सोमवार, 28 सितंबर 2015

विसर्जन किसका होना चाहिए ?

धर्म अगर शब्दों, प्रतीकों, मूर्तियों तक सिमट कर रह जाए तो उसमें जड़ता आना स्वाभाविक है... और यही जड़ता जब 'सिर्फ मैं' की संतुष्टि के लिए मरने-मारने पर उतारू हो जाए तो ज़रा बताइये, धर्म बचेगा क्या ?
धर्म पालन के नाम पर नियम-कानून से भी ख‍िलवाड़ किया जाना पिछले कुछ दिनों से एक शगल बनता जा रहा है। स्थ‍िति तब और खतरनाक हो जाती है जब कानून को स्वयं धर्मध्वज ही तोड़ने लगें। ऐसे में धर्म का कौन सा स्वरूप आमजन के बीच स्थापित होगा, इसकी परिणति लोगों की मानसिकता को कितना धस्त करेगी, इसे आसानी से समझा जा सकता है ।
गणेश प्रतिमा विसर्जन की आड़ में वाराणसी, गोंडा और मुंबई की घटनाएं धर्म के नाम पर असहिष्णु स्वरूप को लेकर यह सोचने के लिए काफी हैं कि आखिर किस ओर जा रहे हैं हम, कौन सी सोच को प्राश्रय दे रहे हैं?
भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापना के पीछे जो उद्देश्य होता है, उसे किस आतातायी युग में ले जा रहे हैं?
वाराणसी में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सहित बजरंग दल व अन्य हिंदू धर्मावलंबियों ने गणेश प्रतिमा का गंगा में विसर्जन करने के लिए काशी के प्रशासन के समक्ष धरना दे रखा था। कोर्ट के आदेशों की वजह से प्रशासन उन्हें रोक रहा था जिसके परिणाम स्वरूप टकराव बढ़ा और वह लाठीचार्ज में तब्दील हो गया।
अब इस पर स्थानीय नेताओं के साथ-साथ प्राची जैसी बेलगाम जुबान वाली साध्वी भी इसे प्रशासन की हिंदू विरोधी कार्यवाही बताकर बरगलाने की कोशि‍श कर रही है ।
दूसरा मामला गोंडा में प्रतिमा विसर्जन को लेकर दो पक्षों के आपस में भि‍ड़ जाने का है। यहां भी कोर्ट के आदेशानुसार प्रतिमा विसर्जन के लिए बनाए गए कुंड में विसर्जन न करने पर कथ‍ित भक्तगण अड़े हुए थे और उसे नदी में प्रवाहित करना चाहते थे।
तीसरा मामला कुछ अलग है। मुंबई में प्रतिमा विसर्जन के दौरान गुटबाजी के चलते एक गुट के लोगों ने दूसरे गुट के व्यक्ति को प्रतिमा के साथ ही कुंड में डुबोकर मार दिया, सीसीटीवी फुटेज में मिले सबूतों से पता चला वरना वो महज हादसा बताकर रफा दफा कर दिया जाता।
वाराणसी और गोंडा की घटनाएं नदियों में प्रदूषण के प्रति आमजन की लापरवाही को ही नहीं, बल्कि धर्म को सिर्फ और सिर्फ ढोंग बनाकर पेश कर रही हैं। सदियों पूर्व नदियों की स्वच्छता के लिए स्वयं समाज ने जिन नियमों को बनाया था, आज वही अपने उन नियमों को तोड़ रहा है और नतीजा यह कि अब जीवनदायिनी नदियों को धर्म के इस रूप से ही बचाने को कोर्ट को सामने आना पड़ रहा है।
यह क्या लज्जा की बात नहीं कि हमें हमारी नदियों की शुद्धता व पवित्रता बनाए रखने के लिए कोर्ट को आदेश देना पड़ रहा है। समाज के इन धर्माध‍िकारियों से ये पूछा जाना चाहिए कि हर व्यक्ति को धर्म का उपदेश देने से पहले ये स्वयं ही धर्म को अपने आचरण में ढाल कर क्यों नहीं दिखाते ।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद पुलिस प्रशासन की लाठियां खाते समय चीख रहे थे ''मैं अपने भगवान को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगा'' ...तो  क्या अविमुक्तेश्वरानंद को यह नहीं बताया जाना चाहिए कि भगवान ''छोड़ने और पकड़ने'' की वस्तु नहीं होते। जो छोड़ना है वह है अपना अंधविश्वास, नदियों को प्रदूषित करने की अंधविश्वासी प्रवृत्ति।
इसी तरह गोंडा की घटना में मूर्ति विसर्जन को लेकर जो जिद अपनाई गई वह क्या गणेश की मूर्ति स्थापना का मज़ाक नहीं थी?
मुंबई में गणेश विसर्जन के साथ ही किसी की हत्या भी क्या धर्म के इसी बिगड़ते स्वरूप की बानगी नहीं है?
बहरहाल, पिछले कुछ दिनों से धर्म और उनके अनुयायियों की इतनी जमातें सामने आई हैं कि इन सब में इंसानियत तो कहीं पीछे छूटी ही, वो मुद्दे भी पीछे छूट गये जिनके लिए सरकारें अभी तक ना जाने कितना धन और समय बर्बाद कर चुकी हैं।
देश में लाखों की संख्या में साधु संत मौजूद हैं मगर आज तक कितनों ने नदियों के प्रदूषण को दूर करने की पहल की है। पूरा का पूरा जीवन साधना के नाम पर 'आराम' फरमाने पर जाया कर दिया।
स्वयं अविमुक्तेश्वरानंद चाहते तो एक अलग मिसाल कायम कर सकते थे, लीक से हटकर प्रतिमा विसर्जन की नई पद्धति ईज़ाद करते, कुछ अलग करने की पहल तो करते .... निश्च‍ित जानिए उन्हें सर आंखों पर बैठा लिया जाता ... । मगर धर्म की पट्टी बांधे लोगों से धर्म को इंसान व देश की बेहतरी के लिए प्रयुक्त करने की आशा करना बेमानी है। कट्टरवादिता का ये स्थापित रूप अब असहनीय होता जा रहा है।    
- अलकनंदा सिंह

सोमवार, 21 सितंबर 2015

दिल्‍ली में कुमाऊं साहित्य समारोह का आयोजन

नई दिल्‍ली। राष्ट्रीय राजधानी दिल्‍ली में कुमाऊं साहित्य समारोह का आयोजन 23 से 27 अक्टूबर तक किया जाएगा. इसका पूर्वावलोकन राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित किया गया. पूर्वावलोकन के तौर पर समारोह से संबंधित कई सामाजिक कार्यक्रमों- ‘वुमेन राइटर्स अनलिमिटेड’, ‘फेलोज ऑफ नेचर’, ‘लिटररी भागीदारी’ और ‘के-लिट’ मोबाइल एप का अनावरण किया गया.
उत्तराखंड में हिमालय में बसे छोटे से गांव धनचौली के ते-अरोहा में देश की इस पहली साहित्य समारोह यात्रा में जाने-माने लेखक, सिनेमा और मीडिया की जानी-मानी हस्तियां, राजनीतिक टीकाकार आदि भाग लेंगे.
इस समारोह के संस्थापक और पेशे से वकील सुमंत बत्रा ने कहा कि इस वार्षिक समारोह को धनचौली में आयोजित करने के पीछे कारण यह है कि इस जगह का साहित्य से खास रिश्ता है.
बत्रा ने कहा, “कुमाऊं साहित्य समारोह ग्रामीण क्षेत्र में आयोजित किया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय स्तर का पहला समारोह है.”
पत्रकार और समारोह की सलाहकार समीति की अध्यक्ष बरखा दत्त ने बताया, “इस असहिष्णु समाज में यह समारोह प्रतिबंध की संस्कृति पर बात करेगा. पोर्न पर प्रतिबंध का समर्थन करने वाली लेखिका अनुजा चौहान और इसका विरोध करने वाले अन्य लोग अपने विचार प्रकट करने के लिए मंच साझा करेंगे.”
बत्रा ने कहा, “यह पहला ऐसा समारोह होगा, जिससे कई सामाजिक और अन्य मुद्दों के सार्थक परिणाम निकल कर सामने आएंगे.”
वुमेन राइटर्स अनलिमिटेड सीरीज महिलाओं को सशक्त बनाने की एक पहल है. यह कुमाऊं साहित्य समारोह के इस खास आकर्षण को उजागर करती है कि इसके प्रतिभागियों में 50 फीसदी से अधिक महिलाएं हैं.
एक अन्य सामाजिक कार्यक्रम ‘फैलोज ऑफ नेचर’ में प्रकृति पर लघु कथाओं की एक किताब तैयार करने की योजना है. चुनी गई दो सर्वोत्कृष्ट कहानियों को ‘एफओएन’ पुरस्कार दिया जाएगा. इस अभियान के तहत पर्यावरण के जटिल मुद्दों पर प्रकाश डाला जाएगा.
साहित्य भागीदारी कार्यक्रम युवाओं को सहित्य के माध्यम से प्रेरित करेगा.
मोबाइल एप ‘के लिट’ समारोह को लाइव देखने और वक्ताओं से बातचीत की सुविधा देगा.
समारोह की योजना और अवधारणा बरखा दत्त, साहित्यकार अनुज बाहरी, फिल्म निर्माता झानवी प्रसाद और कई अन्य लोगों ने मिलकर की है. यूएन वुमेन और उत्तराखंड पर्यटन विभाग ने समारोह में सहयोग दिया है.
समारोह के वक्ताओं में कथाशिल्पी मृणाल पांडे, इतिहासकार शेखर पाठक, साहित्यिक इतिहासकार रक्षंदा जलील, लेखिका अनुजा चौहान और नमिता गोखले सहित कई अन्य शामिल होंगे.
समारोह में ‘राजनीतिक अभियान का स्थानांतरित होता परिदृश्य’, ‘भारतीय सिनेमा केभूली हुई किंवदंतियां’ ‘पारंपरिक भारत में महिलाओं की भूमिका’ और ‘जनमानस को साहित्य से जोड़ती भारतीय कविता’ जैसे विषयों पर चर्चा की जाएगी.

महावीर प्रसाद द्विवेदी अभिनंदन ग्रंथ के पुनर्प्रकाशन का विमोचन


रायबरेली। 83 साल पहले छपे व आज दुर्लभ महावीर प्रसाद द्विवेदी अभिनंदन ग्रंथ के पुनर्प्रकाशन का विमोचन समारोह साहित्य आकदेमी के अध्यक्ष डा. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी द्वारा किया गया। उन्होंने कहा कि पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी युग निर्माता और युग प्रेरक थे। उन्होंने प्रेमचद, मैथिलीशरण गुप्त जैसे लेखकों की रचनाओं में संशोधन किए। उन्होंने विभिन्न बोली-भाषा में बंटी हिंदी को एक मानक रूप में ढालने का भी काम किया। वे केवल कहानी-कविता ही  नहीं, बल्कि बाल साहित्य, विज्ञान, किसानों के लिए भी लिखते थे।  हिंदी में प्रगतिशील चेतना की धारा का प्रारंभ द्विवेदीजी से ही हुआ।
श्री तिवारी आज से 83 साल पहले छपे व आज दुर्लभ महावीर प्रसाद द्विवेदी अभिनंदन ग्रंथ के पुनर्प्रकाशन के विमोचन समारोह में मुख्य अतिथि की आसंदी से बोल रहे थे। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति, रायबरेली और राइटर्स एंड जर्नलिस्ट एसोसिएशन, दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में संपन्न इस समारोह की अध्यक्षता प्रख्यात आलोचक प्रो. मैनेजर पांडे कर रहे थे। इस आयोजन में पद्मश्री रामबहादर राय, प्रो. पुष्पिता अवस्थी, नीदरलैंड , अनुपम मिश्र और न्यास की निदेशक डा. रीटा चौधरी विश‍िष्ट अतिथि थे।
उल्लेखनीय है कि सन 1933 में काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा आचार्य द्विवेदी के सम्मान में प्रकाश‍ित इस ग्रंथ में महात्मा गांधी से लेकर ग्रियर्सन तक और प्रेमंचद से लेकर सुमित्रानंदन पंत व सुभद्रा कुमारी चौहान तक देश-दुनिया के सभी विश‍िष्ट लोगों ने आलेख लिखे थे।
कई दुर्लभ चित्रों से सज्जित यह ग्रंथ उस दौर की भारतीय संस्कृति व सरोकार का आईना था। इस दुर्लभ पुस्तक को राष्ट्रीय पुस्तक न्यास ने फिर से प्रकाश‍ित किया है जिसकी भूमिका प्रो. मैनेजर पांडे ने लिखी है। अपने उद्बोधन में प्रो. पांडे ने इस ग्रंथ को भारतीय साहित्य का विश्वकोष निरूपित किया। उन्होंने आचार्यजी की अर्थशास्त्र में रूचि व ‘‘संपत्ति शास्त्र’’ के लेखन, उनकी महिला विमर्ष और किसानों की समस्या पर लेखन में भूमिका पर विस्तार से प्रकाश डाला।  श्री अनुपम मिश्र ने पुस्तक में प्रस्तुत चित्रों को अपने विमर्ष का केंद्र बनया। उन्होंने नंदलाल बोस की कृति ‘रूधिर’ और अप्पा साहब की कृति ‘मोलभाव’ पर चर्चा करते हुए उनकी प्रासंगिकता पर विचार व्यक्त किए। श्री मिश्र ने अच्छे कामों के केंद्र को विकेंद्रीकृत करने पर जोर दिया।
नीदरलैड से पधारीं हिंदी विदुषी प्रो. पुश्पिता अवस्थी ने कहा कि इस ग्रंथ को कई-कई बार पढ़ कर ही सही तरीके से समझा जा सकता है। उन्होंने कहा कि हिंदी का असली ताकत उन घरों में है, उन मस्तिष्कों में है जहां भारतीय संस्कृति बसती है। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास की निदेशक व साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित लेखिका डा. रीटा चैधरी ने कहा कि यह अवसर न्यास के लिए बेहद गौरवपूर्ण व महत्वपूर्ण है कि हम इस अनूठे ग्रंथ के पुनप्र्रकाषन के कार्य से जुड़ पाए। उन्होंने ऐसी विश‍िष्ट पुस्तकों का अनुवाद सभी भारतीय भाषाओं में करने  पर बल दिया। डा. चौधरी ने कहा कि यह ग्रंथ हिंदी का नहीं बल्कि भारतीयता का ग्रंथ है और उस काल का भारत दर्शन है।
प्रख्यात पत्रकार रामबहादुर राय ने इन दिनों मुद्रित होने वाले नामीगिरामी लोगों के अभिनंदन ग्रंथों की चर्चा करते हुए कहा कि ऐसे ग्रंथों को लोग घर में रखने से परहेज करते हैं लेकिन आचार्य द्विवेदी की स्मृति में प्रकाश‍ित यह ग्रंथ हिंदी साहित्य, समाज, भाषा, ज्ञान का विमर्श करते हैं ना कि आचार्य द्विवेदी की प्रशंसा मात्र। उन्होंने इस ग्रंथ को अपने आप में एक विष्व हिंदी सम्मेलन निरूपित किया।
कार्यक्रम के प्रारंभ में श्री गौरव अवस्थी ने महावीर प्रसाद द्विवेदी से जुड़ी स्मृतियों का एक पॉवर पॉईंट प्रेजेंटेशन किया जिसमें बताया गया कि किस तरह से रायबरेली का आम आदमी, मजदूर, किसान भी आचार्य द्विवेदी जी को समझता और सम्मान करता है। अंत में पत्रकार अरविंद कुमार सिंह ने इस ग्रंथ के प्रकाशन हेतु राष्ट्रीय पुस्तक न्यास व इस आयोजन के लिए रायबरेली की जनता को धन्यवाद किया। कार्यक्रम का संचालन पंकज चतुर्वेदी ने किया।

मंगलवार, 15 सितंबर 2015

‘ख़बर लहरिया’ अख़बार की संपादक और पत्रकारों को बलात्कार की धमकी

नई दिल्‍ली। ‘ख़बर लहरिया’ नाम से अख़बार निकालने वाली आदिवासी और दलित ग्रामीण महिलाएं को आठ महीने से एक शख़्स बलात्कार की धमकी दे रहा है। उत्तर प्रदेश की इन महिला पत्रकारों को टेलीफ़ोन से अश्लील बातें कहने और धमकियां देने वाले शख़्स के ख़िलाफ़ आख़िरकार राज्‍य सरकार ने कार्यवाही करने का भरोसा दिलाया है.
उत्तर प्रदेश सरकार ने एक ट्वीट में कहा कि, “स्पेशल टीम बनाई गई है और उन्हें अपराधी को जल्द से जल्द पकड़ने के लिए रवाना कर दिया गया है.”
ये आदिवासी, दलित ग्रामीण महिलाएं ‘ख़बर लहरिया’ नाम का अख़बार चलाती हैं. 40 महिलाओं द्वारा चलाया जाने वाला ये अख़बार उत्तर प्रदेश और बिहार में स्थानीय भाषाओं में छपता है.
अख़बार की संपादक कविता ने एक वेबसाइट पर अपनी आपबीती लिखी.
उनके लेख के मुताबिक़ जनवरी से एक शख़्स उन्हें लगातार फ़ोन कर रहा है, “रात में फ़ोन करके वो कहता, मुझसे गंदी बातें करो, नहीं तो मैं तुम्हारा अपहरण कर बलात्कार करूंगा। कई बार करूंगा, जहां भी छिपोगी, ढूंढ लूंगा, तुम्हें भी और तुम्हारी साथियों को भी.”
संपादक के मुताबिक़ ये आदमी अलग-अलग नंबर से फ़ोन करता है और कई बार उनका और उनकी सहयोगियों के सिम कार्ड भी ब्लॉक करवा चुका है.
कविता के मुताबिक़ मार्च में उन्होंने उस आदमी के ख़िलाफ़ पुलिस में एफ़आईआर दर्ज कराई थी पर अब तक उसे ढूंढा नहीं जा सका है.
वो पुलिस के ख़राब रवैये की भी चर्चा करती हैं, “इंस्पेक्टर ने मुझे कहा, बताओ वो तुम्हें कौन सी गालियां देता था? कैसे कहता था? जो भी वो फ़ोन पर कहता था वो सब मेरे लिए दोहराओ”
‘द लेडीज़ फ़िंगर’ वेबसाइट पर उनका लेख छपने के बाद उसे ट्विटर पर कई महिला पत्रकारों ने शेयर किया. आख़िरकार उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ़ से आश्वासन भरे ट्वीट किए गए.
उत्तर प्रदेश सरकार के ट्वीट में कहा गया कि बांदा के एसपी ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि ये केस बहुत संवेदनशीलता से देखा जाएगा.
एक और ट्वीट में कहा गया, “बांदा की पत्रकारों के मुद्दे का संज्ञान ले रहे हैं, बांदा के एसपी को हिदायत दी गई है कि पत्रकारों के साथ ऐसी प्रताड़ना के लिए ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ होनी चाहिए.”
ख़बर लहरिया साल 2002 में छपना शुरू हुआ था. इसे संयुक्त राष्ट्र के ‘लिट्रेसी प्राइज़’ समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है.

बुधवार, 9 सितंबर 2015

जनरल वी. के. सिंह साहब! राजनीति में रहकर कड़वा सच नहीं बोलते...

क्या कहा ? राजनीति और सच , दोनों एक साथ ?  नहीं ...नहीं । राजनेता है तो वह सच नहीं बोल सकता, बोलना चाहे तो भी सच उसे न जाने कितने झूठों के साथ लपेट कर धीमे से सरकाना पड़ता है, और यदि कभी सच बोल दिया सीधे सीधे, तो मीडिया ही बचता है आड़ लेने को, कि नहीं भाई मैंने ऐसा (सच) कुछ नहीं कहा, वो  तो मीडिया ने तोड़ मरोड़ कर पेश कर दिया है। आज ऐसा ही कुछ विदेश राज्य मंत्री और सेना के पूर्व जनरल श्री वी. के. सिंह के सच कहे जाने पर मचे बवाल का सीन था।
भोपाल में कल से शुरू होने जा रहे दसवें हिंदी सम्मेलन से पूर्व आयोजित प्रेस वार्ता में वी. के. सिंह ने पत्रकारों द्वारा कुछ नामी सहित्यकारों को न बुलाए जाने के सवाल पर कुछ ऐसा सच कह दिया जो बड़े साहित्यकारों की नैतिकता की बख‍िया उधेड़ता दिखा। मीडिया ने भी इसे अच्छे मसाले के साथ पेश किया।
सिंह से जब पूछा गया कि इस आयोजन में ज्यादातर बड़े साहित्यकारों की उपेक्षा की गई और आपने कई बड़े नामों को इसमें आमंत्रित नहीं किया तो सिंह साहब ने कहा कि कुछ साहित्यकार हिंदी सम्मेलन में सिर्फ शराब पीने आते थे। इस बयान का साहित्यकारों ने विरोध भी शुरू कर दिया है।
हालांकि बतौरे-सफाई बाद में वीके सिंह ने सारा ठीकरा मीडिया के सिर फोड़ते हुए कहा कि बिका हुआ है मीडिया, मीडिया ने उनका बयान  तोड़-मरोड़ कर पेश किया है।  मुझे तो बताया गया था कि साहित्कार अपनी किताबों, लेखों को लेकर शराब के नशे में लड़ते-झगड़ते थे... । वीके सिंह ऐसा कहकर विवाद से पीछा छुड़ाने की कोश‍िश करते रहे, बस।
निश्चित ही यह वह सच था, जो न सिर्फ एक राजनेता द्वारा कहा गया बल्कि सम्मेलन के आधार स्तंभों यानि साहित्यकारों की निजता पर तीखा हमला भी था।
संभवत: शराब तो बहानाभर है उन साहित्यकारों से पीछा छुड़ाने का जो सरकार की भावनाओं से ताल नहीं बिठाते अथवा दक्ष‍िणपंथी सोच से अलग रहते हैं या फ‍िर 'वामपंथी बेचारगी' से तरबतर हैं ।
यूं भी ज़रा सोचिए ! जब आयोजक शराब मुहैया ही नहीं करायेंगे तो आमंत्रित अतिथ‍ि और वह भी साहित्यकार कम से कम अपनी जेब से तो पीने से रहा।
तो जनाब वी. के. सिंह साहब ! ये कोई ग़ालिब का ज़माना तो है नहीं और ना ही फिराक़ गोरखपुरी का, कि उम्दा रचनाओं के बाहर आने के लिए भी शराब एक माध्यम बन रही हो। ये तो इक्कीसवीं सदी है, जब साहित्य की उम्दा रचनाओं के लिए नहीं बल्कि साहित्य के बाजार को तिकड़मी बनाने के लिए शराब को पिया और पिलाया जाता है। अब के साहित्यकार घर फूंक कर न तो शराब पीते हैं और न ही साहित्य रचने के लिए शराब पीते हैं। अब शराब साहित्य का नहीं मार्केटिंग का आधार है।
मेरा ख़याल है कि सिंह साहब शायद पूरी तरह से अपनी बात कह नहीं पाये, वो अधूरे राजनेता हैं ना।
यह तो मैं भी कहूंगी कि सरकार का बड़प्पन इसी में रहता कि वह हिंदी सम्मेलन में सभी बड़े साहित्यकारों को आमंत्रित करती। आख‍िर सम्मेलन के वे आधार स्तंभ तो हैं ही।  कुछ 'बड़ों' को न बुलाकर सरकार ने स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी चला ली है। इस एक बयान से सिंह साहब ने बैठे बिठाए बुद्धिजीवियों के विरोध को आमंत्रण दे दिया।
- सुमित्रा सिंह चतुर्वेदी   

मंगलवार, 8 सितंबर 2015

अब आया हिन्दी सोशल नेटवर्किंग साइट ‘मूषक’

भोपाल। दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन में शिरकत करने आए पुणे के अनुराग गौड़ एवं उनके साथियों ने आज यहां ‘ट्विटर’ की तर्ज पर पूरी तरह हिन्दी में काम करने वाला ‘मूषक’ सोशल नेटवर्किंग साइट देशवासियों और हिन्दी प्रेमियों के लिए पेश किया है।
हिन्दी सोशल नेटवर्किंग साइट ‘मूषक’ के मुख्य कार्यपालन अधिकारी :सीईओ: अनुराग गौड़ ने बताया कि जहां ट्विटर पर शब्दों की समय सीमा 140 शब्द हैं, वहीं हमने मूषक पर इसे 500 रखा है। कम्प्यूटर अथवा स्मार्टफोन पर हिन्दी टाइप करना रोमन लिपि पर आधारित है, इसलिए लोग हिन्दी लिखने से कतराते हैं। उन्होंने कहा कि आज के डिजिटल युग में बदलती तकनीक के साथ हिन्दी को लोगों से परिचित कराना होगा, ताकि लोग रोमन लिपि से पिछड़कर अपनी पहचान ना खो दें।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि स्मार्टफोन पर उनकी इस सोशल नेटवर्किंग साइट ‘मूषक’ को गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है तथा इसके अलावा कम्प्यूटर पर इसे गूगल सर्च में डब्लूडब्लूडब्लू डॉट मूषक डॉट इन के नाम से खोजा जा सकता है।
गौड़ ने कहा कि भाषा वैज्ञानियों का विचार है कि जो भाषा हम बोलना है और जानते हैं, उसे थोड़े प्रयत्नों से ही सरलता से लिखना सीख जाते हैं। उन्होंने कहा कि ‘मूषक’ का उद्देश्य हिन्दी और देवनागरी को आज की पीढी के लिए सामयिक और प्रचलित करना है। इस सोशल नेटवर्किंग साइट पर हिन्दी भाषी रोमन में टाइप करने से वहीं तत्काल हिन्दी शब्द का विकल्प पा सकेंगे।
एक अन्य प्रश्न के उत्तर में ‘मूषक’ के सीईओ ने कहा कि ट्विटर, फेसबुक सरीखे सोशल नेटवर्किंग साइट्स, जिसे हमारे नेताओं, अभिनेताओं और प्रतिष्ठित लोगों ने जोर-शोर से अपनाया है, वहां प्राथमिकता अंग्रेजी भाषा को दी जाती है और उसे ही देश की आवाज समझा जाता है। हिन्दी दोयम दर्जे की मानी जाती है। उन्होंने कहा कि मूषक द्वारा हम इस प्रक्रिया को सही मायनों में गणतांत्रिक बनाना चाहते हैं, जहां गण की आवाज गण की भाषा में ही उठे।

गुरुवार, 3 सितंबर 2015

लियोनी की लीला पर अंजान का अतुल्य उवाच

अभी कुछ दिन ही हुए हैं जब केंद्र सरकार ने अप्रत्यक्ष रूप से ही सही, कुछ पॉर्न वेबसाइट्स को निगरानी के बहाने प्रतिबंधित किया था। उसके बाद अचानक पूरे देश से कथ‍ित बुद्धिजीवी निकल-निकल कर बाहर आ गए और चीखने लगे कि यह तो व्यक्ति की आजादी को छीनना है। कोई अपने बेडरूम में अपना जीवन कैसे जीता है, सरकार इसे कंडक्ट कैसे कर सकती है। हो- हल्ला इतना हुआ कि सरकार को पॉर्न साइट्स पर से प्रतिबंध हटाना पड़ा। इन हो-हल्ला करने वालों को बढ़ते रेप, सेक्स की मंडियों में बच्चों को सेक्स टॉयज की तरह इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति, ज्यादातर रेप केसेज में अपराधियों द्वारा खुद ब्लूफिल्म देखना स्वीकारना जैसे उदाहरण नजर नहीं आते जबक‍ि रेप के लिए ब्लूफिल्म की सहज उपलब्धता एक एनहांसर के रूप में सामने आई है।
ऐसा ही एक एनहांसर है टीवी पर सनी लियोनी द्वारा दिया जा रहा कंडोम का एक विज्ञापन जिसमें वह बाकायदा यह समझाती है कि कंडोम को कैसे और कितनी बार यूज किया जा सकता है।
इस पर हम अन्य सेक्सी विज्ञापनों की तरह नज़र नहीं डालते, यदि वामपंथी नेता अतुल अंजान ने सनी लियोनी के कंडोम के विज्ञापन को लेकर सवाल न उठाए होते।
दरअसल उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में एक रैली के दौरान उन्होंने कहा कि कंडोम का एड करती सनी लियोनी के टीवी कमर्शियल्स से देश में रेप के मामले बढ़ेंगे।
अतुल अंजान ने अभिनेत्री सनी लियोनी पर हमला बोलते हुए कहा कि उसके जरिए संस्कृति को खराब किया जा रहा है। सनी लियोनी एक पोर्न स्टार है और मैं उसका सम्मान नहीं कर सकता।
अंजान ने कहा कि मैं सेंसर बोर्ड से सनी लियोनी की शिकायत करूंगा।
अंजान ने कहा कि टेलीविजन खोलते ही सनी लियोनी के विज्ञापन आते हैं और वो पूरे दिन चलते हैं। अंजान का कहना है कि कंडोम के इतने गंदे और अभद्र प्रचार रेडियो और टेलीविजन पर चलेंगे तो इससे देश में रेप की घटनाएं बढ़ेंगी, कम नहीं होंगी।
अतुल अंजान ने एक टीवी चैनल से बातचीत में कहा कि मैं तो नारी का सम्मान करने वाला हूं। मैं कंडोम का विरोधी नही हूं, जिन लोगों को इस बात से नाराज़गी है क्या वो अपनी मां-बहन, बेटियों के साथ ये देख सकते हैं। ये कोई विज्ञापन है। सनी लियोनी का सम्मान मैं नहीं कर सकता। उसकी नंगी फिल्में देखिए, क्या असभ्यता है, जो लड़की आपके समाज को ये गंदा मेसैज दे, आप अपने मन से सेंसर बोर्ड को शिकायत दे दें मेरी तरफ से, मैं तो बंद कराउंगा ही। जिन लोगों को सनी लियोनी से प्रेम है, मैं उनसे कहूंगा कि अपने घर में कला के नाम पर ये एड अपनी बहन, मां, बेटियों को दिखाएं और अगर किसी को इस से आपत्ति है तो मैं माफी मांगता हूं।
निश्चित ही अतुल अंजान ने हर मिडिल क्लास घर की वो सच्चाई सामने रखी है जिसमें सनी लियोनी आज भी वल्गर मानी जाती है। आज भी कोई निर्लज्ज विज्ञापन आते ही पूरा परिवार एक दूसरे से नजरें चुराता है, आज भी बाप के सामने बेटी या बेटा कंडोम की बात तो दूर अंडरगारमेंट्स या परफ्यूम के अश्लील विज्ञापन आने पर बात का रुख बदल देता है या चैनल बदलना ज्यादा मुफीद समझता है ।
इलेक्ट्रानिक मीडिया पर आजादी की बहस तो बहुत चलती है मगर नैतिकता सिखाने वाले कदम क्या हों, इस बावत कोई बहस सुनाई नहीं देती। इन चैनलों की बाजारू प्रवृत्त‍ि समाज में किन-किन अपराधों को बढ़ावा दे रही है, अभी शायद कोई इन्हें समझ नहीं पा रहा। इन चैनलों के अनुसार तो आजादी का मतलब नंगा होना ही है, तभी तो इन्हें सनी लियोनी रोल मॉडल नजर आती है और उसके विज्ञापनों का हमारे ड्रॉइंग रूम्स में सरेआम देखना खुलेपन का उदाहरण।
इन चैनलों की ही देन है कि हम अपने सारे नीति वाक्यों को बेमानी बनते हुए देख रहे हैं, जिनमें कहा जाता था कि भोजन-भजन और रति एकांत में ही किए जाने चाहिए। कंडोम का विज्ञापन हमें आजादी के नाम पर कामुकता की जिस अंधी कैद में धकेलता जा रहा है, उसके ख‍िलाफ आवाज उठनी ही चाहिए। हम आज भी नंगे होने को असभ्यता ही मानते हैं और इसे अपराध की जद में रखते हैं। मैं तो अतुल अंजान जी को बधाई का पात्र मानती हूं कि उन्होंने वामपंथी होते हुए इस शाश्वत सत्य को खुले मंच से कहा और यह भी कहा कि नंगे विज्ञापनों को करने वाली पॉर्न स्टार को मैं सम्मान नहीं दे सकता। ज़ाहिर है कि हम आज भी इतने खुलेपन को नकारते हैं जो हमें अपने बच्चों के सामने नज़रें चुराने पर विवश कर देता हो।
गनीमत यह रही कि ये आवाज किसी हिंदूवादी संगठन ने नहीं उठाई वरना इसे कट्टरवादी सोच कह कर कब का दबा दिया जाता। अतुल अंजान के बहाने ही सही, यह बहस चलनी चाहिए ताकि मां, बहन और बेटियों को टीवी के सामने अपनी मौजूदगी शर्मिंदगी ना लगे।
– सुमित्रा सिंह चतुर्वेदी

दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन की तैयारियां जोर शोर से शुरू

भोपाल। दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन की तैयारियां जोर शोर से जारी हैं जिसका आयोजन यहां 10 से 12 सितंबर के बीच किया जाएगा और जिसमें हिंदी फिल्मों के महानायक अमिताभ बच्चन आकषर्ण का मुख्य केंद्र होंगे ।
दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन में समकालीन मुद्दों और विषयों पर विचार-विमर्श किया जाएगा तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, सूचना प्रौद्योगिकी, प्रशासन और विदेश नीति, विधि, मीडिया आदि के क्षेत्रों में हिंदी के सामान्य प्रयोग और विस्तार से संबंधित तौर तरीकों पर चर्चा होगी। सम्मेलन का मुख्य विषय ‘हिंदी जगत: विस्तार एवं संभावनाएं’ है।
ताल-तालाबों की नगरी भोपाल में होने वाले इस सम्मेलन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करेंगे तो समापन समारोह में गृह मंत्री राजनाथ सिंह पधारंेगे। समापन समारोह में बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन भी आकषर्ण का मुख्य केन्द्र होंगे।
सम्मेलन के आयोजन से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श करने के लिए परामर्श, प्रबंधन और कार्यक्रम से संबंधित तीन समितियां गठित की गई हैं। परामर्श एवं कार्यक्रम समितियों की अध्यक्ष विदेश मंत्री सुषमा स्वराज हैं जबकि प्रबंधन समिति के अध्यक्ष विदेश राज्य मंत्री जनरल (सेवानिवृ}ा) डॉ. वी.के. सिंह हैं।
मध्य प्रदेश राज्य सरकार सम्मेलन की स्थानीय आयोजक है और मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री, शिवराज सिंह चौहान मुख्य संरक्षक हैं। सम्मेलन के लिए माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल भागीदार संस्था है।
विश्व हिंदी सम्मेलन की संकल्पना राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा द्वारा 1973 में की गई थी। संकल्पना के फलस्वरूप, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के तत्वावधान में प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन 10 से 12 जनवरी 1975 को नागपुर में आयोजित किया गया था। इसके बाद विश्व हिंदी सम्मेलन दो बार पोर्ट लुई (मॉरीशस) में, दो बार भारत में, पोर्ट ऑफ स्पेन (ट्रिनिडाड एण्ड टोबेगो), लंदन, पारामारिबो (सूरीनाम), न्यूयार्क (अमेरिका) और जोहांसबर्ग (दक्षिण अफ्रीका) में आयोजित किया जा चुका है ।