नई दिल्ली। हिंदी के मशहूर कथाकार मिथिलेश्वर को आज यहां प्रतिष्ठित श्रीलाल शुक्ल इफको साहित्य सम्मान से नवाजा गया। केंद्रीय संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने श्री मिथिलेश्वर को पुरस्कार के तहत 11 लाख रुपए नकद. प्रशस्ति पत्र. प्रतीक चिह्न तथा शाल भेंट कर सम्मानित किया। हिंदी के प्रतिष्ठित साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल के नाम पर शुरू किया गया यह चौथा सम्मान है। इससे पहले हिंदी के प्रमुख साहित्यकार विद्यासागर नौटियाल. शेखर जोशी तथा संजीव को यह सम्मान दिया जा चुका है।
शनिवार, 31 जनवरी 2015
गुरुवार, 29 जनवरी 2015
प्रि-नेटल सेक्स डिटरमिनेशन: थैक्यू सुप्रीम कोर्ट
अगर आप वेब मीडिया से जुड़े हैं तो अब आपको प्रि-नेटल सेक्स डिटरमिनेशन से जुड़े विज्ञापन या इससे संबंधित सामग्री देखने को नहीं मिलेगी।
कल सुप्रीम कोर्ट ने कन्या भ्रूण हत्या से संबंधित वेब सर्चिंग पर अपना अहम निर्णय देते हुए भारत में प्रचलित गूगल, याहू , माइक्रोसॉफ्ट, बिंग जैसे वेब सर्च इंजिन्स पर भ्रूण से संबंधित किसी भी तरह की जानकारी देने वाले विज्ञापनों को पाबंद करने का आदेश दिया है ताकि भ्रूण से संबंधित जानकारी की आड़ में प्रि-नेटल सेक्स डिटरमिनेशन संबंधी विज्ञापनों के जरएि इस कुप्रथा को बढ़ावा देने पर रोक लगाई जा सके।
अभी तक किसी शब्द को खोजते ही ये सर्च इंजिन उस शब्द से संबंधित वेब सामग्री तो दिखाते ही थे साथ ही इससे संबंधित सामग्री के ठीक ऊपर दो या तीन मुख्य विज्ञापन और सर्च पेज के साइड में फिर उन्हीं विज्ञापनों की लंबी फेहरिस्त हुआ करती है। यदि एक ही तरह के या इससे मिलते जुलते शब्द सर्च किये जाते हैं तो उससे संबंधित डाटा सर्च इंजिन्स में दर्ज़ हो जाता है। ऐसे में जब भी आप सर्च करेंगे तो उससे संबंधित विज्ञापनों पर नजर पड़ना स्वाभाविक है।
ज़ाहिर है कि इन विज्ञापनों के कारण प्रि-नेटल सेक्स डिटरमिनेशन यानि जन्म से पहले भ्रूण की स्थिति का पता लगाने संबंधी वेबसाइटों के लिंक्स आसानी से उपलब्ध होते हैं और यही लिंक्स भ्रूण के लिंग का पता लगाने वाली वेबसाइट्स का भी पता देती हैं। यानि सब- कुछ कानून के दायरे में आए बिना आसानी से मिलता रहा है। आईटी एक्ट में भी ऐसा कोई प्राविधान अभी तक नहीं है कि जन्म से पहले भ्रूण की स्थिति जानना वर्जित माना जाता हो और इसी का फायदा सर्च इंजिन्स ने उठाया है।
इसके अलावा भ्रूण परीक्षण कानून (पीसी पीएनडीटी एक्ट) की धारा 22 में भी वेब सर्च इंजिन्स या इंटरनेट से जुड़ी किसी भी माध्यम की भागीदारी से संबंधित कोई दिशा- निर्देश नहीं दिये गये हैं। ये शायद इसलिए संभव था क्योंकि यह कानून 1994 में बना था और तब इंटरनेट के आम या इतने वृहद उपयोग के बारे में सोचा भी नहीं गया किंतु आज सर्च इंजिन्स पर सारी सूचनाएं लगभग मुफ्त में ही मिल जाती हैं।
गौरतलब है कि पीसी एंड पीएनडीटी अधिनियम के अंर्तगत एफ-फॉर्म भरा जाता है। इसमें गर्भवती महिला का पूरा नाम, पता, सोनोग्राफी का प्रकार, तारीख, गर्भस्थ शिशु की स्थिति , बीमारी, सोनोग्राफी करने वाली संस्था और डॉक्टर सहित विस्तृत जानकारी कुल 19 कॉलम में भरकर देनी होती है। उस समय बनाए गए इस कानून के अंतर्गत चोरी छिपे भ्रूण लिंग परीक्षण करने वाले डॉक्टरों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत कार्यवाही करने का प्राविधान है।
नई चुनौती के रूप में अब इंटरनेट इसमें नया कारक बन के उभरा है।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट में कल दिए गये सरकारी हलफनामे के तहत ऐसी साइट्स को बिना यूआरएल व आईपी एड्रेस के ब्लॉक करने में असमर्थता जताई गई क्योंकि जब तक आईपी एड्रेस और संबंधित साइट्स के यूआरएल सरकार को मुहैया नहीं कराए जाते तब तक वह इन्हें प्रतिबंधित नहीं कर सकती। इसका हालिया समाधान जस्टिस दीपक मिश्रा व पी सी पंत ने यही दिया कि जब तक आई टी एक्ट में नये प्राविधान क्लैरीफाई नहीं होते तब तक सर्च इंजिन पर आने वाले विज्ञापनों को हटा लिया जाए या फिर कंपनियां उन पर स्वयं ही अंकुश लगायें।
इस पर समाज के लिए अपनी जिम्मेदारी से बचते हुए गूगल, याहू व अन्य कंपनियों की ओर से बेहद लापरवाह दलील दी गई कि भ्रूण परीक्षण की पूरी जानकारी देने वाली इन वेबसाइट्स के बारे में देखना होगा कि कानून में ऐसा कोई प्राविधान है कि नहीं। कंपनियों की ओर से एक बात और बेहद महत्वपूर्ण कही गई कि '' विज्ञापन देना अलग बात है और कोई चर्चा या लेख दूसरी बात है ''। इसका सीधा- सीधा मतलब तो यही निकलता है कि वे भारत में अपना बाजार पाने के लिए सामाजिक जिम्मेदारी की परवाह नहीं करेंगी।
गौरतलब है कि जन्म से पहले भ्रूण के लिंग का पता लगाने की कुप्रवृत्ति के कारण इस समय तक न जाने कितनी बच्च्यिों को जन्म से पहले ही मारा जा चुका है। देश के अधिकांश प्रदेशों में इस कुप्रवृत्ति ने अपनी जड़ें जमा रखी हैं। अभी तक तो यही समझा जाता था कि कम पढ़े-लिखे या अनपढ़ व ग्रामीण लोगों में लड़कियों की पैदाइश को बुरा मानते हैं मगर शहरी क्षेत्रों से आने वाले आंकड़ों ने सरकार और गैरसरकारी संगठनों के कान खड़े कर दिए हैं कि यह प्रवृत्ति कमोवेश पूरे देश में व्याप्त हो चुकी है और इसके खात्मे के लिए हर स्तर पर जागरूकता प्रोग्राम चलाए जाने चाहिए, साथ ही कड़े दंड का प्राविधान भी होना चाहिए ।
आमिर खान के शो '' सत्यमेव जयते'' में भी तो शहरी क्षेत्रों से आए लोगों ने इस सच को और शिक्षितों में भी बढ़ रही इसकी क्रूरता को बखूबी बयान किया था, अब साबू मैथ्यू जॉर्ज की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय इंटरनेट के बढ़ते दायरे, इसके सदुपयोग और दुरुपयोग पर फिर से बहस की जरूरत को रेखांकित करता है कि आखिर संचार का जो जाल विशाल से विशालतर होता जा रहा है वह जिस जनता के दम पर अपना बाजार स्थापित कर रहा है उसके हित में वह कितना योगदान दे रहा है।
कन्या भ्रूण हत्या को लेकर वेब मीडिया और सर्च इंजिन्स को भी कठघरे में लाकर साबू मैथ्यू जॉर्ज की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जो नेक काम किया है, वह निश्चित ही इस कुप्रथा को कम से कम एक नये एंगल से सोचने पर विवश अवश्य करेगा ।
दूरदराज के इलाकों वाले अशिक्षित समाज में कन्या भ्रूण हत्या को अंजाम देने वालों से ज्यादा शहरी और शिक्षित परिवारों में बेटा और बेटी के बीच फ़र्क किये जाने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट का ये नया तमाचा है जो उनके शिक्षित होने पर भी सवाल खड़े करता है क्योंकि अब भी इंटरनेट का सर्वाधिक उपयोग शिक्षित समाज ही करता है और सर्च इंजिन्स का यही सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
बहरहाल, सर्च इंजिन कंपनियों द्वारा इस मुद्दे पर चर्चा की बात छेड़े जाने के बाद यह तो कहा ही जा सकता है कि क्या कोई चर्चा ऐसी भी कराई जानी चाहिए जिसमें कहा जाए कि हमें लड़कियां चाहिए ही नहीं... या लोगों से कहा जाए कि वो स्वतंत्र हैं आबादी से लड़कियों को पूरी तरह हटाने को... । ज़ाहिर है कि कानून पर चर्चा तो होती रहनी चाहिए और समय व जरूरतों के मुताबिक इन्हें तब्दील भी किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यही करने का व कहने का प्रयास किया है। हमें समय की इन नई चुनौतियों के लिए तैयार रहना होगा, साथ ही यह भी कि बाजार द्वारा समाज को प्रभावित करने के मामले में, ये चलेगा मगर ये नहीं चलेगा जैसी भ्रामक मानसिकता त्यागनी होगी। एक स्पष्ट सोच के साथ ही इस सामाजिक बुराई का अंत संभव है क्योंकि कोर्ट हमें रास्ता तो दिखा सकते हैं पर घर-घर जाकर सोच पर ताला नहीं जड़ सकते।
- अलकनंदा सिंह
कल सुप्रीम कोर्ट ने कन्या भ्रूण हत्या से संबंधित वेब सर्चिंग पर अपना अहम निर्णय देते हुए भारत में प्रचलित गूगल, याहू , माइक्रोसॉफ्ट, बिंग जैसे वेब सर्च इंजिन्स पर भ्रूण से संबंधित किसी भी तरह की जानकारी देने वाले विज्ञापनों को पाबंद करने का आदेश दिया है ताकि भ्रूण से संबंधित जानकारी की आड़ में प्रि-नेटल सेक्स डिटरमिनेशन संबंधी विज्ञापनों के जरएि इस कुप्रथा को बढ़ावा देने पर रोक लगाई जा सके।
अभी तक किसी शब्द को खोजते ही ये सर्च इंजिन उस शब्द से संबंधित वेब सामग्री तो दिखाते ही थे साथ ही इससे संबंधित सामग्री के ठीक ऊपर दो या तीन मुख्य विज्ञापन और सर्च पेज के साइड में फिर उन्हीं विज्ञापनों की लंबी फेहरिस्त हुआ करती है। यदि एक ही तरह के या इससे मिलते जुलते शब्द सर्च किये जाते हैं तो उससे संबंधित डाटा सर्च इंजिन्स में दर्ज़ हो जाता है। ऐसे में जब भी आप सर्च करेंगे तो उससे संबंधित विज्ञापनों पर नजर पड़ना स्वाभाविक है।
ज़ाहिर है कि इन विज्ञापनों के कारण प्रि-नेटल सेक्स डिटरमिनेशन यानि जन्म से पहले भ्रूण की स्थिति का पता लगाने संबंधी वेबसाइटों के लिंक्स आसानी से उपलब्ध होते हैं और यही लिंक्स भ्रूण के लिंग का पता लगाने वाली वेबसाइट्स का भी पता देती हैं। यानि सब- कुछ कानून के दायरे में आए बिना आसानी से मिलता रहा है। आईटी एक्ट में भी ऐसा कोई प्राविधान अभी तक नहीं है कि जन्म से पहले भ्रूण की स्थिति जानना वर्जित माना जाता हो और इसी का फायदा सर्च इंजिन्स ने उठाया है।
इसके अलावा भ्रूण परीक्षण कानून (पीसी पीएनडीटी एक्ट) की धारा 22 में भी वेब सर्च इंजिन्स या इंटरनेट से जुड़ी किसी भी माध्यम की भागीदारी से संबंधित कोई दिशा- निर्देश नहीं दिये गये हैं। ये शायद इसलिए संभव था क्योंकि यह कानून 1994 में बना था और तब इंटरनेट के आम या इतने वृहद उपयोग के बारे में सोचा भी नहीं गया किंतु आज सर्च इंजिन्स पर सारी सूचनाएं लगभग मुफ्त में ही मिल जाती हैं।
गौरतलब है कि पीसी एंड पीएनडीटी अधिनियम के अंर्तगत एफ-फॉर्म भरा जाता है। इसमें गर्भवती महिला का पूरा नाम, पता, सोनोग्राफी का प्रकार, तारीख, गर्भस्थ शिशु की स्थिति , बीमारी, सोनोग्राफी करने वाली संस्था और डॉक्टर सहित विस्तृत जानकारी कुल 19 कॉलम में भरकर देनी होती है। उस समय बनाए गए इस कानून के अंतर्गत चोरी छिपे भ्रूण लिंग परीक्षण करने वाले डॉक्टरों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत कार्यवाही करने का प्राविधान है।
नई चुनौती के रूप में अब इंटरनेट इसमें नया कारक बन के उभरा है।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट में कल दिए गये सरकारी हलफनामे के तहत ऐसी साइट्स को बिना यूआरएल व आईपी एड्रेस के ब्लॉक करने में असमर्थता जताई गई क्योंकि जब तक आईपी एड्रेस और संबंधित साइट्स के यूआरएल सरकार को मुहैया नहीं कराए जाते तब तक वह इन्हें प्रतिबंधित नहीं कर सकती। इसका हालिया समाधान जस्टिस दीपक मिश्रा व पी सी पंत ने यही दिया कि जब तक आई टी एक्ट में नये प्राविधान क्लैरीफाई नहीं होते तब तक सर्च इंजिन पर आने वाले विज्ञापनों को हटा लिया जाए या फिर कंपनियां उन पर स्वयं ही अंकुश लगायें।
इस पर समाज के लिए अपनी जिम्मेदारी से बचते हुए गूगल, याहू व अन्य कंपनियों की ओर से बेहद लापरवाह दलील दी गई कि भ्रूण परीक्षण की पूरी जानकारी देने वाली इन वेबसाइट्स के बारे में देखना होगा कि कानून में ऐसा कोई प्राविधान है कि नहीं। कंपनियों की ओर से एक बात और बेहद महत्वपूर्ण कही गई कि '' विज्ञापन देना अलग बात है और कोई चर्चा या लेख दूसरी बात है ''। इसका सीधा- सीधा मतलब तो यही निकलता है कि वे भारत में अपना बाजार पाने के लिए सामाजिक जिम्मेदारी की परवाह नहीं करेंगी।
गौरतलब है कि जन्म से पहले भ्रूण के लिंग का पता लगाने की कुप्रवृत्ति के कारण इस समय तक न जाने कितनी बच्च्यिों को जन्म से पहले ही मारा जा चुका है। देश के अधिकांश प्रदेशों में इस कुप्रवृत्ति ने अपनी जड़ें जमा रखी हैं। अभी तक तो यही समझा जाता था कि कम पढ़े-लिखे या अनपढ़ व ग्रामीण लोगों में लड़कियों की पैदाइश को बुरा मानते हैं मगर शहरी क्षेत्रों से आने वाले आंकड़ों ने सरकार और गैरसरकारी संगठनों के कान खड़े कर दिए हैं कि यह प्रवृत्ति कमोवेश पूरे देश में व्याप्त हो चुकी है और इसके खात्मे के लिए हर स्तर पर जागरूकता प्रोग्राम चलाए जाने चाहिए, साथ ही कड़े दंड का प्राविधान भी होना चाहिए ।
आमिर खान के शो '' सत्यमेव जयते'' में भी तो शहरी क्षेत्रों से आए लोगों ने इस सच को और शिक्षितों में भी बढ़ रही इसकी क्रूरता को बखूबी बयान किया था, अब साबू मैथ्यू जॉर्ज की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय इंटरनेट के बढ़ते दायरे, इसके सदुपयोग और दुरुपयोग पर फिर से बहस की जरूरत को रेखांकित करता है कि आखिर संचार का जो जाल विशाल से विशालतर होता जा रहा है वह जिस जनता के दम पर अपना बाजार स्थापित कर रहा है उसके हित में वह कितना योगदान दे रहा है।
कन्या भ्रूण हत्या को लेकर वेब मीडिया और सर्च इंजिन्स को भी कठघरे में लाकर साबू मैथ्यू जॉर्ज की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जो नेक काम किया है, वह निश्चित ही इस कुप्रथा को कम से कम एक नये एंगल से सोचने पर विवश अवश्य करेगा ।
दूरदराज के इलाकों वाले अशिक्षित समाज में कन्या भ्रूण हत्या को अंजाम देने वालों से ज्यादा शहरी और शिक्षित परिवारों में बेटा और बेटी के बीच फ़र्क किये जाने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट का ये नया तमाचा है जो उनके शिक्षित होने पर भी सवाल खड़े करता है क्योंकि अब भी इंटरनेट का सर्वाधिक उपयोग शिक्षित समाज ही करता है और सर्च इंजिन्स का यही सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
बहरहाल, सर्च इंजिन कंपनियों द्वारा इस मुद्दे पर चर्चा की बात छेड़े जाने के बाद यह तो कहा ही जा सकता है कि क्या कोई चर्चा ऐसी भी कराई जानी चाहिए जिसमें कहा जाए कि हमें लड़कियां चाहिए ही नहीं... या लोगों से कहा जाए कि वो स्वतंत्र हैं आबादी से लड़कियों को पूरी तरह हटाने को... । ज़ाहिर है कि कानून पर चर्चा तो होती रहनी चाहिए और समय व जरूरतों के मुताबिक इन्हें तब्दील भी किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यही करने का व कहने का प्रयास किया है। हमें समय की इन नई चुनौतियों के लिए तैयार रहना होगा, साथ ही यह भी कि बाजार द्वारा समाज को प्रभावित करने के मामले में, ये चलेगा मगर ये नहीं चलेगा जैसी भ्रामक मानसिकता त्यागनी होगी। एक स्पष्ट सोच के साथ ही इस सामाजिक बुराई का अंत संभव है क्योंकि कोर्ट हमें रास्ता तो दिखा सकते हैं पर घर-घर जाकर सोच पर ताला नहीं जड़ सकते।
- अलकनंदा सिंह
शुक्रवार, 23 जनवरी 2015
गलीज़ धंधे वालियों के लिए
अकसर कहा जाता है कि किसी भी समाज में बड़े बदलाव उस समाज में औरतों की स्थिति और उनकी सामाजिक प्रगति के साथ ही आते हैं । समाज में आम तौर पर औरतों की दशा के ऊपर व्याख्यानों - विमर्शों तथा दावों के प्रलाप भी होते रहते हैं मगर इस कथित प्रगति-गाथा के बीच कहीं भी नहीं गिनी जातीं वे औरतें , जिनके गले हुए शरीरों पर चढ़कर समाज नैतिकताओं के ऊंचे महल स्थापित करता है और यही समाज उन्हें ' बुरी औरतें या गलीज़ धंधे वाली ' होने की संज्ञा भी देता है। समाज ने ही जिंदगी के ' ब्लैक एंड व्हाइट ' पोस्टर में से इस ' बुरे धंधे' का ग्रे शेड अपने स्वार्थों के लिए निकाला मगर उसकी सेहत और सुरक्षा के लिए कोई उपाय नहीं किये ।
समाज की इसी तस्वीर का दूसरा पहलू उन गैर सरकारी संस्थाओं का है जो '' बुरे काम में लगी '' इन औरतों की बदहाली के लिए कुछ अच्छा करने का प्रयास लगातार करती रहती हैं । उन्होंने ही ये महसूस किया कि समाज के लिए ये औरतें कितनी भी उपेक्षित क्यों ना मान ली गई हों मगर इन्हें भी दरकार होती है स्वच्छ वातावरण की , अच्छे स्वास्थ्य की , अपने बच्चों के लिए बेहतर भविष्य की। इन्हीं गैर सरकारी संस्थाओं के प्रयास के बाद '' इन बुरी करार दे दी गई औरतों को पेशेवर यौनकर्मी कहा जाने लगा मगर उनके लिए अलग से निर्धारित की गईं बस्तियां अभी भी स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे बेसिक जरूरतों की खातिर सरकारों के लिए अछूत बनी हुई हैं ।
पश्चिम बंगाल की ऐसी ही एक बस्ती है सोनागाछी और इतनी ही अलग है इसकी
गाथा और इसी गाथा में शामिल हैं स्वयंसेवी संगठन जिनके प्रयासों से आज सोनागाछी , अब अपने लिए बुनियादी जरूरतों के बारे में बहुत कुछ जानना चाहती है और जो अपनी परिस्थितियों को बेहतर बनाने की ओर प्रयासरत है ।
इस काम में पश्चिम बंगाल में 1,30,000 यौनकर्मियों का संगठन दरबार महिला समन्वय समिति (डीएमएससी) की कई पहल काबिलेगौर हैं जिनमें तकरीबन दो साल पहले देह व्यापार के लिए हो रही नाबालिगों की मानव तस्करी को रोकने तथा यौनकर्मियों के मूल अधिकारों को सुदृढ़ कर उन्हें सशक्त बनाने के उद्देश्य से कोलकाता में छह दिवसीय यौनकर्मी महोत्सव हुआ था । तब इस महोत्सव में 14 राज्यों से यौनकर्म से जुड़े समुदाय के हजारों लोगों ने हिस्सा लिया। इसी दरबार महिला समन्वय समिति (डीएमएससी) ने इस महोत्सव की मेजबानी करते हुए मोहत्सव की थीम 'प्रोतिवादे नारी, प्रोतिरोधे नारी' रखी थी।
कोलकाता के तिकोना पार्क में चले इस महोत्सव में रोजाना लगभग 3,000 यौनकर्मियों ने हिस्सा लिया था। महोत्सव में फिल्म का प्रदर्शन, रंगमंच और नृत्य इत्यादि के जरिए समुदाय की महिलाओं को सशक्तीकरण के लिए प्रेरित किया गया था । दरबार महिला समन्वय समिति (डीएमएससी) की ही शाखा 'सोनागाछी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान' के प्रिंसिपल समरजीत जाना बताते हैं कि इस महोत्सव के जरिए ग़लीज धंधे वालियों के इस समुदाय को समाज से मिलने वाले हर तरह के बहिष्कार के खिलाफ लड़ाई को आगे बढ़ाने का हौसला मिला ।
इस आयोजन की सफलता के बाद पिछले दिनों दरबार महिला समन्वय समिति (डीएमएससी) ने एक और काबिलेगौर कदम उठाया जब यौनकर्मियों को इबोला से बचाने के लिए आगाह किया गया था । इबोला वायरस से जहां पूरी दुनिया लड़ने के अनेक तरीके खोज रही थी , वहीं दरबार महिला समन्वय समिति (डीएम एससी) ने बाकायदा चेतावनी जारी की कि यदि यौनकर्मी इबोला संक्रमित लोगों से संबंध बनाते हैं तो उनकी जान जोखिम में पड़ सकती है । संस्था ने उन्हें अफ्रीकी देशों के नागरिकों से संबंध नहीं बनाने को कहा और बाकायदा उन्हें समझाया कि यह इबोला का वायरस संक्रमित व्यक्ति के पसीने, लार, खांसी एवं शरीर के संपर्क से फैलता है।
उक्त प्रयासों के बाद अभी हाल ही में एक महत्वपूर्ण योजना पर काम किया गया है जिसके अंतर्गत दरबार महिला समन्वय समिति (डीएमएससी) की शोध शाखा सोनागाछी रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (एसआरटीआई) के ज़रिये अब यौनकर्मियों को एड्स के संक्रमण से बचाना आसान हो सकेगा।
यौनकर्मियों को एड्स के संक्रमण से बचाने के लिए कोलकाता में एक नयी योजना शुरू की जा रही है। इस योजना की शुरुआत भी एशिया में देह व्यापार के सबसे बड़े बाजार ' सोनागाछी' से होगी। ऐसा होने पर सोनागाछी देश में इस तरह का पहला इलाका होगा जहां परियोजना लागू की जायेगी।
सोनागाछी रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (एसआरटीआई) के ही एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार इस परियोजना का नाम '' प्री-एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस (पीआरईपी)'' है जिस के तहत एचआईवी से ग्रस्त व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाने वाली असंक्रमित यौन कर्मियों को नियमित तौर पर दवाएं दी जायेंगी।
इस बारे में सोनागाछी रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (एसआरटीआई) के प्रधान समरजीत जना कहते हैं कि इन दवाओं से यौनकर्मियों को एचआईवी विषाणु के संक्रमण से बचने में मदद मिलेगी। इस परियोजना का सारा खर्च बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन उठायेगी। फिलहाल एसआरटीआई ने परियोजना की पूरी रिपोर्ट केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को सौंप दी है और अब राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) की मंजूरी का इंतजार किया जा रहा है। अगले कुछ महीनों में नाको से इसके मंजूरी मिलने की संभावना है । एसआरटीआई के विशेषज्ञ कहते हैं कि कंडोम के इस्तेमाल और हर रोज पीआरईपी दवाएं लेने से एचआईवी संक्रमण से सुरक्षा दोहरी हो जायेगी।
राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) के राष्ट्रीय कार्यक्रम अधिकारी बीबी रेवाडी के अनुसार चूंकि एड्स फैलने के लिए यौनकर्मी सबसे ज्यादा खतरे वाले समूहों में आते हैं और पीआरईपी के तहत खतरे के कारकों को 60-70 प्रतिशत कम करने की क्षमता है। अत: यदि यह परियोजना अपने लक्ष्य को हासिल करती है तो यौनकर्मियों को बहुत हद तक लाभ पहुंचाया जा सकता है ।
हालांकि अभी तो दरबार महिला समन्वय समिति (डीएम एससी) से कुछ दिनों पहले ही परियोजना की रिपोर्ट राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) को मिली है और इसका अध्ययन किया जा रहा है । पीआरईपी अभी देश में कहीं और नहीं इसलिए इस परियोजना को मंजूरी मिलने पर इसे सबसे पहले सोनागाछी में ही लागू किया जायेगा। विशेषज्ञों के अनुसार पीआरईपी लागू होने के साथ साथ कुछ चीजों पर भी ध्यान दिये जाने की जरूरत है जैसे विशेषकर यौनकर्मियों समेत समाज में भी इसकी स्वीकार्यता हो । विदेशों में एचआईवी संक्रमण को रोकने में कंडोम के इस्तेमाल के साथ औषधीय उपचार बहुत सफल रहा है.
एड्स सोसाइटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष आईएस गिलाडा ने इस कदम का स्वागत करते हुए कहा कि इससे देश में एड्स के प्रसार को कम करने में मदद मिलेगी।
बहरहाल संकोचों से भरे हमारे देश के समाज में आज तक एड्स को लेकर पूरा सच न बोला गया और न पूछा गया । जितना भी संकेतों से , विज्ञापनों से, फिल्मों से समझाया गया है , वह बिल्कुल ही नाकाफी है । आमजन की ये झिझक अभी भी जीवन की सुरक्षा पर भारी पड़ने वाली इस संक्रामक बीमारी के खतरे को दायें बायें ही कर देती रही है, ऐसे में कम से कम यौनकर्मियों के चुनौतियों भरे जीवन के लिए दरबार महिला समन्वय समिति (डीएम एससी), सोनागाछी रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (एसआरटीआई) और राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) के संयुक्त प्रयासों का सफल होना बेहद जरूरी है और दरबार समिति के पिछले अभियानों की सफलता इस ओर से आश्वस्त तो करती ही है ।
अब कदम ब के कदम ही सही दरबार जैसी स्वयंसेवी संस्थाओं के बढ़ते हौसले , ये बताने के लिए काफी हैं कि समाज की तस्वीर ब्लैक एंड व्हाइट ही नहीं होती बल्कि इसमें वो ग्रे शेड भी मौजूद है जो अपने लिए , अपनों के लिए मौलिक अधिकारों और अच्छे स्वास्थ्य की बात करने लगा है। निश्चित ही सरकारों और स्वयंसेवी संस्थाओं का संयुक्त प्रयास सोनागाछी जैसी बस्तियों के लिए वरदान सरीखा होगा।
- अलकनंदा सिंह
समाज की इसी तस्वीर का दूसरा पहलू उन गैर सरकारी संस्थाओं का है जो '' बुरे काम में लगी '' इन औरतों की बदहाली के लिए कुछ अच्छा करने का प्रयास लगातार करती रहती हैं । उन्होंने ही ये महसूस किया कि समाज के लिए ये औरतें कितनी भी उपेक्षित क्यों ना मान ली गई हों मगर इन्हें भी दरकार होती है स्वच्छ वातावरण की , अच्छे स्वास्थ्य की , अपने बच्चों के लिए बेहतर भविष्य की। इन्हीं गैर सरकारी संस्थाओं के प्रयास के बाद '' इन बुरी करार दे दी गई औरतों को पेशेवर यौनकर्मी कहा जाने लगा मगर उनके लिए अलग से निर्धारित की गईं बस्तियां अभी भी स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे बेसिक जरूरतों की खातिर सरकारों के लिए अछूत बनी हुई हैं ।
पश्चिम बंगाल की ऐसी ही एक बस्ती है सोनागाछी और इतनी ही अलग है इसकी
गाथा और इसी गाथा में शामिल हैं स्वयंसेवी संगठन जिनके प्रयासों से आज सोनागाछी , अब अपने लिए बुनियादी जरूरतों के बारे में बहुत कुछ जानना चाहती है और जो अपनी परिस्थितियों को बेहतर बनाने की ओर प्रयासरत है ।
इस काम में पश्चिम बंगाल में 1,30,000 यौनकर्मियों का संगठन दरबार महिला समन्वय समिति (डीएमएससी) की कई पहल काबिलेगौर हैं जिनमें तकरीबन दो साल पहले देह व्यापार के लिए हो रही नाबालिगों की मानव तस्करी को रोकने तथा यौनकर्मियों के मूल अधिकारों को सुदृढ़ कर उन्हें सशक्त बनाने के उद्देश्य से कोलकाता में छह दिवसीय यौनकर्मी महोत्सव हुआ था । तब इस महोत्सव में 14 राज्यों से यौनकर्म से जुड़े समुदाय के हजारों लोगों ने हिस्सा लिया। इसी दरबार महिला समन्वय समिति (डीएमएससी) ने इस महोत्सव की मेजबानी करते हुए मोहत्सव की थीम 'प्रोतिवादे नारी, प्रोतिरोधे नारी' रखी थी।
कोलकाता के तिकोना पार्क में चले इस महोत्सव में रोजाना लगभग 3,000 यौनकर्मियों ने हिस्सा लिया था। महोत्सव में फिल्म का प्रदर्शन, रंगमंच और नृत्य इत्यादि के जरिए समुदाय की महिलाओं को सशक्तीकरण के लिए प्रेरित किया गया था । दरबार महिला समन्वय समिति (डीएमएससी) की ही शाखा 'सोनागाछी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान' के प्रिंसिपल समरजीत जाना बताते हैं कि इस महोत्सव के जरिए ग़लीज धंधे वालियों के इस समुदाय को समाज से मिलने वाले हर तरह के बहिष्कार के खिलाफ लड़ाई को आगे बढ़ाने का हौसला मिला ।
इस आयोजन की सफलता के बाद पिछले दिनों दरबार महिला समन्वय समिति (डीएमएससी) ने एक और काबिलेगौर कदम उठाया जब यौनकर्मियों को इबोला से बचाने के लिए आगाह किया गया था । इबोला वायरस से जहां पूरी दुनिया लड़ने के अनेक तरीके खोज रही थी , वहीं दरबार महिला समन्वय समिति (डीएम एससी) ने बाकायदा चेतावनी जारी की कि यदि यौनकर्मी इबोला संक्रमित लोगों से संबंध बनाते हैं तो उनकी जान जोखिम में पड़ सकती है । संस्था ने उन्हें अफ्रीकी देशों के नागरिकों से संबंध नहीं बनाने को कहा और बाकायदा उन्हें समझाया कि यह इबोला का वायरस संक्रमित व्यक्ति के पसीने, लार, खांसी एवं शरीर के संपर्क से फैलता है।
उक्त प्रयासों के बाद अभी हाल ही में एक महत्वपूर्ण योजना पर काम किया गया है जिसके अंतर्गत दरबार महिला समन्वय समिति (डीएमएससी) की शोध शाखा सोनागाछी रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (एसआरटीआई) के ज़रिये अब यौनकर्मियों को एड्स के संक्रमण से बचाना आसान हो सकेगा।
यौनकर्मियों को एड्स के संक्रमण से बचाने के लिए कोलकाता में एक नयी योजना शुरू की जा रही है। इस योजना की शुरुआत भी एशिया में देह व्यापार के सबसे बड़े बाजार ' सोनागाछी' से होगी। ऐसा होने पर सोनागाछी देश में इस तरह का पहला इलाका होगा जहां परियोजना लागू की जायेगी।
सोनागाछी रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (एसआरटीआई) के ही एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार इस परियोजना का नाम '' प्री-एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस (पीआरईपी)'' है जिस के तहत एचआईवी से ग्रस्त व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाने वाली असंक्रमित यौन कर्मियों को नियमित तौर पर दवाएं दी जायेंगी।
इस बारे में सोनागाछी रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (एसआरटीआई) के प्रधान समरजीत जना कहते हैं कि इन दवाओं से यौनकर्मियों को एचआईवी विषाणु के संक्रमण से बचने में मदद मिलेगी। इस परियोजना का सारा खर्च बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन उठायेगी। फिलहाल एसआरटीआई ने परियोजना की पूरी रिपोर्ट केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को सौंप दी है और अब राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) की मंजूरी का इंतजार किया जा रहा है। अगले कुछ महीनों में नाको से इसके मंजूरी मिलने की संभावना है । एसआरटीआई के विशेषज्ञ कहते हैं कि कंडोम के इस्तेमाल और हर रोज पीआरईपी दवाएं लेने से एचआईवी संक्रमण से सुरक्षा दोहरी हो जायेगी।
राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) के राष्ट्रीय कार्यक्रम अधिकारी बीबी रेवाडी के अनुसार चूंकि एड्स फैलने के लिए यौनकर्मी सबसे ज्यादा खतरे वाले समूहों में आते हैं और पीआरईपी के तहत खतरे के कारकों को 60-70 प्रतिशत कम करने की क्षमता है। अत: यदि यह परियोजना अपने लक्ष्य को हासिल करती है तो यौनकर्मियों को बहुत हद तक लाभ पहुंचाया जा सकता है ।
हालांकि अभी तो दरबार महिला समन्वय समिति (डीएम एससी) से कुछ दिनों पहले ही परियोजना की रिपोर्ट राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) को मिली है और इसका अध्ययन किया जा रहा है । पीआरईपी अभी देश में कहीं और नहीं इसलिए इस परियोजना को मंजूरी मिलने पर इसे सबसे पहले सोनागाछी में ही लागू किया जायेगा। विशेषज्ञों के अनुसार पीआरईपी लागू होने के साथ साथ कुछ चीजों पर भी ध्यान दिये जाने की जरूरत है जैसे विशेषकर यौनकर्मियों समेत समाज में भी इसकी स्वीकार्यता हो । विदेशों में एचआईवी संक्रमण को रोकने में कंडोम के इस्तेमाल के साथ औषधीय उपचार बहुत सफल रहा है.
एड्स सोसाइटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष आईएस गिलाडा ने इस कदम का स्वागत करते हुए कहा कि इससे देश में एड्स के प्रसार को कम करने में मदद मिलेगी।
बहरहाल संकोचों से भरे हमारे देश के समाज में आज तक एड्स को लेकर पूरा सच न बोला गया और न पूछा गया । जितना भी संकेतों से , विज्ञापनों से, फिल्मों से समझाया गया है , वह बिल्कुल ही नाकाफी है । आमजन की ये झिझक अभी भी जीवन की सुरक्षा पर भारी पड़ने वाली इस संक्रामक बीमारी के खतरे को दायें बायें ही कर देती रही है, ऐसे में कम से कम यौनकर्मियों के चुनौतियों भरे जीवन के लिए दरबार महिला समन्वय समिति (डीएम एससी), सोनागाछी रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (एसआरटीआई) और राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) के संयुक्त प्रयासों का सफल होना बेहद जरूरी है और दरबार समिति के पिछले अभियानों की सफलता इस ओर से आश्वस्त तो करती ही है ।
अब कदम ब के कदम ही सही दरबार जैसी स्वयंसेवी संस्थाओं के बढ़ते हौसले , ये बताने के लिए काफी हैं कि समाज की तस्वीर ब्लैक एंड व्हाइट ही नहीं होती बल्कि इसमें वो ग्रे शेड भी मौजूद है जो अपने लिए , अपनों के लिए मौलिक अधिकारों और अच्छे स्वास्थ्य की बात करने लगा है। निश्चित ही सरकारों और स्वयंसेवी संस्थाओं का संयुक्त प्रयास सोनागाछी जैसी बस्तियों के लिए वरदान सरीखा होगा।
- अलकनंदा सिंह
सोमवार, 19 जनवरी 2015
किन्नरों के संगीत पर एलबम जारी
अलग-अलग पृष्ठभूमि के नौ किन्नरों ने मिलकर एक संगीत एलबम जारी किया है,
जिसे उन्होंने साथी किन्नरों के सशक्तिकरण के लिए अपनी यात्रा का हिस्सा
बताया है। ‘सांग्स ऑफ कारवां’ नाम की इस एलबम का विमोचन यहां माकपा पोलित
ब्यूरो की सदस्य वृंदा करात और स्वामी अग्निवेश ने किया। करात ने इस मौके
पर किन्नरों के प्रति लोगों की संवेदनशीलता की कमी के बारे में बात की।
उन्होंने कहा, कई लोगों की मदद से इन किन्नरों ने ऐसी एलबम जारी की है जिससे भारतीय समाज के लिए यह संदेश जाता है कि इस समुदाय के पास अधिकार हैं और ये उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ने में मदद करेंगे। एलबम में मणिपुर, महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, राजस्थान, कोलकाता, कर्नाटक और तमिलनाडु का प्रतिनिधित्व करने वाले 13 गीत हैं।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के सहयोग से एलबम जारी किया गया है और प्लेनेट रोमियो फाउंडेशन ने जीवन ट्रस्ट तथा अभिव्यक्ति फाउंडेशन, इंडिया के सहयोग से इसे प्रायोजित किया है।
जीवन ट्रस्ट के निदेशक अनुभव गुप्ता ने कहा, किन्नरों के परंपरागत चित्रण को समाप्त करने का विचार है। किन्नरों को भारत में एक अलग अंदाज में और कुछ विशेष मौकों पर गाने वाले के तौर पर जाना जाता है और हमारी सोच वहीं तक सीमित है।
-एजेंसी
उन्होंने कहा, कई लोगों की मदद से इन किन्नरों ने ऐसी एलबम जारी की है जिससे भारतीय समाज के लिए यह संदेश जाता है कि इस समुदाय के पास अधिकार हैं और ये उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ने में मदद करेंगे। एलबम में मणिपुर, महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, राजस्थान, कोलकाता, कर्नाटक और तमिलनाडु का प्रतिनिधित्व करने वाले 13 गीत हैं।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के सहयोग से एलबम जारी किया गया है और प्लेनेट रोमियो फाउंडेशन ने जीवन ट्रस्ट तथा अभिव्यक्ति फाउंडेशन, इंडिया के सहयोग से इसे प्रायोजित किया है।
जीवन ट्रस्ट के निदेशक अनुभव गुप्ता ने कहा, किन्नरों के परंपरागत चित्रण को समाप्त करने का विचार है। किन्नरों को भारत में एक अलग अंदाज में और कुछ विशेष मौकों पर गाने वाले के तौर पर जाना जाता है और हमारी सोच वहीं तक सीमित है।
-एजेंसी
सोमवार, 5 जनवरी 2015
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी छापेगी भारतीय साहित्य
हिन्दुस्तान वासियों के लिए यह खुशखबरी है कि दुनिया का जाना-माना हार्वर्ड
विश्वविद्यालय भारतीय साहित्य की अमूल्य धरोहरों पर 500 किताबों की एक
श्रृंखला प्रकाशित करने जा रहा है। इस काम में उनके साथ इन्फोसिस संस्थापक
नारायण मूर्ति के बेटे रोहन मूर्ति हैं। प्रिंट और डिजिटल दोनों प्रारूपों
में हर साल पांच किताबें छापी जाएंगी। पहली कड़ी में अकबर, सूरदास और मनु
साहित्य समेत पांच पुस्तकें इसी माह लोकार्पित भी होने जा रही हैं। यह
योजना वर्ष 2115 तक पूरी हो पाएगी। इस तरह श्रेष्ठ भारतीय साहित्य दुनिया
के सामने द्विभाषा में पहुंचेगा और हमेशा के लिए संरक्षित और सुरक्षित
रहेगा। अनुदित साहित्य में पद्य, गद्य, इतिहास, दर्शन, बौद्ध, मुस्लिम,
हिन्दू ग्रंथ के अलावा और भी बहुत कुछ शामिल है।
2115 तक पूरी होगी योजना: इस योजना के तहत हर साल पांच नई पुस्तकें आएंगी। इस तरह यह योजना वर्ष 2115 तक पूरी हो पाएगी। पहली कड़ी में अकबर, सूरदास और मनु साहित्य समेत पांच पुस्तकें इसी माह लोकार्पित होने जा रही हैं। पुस्तकों का डिजिटलाइजेशन भी किया जाएगा। इस तरह श्रेष्ठ भारतीय साहित्य दुनिया के सामने द्विभाषा में पहुंचेगा और हमेशा के लिए संरक्षित और सुरक्षित रहेगा। अनुदित साहित्य में पद्य, गद्य, इतिहास, बौद्ध, मुस्लिम, हिन्दू ग्रंथ के अलावा और भी बहुत कुछ शामिल है।
हर पेज पर अंग्रेजी अनुवाद: जिन भाषाओं का साहित्य अंग्रेजी अनुवाद के साथ (द्विभाषा) पुस्तक के रूप में प्रकाशित होगा वे हैं- संस्कृत, बांग्ला, हिन्दी, मराठी, पर्सियन, तमिल, तेलुगू, उर्दू आदि। पुस्तकों में मूल भाषा का एक पृष्ठ होगा, उसके सामने वाले पेज पर अंग्रेजी अनुवाद होगा।
हार्वर्ड का यह सबसे जटिल काम: हार्वर्ड ने भारतीय साहित्य छापने का जो बीड़ा उठाया है, वह कहीं अधिक वृहद, विविध और चुनौतीपूर्ण है। न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार हार्वर्ड का यह सबसे जटिल काम है।
ऐसा न तो पहले दुनिया ने देखा, न ही भारत ने
कुछ ऐसा होने जा रहा है जो इससे पहले न तो दुनिया ने देखा, न भारत ने ही देखा। विश्वसनीय, विशुद्ध और उत्कृष्ट ये पुस्तकें वास्तव में भारत इतिहास को दुनिया के सामने लाएंगी।
-शेल्डन पोलाक, जनरल एडिटर, मूर्ति क्लासिकल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया
इस माह ये पांच पुस्तकें आएंगी
1. द हिस्ट्री ऑफ अकबर खंड-1 : 2075 रुपये
2. द स्टोरी ऑफ मनु : 2075 रुपये
3. सूफी लिरिक्स : 1886 रुपये
4. सूर ओशन: पोयम्स फ्रॉम द अर्ली ट्रेडीशन : 2205 रुपये
5. थेरीगाथा: पोयम्स ऑफ फस्र्ट बुद्धिस्ट वुमेन : 1886 रुपये
रोहन मूर्ति तब हार्वर्ड में कंप्यूटर विज्ञान के छात्र थे
मूर्ति क्लासिकल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया के जनरल एडिटर शेल्डन पोलाक पहले क्ले लाइब्रेरी में जनरल एडिटर थे। उन्होंने क्ले योजना के बीच में समाप्त होने पर संस्कृत के परे जाने के बारे में सोचा। उन्होंने इस पर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस की कार्यकारी संपादक शर्मिला सेन से बात की। शर्मिला ने नारायण मूर्ति के बेटे रोहन मूर्ति से उनका परिचय कराया। तब रोहन हार्वर्ड विश्वविद्यालय में कंप्यूटर विज्ञान के छात्र थे। उनकी उम्र 26 साल थी। 2010 में रोहन ने नई लाइब्रेरी की स्थापना के लिए 52 लाख डॉलर दिए। शर्मिला के मुताबिक वास्तव में मैं और रोहन एक ही जैसे भारत में पढ़े हैं, जहां हम शेक्सपियर की रचनाएं अपने देश की उत्कृष्ट रचनाओं से ज्यादा जानते हैं।
-एजेंसी
2115 तक पूरी होगी योजना: इस योजना के तहत हर साल पांच नई पुस्तकें आएंगी। इस तरह यह योजना वर्ष 2115 तक पूरी हो पाएगी। पहली कड़ी में अकबर, सूरदास और मनु साहित्य समेत पांच पुस्तकें इसी माह लोकार्पित होने जा रही हैं। पुस्तकों का डिजिटलाइजेशन भी किया जाएगा। इस तरह श्रेष्ठ भारतीय साहित्य दुनिया के सामने द्विभाषा में पहुंचेगा और हमेशा के लिए संरक्षित और सुरक्षित रहेगा। अनुदित साहित्य में पद्य, गद्य, इतिहास, बौद्ध, मुस्लिम, हिन्दू ग्रंथ के अलावा और भी बहुत कुछ शामिल है।
हर पेज पर अंग्रेजी अनुवाद: जिन भाषाओं का साहित्य अंग्रेजी अनुवाद के साथ (द्विभाषा) पुस्तक के रूप में प्रकाशित होगा वे हैं- संस्कृत, बांग्ला, हिन्दी, मराठी, पर्सियन, तमिल, तेलुगू, उर्दू आदि। पुस्तकों में मूल भाषा का एक पृष्ठ होगा, उसके सामने वाले पेज पर अंग्रेजी अनुवाद होगा।
हार्वर्ड का यह सबसे जटिल काम: हार्वर्ड ने भारतीय साहित्य छापने का जो बीड़ा उठाया है, वह कहीं अधिक वृहद, विविध और चुनौतीपूर्ण है। न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार हार्वर्ड का यह सबसे जटिल काम है।
ऐसा न तो पहले दुनिया ने देखा, न ही भारत ने
कुछ ऐसा होने जा रहा है जो इससे पहले न तो दुनिया ने देखा, न भारत ने ही देखा। विश्वसनीय, विशुद्ध और उत्कृष्ट ये पुस्तकें वास्तव में भारत इतिहास को दुनिया के सामने लाएंगी।
-शेल्डन पोलाक, जनरल एडिटर, मूर्ति क्लासिकल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया
इस माह ये पांच पुस्तकें आएंगी
1. द हिस्ट्री ऑफ अकबर खंड-1 : 2075 रुपये
2. द स्टोरी ऑफ मनु : 2075 रुपये
3. सूफी लिरिक्स : 1886 रुपये
4. सूर ओशन: पोयम्स फ्रॉम द अर्ली ट्रेडीशन : 2205 रुपये
5. थेरीगाथा: पोयम्स ऑफ फस्र्ट बुद्धिस्ट वुमेन : 1886 रुपये
रोहन मूर्ति तब हार्वर्ड में कंप्यूटर विज्ञान के छात्र थे
मूर्ति क्लासिकल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया के जनरल एडिटर शेल्डन पोलाक पहले क्ले लाइब्रेरी में जनरल एडिटर थे। उन्होंने क्ले योजना के बीच में समाप्त होने पर संस्कृत के परे जाने के बारे में सोचा। उन्होंने इस पर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस की कार्यकारी संपादक शर्मिला सेन से बात की। शर्मिला ने नारायण मूर्ति के बेटे रोहन मूर्ति से उनका परिचय कराया। तब रोहन हार्वर्ड विश्वविद्यालय में कंप्यूटर विज्ञान के छात्र थे। उनकी उम्र 26 साल थी। 2010 में रोहन ने नई लाइब्रेरी की स्थापना के लिए 52 लाख डॉलर दिए। शर्मिला के मुताबिक वास्तव में मैं और रोहन एक ही जैसे भारत में पढ़े हैं, जहां हम शेक्सपियर की रचनाएं अपने देश की उत्कृष्ट रचनाओं से ज्यादा जानते हैं।
-एजेंसी
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