिन के साथ तस्वीरें डाल रही हैं।
बहरहाल, चंडीगढ़ की निकिता आजाद की पहल से चला ये कैंपेन कुछ लोगों को बेवजह लग सकता है, कुछ इसे टाइम पास कह सकते हैं मगर ऐसी पहल अब हो चुकी है जहां माहवारी को टैबू की तरह देखने वाले इसे ना तो नज़रंदाज कर पायेंगे और ना ही इसे अपवित्रता का सिंबल बना पायेंगे।
सबसे अच्छी बात ये रही कि लड़कियां अब इस पर बात करते समय हिचकती नहीं हैं… अब वो सैनिटरी नैपकिन लेते समय इधर-उधर नहीं ताकतीं। सदियों से चली आ रही सामंती सोच को बदलने में वक्त लग सकता है मगर वक्त बदलने के निशां उसकी निरंतरता से लगाए जा सकते हैं।
इस संदर्भ में मुझे पत्रकार मनीषा पांडेय का कथन याद आता है कि जो इंडिया गेट पर निर्भया कांड के बाद बोली थीं
”औरत के इंसान बनने की राह में पुरुष की सामंती सोच अब भी सबसे बड़ी दीवार है।”
– अलकनंदा सिंह
द्वंद है अपने अपने अस्तित्व का … उसकी स्थापना का… । इन सबके बीच जो अभिशप्त हैं, अपनी-अपनी गर्दनें ज़मीन में गाड़ लेने के लिए, उन्हें तो समझाना जरूरी हो जाता है ना, और यह जरूरत यदि #HappytoBleed जैसे अभियान के ज़रिये सामने आए तो इसमें आश्चर्य कैसा ?
टैबू बना दिए गये जीवन से जुड़े हिस्सों को अगर नई पीढ़ी खुलेपन का हिस्सा बना रही है तो इसमें हर्ज़ क्या ?
वाकया केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति को लेकर बढ़ा और विवादास्पद बयानों से #HappytoBleed कैम्पेन तक पहुंचा गया। दरअसल त्रावणकोर देवाश्वम बोर्ड के अध्यक्ष प्रयार गोपालकृष्णन ने विवादित बयान दिया कि महिलाओं को प्रसिद्ध साबरीमाला में प्रवेश की अनुमति तभी दी जाएगी जब उनकी शुद्धता की जांच करने वाली मशीन का आविष्कार हो जाएगा।
दरअसल युवा महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में जाने की अनुमति नहीं होती। कुछ लोगों का कहना है कि महिलाओं को इसलिए अनुमति नहीं है, क्योंकि मासिक धर्म के दौरान उन्हें अशुद्ध माना जाता है। हालांकि कुछ दूसरे विद्वानों का कहना है कि भगवान अयप्पा, जिन्हें यह मंदिर समर्पित है, को एक ब्रह्मचारी योगी माना जाता है और इसी वजह से मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक है मगर ये सारे नियम बनाते समय इस तथ्य को भुला दिया गया कि ब्रह्मचारी भी जिस कोख से जन्मता है वह स्त्री की ही होती है और वह भी जिसे अशुद्ध बताते हैं उसी से जन्मे हैं।
सबरीमाला मंदिर उसी ‘प्रगतिशील केरल’ में है स्थित है जहां बीफ पर प्रतिबंध को रूढ़िवादी कहा जाता है , जहां शत प्रतिशत साक्षरता है।
गोपालकृष्णन के इस बयान के बाद चंडीगढ़ की एक युवती निकिता आजाद ने गत 21 नवंबर को फ़ेसबुक पर ‘HappytoBleed’ पेज बनाया जिसमें उन्होंने महिलाओं से आग्रह किया है कि “वो ये चार्ट या सेनिटरी नैपकिन लेकर अपनी तस्वीर पोस्ट करें ताकि सदियों पुराने इस पितृसत्तात्मक समाज के शर्मिंदा करने वाले इस खेल का विरोध किया जा सके.”महिलाओं ने भी लिख दिया- Hey Mr Temple Chief, We Are Very #HappyToBleed#HappytoBleed
एक सप्ताह बाद भी 21 नवंबर से चलाए जा रहे इस कैंपेन को अभी तक लगातार हिट किया जा रहा है और इसकी अवधि 4 दिसंबर तक है।
केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर का प्रबंधन देखने वाली संस्था त्रावणकोर देवाश्वम बोर्ड के एक अधिकारी के बयान को लेकर फेसबुक और ट्विटर पर जबरदस्त गुस्सा दिख रहा है, जहां सैकड़ों महिलाएं कह रही हैं कि उन्हें अपने शरीर पर गर्व है और ऐसा हो भी क्यों ना ।
ईश्वर की बनाई प्रकृति पर अंकुश लगाया जाना तो स्वयं ईश्वर का अपमान है, शरीर की प्रकृति को लेकर नियम-कानूनों को अब नई पीढ़ी मानने से इंकार कर रही है। यह संकेत है कि जो अभियान अभी फेसबुक और ट्विटर पर हैं उनके ज़मीन पर उतरने का समय आ गया है।
सबरीमाला देवाश्वम बोर्ड के प्रमुख प्रयार गोपालकृष्णन की इस टिप्पणी के खिलाफ ट्विटर और फेसबुक पर कमेंट की झड़ी लग गई, पुरुष और महिलाएं #HappyToBleed हैशटैग के साथ कमेंट कर रहे हैं।
यह मुहिम 21 नवंबर से शुरू है, जिसमें महिलाएं अपने प्रोफाइल या कैंपेन पेज पर प्लेकार्ड या सैनेटरी नैपकिन के साथ तस्वीरें डाल रही हैं।
बहरहाल, चंडीगढ़ की निकिता आजाद की पहल से चला ये कैंपेन कुछ लोगों को बेवजह लग सकता है, कुछ इसे टाइम पास कह सकते हैं मगर ऐसी पहल अब हो चुकी है जहां माहवारी को टैबू की तरह देखने वाले इसे ना तो नज़रंदाज कर पायेंगे और ना ही इसे अपवित्रता का सिंबल बना पायेंगे।
सबसे अच्छी बात ये रही कि लड़कियां अब इस पर बात करते समय हिचकती नहीं हैं… अब वो सैनिटरी नैपकिन लेते समय इधर-उधर नहीं ताकतीं। सदियों से चली आ रही सामंती सोच को बदलने में वक्त लग सकता है मगर वक्त बदलने के निशां उसकी निरंतरता से लगाए जा सकते हैं।
इस संदर्भ में मुझे पत्रकार मनीषा पांडेय का कथन याद आता है कि जो इंडिया गेट पर निर्भया कांड के बाद बोली थीं
”औरत के इंसान बनने की राह में पुरुष की सामंती सोच अब भी सबसे बड़ी दीवार है।”
– अलकनंदा सिंह